"भागवत सम्प्रदाय" के अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - "Category:हिन्दू धर्म कोश" to "Category:हिन्दू धर्म Category:हिन्दू धर्म कोश ") |
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - "महत्व" to "महत्त्व") |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
'''इस सम्प्रदाय का प्रादुर्भाव''' उत्तर वैदिक काल में माना गया है। आगे चलकर इसका प्रभाव और भी व्यापक हो गया और [[भारत]] में बसे [[यवन|यवनों]] (यूनानियों) का भी इसकी ओर झुकाव हुआ। [[तक्षशिला]] के यवन राजा एण्टीयाल्कीडस के राजदूत योडोरस ने, जिसने 140 और 130 ई. पू. के बीच बेसनगर अथवा [[विदिशा]] में एक [[गरुड़]]-स्तम्भ निर्मित कराया, अपने को गाँव के साथ 'परम भागवत' घोषित किया है। | '''इस सम्प्रदाय का प्रादुर्भाव''' उत्तर वैदिक काल में माना गया है। आगे चलकर इसका प्रभाव और भी व्यापक हो गया और [[भारत]] में बसे [[यवन|यवनों]] (यूनानियों) का भी इसकी ओर झुकाव हुआ। [[तक्षशिला]] के यवन राजा एण्टीयाल्कीडस के राजदूत योडोरस ने, जिसने 140 और 130 ई. पू. के बीच बेसनगर अथवा [[विदिशा]] में एक [[गरुड़]]-स्तम्भ निर्मित कराया, अपने को गाँव के साथ 'परम भागवत' घोषित किया है। | ||
====मान्यता==== | ====मान्यता==== | ||
− | '''भागवत लोग वैष्णव''' के नाम से भी प्रसिद्ध थे और वासुदेव की भक्ति को भगवान का अनुग्रह और कर्म-फल से मुक्ति पाने का आधार मानते थे। [[गुप्त वंश|गुप्त]] शासकों के काल में इस सम्प्रदाय का | + | '''भागवत लोग वैष्णव''' के नाम से भी प्रसिद्ध थे और वासुदेव की भक्ति को भगवान का अनुग्रह और कर्म-फल से मुक्ति पाने का आधार मानते थे। [[गुप्त वंश|गुप्त]] शासकों के काल में इस सम्प्रदाय का महत्त्व काफ़ी बढ़ गया। कुछ गुप्त सम्राटों ने भी अपने को [[भागवत]] कहा है। कतिपय [[चालुक्य वंश|चालुक्य]] शासक भी अपने को भागवत मतावलम्बी बताते थे। |
====प्रचार-प्रसार==== | ====प्रचार-प्रसार==== |
10:37, 13 मार्च 2011 का अवतरण
भागवत सम्प्रदाय एक वैष्णव सम्प्रदाय है, जिसके अनुयायी विष्णु, वासुदेव अथवा कृष्ण की पूजा करते हैं।
प्रादुर्भाव
इस सम्प्रदाय का प्रादुर्भाव उत्तर वैदिक काल में माना गया है। आगे चलकर इसका प्रभाव और भी व्यापक हो गया और भारत में बसे यवनों (यूनानियों) का भी इसकी ओर झुकाव हुआ। तक्षशिला के यवन राजा एण्टीयाल्कीडस के राजदूत योडोरस ने, जिसने 140 और 130 ई. पू. के बीच बेसनगर अथवा विदिशा में एक गरुड़-स्तम्भ निर्मित कराया, अपने को गाँव के साथ 'परम भागवत' घोषित किया है।
मान्यता
भागवत लोग वैष्णव के नाम से भी प्रसिद्ध थे और वासुदेव की भक्ति को भगवान का अनुग्रह और कर्म-फल से मुक्ति पाने का आधार मानते थे। गुप्त शासकों के काल में इस सम्प्रदाय का महत्त्व काफ़ी बढ़ गया। कुछ गुप्त सम्राटों ने भी अपने को भागवत कहा है। कतिपय चालुक्य शासक भी अपने को भागवत मतावलम्बी बताते थे।
प्रचार-प्रसार
बादामी के गुहा प्रसिद्ध मन्दिरों के आधार पर सिद्ध होता है कि छठी शताब्दी में भागवत सम्प्रदाय का दक्षिण में भी प्रचार था। इस सम्प्रदाय के धार्मिक एवं दार्शनिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्रमुख वैष्णव आचार्यों में सबसे ज़्यादा प्रसिद्धि रामानुज और मध्व को मिली। पूर्वी भारत में इस सम्प्रदाय के सर्वाधिक लोकप्रिय व्याख्याता श्री चैतन्य महाप्रभु हुए।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-317