भूपेन हज़ारिका

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भूपेन हज़ारिका
भूपेन हज़ारिका
पूरा नाम भूपेन हज़ारिका
जन्म 8 सितंबर, 1926
जन्म भूमि शदिया, असम
मृत्यु 5 नवंबर, 2011
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
पति/पत्नी प्रियम पटेल
कर्म-क्षेत्र लेखन, पत्रकारिता, गायन, संगीत निर्देशक, फ़िल्मकार
विषय लोक संगीत, बंगाली, असमिया और हिंदी समेत कई भारतीय भाषाओं में गीत गाए
शिक्षा राजनीतिक विज्ञान में स्नात्तोकत्तर, पीएचडी
विद्यालय बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, कोलंबिया यूनिवर्सिटी
पुरस्कार-उपाधि पद्म विभूषण, पद्मभूषण, पद्मश्री, दादा साहब फाल्के पुरस्कार
नागरिकता भारतीय

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भूपेन हज़ारिका (अंग्रेज़ी: Bhupen Hazarika, जन्म:- 8 सितंबर, 1926 - मृत्यु: 5 नवंबर, 2011) भारत के ऐसे विलक्षण कलाकार थे जो अपने गीत खुद लिखते थे, संगीतबद्ध करते थे और गाते थे। भूपेन हज़ारिका को दक्षिण एशिया के श्रेष्ठतम सांस्कृतिक दूतों में से एक माना जाता है। उन्होंने कविता लेखन, पत्रकारिता, गायन, फ़िल्म निर्माण आदि अनेक क्षेत्रों में काम किया है। भूपेंद्र हज़ारिका पहले शख़्सियत थे जिन्होंने असमिया संस्कृति को विश्व मंच तक पहुंचाया था।

जीवन परिचय

डॉ. भूपेन हज़ारिका बहु–आयामी व्यक्तित्व के धनी थे। असम–रत्न हज़ारिका जी असम अथवा भारत के ही नहीं पूरे संसार के लिए वे एक विश्व रत्न थे। वे संगीत रचनाकार, सुरकार, संगीतकार, संगीत–निर्देशक, वाद्य–यंत्र वादक, अभिनेता, सिनेमा निर्देशक तो थे ही साथ ही साथ एक अच्छे कवि, गद्यकार, निबंधकार, नाट्यकार आदि भी थे। वे समन्वयवादी थे, कल्याणकारी थे, शांतिदूत थे। वे मानवतावादी थे, मानव के कल्याण के लिए स्वप्नदृष्टा थे।[1]

जन्म

भूपेन हज़ारिका का जन्म सन 1926 के 8 सितम्बर को शदिया (असम) में हुआ था। नीलकांत हज़ारिका उनके पिता थे। वे स्कूल उप–परिदर्शक थे। बाद में वे एस.डी.सी. बने थे। माँ का नाम था शांतिप्रिया हज़ारिका। भूपेन हज़ारिका के सात भाई और तीन बहने थीं। वे ज्येष्ठ थे।[1]

शिक्षा

बचपन में भूपेन हज़ारिका की शिक्षा गुवाहाटी के सेणाराम हाईस्कूल में, धुबुरी की एक पाठशाला में, फिर गुवाहाटी के कॉटन कलेजियेट स्कूल में और अंत में छठी कक्षा में (सन 1935 में) तेजपुर सरकारी उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय में हुई। सन 1940 में तेजपुर से वे मैट्रिक की परीक्षा पास करते हैं। सन 1941 में कॉटन कॉलेज में (उच्चत्तर माध्यमिक़ कला शाखा में) दाख़िला लिया। सन 1942 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में स्नातक में उनका दाखिला होता है। सन 1944 में सम्मानसह (honours) शिक्षा में स्नातक की उपाधि मिलती है। सन 1946 में उसी विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि मिलती है। सन 1949 को वे पी.एच.डी. हेतु अमरीका की यात्रा करते हैं। सन 1952 में कोलम्बिया विश्वविद्यालय से पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त होती है। उनकी गवेषणा का विषय था– "Roll of Mass Communication in India's Adult Education"[1]

