"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 22 श्लोक 12-21" के अवतरणों में अंतर

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गाण्डीव धनुष धारण करके एकमात्र रथ पर आरूढ हो सब्यसाची अर्जुन ने केवल उŸार दिशापर विजय पायी थी, अपितु उत्तर कुरूदेश को भी जीतकर ले आये थे । उन्होंने द्रविडो को भी जीतकर अपनी सेना का अनुगामी बनाया था । गाण्डीव धनुष धारण करने वाले पाण्डु पुत्र सव्यसाची अर्जुन वे ही है, जिन्होंने खाण्डव वन में इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवतओं पर विजय पायी थी और पाण्डवों के यश तथा सम्मान की वृृृद्धि करते हुए शनि देव को वह वन उपहार के रूप में अर्पित किया था । गदाधारियों में इस भूतल पर भीमसेन के समान दुसरा कोई नहीं है और न उनके जैसा कोई हाथी पर सवार ही है । रथ में बैठकर युद्ध करने की कला में भी अर्जुन कम नहीं बताये जाते है और बाहुबल तो वे दस हजार हाथियों के समान शक्ति शाली है । अस्त्र विद्या में उन्हें अच्छी शिक्षा मिली है । वे बडें वेगशाली वीर है उनके साथ मेरे पुत्रों ने ठान लिया रक्खा है और वे सदा अत्यन्त अमर्ष में भरे रखते है य अतः युद्ध हुआ तो भीमसेन मेरे क्षुद्र स्वभाववाले पुत्रों को वेग पूर्वक (अपनी कोपाग्नि से ) जलाकर भस्म कर देगें । साक्षात् इन्द्र भी उन्हें युद्ध में बलपूर्वक परास्त नही कर सकते । माद्रीनन्दन नकुल और सहदेव भी शुद्धचित्त और बलवान है। अस्त्र संचालन में उनके हाथों फुर्ती देखने ही योग्य है । स्वयं अर्जुन अपने उन दोनो भाइयों को युद्ध की अच्छी शिक्षा दी है । जैसे दो बाज पक्षियों के समुदाय को (सर्वथा) नष्ट कर देते है । उसी प्रकार वे दोनो भाई शत्रुओं से भिडंकर उन्हे जीवित नही छोड सकते । सब ठीक है हमारी सेना सब प्रकार से परिपूर्ण है तथापि मेरा यह विश्वास है कि वह पाण्डवों का सामना पड़ने पर नही के बाराबर है कि वह पाण्डवों के पक्ष में धृष्टद्युम्न नाम से प्रसिद्ध एक बलवान योद्धा है, जो सोमवंश का श्रेष्ट राजकुमार है । मैने सुना है, उसने पाण्डवों के लिये मन्त्रियांे सहित अपने शरीर को निछावर कर दिया है । जिन अजातशुत्रु युधिष्ठर के अगुवा नेता अथ्वा वृष्णवंश के सिंह भगवान् श्रीकृष्ण है, उनका वेग दूसरा कौन सह सकता है । मस्तस्य देश के राजा विराट भी अपने पुत्रो के साथ पाण्डवों की सहायता के लिए सदा उद्यत रहते है । मैने सुना है कि वे युधिष्ठर के बडे भक्त है । कारण यह है कि अज्ञातवास के समय युधिष्ठर के साथ एक वर्ष रहे है और युधिष्ठर के द्वारा उनके गोरधन रक्षा हुई है । अवस्था में वृद्ध होने पर भी वे युद्ध में नौजवान से जान पड़ते है । केकेय देश से निकाले हुए पांच भाई राजकुमार मह्ान धनुर्धर एवं रथी वीर है । वे पाण्डव के सहयोंग से केकय देश के राजाओं से पुनः अपना राज्य लेना चाहते, इसलिये उनकी ओर से युद्ध करने की इच्छा रखकर उन्ही के साथ रह रहे है ।     
