"मंगोलिया" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[गोबी मरूस्थल|गोबी मरूभूमि]] के सीमावर्ती मंगोलिया में रहने वाली अश्वारोहिणी मंगोल जाति ने पूर्व में [[चीन]] के बड़े भूभाग पर राज्य किया था। उन्होंने बीजिंग (Beijing) (पेकिंग) को राजधानी बनाया था। पश्चिम की ओर बढ़कर कश्यप सागर तक, जिसे 'तुर्किस्तान' कहते हैं, पर उन्होंने आधिपत्य स्थापित किया। भारत के अतिरिक्त प्राचीन काल के दो बड़े साम्राज्यों का यह समय था। यूरोप और भूमध्य सागर के देशों का रोमन साम्राज्य तथा पूर्वोत्तर में मंगोल साम्राज्य। ये दोनों साम्राज्य अत्यंत क्रूर थे।
+
[[चित्र:Mongolia-Flag.png|thumb|250px|मंगोलिया का ध्वज]]
 +
[[गोबी मरूस्थल|गोबी मरूभूमि]] के सीमावर्ती मंगोलिया में रहने वाली अश्वारोहिणी मंगोल जाति ने पूर्व में [[चीन]] के बड़े भूभाग पर राज्य किया था। उन्होंने बीजिंग (Beijing) (पेकिंग) को राजधानी बनाया था। पश्चिम की ओर बढ़कर कश्यप सागर तक, जिसे 'तुर्किस्तान' कहते हैं, पर उन्होंने आधिपत्य स्थापित किया। [[भारत]] के अतिरिक्त प्राचीन काल के दो बड़े साम्राज्यों का यह समय था। यूरोप और [[भूमध्य सागर]] के देशों का रोमन साम्राज्य तथा पूर्वोत्तर में मंगोल साम्राज्य। ये दोनों साम्राज्य अत्यंत क्रूर थे।
 
==मुग़ल साम्राज्य==
 
==मुग़ल साम्राज्य==
 
कालांतर में कश्यप सागर से गोबी मरूस्थल का क्षेत्र इस्लाम पंथावलंबी बन गया। पश्चिमी मंगोल जाति और भी खूँखार हो गयी। मंगोल को ही को [[अरबी भाषा|अरबी]] में 'मुग़ल' कहते हैं। इसी मंगोल-तुर्किस्तान से [[चंगेज खाँ]] और [[तैमूर लंग]] जैसे क्रूर व अधर्मी लुटेरे भारत को लूटने आये थे। उन्हीं में से एक सरदार का पुत्र था [[बाबर]], जिसे [[भारत]] में मुग़ल साम्राज्य का जनक कहा जाता है।
 
कालांतर में कश्यप सागर से गोबी मरूस्थल का क्षेत्र इस्लाम पंथावलंबी बन गया। पश्चिमी मंगोल जाति और भी खूँखार हो गयी। मंगोल को ही को [[अरबी भाषा|अरबी]] में 'मुग़ल' कहते हैं। इसी मंगोल-तुर्किस्तान से [[चंगेज खाँ]] और [[तैमूर लंग]] जैसे क्रूर व अधर्मी लुटेरे भारत को लूटने आये थे। उन्हीं में से एक सरदार का पुत्र था [[बाबर]], जिसे [[भारत]] में मुग़ल साम्राज्य का जनक कहा जाता है।
 
==भारतीय संस्कृति का प्रभाव==
 
==भारतीय संस्कृति का प्रभाव==
 +
[[चित्र:National-University-Of-Mongolia.jpg|thumb|250px|राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, मंगोलिया]]
 
प्राचीन साइबेरिया और उससे जुड़ा मंगोलिया कभी भारतीय संस्कृति का प्रभाव-क्षेत्र था, जहाँ दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करने की पद्घति थी, यहाँ धार्मिक कृत्य एवं पूजा गंगाजल के बिना संपन्न नहीं होती थी। इनके विहारों में [[संस्कृत]] तथा अन्य भाषाओं के अनेक प्राचीन ग्रंथ और प्रतिमाएं मिलती हैं और उनके लोक-काव्य में रामायण की कथाएं। 'बैकल' झील के चारों ओर विद्या के अनेक केंद्र थे, जहाँ देवी सरस्वती के अनुपम चित्र एवं भव्य प्रतिमाएं थीं।
 
प्राचीन साइबेरिया और उससे जुड़ा मंगोलिया कभी भारतीय संस्कृति का प्रभाव-क्षेत्र था, जहाँ दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करने की पद्घति थी, यहाँ धार्मिक कृत्य एवं पूजा गंगाजल के बिना संपन्न नहीं होती थी। इनके विहारों में [[संस्कृत]] तथा अन्य भाषाओं के अनेक प्राचीन ग्रंथ और प्रतिमाएं मिलती हैं और उनके लोक-काव्य में रामायण की कथाएं। 'बैकल' झील के चारों ओर विद्या के अनेक केंद्र थे, जहाँ देवी सरस्वती के अनुपम चित्र एवं भव्य प्रतिमाएं थीं।
 
