भारत का संविधान- मूलभूत अधिकार

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भाग- 3 मूलभूत अधिकार

12. परिभाषा-

इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, राज्य के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान-मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं।

13. मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ-
  • (1) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियाँ उस मात्रा तक शून्य होंगी, जिस तक वे इस भाग के उपबंधों से असंगत हैं।
  • (2) राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा, जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी।
  • (3) इस अनुच्छेद में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
    • (क) 'विधि' के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाला कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूंढि़ या प्रथा है;
    • (ख) प्रवृत्त विधि के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले पारित या बनाई गई विधि है, जो पहले ही निरसित नहीं कर दी गई है, चाहे ऐसी कोई विधि या उसका कोई भाग उस समय पूर्णतया या विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में नहीं है।
  • [(4) इस अनुच्छेद की कोई बात अनुच्छेद 368 के अधीन किए गए इस संविधान के किसी संशोधन को लागू नहीं होगी।][1]

समता का अधिकार

14. विधि के समक्ष समता-

राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यिक्त को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।

15. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध-
  • (1)राज्य, किसी नागरिक के विरुंद्ध के केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
  • (2)कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या इनमें से किसी के आधार पर-
    • (क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
    • (ख) पूर्णत: या भागत: राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नान घाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग, के संबंध में किसी भी निर्योग्यता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।
  • (3) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
  • [(4) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।][2]
16. लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता-
  • (1)राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी।
  • (2)राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्म-स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
  • (3) इस अनुच्छेद की कोई बात संसद को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो [किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र की सरकार के या उसमें के किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन वाले किसी वर्ग या वर्गों के पद पर नियोजन या नियुक्ति के संबंध में ऐसे नियोजन या नियुक्ति से पहले उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती है।][3]
  • (4) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
  • [(4क) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, राज्य के अधीन सेवाओं में [किसी वर्ग या वर्गों के पदों पर, पारिणामिक ज्येष्ठता सहित, प्रोन्नति के मामलों में][4] आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।][5]
  • [(4ख) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को किसी वर्ष में किन्हीं न भरी गई ऐसी रिक्तियों को, जो खंड (4) या खंड (4क) के अधीन किए गए आरक्षण के लिए किसी उपबंध के अनुसार उस वर्ष में भरी जाने के लिए आरक्षित हैं, किसी उत्तरवर्ती वर्ष या वर्षों में भरे जाने के लिए पृथक वर्ग की रिक्तियों के रूंप में विचार करने से निवारित नहीं करेगी और ऐसे वर्ग की रिक्तियों पर उस वर्ष की रिक्तियों के साथ जिसमें वे भरी जा रही हैं, उस वर्ष की रिक्तियों की कुल संख्या के संबंध में पचास प्रतिशत आरक्षण की अधिकतम सीमा का अवधारण करने के लिए विचार नहीं किया जाएगा।][6]
  • (5) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी जो यह उपबंध करती है कि किसी धार्मिक या सांप्रदायिक संस्था के कार्यकलाप से संबंधित कोई पदधारी या उसके शासी निकाय का कोई सदस्य किसी विशिष्ट धर्म का मानने वाला या विशिष्ट संप्रदाय का ही हो।
17. अस्पृश्यता का अंत-

अस्पृश्यता का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूंप में आचरण निषिद्ध किया जाता है। अस्पृश्यता से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।

18. उपाधियों का अंत-
  • (1) राज्य, सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
  • (2) भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
  • (3) कोई व्यिक्त, जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।
  • (4) राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यिक्त किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी रूंप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।

स्वातंत्र्य-अधिकार

 

19. वाक्-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण-
  • (1) सभी नागरिकों को-
    • (क) वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
    • (ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
    • (ग) संगम या संघ बनाने का,
    • (घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,
    • (ङ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, [7][और]

[8][*****]