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गाण्डीव धनुष धारण करके एकमात्र रथ पर आरूढ हो सब्यसाची अर्जुन ने केवल उŸार दिशापर विजय पायी थी, अपितु उत्तर कुरूदेश को भी जीतकर ले आये थे । उन्होंने द्रविडो को भी जीतकर अपनी सेना का अनुगामी बनाया था । गाण्डीव धनुष धारण करने वाले पाण्डु पुत्र सव्यसाची अर्जुन वे ही है, जिन्होंने खाण्डव वन में इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवतओं पर विजय पायी थी और पाण्डवों के यश तथा सम्मान की वृृृद्धि करते हुए शनि देव को वह वन उपहार के रूप में अर्पित किया था । गदाधारियों में इस भूतल पर भीमसेन के समान दुसरा कोई नहीं है और न उनके जैसा कोई हाथी पर सवार ही है । रथ में बैठकर युद्ध करने की कला में भी अर्जुन कम नहीं बताये जाते है और बाहुबल तो वे दस हजार हाथियों के समान शक्ति शाली है । अस्त्र विद्या में उन्हें अच्छी शिक्षा मिली है । वे बडें वेगशाली वीर है उनके साथ मेरे पुत्रों ने ठान लिया रक्खा है और वे सदा अत्यन्त अमर्ष में भरे रखते है य अतः युद्ध हुआ तो भीमसेन मेरे क्षुद्र स्वभाववाले पुत्रों को वेग पूर्वक (अपनी कोपाग्नि से ) जलाकर भस्म कर देगें । साक्षात् इन्द्र भी उन्हें युद्ध में बलपूर्वक परास्त नही कर सकते । माद्रीनन्दन नकुल और सहदेव भी शुद्धचित्त और बलवान है। अस्त्र संचालन में उनके हाथों फुर्ती देखने ही योग्य है । स्वयं अर्जुन अपने उन दोनो भाइयों को युद्ध की अच्छी शिक्षा दी है । जैसे दो बाज पक्षियों के समुदाय को (सर्वथा) नष्ट कर देते है । उसी प्रकार वे दोनो भाई शत्रुओं से भिडंकर उन्हे जीवित नही छोड सकते । सब ठीक है हमारी सेना सब प्रकार से परिपूर्ण है तथापि मेरा यह विश्वास है कि वह पाण्डवों का सामना पड़ने पर नही के बाराबर है कि वह पाण्डवों के पक्ष में धृष्टद्युम्न नाम से प्रसिद्ध एक बलवान योद्धा है, जो सोमवंश का श्रेष्ट राजकुमार है । मैने सुना है, उसने पाण्डवों के लिये मन्त्रियांे सहित अपने शरीर को निछावर कर दिया है । जिन अजातशुत्रु युधिष्ठर के अगुवा नेता अथ्वा वृष्णवंश के सिंह भगवान् श्रीकृष्ण है, उनका वेग दूसरा कौन सह सकता है । मस्तस्य देश के राजा विराट भी अपने पुत्रो के साथ पाण्डवों की सहायता के लिए सदा उद्यत रहते है । मैने सुना है कि वे युधिष्ठर के बडे भक्त है । कारण यह है कि अज्ञातवास के समय युधिष्ठर के साथ एक वर्ष रहे है और युधिष्ठर के द्वारा उनके गोरधन रक्षा हुई है । अवस्था में वृद्ध होने पर भी वे युद्ध में नौजवान से जान पड़ते है । केकेय देश से निकाले हुए पांच भाई राजकुमार मह्ान धनुर्धर एवं रथी वीर है । वे पाण्डव के सहयोंग से केकय देश के राजाओं से पुनः अपना राज्य लेना चाहते, इसलिये उनकी ओर से युद्ध करने की इच्छा रखकर उन्हीं के साथ रह रहे है ।     
 