==चीन की सभ्यता==
 
==चीन की सभ्यता==
चीन की सभ्यता अन्य प्राचीन सभ्यताओं से अपेक्षाकृत नई है। भारत से चीन जाने के दो दुर्गम मार्ग थे। एक पश्चिम में कश्मीर तथा गिलगित की घाटी से ऊँचे पर्वत पारकर और दूसरा पूर्व में ब्रह्मदेश के उत्तर से होकर। बीच में [[हिमालय]] है, जिसकी चोटियाँ सदा हिम से ढकी रहती हैं। एक अन्य तीसरा मार्ग भी था [[गांधार]] तथा कुंभा नदी के दर्रों से होते हुए उत्तर की ओर मध्य एशिया में सर्वत्र हिंदु राज्य थे। इसी रास्ते से भारतीय संस्कृति का प्रचार मध्य एशिया में हुआ। बौद्घ प्रचारकों ने भी इसी मार्ग को अपनाया। इसके अतिरिक्त दक्षिण-पूर्व से होकर एक चौथा सागर मार्ग भी था।
+
चीन की सभ्यता अन्य प्राचीन सभ्यताओं से अपेक्षाकृत नई है। [[भारत]] से चीन जाने के दो दुर्गम मार्ग थे। एक पश्चिम में [[कश्मीर]] तथा गिलगित की घाटी से ऊँचे पर्वत पारकर और दूसरा पूर्व में ब्रह्मदेश के उत्तर से होकर। बीच में [[हिमालय]] है, जिसकी चोटियाँ सदा हिम से ढकी रहती हैं। एक अन्य तीसरा मार्ग भी था [[गांधार]] तथा कुंभा नदी के दर्रों से होते हुए उत्तर की ओर [[मध्य एशिया]] में सर्वत्र हिंदू राज्य थे। इसी रास्ते से [[भारतीय संस्कृति]] का प्रचार मध्य एशिया में हुआ। [[बौद्ध]] प्रचारकों ने भी इसी मार्ग को अपनाया। इसके अतिरिक्त दक्षिण-पूर्व से होकर एक चौथा [[सागर]] मार्ग भी था।
  
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
+
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{विदेशी स्थान}}
+
{{देश}}
 
[[Category:विदेशी स्थान]]
 
[[Category:विदेशी स्थान]]
 +
[[Category:विदेश]]
 +
[[Category:देश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

08:32, 20 जून 2014 के समय का अवतरण

मंगोलिया का ध्वज

गोबी मरूभूमि के सीमावर्ती मंगोलिया में रहने वाली अश्वारोहिणी मंगोल जाति ने पूर्व में चीन के बड़े भूभाग पर राज्य किया था। उन्होंने बीजिंग (Beijing) (पेकिंग) को राजधानी बनाया था। पश्चिम की ओर बढ़कर कश्यप सागर तक, जिसे 'तुर्किस्तान' कहते हैं, पर उन्होंने आधिपत्य स्थापित किया। भारत के अतिरिक्त प्राचीन काल के दो बड़े साम्राज्यों का यह समय था। यूरोप और भूमध्य सागर के देशों का रोमन साम्राज्य तथा पूर्वोत्तर में मंगोल साम्राज्य। ये दोनों साम्राज्य अत्यंत क्रूर थे।

मुग़ल साम्राज्य

कालांतर में कश्यप सागर से गोबी मरूस्थल का क्षेत्र इस्लाम पंथावलंबी बन गया। पश्चिमी मंगोल जाति और भी खूँखार हो गयी। मंगोल को ही को अरबी में 'मुग़ल' कहते हैं। इसी मंगोल-तुर्किस्तान से चंगेज खाँ और तैमूर लंग जैसे क्रूर व अधर्मी लुटेरे भारत को लूटने आये थे। उन्हीं में से एक सरदार का पुत्र था बाबर, जिसे भारत में मुग़ल साम्राज्य का जनक कहा जाता है।

भारतीय संस्कृति का प्रभाव

राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, मंगोलिया

प्राचीन साइबेरिया और उससे जुड़ा मंगोलिया कभी भारतीय संस्कृति का प्रभाव-क्षेत्र था, जहाँ दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करने की पद्घति थी, यहाँ धार्मिक कृत्य एवं पूजा गंगाजल के बिना संपन्न नहीं होती थी। इनके विहारों में संस्कृत तथा अन्य भाषाओं के अनेक प्राचीन ग्रंथ और प्रतिमाएं मिलती हैं और उनके लोक-काव्य में रामायण की कथाएं। 'बैकल' झील के चारों ओर विद्या के अनेक केंद्र थे, जहाँ देवी सरस्वती के अनुपम चित्र एवं भव्य प्रतिमाएं थीं।

चीन की सभ्यता

चीन की सभ्यता अन्य प्राचीन सभ्यताओं से अपेक्षाकृत नई है। भारत से चीन जाने के दो दुर्गम मार्ग थे। एक पश्चिम में कश्मीर तथा गिलगित की घाटी से ऊँचे पर्वत पारकर और दूसरा पूर्व में ब्रह्मदेश के उत्तर से होकर। बीच में हिमालय है, जिसकी चोटियाँ सदा हिम से ढकी रहती हैं। एक अन्य तीसरा मार्ग भी था गांधार तथा कुंभा नदी के दर्रों से होते हुए उत्तर की ओर मध्य एशिया में सर्वत्र हिंदू राज्य थे। इसी रास्ते से भारतीय संस्कृति का प्रचार मध्य एशिया में हुआ। बौद्ध प्रचारकों ने भी इसी मार्ग को अपनाया। इसके अतिरिक्त दक्षिण-पूर्व से होकर एक चौथा सागर मार्ग भी था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख