"महाभारत शल्य पर्व अध्याय 17 श्लोक 19-36" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शल्य पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 19-36 का हिन्दी अनुवाद </div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शल्य पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 19-36 का हिन्दी अनुवाद </div>
  
तब इन्द्र के समान प्रभावशाली राजा शल्य ने दो ही घड़ी में होश में आकर क्रोध से लाल आँखें करके बड़ी उतावली के साथ युधिष्ठिर को सौ बाण मारे । इसके बाद धर्मपुत्र महात्मा युधिष्ठिर ने कुपित हो शीघ्रतापूर्वक नौ बाण मारकर राजा शल्य की छाती और उनके सुवर्णमय कवच को विदीर्ण कर दिया। फिर छः बाण और मारे । तदनन्तर मद्रराज ने अपने उत्तम धनुष को खींचकर बहुत-से बाण छोडे़। उन्‍होंने दो बाणों से कुरूकुल शिरोमणि राजा युधिष्ठिर के धनुष को काट दिया । तब महात्मा राजा युधिष्ठिर ने समरांगण में दूसरे नये और अत्यन्त भयंकर धनुष को हाथ में लेकर तीखी धार वाले बाणों से शल्य को उसी प्रकार सब ओर से घायल कर दिया, जैसे देवराज इन्द्र ने नमुचि को। तब महामनस्वी शल्य ने नौ बाणों से भीमसेन तथा राजा युधिष्ठिर के सोने के सुदृढ़ कवचों को काटकर उन दोनों की भुजाओं को विदीर्ण कर डाला । इसके बाद अग्नि और सूर्य के समान तेजस्वी क्षुर के द्वारा उन्होंने राजा युधिष्ठिर के धनुष को मथित कर दिया। फिर कृपा चार्य ने छः बाणों से उन्ही के सारथि को मार डाला। सारथि उनके सामने ही पृथ्वी पर गिर पड़ा । तत्पश्चात् मद्रराज ने चार बाणों से युधिष्ठिर के चारों घोड़ों का भी संहार कर डाला। घोड़ों को मारकर महामनस्वी शल्य ने धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर के योद्धाओं का विनाश आरम्भ कर दिया । जो अद्भुत एवं दुःसह कार्य दूसरे किसी से नहीं हो सकता, वही एकमात्र शल्य ने राजा युधिष्ठिर के प्रति कर दिखाया। इससे मृदंगचिहिृत ध्वज वाले युधिष्ठिर विषादग्रस्त हो इस प्रकार चिन्ता करने लगे-क्या आज दैवबल से इन्द्र के छोटे भाई भगवान श्रीकृष्ण की बात झुठी हो जायगी। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि आज युद्ध में शल्य को मार डालिये उन जगदीश्वर का कथन व्यर्थ तो नहीं होना चाहिये।। जब मद्रराज शल्य ने राजा युधिष्ठिर की ऐसी दशा कर दी, तब महामनस्वी भीमसेन ने एक वेगवान् बाणद्वारा उनके धनुष को काट दिया और दो बाणों से उन नरेश को भी अत्यन्त घायल कर दिया । तत्पश्चात् अधिक क्रोध में भरे हुए भीमसेन ने दूसरे बाण से शल्य के सारथि का मस्तक उसके धड़ से अलग कर दिया और उनके चारों घोड़ों को भी शीघ्र ही मार डाला । इसके बाद सम्पूर्ण धनुर्धरों में अग्रगण्य भीमसेन तथा माद्रीकुमार सहदेव ने समरांगण में बडे़ वेग से एकाकी विचरने वाले शल्य पर सैकड़ों बाणों की वर्षा की । उन बाणों से शल्य को मोहित हुआ देख भीमसेन ने उनके कवच को भी काट डाला। भीमसेन के द्वारा अपना कवच कट जाने पर भयंकर बलशाली महामनस्वी मद्रराज शल्य सहस्त्र तारों के चिह्न से सुशोभित ढाल और तलवार लेकर उस रथ से कूद पडे़ और कुन्तीपुत्र की ओर दौडे़। उन्होंने नकुल के रथ का हरसा काटकर युधिष्ठिर