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'''मनोहर श्याम जोशी''' (अंग्रेज़ी: ''Manohar Shyam Joshi'', जन्म: 9 अगस्त 1933 [[अजमेर]] - मृत्यु: 30 मार्च 2006 [[नई दिल्ली]]) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध गद्यकार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार, पत्रकार, दूरदर्शन धारावाहिक लेखक, जनवादी-विचारक, फिल्म पट-कथा लेखक, उच्च कोटि के संपादक, कुशल प्रवक्ता तथा स्तंभ-लेखक थे। दूरदर्शन के प्रसिद्ध और लोकप्रिय धारावाहिकों- 'बुनियाद' 'नेताजी कहिन', 'मुंगेरी लाल के हसीं सपने', 'हम लोग' आदि के कारण वे [[भारत]] के घर-घर में प्रसिद्ध हो गए थे। उन्होंने धारावाहिक और फिल्म लेखन से संबंधित 'पटकथा-लेखन' नामक पुस्तक की रचना की है। दिनमान' और 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' के संपादक भी रहे।
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==जीवन परिचय==
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मनोहर श्याम जोशी का जन्म [[9 अगस्त]] [[1933]] को [[राजस्थान]] के [[अजमेर]] के एक प्रतिष्ठित एवं सुशिक्षित [[परिवार]] में हुआ था। उन्होंने स्नातक की शिक्षा विज्ञान में लखनऊ विश्वविद्यालय से की। परिवार में पीढ़ी दर पीढी शास्त्र-साधना एवं पठन-पाठन व विद्या-ग्रहण का क्रम पहले से चला आ रहा था, अतः विद्याध्ययन तथा संचार-साधनों के प्रति जिज्ञासु भाव उन्हें बचपन से ही संस्कार रूप में प्राप्त हुआ जो कालान्तर में उनकी आजीविका एवं उनके संपूर्ण व्यक्तित्व विकास का आधार बना।
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====व्यक्तित्व====
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मनोहर श्याम जोशी हमारे दौर की एक साधारण शख्सियत थे। साहित्य, पत्रकारिता, टेलीविजन, सिनेमा जैसे अनेक माध्यमों में वह सहजता से विचरण कर सकते थे। उनकी मेधा और ज्ञान जितना चर्चित था, उतना ही उनका विनोद और सड़क के मुहावरों पर उनकी पकड़ भी जानी जाती थी।
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====उपन्यासकार====
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वे जब मुंबई में फ्रीलांसर के तौर पर कार्य कर रहे थे, तब 'धर्मयुग' के तत्कालीन संपादक [[धर्मवीर भारती]] ने उनसे 'लहरें और सीपियां' नाम से एक स्तंभ लिखने को कहा था, जो [[मुंबई]] के उस सेक्स बिजनेस पर आधारित होना था, जो जुहू चौपाटी में चलता था। लड़कियाँ-औरतें शाम के वक्त ग्राहकों को पटाने के लिए घूमती रहती हैं। तब (शायद आज भी) जुहू चौपाटी के आसपास कई दलाल भी घूमते रहते थे। अपने क्लाइंट के लिए ग्राहक पटाने का काम करते थे। दलालों के अपने कई क्लाइंट होते थे। ग्राहक को एक लड़की पसंद आये तो दूसरी-तीसरी पेश करते थे। इन सबका अपना एक तंत्र था। इसी के बारे में लिखना था। मामला कुछ-कुछ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म का था। लड़कियाँ इस पेशे में कैसे आती हैं, उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि क्या-क्या है, बिजनेस कैसे चलता है जैसी बातें खोज निकालनी थीं। इस खोज के दौरान जोशी जी की मुलाकात बाबू से हुई थी, जो इस उपन्यास का पात्र है। बाबू ने ही उनकी मुलाकात 'पहुंचेली' से कराई थी, जो 'कुंरु कुरं स्वाहा' की प्रमुख महिला किरदार है।
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मनोहर श्याम जोशी की स्मरण शक्ति अदभुत थी। रंजीत कपूर उस समय [[मोहन राकेश]] का अधूरा नाटक 'पैर तले की जमीन' भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंग मंडल के लिए करने वाले थे। उन्होंने जोशी जी से पूछा कि क्या आपने राकेश का वो नाटक पढ़ा है। जोशी ने कहा कि ठीक से याद नहीं है, मगर धीरे-धीरे पूरे नाटक का सार संक्षेप में बता दिया। यह सब ये भी दिखाता है कि वे नाटक भी कितने ध्यान से पढ़ते थे। अधूरे नाटक भी।
