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10:37, 2 जुलाई 2011 का अवतरण

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में मंगल पांडे (जन्म- 19 जुलाई 1827, फैज़ाबाद ज़िला उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 8 अप्रैल, 1857) का नाम अग्रणी योद्धाओं के रूप में लिया जाता है जिनके द्वारा भड़काई गई क्रांति की ज्वाला से ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन बुरी तरह हिल गया था। मंगल पांडे की शहादत ने भारत में पहली क्रांति के बीज बोए थे। ब्रह्म देश (बर्मा) पर विजय तथा सिख युद्ध की समाप्ति के पश्चात अंग्रेज़ों ने भारतवर्ष पर निष्कंटक राज्य करने के सपने देखें होंगे; पर उन्हें क्या पता था कि सन 1857 का वर्ष उनकी आशाओं पर तुषारपात का वर्ष सिद्ध होगा।

जन्म और परिवार

क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद ज़िले में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमति अभय रानी था। वे कोलकाता के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना के 1446 नम्बर के सिपाही थे। भारत की आज़ादी की पहली लड़ाई अर्थात 1857 के विद्रोह की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई।

जंग-ए-आज़ादी

29 मार्च, 1857 का दिन अंग्रेजों के लिए दुर्भाग्य के दिन के रूप में उदित हुआ। पाँचवी कंपनी की चौंतीसवीं रेजीमेंट का 1446 नं. का सिपाही वीरवर मंगल पांडे अंग्रेज़ों के लिए प्रलय-सूर्य के समान निकला। बैरकपुर की संचलन भूमि में प्रलयवीर मंगल पांडे का रणघोष गूँज उठा-

'"बंधुओ! उठो! उठो! तुम अब भी किस चिंता में निमग्न हो? उठो, तुम्हें अपने पावन धर्म की सौगंध! चलो, स्वातंत्र्य लक्ष्मी की पावन अर्चना हेतु इन अत्याचारी शत्रुओं पर तत्काल प्रहार करो।"'

मंगल पांडे के बदले हुए तेवर देखकर अंग्रेज़ सारजेंट मेजर ह्यूसन उसने पथ को अवरुद्ध करने के लिए आगे बढ़ा। उसने उस विद्रोही को उसकी उद्दंडता का पुरस्कार देना चाहा। अपनी कड़कती आवाज में उसने मंगल पांडे को खड़ा रहने का आदेश दिया। वीर मंगल पांडे के अरमान मचल उठे। वह शिवशंकर की भाँति सन्नद्ध होकर रक्तगंगा का आह्वान करने लगा। उसकी सबल बाहुओं ने बंदूक तान ली। उसकी सधी हुई उँगलियों ने बंदूक का घोड़ा अपनी ओर खींचा और घुड़ड़ घूँsss का तीव्र स्वर घहरा उठा। मेजर ह्यसन घायल कबूतर की भाँति भूमि पर तड़प रहा था। उसका रक्त भारत की धूल चाट रहा था। 1857 के क्रांतिकारी ने एक फिरंगी की बलि ले ली थी। विप्लव महायज्ञ के परोधा मंगल पांडे की बंदूक पहला 'स्वारा' बोल चुकी थी। स्वातंत्र्य यज्ञ की वेदी को दस्यु-देह की समिधा अर्पित हो चुकी थी।