मै यह भी सुनता हूं कि राजाआंे में जितने वीर है, वे सब पाण्डवों की सहायता के लिये आकर उनकी छावनी में रहते है । वे सब के सब शौर्यसम्पन्न, यधिष्ठर के प्रति भक्ति रखनेवाले, प्रसन्नचित्त एवं धर्मराज के आश्रित है ।
 
मै यह भी सुनता हूं कि राजाआंे में जितने वीर है, वे सब पाण्डवों की सहायता के लिये आकर उनकी छावनी में रहते है । वे सब के सब शौर्यसम्पन्न, यधिष्ठर के प्रति भक्ति रखनेवाले, प्रसन्नचित्त एवं धर्मराज के आश्रित है ।
  

12:05, 27 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

द्वाविंश (22) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: द्वाविंश अध्याय: श्लोक 12-21 का हिन्दी अनुवाद


गाण्डीव धनुष धारण करके एकमात्र रथ पर आरूढ हो सब्यसाची अर्जुन ने केवल उŸार दिशापर विजय पायी थी, अपितु उत्तर कुरूदेश को भी जीतकर ले आये थे । उन्होंने द्रविडो को भी जीतकर अपनी सेना का अनुगामी बनाया था । गाण्डीव धनुष धारण करने वाले पाण्डु पुत्र सव्यसाची अर्जुन वे ही है, जिन्होंने खाण्डव वन में इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवतओं पर विजय पायी थी और पाण्डवों के यश तथा सम्मान की वृृृद्धि करते हुए शनि देव को वह वन उपहार के रूप में अर्पित किया था । गदाधारियों में इस भूतल पर भीमसेन के समान दुसरा कोई नहीं है और न उनके जैसा कोई हाथी पर सवार ही है । रथ में बैठकर युद्ध करने की कला में भी अर्जुन कम नहीं बताये जाते है और बाहुबल तो वे दस हजार हाथियों के समान शक्ति शाली है । अस्त्र विद्या में उन्हें अच्छी शिक्षा मिली है । वे बडें वेगशाली वीर है उनके साथ मेरे पुत्रों ने ठान लिया रक्खा है और वे सदा अत्यन्त अमर्ष में भरे रखते है य अतः युद्ध हुआ तो भीमसेन मेरे क्षुद्र स्वभाववाले पुत्रों को वेग पूर्वक (अपनी कोपाग्नि से ) जलाकर भस्म कर देगें । साक्षात् इन्द्र भी उन्हें युद्ध में बलपूर्वक परास्त नही कर सकते । माद्रीनन्दन नकुल और सहदेव भी शुद्धचित्त और बलवान है। अस्त्र संचालन में उनके हाथों फुर्ती देखने ही योग्य है । स्वयं अर्जुन अपने उन दोनो भाइयों को युद्ध की अच्छी शिक्षा दी है । जैसे दो बाज पक्षियों के समुदाय को (सर्वथा) नष्ट कर देते है । उसी प्रकार वे दोनो भाई शत्रुओं से भिडंकर उन्हे जीवित नही छोड सकते । सब ठीक है हमारी सेना सब प्रकार से परिपूर्ण है तथापि मेरा यह विश्वास है कि वह पाण्डवों का सामना पड़ने पर नही के बाराबर है कि वह पाण्डवों के पक्ष में धृष्टद्युम्न नाम से प्रसिद्ध एक बलवान योद्धा है, जो सोमवंश का श्रेष्ट राजकुमार है । मैने सुना है, उसने पाण्डवों के लिये मन्त्रियांे सहित अपने शरीर को निछावर कर दिया है । जिन अजातशुत्रु युधिष्ठर के अगुवा नेता अथ्वा वृष्णवंश के सिंह भगवान् श्रीकृष्ण है, उनका वेग दूसरा कौन सह सकता है । मस्तस्य देश के राजा विराट भी अपने पुत्रो के साथ पाण्डवों की सहायता के लिए सदा उद्यत रहते है । मैने सुना है कि वे युधिष्ठर के बडे भक्त है । कारण यह है कि अज्ञातवास के समय युधिष्ठर के साथ एक वर्ष रहे है और युधिष्ठर के द्वारा उनके गोरधन रक्षा हुई है । अवस्था में वृद्ध होने पर भी वे युद्ध में नौजवान से जान पड़ते है । केकेय देश से निकाले हुए पांच भाई राजकुमार मह्ान धनुर्धर एवं रथी वीर है । वे पाण्डव के सहयोंग से केकय देश के राजाओं से पुनः अपना राज्य लेना चाहते, इसलिये उनकी ओर से युद्ध करने की इच्छा रखकर उन्हीं के साथ रह रहे है । मै यह भी सुनता हूं कि राजाआंे में जितने वीर है, वे सब पाण्डवों की सहायता के लिये आकर उनकी छावनी में रहते है । वे सब के सब शौर्यसम्पन्न, यधिष्ठर के प्रति भक्ति रखनेवाले, प्रसन्नचित्त एवं धर्मराज के आश्रित है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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