    • (छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का, अधिकार होगा।
  • [9][(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर [10][भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।]
  • (3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर [11][भारत की प्रभुता और अखंडता या] लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
  • (4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर [12][भारत की प्रभुता और अखंडता या] लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
  • (5) उक्त खंड के [13][उपखंड (घ) और उपखंड (ङ)] की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
  • (6) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी और विशिष्टया [14][उक्त उपखंड की कोई बात-
    • (i) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने के लिए आवश्यक वृत्तिक या तकनीकी अर्हताओं से, या
    • (ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण में किसी निगम द्वारा कोई व्यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नागरिकों का पूर्णत: या भागत: अपवर्जन करके या अन्यथा, चलाए जाने से, जहां तक कोई विद्यमान विधि संबंध रखती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।]
20. अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण-
  • (1) कोई व्यक्ति किसी अपारध के लिए तब तक सिद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करने के समय, जो अपराध के रूंप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है या उससे अधिक शास्ति का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के किए जाने के समय प्रवृत्त विधि के अधीन अधिरोपित की जा सकती थी।
  • (2) किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा।
  • (3) किसी अपराध के लिए अभियुक्त किसी व्यक्ति को स्वयं अपने विरुंद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
21. प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण-

किसी व्यिक्त को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
 
1झ्र्21क. शिक्षा का अधिकार--राज्य, छह व−र्ा से चौदह व−र्ा तक की आयु वाले सभी बालकों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने का ऐसी रीति में, जो राज्य विधि द्वारा, अवधारित करे, उपबंध करेगा ।ट
222. कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण--(1) किसी व्यिक्त को जो गिरफ्तार किया गया है, ऐसी गिरफ्तारी के कारणों से यथाशीघ्र अवगत कराए बिना अभिरक्षा में निरुंद्ध नहीं रखा जाएगा या अपनी रुंचि के विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा कराने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा ।
(2) प्रत्येक व्यिक्त को, जो गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरुंद्ध रखा गया है, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी गिरफ्तारी से चौबीस घंटे की अवधि में निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा और ऐसे किसी व्यिक्त को मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक अवधि के लिए अभिरक्षा में निरुंद्ध नहीं रखा जाएगा ।
(3) खंड (1) और खंड (2) की कोई बात किसी ऐसे व्यिक्त को लागू नहीं होगी जो--
(क) तत्समय शत्रु अन्यदेशीय है ; या
(ख) निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन गिरफ्तार या निरुंद्ध किया गया है ।
(4) निवारक निरोध का उपबंध करने वाली कोई विधि किसी व्यिक्त का तीन मास से अधिक अवधि के लिए तब तक निरुंद्ध किया जाना प्राधिकृत नहीं करेगी जब तक कि--
(क) ऐसे व्यिक्तयों से, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं या न्यायाधीश रहे हैं या न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित हैं, मिलकर बने सलाहकार बोर्ड ने तीन मास की उक्त अवधि की समाप्ति से पहले यह प्रतिवेदन नहीं दिया है कि उसकी राय में ऐसे निरोध के लिए पर्याप्त कारण हैं :
परंतु इस उपखंड की कोई बात किसी व्यिक्त का उस अधिकतम अवधि से अधिक अवधि के लिए निरुंद्ध किया जाना प्राधिकृत नहीं करेगी जो खंड (7) के उपखंड (ख) के अधीन संसद् द्वारा बनाई गई विधि द्वारा विहित की गई है ; या
(ख) ऐसे व्यिक्त को खंड (7) के उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन संसद् द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधों के अनुसार निरुंद्ध नहीं किया जाता है ।
(5) निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन किए गए आदेश के अनुसरण में जब किसी व्यिक्त को निरुंद्ध किया जाता है तब आदेश करने वाला प्राधिकारी यथाशक्य शीघ्र उस व्यिक्त को यह संसूचित करेगा कि वह आदेश किन आधारों पर किया गया है और उस आदेश के विरुंद्ध अभ्यावेदन करने के लिए उसे शीघ्रातिशीघ्र अवसर देगा ।
(6) खंड (5) की किसी बात से ऐसा आदेश, जो उस खंड में निर्दि−ट है, करने वाले प्राधिकारी के लिए ऐसे तथ्यों को प्रकट करना आवश्यक नहीं होगा जिन्हें प्रकट करना ऐसा प्राधिकारी लोकहित के विरुंद्ध समझता है ।