ह्यसन को धराशायी हुआ देख लेफ्टिनेंट बॉब वहाँ जा पहुँचा। उस अश्वारूढ़ गोरे ने मंगल पांडे को घेरना चाहा। पहला ग्राम खाकर मंगल पांडे की बंदूक की भूख भड़क उठी थी। उसने दूसरी बार मुँह खोला और लेफ्टिनेंट बॉब घोड़े सहित भू-लुंठित होता दिखाई दिया। गिरकर भी बॉब ने अपनी पिस्तौल मंगल पांडे की ओर सीधी करके गोली चला दी। विद्युत गति से वीर मंगल पांडे गोली का वार बचा गया और बॉब खिसियाकर रह गया। अपनी पिस्तौल को मुँह की खाती हुई देख बॉब ने अपनी तलवार खींच ली और वह मंगल पांडे पर टूट पड़ा। मंगल पांडे भी कच्चा खिलाड़ी नहीं था। बॉब ने मंगल पांडे पर प्रहार करने के लिए तलवार तानी ही थी कि पांडे की तलवार का भरपूर हाथ उसपर ऐसा पड़ा कि बॉब का कंधा और तलवारवाला हाथ जड़ से कटकर अलग जा गिरा। एक बलि मंगल पांडे की बंदूक ले चुकी थी और दूसरी उसकी तलवार ने ले ली।

लेफ्टिनेंट बॉब को गिरा हुआ देख एक दूसरा अंग्रेज़ मंगल पांडे की ओर बढ़ा ही था कि मंगल पांडे के साथी एक भारतीय सैनिक ने अपनी बंदूक डंडे की भाँति उस अंग्रेज़ की खोपड़ी पर दे मारी। अंग्रेज़ की खोपड़ी खुल गई। अपने आदमियों को गिरते हुए देख कर्नल व्हीलर मंगल पांडे की ओर बढ़ा; पर सभी क्रुद्ध भारतीय सिंह गर्जना कर उठे-

'"खबरदार, जो कोई आगे बढ़ा! आज हम तुम्हारे अपवित्र हाथों को ब्राह्मण की पवित्र देह का स्पर्श नहीं करने देंगे।"'

कर्नल व्हीलर जैसा आया था वैसा ही लौट गया। इस सारे कांड की सूचना अपने जनरल को देकर, अंग्रेज़ी सेना को बटोरकर ले आना उसने अपना धर्म समझा। जंग-ए-आज़ादी के पहले सेनानी मंगल पांडे ने 1857 में ऐसी चिनगारी भड़काई, जिससे दिल्ली से लेकर लंदन तक की ब्रिटेनिया हुकूमत हिल गई।

अंग्रेज़ी सेना द्वारा बंदी

वीर मंगल पांडे ने अपने कर्तव्य की पूर्ति कर दी थी। उसने शत्रु के रक्त से भारतभूमि का तर्पण किया था। मातृभूमि की स्वाधीनता जैसे महत कार्य के लिए अपनी रक्तांजलि देना भी उसने अपना पावन कर्तव्य समझा। उसने अपनी बंदूक अपनी छाती से अड़ाकर गोली छोड़ दी। गोली छाती में सीधी न जाती हुई पसली की तरफ फिसल गई और घायल सिंह अंग्रेज़ी सेना द्वारा बंदी बना लिया गया।

अंगेज़ों ने भरसक प्रयत्न किया कि वे मंगल पांडे से क्रांति योजना के विषय में उसके साथियों के नाम-पते पूछ सकें; पर वह मंगल पांडे था, जिसका मुँह अपने साथियों को फँसाने के लिए खुला ही नहीं। मंगल होकर वह अपने साथियों का अमंगल कैसे करता!

निधन

फौजी अदालत ने न्याय का नाटक रचा और फैसला सुना दिया गया। 8 अप्रैल का दिन मंगल पांडे की फाँसी के लिए निश्चित किया गया। बैरकपुर के जल्लादों ने मंगल पांडे के पवित्र खून से अपने हाथ रँगने से इनकार कर दिया। तब कलकत्ता से चार जल्लाद बुलाए गए। 8 अप्रैल, 1857 के सूर्य ने उदित होकर मंगल पांडे के बलिदान का समाचार संसार में प्रसारित कर दिया। भारत के एक वीर पुत्र ने आजादी के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। वीर मंगल पांडे के पवित्र प्राण-हव्य को पाकर स्वातंत्र्य यज्ञ की लपटें भड़क उठीं। क्रांति की ये लपलपाती हुई लपटें फिरंगियों को लील जाने के लिए चारों ओर फैलने लगीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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