दाम्पत्य जीवन

भूपेन हज़ारिका की 23 वर्ष की उम्र में ही सन 1950 में 1 अगस्त को न्यूयार्क शहर में प्रियम पटेल के साथ उनकी शादी होती है। प्रियम काम्पला, यूगांडार के प्रसिद्ध चिकित्सक मूलजी भाई पटेल और उनकी पत्नी मणिबेन पटेल की बेटी हैं। इनका मूल निवास स्थान गुजरात है। गुजरात के नियम के हिसाब से औरत के स्वामी का नाम और बेटा–बेटी को बाप का नाम बीच में लिखने की परम्परा है। इसी कारण पत्नी का नाम शादी के पश्चात् प्रियम भूपेन हज़ारिका (अथवा प्रियम बि. हज़ारिका) और बेटे का नाम कोल्लाक भूपेन्द्र हज़ारिका (अथवा कोल्लाक बि. हज़ारिका/पूर्णांग भूपेन्द्र हज़ारिका/तेज भूपेन्द्र हज़ारिका) पड़ा। कोल्लाक को असम के लोग तेज हज़ारिका से ही जानते हैं। कोल्लाक न्यूयार्क में तथा प्रियम कनाडा में रहती हैं। कोल्लाक व्यवसाय करते हैं।[1]

प्रारंभिक जीवन

हज़ारिका की पहचान न सिर्फ उत्तर- पूर्वी भारत के मशहूर गायक, लेखक, संगीत निर्देशक बल्कि फ़िल्मकार के रूप में भी होती है। अद्भुत प्रतिभा वाले इस कलाकार का जन्म 8 सितंबर, 1926 को भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम के सादिया में हुआ। उनके पिता नीलकांत हज़ारिका तब सादिया के कमिश्नर साहब की पत्नी को असमिया भाषा सिखाते थे। वहीं के एक स्थानीय स्कूल में वो शिक्षण का कार्य भी करते थे। घर पर उनकी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा हुई। मां के गले की आवाज़ अद्भुत थी। छोटे भूपेन उस समय मां से बंग संगीत सुनते थे। वो भी अपनी मां के साथ गला मिलाकर गाते थे। कुछ दिनों बाद पिता को गुवाहटी के कॉटन कॉलेजिएट स्कूल में नौकरी मिल गई। वहां के सोनाराम स्कूल में पहली बार तीसरी कक्षा में भूपेन का दाखिला हुआ। वैसे बीच में साल भर के लिए उन्हें धूबरी में जाना पड़ा था। उस समय प्रमथेश बड़ुवा धूबरी में अपनी फ़िल्म "मुक्ति" की शूटिंग के सिलसिले में आए थे। प्रमथेश उनके पिता के अच्छे मित्र थे, इसलिए भूपेन को उन्हें बहुत क़रीब से देखने का मौक़ा मिला था। 1940 में बहुमुखी प्रतिभा के धनी भूपने हज़ारिका ने केवल 13 साल 9 महीने की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा तेजपुर से की। धूबरी के बाद वो लोग फिर गुवाहटी वापस आ गए। तब तक गुवाहटी के कॉटन कॉलेजिएट स्कूल में उनकी पढ़ाई भी शुरू हो गई थी, साथ में शुरू हो गया था गायन और चित्रकारी भी। यहां उन्होंने अपने मामा के घर में रह कर पढ़ाई की। इस बीच यहां के आईपीटीए के दो सदस्य विष्णुप्रसाद आभा और ज्योतिप्रसाद अग्रवाल से इनका परिचय हुआ। इनके सानिध्य में रहकर किशोर भूपेन के दिलो-दिमाग में आम आदमी के गीत-संगीत की बात छा गई। इस उम्र में ही आम आदमी के लिए कुछ करने की बात वो सोचने लगे। इसके बाद 1942 में गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। फिर अचानक उन्हें ऎसा लगा कि वो असम में और पढ़ाई जारी नहीं रखेंगे। यह सोचने के बाद ही वो तत्काल कोलकता चले आए। सन् 1942 के कोलकता के डलहौजी में जापान ने बम गिराया। एक दहशत से कांप उठा कोलकता। अनगिनत लोगों ने पलायन किया, उन्हीं की तरह भूपेन भी बनारस चले आए। यहां उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वहां से उन्होंने 1946 में स्नातक और फिर राजनीतिक विज्ञान में स्नात्तोकत्तर किया। उस समय यहां के आचार्य पंडित जवाहरलाल नेहर और उपाचार्य सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णण थे। राधाकृण्णजी के क्लास में गीता का व्याख्यान सुनने का सौभाग्य भूपेन को भी मिला था। यही नहीं उस्ताद बिस्मिल्ला के घर के पास के रास्ते पर खड़े होकर शहनाई पर उनकी भैरवी सुनने का सौभाग्य भी उन्हें मिला। मगर तब तक उनके घर की हालात बहुत बदल चुकी थी। पिताजी नौकरी से रिटायर हो गए थे। 145 रूपए पेंशन मिलता था। तब दस भाई-बहनों में सबसे बड़े भूपेन को बाध्य होकर गुवाहाटी आना पड़ा। बीबीआर कॉलेज में अध्यापन की नौकरी शुरू कर दी। शुरुआती वेतन था 125 रुपये प्रतिमाह। कुछ दिन बाद ही उन्हें गुवाहाटी रेडियो में मौक़ा मिल गया। साल होते-होते उनका तबादल दिल्ली हो गया, वहीं उनका परिचय डॉक्टर नारायण मेनन के साथ हुआ। उनकी मदद से उन्हें अमेरिका में मॉस कम्युनिकेशन पर शोध करने की स्कॉलरशिप मिल गई। घर की हालत अच्छी नहीं थी। ऎसे में नौकरी छोड़कर फिर से पढ़ाई शुरू करने में बड़ा जोखिम था, लेकिन उनके अंदर शायद छिपा हुआ था किसी यायावर का मन। 12 सितंबर 1949 को वो अमेरिका चले गए। न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया और उन्होंने पीएचडी (डॉक्टरेट) की डिग्री प्राप्त की। यहां पर अचानक पॉल राबसन के साथ उनका परिचय हुआ। भूपेन को उनका घनिष्ठ सानिध्य मिला। यहीं पर उन्होंने पॉल से सीखा मिसीमिपी नदी को कोसते हुए एक गाना,"वल्र्ड मैन रीवर,यू डोंट सी नथिंग...। बस उन्होंने लिख डाला, "विस्तीर्ण दुपारे, असंख्यो मानुषेर हाहाकार सुने, निशब्दे निरवे ओ गंगा तुमी, ओ गंगा बहिचो केनो..." (विस्तृत फैले हुए दो किनारे, असंख्य लोगों की वेदनापूर्ण हाहाकार सुनकर भी ओ गंगा तुम नि:शब्द होकर बहती हो क्यों...) वैसे तब तक शांतिनिकेतन में पढ़ी-लिखी बरोदरा की लड़की प्रियवंदा से भूपेन का परिचय हो गया था। प्रियवंदा रहती थीं न्यूयॉर्क में। उन दोनों की शादी 1950 में हुई। अब यह अलग बात है कि यह शादी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिकी।