(7) संसद् विधि द्वारा विहित कर सकेगी कि--
(क) किन परिस्थितियों के अधीन और किस वर्ग या वर्गों के मामलों में किसी व्यिक्त को निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन तीन मास से अधिक अवधि के लिए खंड (4) के उपखंड (क) के उपबंधों के अनुसार सलाहकार बोर्ड की राय प्राप्त किए बिना निरुंद्ध किया जा सकेगा ;
(ख) किसी वर्ग या वर्गों के मामलों में कितनी अधिकतम अवधि के लिए किसी व्यिक्त को निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन निरुंद्ध किया जा सकेगा ; और
(ग) खंड (4) के उपखंड (क) के अधीन की जाने वाली जांच में सलाहकार बोर्ड द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया क्या होगी ।
शो−ाण के विरुंद्ध अधिकार
23. मानव के दुर्व्यापार और बलात््श्रम का प्रति−ोध--(1) मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात््श्रम प्रतिि−ाद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा ।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी । ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा ।
1 संविधान (छियासीवां संशोधन) अधिनियम, 2002 की धारा 2 द्वारा (अधिसूचना की तारीख से) अंत:स्थापित किया जाएगा ।
2 संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 3 के प्रवर्तित होने पर, अनुच्छेद 22 उस अधिनियम की धारा 3 में निदेशित रूंप में संशोधित हो जाएगा । उस अधिनियम की धारा 3 का पाठ परिशि−ट 3 में देखिए ।
24. कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रति−ोध--चौदह व−र्ा से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा ।
धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
25. अंत:करण की और धर्म की अबाध रूंप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता--(1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यिक्तयों को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूंप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा ।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विद्यमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो--
(क) धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक या अन्य लौकिक क्रियाकलाप का विनियमन या निर्बन्धन करती है ;
(ख) सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सार्वजनिक प्रकार की हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं को हिंदुओं के सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने का उपबंध करती है ।
स्प−टीकरण 1--कृपाण धारण करना और लेकर चलना सिक्ख धर्म के मानने का अंग समझा जाएगा ।
स्प−टीकरण 2--खंड (2) के उपखंड (ख) में हिंदुओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत सिक्ख, जैन या बौद्ध धर्म के मानने वाले व्यिक्तयों के प्रति निर्देश है और हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं के प्रति निर्देश का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा ।
26. धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता--लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को--
(क) धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पो−ाण का,
(ख) अपने धर्म वि−ायक कार्यों का प्रबंध करने का,
(ग) जंगम और स्थावर संपत्ति के अर्जन और स्वामित्व का, और
(घ) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का,
अधिकार होगा ।
27. किसी विशि−ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता--किसी भी व्यिक्त को ऐसे करों का संदाय करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा जिनके आगम किसी विशि−ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि या पो−ाण में व्यय करने के लिए विनिर्दि−ट रूंप से विनियोजित किए जाते हैं ।
28. कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता--(1) राज्य-निधि से पूर्णत: पोि−ात किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी ।
(2) खंड (1) की कोई बात ऐसी शिक्षा संस्था को लागू नहीं होगी जिसका प्रशासन राज्य करता है किंतु जो किसी ऐसे विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित हुई है जिसके अनुसार उस संस्था में धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है ।
(3) राज्य से मान्यताप्राप्त या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यिक्त को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए या ऐसी संस्था में या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा जब तक कि उस व्यिक्त ने, या यदि वह अवयस्क है तो उसके संरक्षक ने, इसके लिए अपनी सहमति नहीं दे दी है ।
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
29. अल्पसंख्यक-वर्गों के हितों का संरक्षण--(1) भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशे−ा भा−ाा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा ।
(2) राज्य द्वारा पोि−ात या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भा−ाा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा ।
30. शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार--(1) धर्म या भा−ाा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्गों को अपनी रुंचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा ।
1झ्र्(1क) खंड (1) में निर्दि−ट किसी अल्पसंख्यक-वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित शिक्षा संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी हो कि उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार निर्बन्धित या निराकृत न हो जाए ।ट
(2) शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुंद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भा−ाा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक-वर्ग के प्रबंध में है ।
2। । ।
31. झ्र्संपत्ति का अनिवार्य अर्जन ।ट--संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 6 द्वारा (20-6-1979 से) निरसित ।
3झ्र्कुछ विधियों की व्यावृित्तट
4झ्र्31क. संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृित्त--5झ्र्(1) अनुच्छेद 13 में अंतर्वि−ट किसी बात के होते हुए भी,--
(क) किसी संपदा के या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिए या किन्हीं ऐसे अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए, या
(ख) किसी संपत्ति का प्रबंध लोकहित में या उस संपत्ति का उचित प्रबंध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से परिसीमित अवधि के लिए राज्य द्वारा ले लिए जाने के लिए, या
(ग) दो या अधिक निगमों को लोकहित में या उन निगमों में से किसी का उचित प्रबंध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से समामेलित करने के लिए, या
(घ) निगमों के प्रबंध अभिकर्ताओं, सचिवों और को−ााध्यक्षों, प्रबंध निदेशकों, निदेशकों या प्रबंधकों के किन्हीं अधिकारों या उनके शेयरधारकों के मत देने के किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए, या
(ङ) किसी खनिज या खनिज तेल की खोज करने या उसे प्राप्त करने के प्रयोजन के लिए किसी करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति के आधार पर प्रोद्भूत होने वाले किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए या किसी ऐसे करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति को समय से पहले समाप्त करने या रद्द करने के लिए,
उपबंध करने वाली विधि इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह 6झ्र्अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19ट द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है :
परंतु जहां ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि है वहां इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगे जब तक ऐसी विधि को, जो रा−ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है :ट
7झ्र्परंतु यह और कि जहां किसी विधि में किसी संपदा के राज्य द्वारा अर्जन के लिए कोई उपबंध किया गया है और जहां उसमें समावि−ट कोई भूमि किसी व्यिक्त की अपनी जोत में है वहां राज्य के लिए ऐसी भूमि के ऐसे भाग को, जो किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन उसको लागू अधिकतम सीमा के भीतर है, या उस पर निर्मित या उससे अनुलग्न किसी भवन या संरचना को अर्जित करना उस दशा के सिवाय विधिपूर्ण नहीं होगा जिस दशा में ऐसी भूमि, भवन या संरचना के अर्जन से संबंधित विधि उस दर से प्रतिकर के संदाय के लिए उपबंध करती है जो उसके बाजार-मूल्य से कम नहीं होगी ।ट
(2) इस अनुच्छेद में,--
8झ्र्(क) संपदाञ्ज् पद का किसी स्थानीय क्षेत्र के संबंध में वही अर्थ है जो उस पद का या उसके समतुल्य स्थानीय पद का उस क्षेत्र में प्रवृत्त भू-धृतियों से संबंधित विद्यमान विधि में है और इसके अंतर्गत--
1 संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 4 द्वारा (20-6-1979 से) अंत:स्थापित ।
2 संविधान (चवासीलवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 5 द्वारा (20-6-1979 से) उपशी−र्ाक संपत्ति का अधिकारञ्ज् का लोप किया गया ।
3 संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 3 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित ।
4 संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंत:स्थापित ।
5 संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
6 संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 7 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31ञ्ज् के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
7 संविधान (सत्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1964 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित ।
8 संविधान (सत्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1964 की धारा 2 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) उपखंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
(त्) कोई जागीर, इनाम या मुआफी अथवा वैसा ही अन्य अनुदान और 1झ्र्तमिलनाडुट और केरल राज्यों में कोई जन्मम् अधिकार भी होगा ;