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====पटकथा लेखक====
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जोशी जी टेलीविजन के धारावाहिक लिखने में कितने उस्ताद थे, ये सभी जानते हैं। पर वे कुछ धारावाहिक अपने मित्रों को लिखने के लिए दिलवा देते थे। कुछ साल पहले दूरदर्शन कई धारावाहिकों की योजनाएं बना रहा था। जोशी जी ने अमिताभ श्रीवास्तव को कहा कि [[मुंबई]] के एक निर्माता के लिए तेरह एपिसोड का धारावाहिक लिख दो। फिर उसका विषय भी दिया। उन्होंने कहा कि 'एक फूल दो माली' हॉलीवुड की एक फिल्म की नकल है। उसी मूल कहानी को भारतीय पृष्ठभूमि में रूपांतरित करने के लिए कहा और उसके लिए कुछ नुस्खे भी सुझाए। हालांकि बाद में वो धारावाहिक बना नहीं।
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भाषा के जितने विविध अंदाज और मिजाज मनोहर श्याम जोशी में हैं, उतने किसी और हिंदी कथाकार में नहीं। कभी शरारती, कभी उन्मुक्त। कभी रसीली तो कभी व्यंग्यात्मक। कभी रोजमर्रे की बोलचाल वाली तो कभी [[संस्कृत]] की तत्सम पदावली वाली। उनकी भाषा में [[अवधी भाषा|अवधी]] का स्वाद भी है। कुमाउंनी का मजा और परिनिष्ठित [[खड़ी बोली]] का अंदाज भी। साथ ही बंबइया (मुंबइया नहीं) की भंगिमा भी। वे कुमाउं के थे, इसलिए कुमाउंनी पर अधिकार तो स्वाभाविक था और 'कसप' में उसका प्रचुर इस्तेमाल हुआ है। लेकिन 'नेताजी कहिन' की भाषा अवधी है। 'कुरु कुरु स्वाहा' में बंबइया हिंदी है। 'हमजाद' में तो पूरी तरह उर्दू के लेखक-मुहावरेदारी है। सिर्फ उसकी [[देवनागरी लिपि|लिपि देवनागरी]] है। उनकी एक कहानी 'प्रभु तुम कैसे किस्सागो' में तो [[कन्नड़]] के कई सारे शब्द हैं। वैसे इस कहानी पर भी वेश्याओं के जीवन पर उनके शोध का प्रभाव है। हालांकि ये कहानी हिंदी कहानी-साहित्य और विश्व कथा साहित्य- अलबेयर कामू, हेनरी मिलर, ओ'हेनरी आदि के लेखन को कई प्रसंगों से समेटती है।
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==निधन==
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1982 में जब भारत के राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन पर उनका पहला नाटक "हम लोग" प्रसारित होना आरम्भ हुआ तब अधिकतर भारतीयों के लिये टेलीविज़न एक विलास की वस्तु के जैसा था। मनोहर श्याम जोशी ने यह नाटक एक आम भारतीय की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी को छूते हुए लिखा था -इस लिये लोग इससे अपने को जुडा हुआ अनुभव करने लगे। इस नाटक के किरदार जैसे कि लाजो जी, बडकी, छुटकी, बसेसर राम का नाम तो जन-जन की ज़ुबान पर था।
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==कृतियाँ==
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====प्रमुख धारावाहिक====
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उनके प्रमुख धारावाहिक निम्नलिखित हैं-
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# हमलोग
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# बुनियाद
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# कक्का जी कहिन
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# मुंगेरी लाल के हसीन सपनें
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# हमराही
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# ज़मीन आसमान
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# गाथा
  