अमेरिका से लौटते समय अफ्रीका भी घूमकर लौटे थे भूपेन दा। जहाज़ से प्रशांत महासागर का रूप देखकर वो भावुक हो गए। लिख डाला, "सागर संगमे सातार केटेचि केतो, कखनो तो होई नेई... (सागर-संगम में कितनी बार तैरा हूं, पर कभी भी थकान महसूस नहीं किया है ...)। अपने एक इंटरव्यू में भूपेन दा ने कहा है, "मेरे अंतिम यात्रा में मेरे इस गाने को ही बजाया जाए। यही मेरे जीवन यात्रा का गाना है। भूपेन हज़ारिका ने अपने जीवन में बहुत कम गाने गाए हैं, लेकिन जो गाने गाए है, वो मनुष्य के दिल को छू गया है। उस दौर के सारे धाकड़ संगीतज्ञ हेमांग विश्वास, सचिनदेव बर्मन, हेमंत मुखर्जी का प्यार उन्हें मिला था। उन्ही दिनों वो गण नाट्य संघ के साथ जुड़ गए। अपने गानों को लेकर वो विश्व भ्रमण कर चुके थे। कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर के एकमात्र प्रिय अमियकुमार चक्रवर्ती से भी भूपेन दा को बहुत मदद मिली थी।

भूपेन की गायकी से जुड़ा एक मजेदार वाक्या है। एक बार उन्हें कॉलेज में आए नए विद्यार्थियों के लिए रखे गए स्वागत समारोह में एक भाषण पढ़ना था। भूपेन के पिता ने उन्हें वो भाषण लिख कर भी दिया था। लेकिन स्टेज पर आते ही भूपेन वह भाषण भूल गए और वहां उन्होंने एक गाना सुनाया। वहां उपस्थित सभी लोगों को भूपेन ने अपने गाने से मंत्रमुग्ध कर दिया और इसके बाद वो अपने कॉलेज में लोकप्रिय हो गए। इसके बाद भूपेन ने संगीत से जुड़ी कई पुस्तकों का अध्ययन किया। और धीरे-धीरे संगीत के क्षेत्र में खुद को स्थापित किया।