पर धावा किया । क्रोध में भरे हुए यमराज के समान उछलकर आने वाले राजा शल्य को धृष्‍टधुम्न, द्रौपदी के पुत्र, शिखण्डी तथा सात्यकि ने सहसा चारों ओर से घेर लिया । महामना भीम ने नौ बाणों से उनकी अनुपम ढाल के टुकडे़-टुकडे़ कर डाले। फिर आपकी सेना के बीच में बडे़ हर्ष के साथ गर्जना करते हुए उन्होंने अनेक भल्लों द्वारा उनकी तलवार मुट्ठी भी काट डाली । भीमसेन का एक अद्भुत कर्म देखकर पाण्डव दल के श्रेष्ठ रथी बडे़ प्रसन्न हुए और वे हँसते हुए जोर-जोर से सिंहनाद करने तथा चन्द्रमा के समान उज्ज्वल शंख बजाने लगे । उस भयानक शब्द के संतप्त हो अजेय कौरवसेना विषाद ग्रस्त एवं अचेत-सी हो गयी। वह खून से लथपथ हो अज्ञात दिशाओं की ओर भागने लगी । भीम जिनके अगुआ थे, उन पाण्डवपक्ष के प्रमुख वीरों द्वारा बाणों से आच्छादित किये गये मद्रराज शल्य सहसा बडे़ वेग से युधिष्ठिर की ओर दौडे़, मानों कोई सिंह किसी मृग को पकड़ने के लिये झपटा हो । धर्मराज युधिष्ठिर के घोडे़ और सारथि मारे गये थे, इसलिये वे क्रोध से उदीप्त हो प्रज्वलित अग्नि के समान जान पड़ते थे। उन्होंने अपने शत्रु मद्रराज शल्य को देखकर उन पर बलपूर्वक आक्रमण किया ।
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तब इन्द्र के समान प्रभावशाली राजा शल्य ने दो ही घड़ी में होश में आकर क्रोध से लाल आँखें करके बड़ी उतावली के साथ युधिष्ठिर को सौ बाण मारे । इसके बाद धर्मपुत्र महात्मा युधिष्ठिर ने कुपित हो शीघ्रतापूर्वक नौ बाण मारकर राजा शल्य की छाती और उनके सुवर्णमय कवच को विदीर्ण कर दिया। फिर छः बाण और मारे । तदनन्तर मद्रराज ने अपने उत्तम धनुष को खींचकर बहुत-से बाण छोडे़। उन्‍होंने दो बाणों से कुरूकुल शिरोमणि राजा युधिष्ठिर के धनुष को काट दिया । तब महात्मा राजा युधिष्ठिर ने समरांगण में दूसरे नये और अत्यन्त भयंकर धनुष को हाथ में लेकर तीखी धार वाले बाणों से शल्य को उसी प्रकार सब ओर से घायल कर दिया, जैसे देवराज इन्द्र ने नमुचि को। तब महामनस्वी शल्य ने नौ बाणों से भीमसेन तथा राजा युधिष्ठिर के सोने के सुदृढ़ कवचों को काटकर उन दोनों की भुजाओं को विदीर्ण कर डाला । इसके बाद अग्नि और सूर्य के समान तेजस्वी क्षुर के द्वारा उन्होंने राजा युधिष्ठिर के धनुष को मथित कर दिया। फिर कृपा चार्य ने छः बाणों से उन्हीं के सारथि को मार डाला। सारथि उनके सामने ही पृथ्वी पर गिर पड़ा । तत्पश्चात् मद्रराज ने चार बाणों से युधिष्ठिर के चारों घोड़ों का भी संहार कर डाला। घोड़ों को मारकर महामनस्वी शल्य ने धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर के योद्धाओं का विनाश आरम्भ कर दिया । जो अद्भुत एवं दुःसह कार्य दूसरे किसी से नहीं हो सकता, वही एकमात्र शल्य ने राजा युधिष्ठिर के प्रति कर दिखाया। इससे मृदंगचिहिृत ध्वज वाले युधिष्ठिर विषादग्रस्त हो इस प्रकार चिन्ता करने लगे-क्या आज दैवबल से इन्द्र के छोटे भाई भगवान श्रीकृष्ण की बात झुठी हो जायगी। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि आज युद्ध में शल्य को मार डालिये उन जगदीश्वर का कथन व्यर्थ तो नहीं होना चाहिये।। जब मद्रराज शल्य ने राजा युधिष्ठिर की ऐसी दशा कर दी, तब महामनस्वी भीमसेन ने एक वेगवान् बाणद्वारा उनके धनुष को काट दिया और दो बाणों से उन नरेश को भी अत्यन्त घायल कर दिया । तत्पश्चात् अधिक क्रोध में भरे हुए भीमसेन ने दूसरे बाण से शल्य के सारथि का मस्तक उसके धड़ से अलग कर दिया और उनके चारों घोड़ों को भी शीघ्र ही मार डाला । इसके बाद सम्पूर्ण धनुर्धरों में अग्रगण्य भीमसेन तथा माद्रीकुमार सहदेव ने समरांगण में बडे़ वेग से एकाकी विचरने वाले शल्य पर सैकड़ों बाणों की वर्षा की । उन बाणों से शल्य को मोहित हुआ देख भीमसेन ने उनके कवच को भी काट डाला। भीमसेन के द्वारा अपना कवच कट जाने पर भयंकर बलशाली महामनस्वी मद्रराज शल्य सहस्त्र तारों के चिह्न से सुशोभित ढाल और तलवार लेकर उस रथ से कूद पडे़ और कुन्तीपुत्र की ओर दौडे़। उन्होंने नकुल के रथ का हरसा काटकर युधिष्ठिर पर धावा किया । क्रोध में भरे हुए यमराज के समान उछलकर आने वाले राजा शल्य को धृष्‍टधुम्न, द्रौपदी के पुत्र, शिखण्डी तथा सात्यकि ने सहसा चारों ओर से घेर लिया । महामना भीम ने नौ बाणों से उनकी अनुपम ढाल के टुकडे़-टुकडे़ कर डाले। फिर आपकी सेना के बीच में बडे़ हर्ष के साथ गर्जना करते हुए उन्होंने अनेक भल्लों द्वारा उनकी तलवार मुट्ठी भी काट डाली । भीमसेन का एक अद्भुत कर्म देखकर पाण्डव दल के श्रेष्ठ रथी बडे़ प्रसन्न हुए और वे हँसते हुए जोर-जोर से सिंहनाद करने तथा चन्द्रमा के समान उज्ज्वल शंख बजाने लगे । उस भयानक शब्द के संतप्त हो अजेय कौरवसेना विषाद ग्रस्त एवं अचेत-सी हो गयी। वह खून से लथपथ हो अज्ञात दिशाओं की ओर भागने लगी । भीम जिनके अगुआ थे, उन पाण्डवपक्ष के प्रमुख वीरों द्वारा बाणों से आच्छादित किये गये मद्रराज शल्य सहसा बडे़ वेग से युधिष्ठिर की ओर दौडे़, मानों कोई सिंह किसी मृग को पकड़ने के लिये झपटा हो । धर्मराज युधिष्ठिर के घोडे़ और सारथि मारे गये थे, इसलिये वे क्रोध से उदीप्त हो प्रज्वलित अग्नि के समान जान पड़ते थे। उन्होंने अपने शत्रु मद्रराज शल्य को देखकर उन पर बलपूर्वक आक्रमण किया ।
  
  

12:05, 27 अप्रैल 2018 का अवतरण

सप्तदश (17) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 19-36 का हिन्दी अनुवाद

तब इन्द्र के समान प्रभावशाली राजा शल्य ने दो ही घड़ी में होश में आकर क्रोध से लाल आँखें करके बड़ी उतावली के साथ युधिष्ठिर को सौ बाण मारे । इसके बाद धर्मपुत्र महात्मा युधिष्ठिर ने कुपित हो शीघ्रतापूर्वक नौ बाण मारकर राजा शल्य की छाती और उनके सुवर्णमय कवच को विदीर्ण कर दिया। फिर छः बाण और मारे । तदनन्तर मद्रराज ने अपने उत्तम धनुष को खींचकर बहुत-से बाण छोडे़। उन्‍होंने दो बाणों से कुरूकुल शिरोमणि राजा युधिष्ठिर के धनुष को काट दिया । तब महात्मा राजा युधिष्ठिर ने समरांगण में दूसरे नये और अत्यन्त भयंकर धनुष को हाथ में लेकर तीखी धार वाले बाणों से शल्य को उसी प्रकार सब ओर से घायल कर दिया, जैसे देवराज इन्द्र ने नमुचि को। तब महामनस्वी शल्य ने नौ बाणों से भीमसेन तथा राजा युधिष्ठिर के सोने के सुदृढ़ कवचों को काटकर उन दोनों की भुजाओं को विदीर्ण कर डाला । इसके बाद अग्नि और सूर्य के