==शीर्षक उदाहरण 1==
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===शीर्षक उदाहरण 2===
 
 
 
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07:37, 13 अगस्त 2012 का अवतरण

मनोहर श्याम जोशी (अंग्रेज़ी: Manohar Shyam Joshi, जन्म: 9 अगस्त 1933 अजमेर - मृत्यु: 30 मार्च 2006 नई दिल्ली) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध गद्यकार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार, पत्रकार, दूरदर्शन धारावाहिक लेखक, जनवादी-विचारक, फिल्म पट-कथा लेखक, उच्च कोटि के संपादक, कुशल प्रवक्ता तथा स्तंभ-लेखक थे। दूरदर्शन के प्रसिद्ध और लोकप्रिय धारावाहिकों- 'बुनियाद' 'नेताजी कहिन', 'मुंगेरी लाल के हसीं सपने', 'हम लोग' आदि के कारण वे भारत के घर-घर में प्रसिद्ध हो गए थे। उन्होंने धारावाहिक और फिल्म लेखन से संबंधित 'पटकथा-लेखन' नामक पुस्तक की रचना की है। दिनमान' और 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' के संपादक भी रहे।

जीवन परिचय

मनोहर श्याम जोशी का जन्म 9 अगस्त 1933 को राजस्थान के अजमेर के एक प्रतिष्ठित एवं सुशिक्षित परिवार में हुआ था। उन्होंने स्नातक की शिक्षा विज्ञान में लखनऊ विश्वविद्यालय से की। परिवार में पीढ़ी दर पीढी शास्त्र-साधना एवं पठन-पाठन व विद्या-ग्रहण का क्रम पहले से चला आ रहा था, अतः विद्याध्ययन तथा संचार-साधनों के प्रति जिज्ञासु भाव उन्हें बचपन से ही संस्कार रूप में प्राप्त हुआ जो कालान्तर में उनकी आजीविका एवं उनके संपूर्ण व्यक्तित्व विकास का आधार बना।

व्यक्तित्व

मनोहर श्याम जोशी हमारे दौर की एक साधारण शख्सियत थे। साहित्य, पत्रकारिता, टेलीविजन, सिनेमा जैसे अनेक माध्यमों में वह सहजता से विचरण कर सकते थे। उनकी मेधा और ज्ञान जितना चर्चित था, उतना ही उनका विनोद और सड़क के मुहावरों पर उनकी पकड़ भी जानी जाती थी।

उपन्यासकार

वे जब मुंबई में फ्रीलांसर के तौर पर कार्य कर रहे थे, तब 'धर्मयुग' के तत्कालीन संपादक धर्मवीर भारती ने उनसे 'लहरें और सीपियां' नाम से एक स्तंभ लिखने को कहा था, जो मुंबई के उस सेक्स बिजनेस पर आधारित होना था, जो जुहू चौपाटी में चलता था। लड़कियाँ-औरतें शाम के वक्त ग्राहकों को पटाने के लिए घूमती रहती हैं। तब (शायद आज भी) जुहू चौपाटी के आसपास कई दलाल भी घूमते रहते थे। अपने क्लाइंट के लिए ग्राहक पटाने का काम करते थे। दलालों के अपने कई क्लाइंट होते थे। ग्राहक को एक लड़की पसंद न आये तो दूसरी-तीसरी पेश करते थे। इन सबका अपना एक तंत्र था। इसी के बारे में लिखना था। मामला कुछ-कुछ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म का था। लड़कियाँ इस पेशे में कैसे आती हैं, उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि क्या-क्या है, बिजनेस कैसे चलता है जैसी बातें खोज निकालनी थीं। इस खोज के दौरान जोशी जी की मुलाकात बाबू से हुई थी, जो इस उपन्यास का पात्र है। बाबू ने ही उनकी मुलाकात 'पहुंचेली' से कराई थी, जो 'कुंरु कुरं स्वाहा' की प्रमुख महिला किरदार है। मनोहर श्याम जोशी की स्मरण शक्ति अदभुत थी। रंजीत कपूर उस समय मोहन राकेश का अधूरा नाटक 'पैर तले की जमीन' भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंग मंडल के लिए करने वाले थे। उन्होंने जोशी जी से पूछा कि क्या आपने राकेश का वो नाटक पढ़ा है। जोशी ने कहा कि ठीक से याद नहीं है, मगर धीरे-धीरे पूरे नाटक का सार संक्षेप में बता दिया। यह सब ये भी दिखाता है कि वे नाटक भी कितने ध्यान से पढ़ते थे। अधूरे नाटक भी।