गीत संगीत का सफर

भूपेन हज़ारिका एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कलाकार थे। बचपन में ही उन्होंने अपना पहला गीत लिखा और 10 वर्ष की आयु में उसे गाया भी। असमिया भाषा की फ़िल्मों से भी उनका नाता बचपन में ही जुड़ गया था। उन्होंने असमिया भाषा में निर्मित दूसरी फ़िल्म इंद्रमालती के लिए 1939 में बारह वर्ष की आयु मॆं काम भी किया। सुर सम्राट हज़ारिका ने क़रीब 70 साल तक अपनी आवाज़ से पूर्वोत्तर के साथ बॉलीवुड में भी छाए रहे। हज़ारिका ने अपनी फ़िल्म का निर्देशन 1956 में किया। उन्होंने एरा बतर सुर से अपनी फ़िल्म का पहला निर्देशन किया।

हज़ारिका ने होश संभालते ही गीत संगीत को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बना लिया और 60 साल तक लगातार भारतीय संगीत जगत में सक्रिय योगदान दिया। उनके गंगा नदी पर लिखे और गाए गीत काफ़ी प्रसिद्ध हुए। हज़ारिका ने बंगाली, असमिया और हिंदी समेत कई भारतीय भाषाओं में गीत गाए हैं। आज भूपेन हज़ारिका के गाए कई प्रसिद्ध गीत है। फ़िल्म रूदाली के गीत 'दिल हूं हूं करे' के जरिए हज़ारिका हिंदी फ़िल्म जगत में छा गए। इसके अलावा हज़ारिका ने दमन फ़िल्म में 'गुम सुम' गाना भी गाया। भूपेन ने 'मैं और मेरा साया, एक कली दो पत्तियां, हां आवारा हूं, उस दिन की बात है' जैसे कई सारे हिंदी गानों को गाया था। 'ओ गंगा बहती हो क्यों' को अपनी आवाज़ और संगीत दी है। बिहू के गीतों में भूपेन हज़ारिका ने अपनी चिरजीवी आवाज़ दी है। यही नहीं, ‘गांधी टू हिटलर’ फ़िल्म में महात्मा गांधी के प्रसिद्ध भजन ‘वैष्णव जन’ को उन्होंने ही अपनी आवाज़ दी।

हज़ारिका ने हिंदी फ़िल्म स्वीकृति, एक पल, सिराज, प्रतिमूर्ति, दो राहें, साज, गजगामिनी, दमन, क्यों और चिंगारी जैसी हिंदी फ़िल्मों में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा। यही नहीं उन्होंने हिंदी फ़िल्म स्वीकृति और सिराज जैसी फ़िल्मों को निर्देशित कर फ़िल्म निर्देशन में भी अपनी प्रतिभा का लौहा मनवाया। हज़ारिका ने हिंदी फ़िल्म एक पल में बतौर अभिनेता के तौर पर भी काम किया। हज़ारिका ने 2006 में फ़िल्म 'चिंगारी' में भी गाना गाया।

पुरस्कार

दो-दो बार लौटा कर तीसरी बार उन्हें पद्मश्री सम्मान ग्रहण किया था। "चमेली मेमसाहब" के संगीत के लिए उन्हें राष्ट्रपति का सम्मान भी मिल चुका है और कभी कम्युनिस्ट होने की वजह से अपने निवास स्थान से भी दूर होना पड़ा है, जबकि इसमें उनका कोई दोष नहीं था। 1993 में असोम साहित्य सभा के अध्यक्ष भी रहे। वर्ष 2004 में उन्हें राजनीति में शिरकत की तथा भाजपा की तरफ से 2004 में चुनाव भी लड़ा।

हज़ारिका को असमिया फ़िल्मों उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए 1992 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाज़ा गया था। इसके अलावा उन्हें नेशनल अवॉर्ड एज दि बेस्ट रीजनल फ़िल्म (1975), कला क्षेत्र में पद्म भूषण (2001), असोम रत्न (2009) और संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड (2009) जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।