समान तेजस्वी क्षुर के द्वारा उन्होंने राजा युधिष्ठिर के धनुष को मथित कर दिया। फिर कृपा चार्य ने छः बाणों से उन्हीं के सारथि को मार डाला। सारथि उनके सामने ही पृथ्वी पर गिर पड़ा । तत्पश्चात् मद्रराज ने चार बाणों से युधिष्ठिर के चारों घोड़ों का भी संहार कर डाला। घोड़ों को मारकर महामनस्वी शल्य ने धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर के योद्धाओं का विनाश आरम्भ कर दिया । जो अद्भुत एवं दुःसह कार्य दूसरे किसी से नहीं हो सकता, वही एकमात्र शल्य ने राजा युधिष्ठिर के प्रति कर दिखाया। इससे मृदंगचिहिृत ध्वज वाले युधिष्ठिर विषादग्रस्त हो इस प्रकार चिन्ता करने लगे-क्या आज दैवबल से इन्द्र के छोटे भाई भगवान श्रीकृष्ण की बात झुठी हो जायगी। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि आज युद्ध में शल्य को मार डालिये उन जगदीश्वर का कथन व्यर्थ तो नहीं होना चाहिये।। जब मद्रराज शल्य ने राजा युधिष्ठिर की ऐसी दशा कर दी, तब महामनस्वी भीमसेन ने एक वेगवान् बाणद्वारा उनके धनुष को काट दिया और दो बाणों से उन नरेश को भी अत्यन्त घायल कर दिया । तत्पश्चात् अधिक क्रोध में भरे हुए भीमसेन ने दूसरे बाण से शल्य के सारथि का मस्तक उसके धड़ से अलग कर दिया और उनके चारों घोड़ों को भी शीघ्र ही मार डाला । इसके बाद सम्पूर्ण धनुर्धरों में अग्रगण्य भीमसेन तथा माद्रीकुमार सहदेव ने समरांगण में बडे़ वेग से एकाकी विचरने वाले शल्य पर सैकड़ों बाणों की वर्षा की । उन बाणों से शल्य को मोहित हुआ देख भीमसेन ने उनके कवच को भी काट डाला। भीमसेन के द्वारा अपना कवच कट जाने पर भयंकर बलशाली महामनस्वी मद्रराज शल्य सहस्त्र तारों के चिह्न से सुशोभित ढाल और तलवार लेकर उस रथ से कूद पडे़ और कुन्तीपुत्र की ओर दौडे़। उन्होंने नकुल के रथ का हरसा काटकर युधिष्ठिर पर धावा किया । क्रोध में भरे हुए यमराज के समान उछलकर आने वाले राजा शल्य को धृष्‍टधुम्न, द्रौपदी के पुत्र, शिखण्डी तथा सात्यकि ने सहसा चारों ओर से घेर लिया । महामना भीम ने नौ बाणों से उनकी अनुपम ढाल के टुकडे़-टुकडे़ कर डाले। फिर आपकी सेना के बीच में बडे़ हर्ष के साथ गर्जना करते हुए उन्होंने अनेक भल्लों द्वारा उनकी तलवार मुट्ठी भी काट डाली । भीमसेन का एक अद्भुत कर्म देखकर पाण्डव दल के श्रेष्ठ रथी बडे़ प्रसन्न हुए और वे हँसते हुए जोर-जोर से सिंहनाद करने तथा चन्द्रमा के समान उज्ज्वल शंख बजाने लगे । उस भयानक शब्द के संतप्त हो अजेय कौरवसेना विषाद ग्रस्त एवं अचेत-सी हो गयी। वह खून से लथपथ हो अज्ञात दिशाओं की ओर भागने लगी । भीम जिनके अगुआ थे, उन पाण्डवपक्ष के प्रमुख वीरों द्वारा बाणों से आच्छादित किये गये मद्रराज शल्य सहसा बडे़ वेग से युधिष्ठिर की ओर दौडे़, मानों कोई सिंह किसी मृग को पकड़ने के लिये झपटा हो । धर्मराज युधिष्ठिर के घोडे़ और सारथि मारे गये थे, इसलिये वे क्रोध से उदीप्त हो प्रज्वलित अग्नि के समान जान पड़ते थे। उन्होंने अपने शत्रु मद्रराज शल्य को देखकर उन पर बलपूर्वक आक्रमण किया ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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