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(प्रकृति का करो तुम संरक्षण यही करती है जीवन का सृजन वृक्षों को तुम लहलहाने दो पशु पक्षियों से तु) |
(प्रकृति का करो तुम संरक्षण ,यही करती है जीवन का सृजन!) |
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12:01, 11 मई 2011 का अवतरण
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===प्रकृति का सरंक्षण===
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प्रकृति का करो तुम संरक्षण यही करती है जीवन का सृजन वृक्षों को तुम लहलहाने दो पशु पक्षियों से तुम प्रेम करो करो नित्य सौंदर्य का अवलोकन तुम्हे देना होगा ये वचन करोगे कर्तव्यों का निर्वहन
नदियों ने तुमको जल दिया मत रोको उनके धारा को वृक्षों ने तुमको फल दिया मत उनका करो तुम दोहन कुदरत देती तुम्हे जीवन दान तुम कर लो इसका अब नमन
सोचो जब वर्षा न होगी क्या खाओगे क्या पिओगे जब नदियाँ सुख जाएँगी झुलसेगी ये धरती जब तब सह न सकोगे तुम तपन अगर बचाना है मानवता को तो मानना होगा ये कथन तुम्हे रोकना होगा प्रदुषण
अगर तुम अब भी न सुनोगे ये पुकार तुम न करोगे इसका सम्मान तो कब तक करेगी ये तुझको वहन तुम्हे देखना होगा तब रौद्र रूप तब करना होगा सब सहन इसलिए तुम्हे मैं कहता हूँ ये प्रकृति देती है तुमको जीवन समझो तुम इसको अपना मित्र खोलो तुम अपना अंतर्मन प्रकृति का करो तुम संरक्षण यही करती है जीवन का सृजन यही करती है जीवन का सृजन