निधन

प्रख्यात गायक और संगीतकार भूपेन हज़ारिका का 5 नवंबर 2011 को मुम्बई के कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी अस्पताल में निधन हो गया था। उनका निधन शाम लगभग 4:37 बजे हुआ था। वह 86 वर्ष के थे। भूपेन हज़ारिका लम्बे समय से निमोनिया से बीमार थे।

फ़िल्म जगत में भूपेन हज़ारिका

फिल्म के गायक एवं अभिनेता के रूप में सर्वप्रथम काम किया

1. इन्द्रमालती (असमिया फ़िल्म, निर्देशक ज्योतिप्रसाद आगरवाला) : 1939

फिल्म में सर्वप्रथम पार्श्वगायन

1. जयमती : 1936
2. शोणित कुंवरी : 1936

कहानी और पटकथा लेखन

1. एरा बाटर सुर : 1956
2. माहुत बन्धुरे : 1958
3. शकुन्तला : 1961
4. लटिघटि : 1966
5. चिकमिक बिजुली : 1969
6. रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद आरू जयमती : 1976
7. भाग्य : 1968

फिल्म का निर्देशन

1. एरा बाटर सुर : 1956
2. माहुत बन्धुरे : 1958
3. शकुन्तला : 1961
4. प्रतिध्वनि : 1964
5. लटिघटी : 1966
6. भाग्य : 1968
7. चिकमिक बिजुली : 1969
8. मेरा धरम मेरी मां : 1975
9. रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद आरू जयमती : 1976
10. मन प्रजापति : 1979
11. सिराज : 1989
12. मिरि जियरी : 1990

भूपेन हज़ारिका को दी गयी विविध उपाधियां

1. सुधाकण्ठ
2. पद्मश्री
3. संगीत सूर्य
4. सुर के जादूगर
5. कलारत्न
6. धरती के गन्धर्व
7. असम गन्धर्व
8. गन्धर्व कुंवर
9. कला-काण्डारी
10. शिल्पी शिरोमणि
11. बीसवीं सदी के संस्कृतिदूत
12. यायावर शिल्पी
13. विश्वबन्धु
14. विश्वकण्ठ

भूपेन हज़ारिका ने जिन फ़िल्मों में संगीत दिया

असमिया

1. सती बेउला : 1948
2. सिराज : 1948
3. पियलि फुकन : 1955
4. एरा बाटर सुर : 1956
5. धुमुहा : 1957
6. केंचा सोन : 1959
7. शकुन्तला : 1961
8. पुवति निशार सपोन : 1959
9. मणिराम देवान : 1963
10. प्रतिध्वनि : 1964
11. लटिघटि : 1966
12. भाग्य : 1968
13. चिकमिक बिजुली : 1969
14. चमेली मेमसाब : 1975
15. खोज : 1975
16. पलाशर रंग : 1976
17. रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद आरू जयमती : 1976
18. वनहंस : 1976
19. वनजुई : 1977
20. वृन्दावन : 1978
21. मन प्रजापति : 1979
22. अकन : 1980
23. अपरूपा : 1980
24. मां : 1983
25. अंगीकार : 1985
26. युगे-युगे संग्राम : 1986
27. संकल्प : 1986
28. स्वीकारोक्ति : 1986
29. प्रतिशोध : 1987
30. सिराज : 1989
31. मिरि जियरी : 1990
32. पानी : 1990

बांग्ला

1. जीवन तृष्णा : 1957
2. कौडी ओ कमल : 1957
3. असमाप्त : 1957
4. माहुत बन्धुरे : 1958
5. जोनाकीर आलो : 1958
6. दुई बेचारा : 1959
7. एखाने पिंजड : 1971
8. महुआ : 1977
10. सीमाना पेरिए (बांग्लादेश) : 1977
11. नागिनी कन्यार काहिनी : 1979
12. कालो सिन्दूर : 1984
13. चमेली मेमसाब :
14. कोमल गान्धार :
15. बन्धु :

हिन्दी

1. आरोप : 1973
2. मेरा धरम मेरी मां : 1975
3. अपेक्षा : 1984
4. एक पल : 1986 5. लोहित किनारे (दूरदर्शन के लिए धारावाहिक) : 1988
6. चमेली मेमसाब :
7. रूदाली : 1992
8. गजगामिनी : 2000
9. दमन : 2000

भोजपुरी

1. छठ मैया की महिमा :

कार्बी

1. रिंग आंग तंग :


जिन मशहूर कलाकारों ने भूपेन हज़ारिका के लिखे गीतों को उनके ही संगीत निर्देशन में गाया
लता मंगेशकर

जोनाकरे राति असमीरे माटी : (एरा बांहर सुर) : 1956

हेमन्त मुखर्जी

रौद पुवाबर कारणे (एरा बांहर सुर) : 1956
जीवन डिंगा बाई थाका बान्धो (एरा बांहर सुर) : 1956

इला बसु

प्रथम प्रहर रात्रि (शकुन्तला) : 1961
वनरे पखीटी (शकुन्तला) : 1961
नव मल्लिकार (शकुन्तला) : 1961
जीवनटो यदि अभिनय हय (लटिघटि) : 1966

तलत महमूद

लिएन माकाऊ कोन पाहाडर शिखरते (प्रतिध्वनि) : 1964

सुमन कल्याणपुर

ओय ओय आकाश सुबो (प्रतिध्वनि) : 1964
मिलनेर शुभक्षण (चिकमिक बिजुली) : 1969
बिजुलीर पोहर मोर नाई (चिकमिक बिजुली) : 1969

किशोर कुमार

पखीराज घोडा (चिकमिक बिजुली) : 1969

मुकेश

घर आमार माटिर हय (चिकमिक बिजुली) : 1969

मोहम्मद रफी

रमजानरे रोजा होल
सेनेहरे सैयद
साहब जाय आगते

उषा मंगेशकर

सिनाकी मोर मनर मानुह (खोज) : 1974
जिलमिलीया कोमल बाली (खोज) : 1974
असम देशर बागीचारे सोवाली (चमेली मेमसाब) : 1975
हाउवा नाई बातास नाई (चमेली मेमसाब) : 1975
हायरे प्राणेर बाचा मोर (चमेली मेमसाब) : 1975
क ख ग घ (चमेली मेमसाब) : 1975
तुमि बियार निशार (रिकार्ड) : 1978
ओ मालती कथा एटा कऊं शुना (रिकार्ड) : 1978
राधाचूडार फूल गूजि (रिकार्ड) : 1978
श्याम कानू दूर है नायावा (रिकार्ड) : 1980

आशा भोंसले

पखीराज घोडा (चिकमिक बिजुली) : 1969
ओ अभिमानी बन्धु (मन प्रजापति) : 1978
एई धुनीया गोधूली लग्न (मन प्रजापति) : 1978

शबाना यासमीन

विमूर्त एई रात्रि मोर (सीमाना पेरिये)


भूपेन हज़ारिका का साहित्यिक योगदान

गद्य

1. सुन्दरर न दिगन्त
2. सुन्दरर सरू बड आलियेदि
3. समयर पखी घोडात उठि
4. ज्योति ककाईदेऊ
5. विष्णु ककाईदेऊ
6. कृष्टिर पथारे-पथारे
7. दिहिंगे दिपांगे
8. बोहाग माथो एटि ऋतु नहय
9. बन्हिमान लुइतर पारे-पारे
10. नंदन तत्वर कर्मीसकल
11. मई एटि यायावर
12. संपादकीय

गीत संग्रह

1. जिलिकाबो लुइतरे पार
2. संग्राम लग्न आजि
3. आगलि बांहरे लाहरी गगना
4. बन्हिमान ब्रह्मपुत्र
5. गीतावली

शिशु साहित्य

1. भूपेन मामार गीते माते अ आ क ख

पटकथा

1. चिकमिक बिजुली
2. एरा बाटर सुर
3. माहुत बन्धुरे

पत्रिकाओं का संपादन

1. न्यू इंडिया - न्यूयार्क, 1949-50
अमेरिका में भारतीय छात्र संघ का मुखपत्र
2. गति (कला पत्रिका) - गुवाहाटी, 1964-67
3. बिन्दु (लघु पत्रिका) - गुवाहाटी, 1970
4. आमार प्रतिनिधि (मासिक पत्रिका) - कलकत्ता, 1964-80
5. प्रतिध्वनि (मासिक पत्रिका) - गुवाहाटी


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 मेधि, डॉ. दिलीप। भूपेन हज़ारिका का जीवन-दर्शन और व्यक्तित्व (हिन्दी) (पी.एच.पी) ज्ञानकोश। अभिगमन तिथि: 8 सितम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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साँचा:गायक