(त्त्) रैयतबाड़ी, बंदोबस्त के अधीन धृत कोई भूमि भी होगी ;
(त्त्त्) कृि−ा के प्रयोजनों के लिए या उसके सहायक प्रयोजनों के लिए धृत या पट्टे पर दी गई कोई भूमि भी होगी, जिसके अंतर्गत बंजर भूमि, वन भूमि, चरागाह या भूमि के कृ−ाकों, कृि−ा श्रमिकों और ग्रामीण कारीगरों के अधिभोग में भवनों और अन्य संरचनाओं के स्थल हैं ;ट
(ख) अधिकारञ्ज् पद के अंतर्गत, किसी संपदा के संबंध में, किसी स्वत्वधारी, उप-स्वत्वधारी, अवर स्वत्वधारी, भू-धृतिधारक, 2झ्र्रैयत, अवर रैयतट या अन्य मध्यवर्ती में निहित कोई अधिकार और भू-राजस्व के संबंध में कोई अधिकार या विशे−ााधिकार होंगे ।
3झ्र्31ख. कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्यकरण--अनुच्छेद 31क में अंतर्वि−ट उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, नवीं अनुसूची में विनिर्दि−ट अधिनियमों और विनियमों में से और उनके उपबंधों में से कोई इस आधार पर शून्य या कभी शून्य हुआ नहीं समझा जाएगा कि वह अधिनियम, विनियम या उपबंध इस भाग के किन्हीं उपबंधों द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनता है या न्यून करता है और किसी न्यायालय या अधिकरण के किसी प्रतिकूल निर्णय, डिक्री या आदेश के होते हुए भी, उक्त अधिनियमों और विनियमों में से प्रत्येक, उसे निरसित या संशोधित करने की किसी सक्षम विधान-मंडल की शक्ति के अधीन रहते हुए, प्रवृत्त बना रहेगा ।ट
4झ्र्31ग. कुछ निदेशक तत्त्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृित्त--अनुच्छेद 13 में किसी बात के होते हुए भी, कोई विधि, जो 5झ्र्भाग 4 में अधिकथित सभी या किन्हीं तत्त्वोंट को सुनिश्चित करने के लिए राज्य की नीति को प्रभावी करने वाली है, इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह 6झ्र्अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19ट द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है 7और कोई विधि, जिसमें यह घो−ाणा है कि वह ऐसी नीति को प्रभावी करने के लिए है, किसी न्यायालय में इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि वह ऐसी नीति को प्रभावी नहीं करती है:
परंतु जहां ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहां इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगे जब तक ऐसी विधि को, जो रा−ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है ।ट
831घ. झ्र्रा−ट्र विरोधी क्रियाकलाप के संबंध में विधियों की व्यावृित्त।ट--संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 2 द्वारा (13-4-1978 से) निरसित ।
सांविधानिक उपचारों का अधिकार
32. इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार--(1) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में समावेदन करने का अधिकार प्रत्याभूत किया जाता है ।
(2) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय को ऐसे निदेश या आदेश या रिट, जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रति−ोध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रे−ाण रिट हैं, जो भी समुचित हो, निकालने की शक्ति होगी ।
(3) उच्चतम न्यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संसद्, उच्चतम न्यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्तव्य किन्हीं या सभी शक्तियों का किसी अन्य न्यायालय को अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रयोग करने के लिए विधि द्वारा सशक्त कर सकेगी ।
(4) इस संविधान द्वारा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, इस अनुच्छेद द्वारा प्रत्याभूत अधिकार निलंबित नहीं किया जाएगा ।
1 मद्रास राज्य (नाम-परिवर्तन) अधिनियम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) मद्रासञ्ज् के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
2 संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंत:स्थापित ।
3 संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 5 द्वारा अंत:स्थापित ।
4 संविधान (पच्चीसवां संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंत:स्थापित ।
5 संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) अनुच्छेद 39 के खंड (ख) या खंड (ग) में विनिर्दि−ट सिद्धांतोंञ्ज् के स्थान पर प्रतिस्थापित । धारा 4 को उच्चतम न्यायालय द्वारा, मिनर्वा मिल्स लि0 और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (1980) 2 एस0सी0सी0 591 में अविधिमान्य घोि−ात कर दिया गया ।
6 संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31ञ्ज् के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
7 उच्चतम न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राजय (1973) अनुपूरक एस.सी.आर. 1 में को−ठक में दिए गए उपबंध को अविधिमान्य घोि−ात कर दिया है ।
8 संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 5 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित ।
132क. झ्र्राज्य विधियों की सांविधानिक वैधता पर अनुच्छेद 32 के अधीन कार्यवाहियों में विचार न किया जाना ।ट--संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 3 द्वारा (13-4-1978 से) निरसित ।