पटकथा लेखक

जोशी जी टेलीविजन के धारावाहिक लिखने में कितने उस्ताद थे, ये सभी जानते हैं। पर वे कुछ धारावाहिक अपने मित्रों को लिखने के लिए दिलवा देते थे। कुछ साल पहले दूरदर्शन कई धारावाहिकों की योजनाएं बना रहा था। जोशी जी ने अमिताभ श्रीवास्तव को कहा कि मुंबई के एक निर्माता के लिए तेरह एपिसोड का धारावाहिक लिख दो। फिर उसका विषय भी दिया। उन्होंने कहा कि 'एक फूल दो माली' हॉलीवुड की एक फिल्म की नकल है। उसी मूल कहानी को भारतीय पृष्ठभूमि में रूपांतरित करने के लिए कहा और उसके लिए कुछ नुस्खे भी सुझाए। हालांकि बाद में वो धारावाहिक बना नहीं। भाषा के जितने विविध अंदाज और मिजाज मनोहर श्याम जोशी में हैं, उतने किसी और हिंदी कथाकार में नहीं। कभी शरारती, कभी उन्मुक्त। कभी रसीली तो कभी व्यंग्यात्मक। कभी रोजमर्रे की बोलचाल वाली तो कभी संस्कृत की तत्सम पदावली वाली। उनकी भाषा में अवधी का स्वाद भी है। कुमाउंनी का मजा और परिनिष्ठित खड़ी बोली का अंदाज भी। साथ ही बंबइया (मुंबइया नहीं) की भंगिमा भी। वे कुमाउं के थे, इसलिए कुमाउंनी पर अधिकार तो स्वाभाविक था और 'कसप' में उसका प्रचुर इस्तेमाल हुआ है। लेकिन 'नेताजी कहिन' की भाषा अवधी है। 'कुरु कुरु स्वाहा' में बंबइया हिंदी है। 'हमजाद' में तो पूरी तरह उर्दू के लेखक-मुहावरेदारी है। सिर्फ उसकी लिपि देवनागरी है। उनकी एक कहानी 'प्रभु तुम कैसे किस्सागो' में तो कन्नड़ के कई सारे शब्द हैं। वैसे इस कहानी पर भी वेश्याओं के जीवन पर उनके शोध का प्रभाव है। हालांकि ये कहानी हिंदी कहानी-साहित्य और विश्व कथा साहित्य- अलबेयर कामू, हेनरी मिलर, ओ'हेनरी आदि के लेखन को कई प्रसंगों से समेटती है।

निधन

1982 में जब भारत के राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन पर उनका पहला नाटक "हम लोग" प्रसारित होना आरम्भ हुआ तब अधिकतर भारतीयों के लिये टेलीविज़न एक विलास की वस्तु के जैसा था। मनोहर श्याम जोशी ने यह नाटक एक आम भारतीय की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी को छूते हुए लिखा था -इस लिये लोग इससे अपने को जुडा हुआ अनुभव करने लगे। इस नाटक के किरदार जैसे कि लाजो जी, बडकी, छुटकी, बसेसर राम का नाम तो जन-जन की ज़ुबान पर था।

कृतियाँ

प्रमुख धारावाहिक

उनके प्रमुख धारावाहिक निम्नलिखित हैं-

  1. हमलोग
  2. बुनियाद
  3. कक्का जी कहिन
  4. मुंगेरी लाल के हसीन सपनें
  5. हमराही
  6. ज़मीन आसमान
  7. गाथा


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