2झ्र्33. इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का, बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद् की शक्ति--संसद्, विधि द्वारा, अवधारण कर सकेगी कि इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से कोई,--
(क) सशस्त्र बलों के सदस्यों को, या
(ख) लोक व्यवस्था बनाए रखने का भारसाधन करने वाले बलों के सदस्यों को, या
(ग) आसूचना या प्रति आसूचना के प्रयोजनों के लिए राज्य द्वारा स्थापित किसी ब्यूरो या अन्य संगठन में नियोजित व्यिक्तयों को, या
(घ) खंड (क) से खंड (ग) में निर्दि−ट किसी बल, ब्यूरो या संगठन के प्रयोजनों के लिए स्थापित दूरसंचार प्रणाली में या उसके संबंध में नियोजित व्यिक्तयों को,
लागू होने में, किस विस्तार तक निर्बन्धित या निराकृत किया जाए जिससे उनके कर्तव्यों का उचित पालन और उनमें अनुशासन बना रहना सुनिश्चित रहे ।ट
34. जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बन्धन--इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, संसद् विधि द्वारा संघ या किसी राज्य की सेवा में किसी व्यिक्त की या किसी अन्य व्यिक्त की किसी ऐसे कार्य के संबध में क्षतिपूर्ति कर सकेगी जो उसने भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी ऐसे क्षेत्र में, जहां सेना विधि प्रवृत्त थी, व्यवस्था के बनाए रखने या पुन:स्थापन के संबंध में किया है या ऐसे क्षेत्र में सेना विधि के अधीन पारित दंडादेश, दिए गए दंड, आदि−ट समपहरण या किए गए अन्य कार्य को विधिमान्य कर सकेगी ।
35. इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान--इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,--
(क) संसद् को शक्ति होगी और किसी राज्य के विधान-मंडल को शक्ति नहीं होगी कि वह--
(त्) जिन वि−ायों के लिए अनुच्छेद 16 के खंड (3), अनुच्छेद 32 के खंड (3), अनुच्छेद 33 और अनुच्छेद 34 के अधीन संसद् विधि द्वारा उपबंध कर सकेगी उनमें से किसी के लिए, और
(त्त्) ऐसे कार्यों के लिए, जो इस भाग के अधीन अपराध घोि−ात किए गए हैं, दंड विहित करने के लिए,
विधि बनाए और संसद् इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र ऐसे कार्यों के लिए, जो उपखंड (त्त्) में निर्दि−ट हैं, दंड विहित करने के लिए विधि बनाएगी ;
(ख) खंड (क) के उपखंड (त्) में निर्दि−ट वि−ायों में से किसी से संबंधित या उस खंड के उपखंड (त्त्) में निर्दि−ट किसी कार्य के लिए दंड का उपबंध करने वाली कोई प्रवृत्त विधि, जो भारत के राज्यक्षेत्र में इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रवृत्त थी, उसके निबंधनों के और अनुच्छेद 372 के अधीन उसमें किए गए किन्हीं अनुकूलनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए तब तक प्रवृत्त रहेगी जब तक उसका संसद् द्वारा परिवर्तन या निरसन या संशोधन नहीं कर दिया जाता है ।
स्प−टीकरण--इस अनुच्छेद में, प्रवृत्त विधिञ्ज् पद का वही अर्थ है जो अनुच्छेद 372 है ।
1 संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 6 द्वारा (1-2-1977 से) अंत:स्थापित ।
2 संविधान (पचासवां संशोधन) अधिनियम, 1984 की धारा 2 द्वारा अनुच्छेद 33 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संविधान (चौबीसवां संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित।
  2. संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 2 द्वारा जोड़ा गया।
  3. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के या उसके क्षेत्र में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन उस राज्य के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती हो के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  4. संविधान (पचासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 2 द्वारा (17-6-1995) से कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  5. संविधान (सतहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1995 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित।
  6. संविधान (इक्यासीवां संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से) अंत:स्थापित।
  7. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) अंत:स्थापित।
  8. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) उपखंड (च) का लोप किया गया।
  9. संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  10. संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित।
  11. संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित।
  12. संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित।
  13. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और उपखंड (च) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  14. 6 संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 3 द्वारा कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।

बाहरी कड़ियाँ

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