"महाभारत सामान्य ज्ञान" के अवतरणों में अंतर
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{[[कर्ण]] को पालने वाली माता का नाम क्या था? | {[[कर्ण]] को पालने वाली माता का नाम क्या था? | ||
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+राधा | +राधा | ||
-[[कुंती]] | -[[कुंती]] | ||
+ | ||[[महाभारत]] के युद्ध में [[कर्ण]] ने विशिष्ट शौर्य का प्रदर्शन किया था। कर्ण को उसकी वीरता और शालीनता के साथ ही साथ एक दानवीर के रूप में भी ख्यातिप्राप्त थी। [[दुर्वासा ऋषि]] के वरदान से [[कुन्ती]] ने [[सूर्य देव|सूर्य]] का आहवान करके [[विवाह]] से पूर्व से ही कौमार्य अवस्था में कर्ण को पुत्र रूप में प्राप्त किया था, किन्तु लोक लाज के भय से उसने शिशु अवस्था में ही कर्ण को नदी में बहा दिया। [[हस्तिनापुर]] के सारथी अधिरथ और उसकी पत्नी राधा ने कर्ण को पाला। इसलिए कर्ण को 'राधेय' भी कहा गयाहै।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कर्ण]] | ||
− | {[[शकुनि]] के राज्य का नाम था? | + | {[[दुर्योधन]] के मामा [[शकुनि]] के राज्य का नाम क्या था? |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | -[[मगध]] |
-[[हस्तिनापुर]] | -[[हस्तिनापुर]] | ||
+[[गांधार]] | +[[गांधार]] | ||
-[[पांचाल]] | -[[पांचाल]] | ||
− | || [[चित्र:Gandhar-Map.jpg|right| | + | ||[[चित्र:Gandhar-Map.jpg|right|100px|गांधार महाजनपद]][[गान्धार]] राज सुबल का पुत्र और [[गान्धारी]] का भाई [[शकुनि]] जुआ खेलने में यह बहुत ही कुशल था। वह प्रायः [[धृतराष्ट्र]] के दरबार में ही बना रहता था। [[दुर्योधन]] की इससे बहुत पटती थी। [[युधिष्ठिर]] और दुर्योधन के बीच खेले गये जुए में शकुनि ने दुर्योधन की ओर से जुआ खेला था। वह ऐसा चतुर जुआरी था कि युधिष्ठिर को उसने एक भी दाँव नहीं जीतने दिया। शकुनि छलिया भी अव्वल श्रेणी का था। ज्यों-ज्यों युधिष्ठिर हारते जाते, त्यों-त्यों वह उन्हें उकसाता और जो चीज़ें उनके पास रह गई थीं, उन्हें दाँव पर लगाने के लिए विवश कर देता।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शकुनि]] |
− | {[[पांडव]] [[नकुल]] विशेषज्ञ था? | + | {[[पांडव]] [[नकुल]] किसका विशेषज्ञ था? |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | -धनुर्विद्या | + | -धनुर्विद्या का |
− | -पाकविद्या | + | -पाकविद्या का |
− | -अंगराग | + | -अंगराग का |
+घोड़ों का | +घोड़ों का | ||
− | || नकुल [[कुन्ती]] के नहीं अपितु [[माद्री]] के पुत्र थे। | + | ||[[नकुल]] भी [[महाभारत]] के मुख्य पात्र हैं। वे माता [[कुन्ती]] के नहीं अपितु [[माद्री]] के पुत्र थे। नकुल कुशल अश्वारोही थे और घोड़ों के संबन्ध में विशेष ज्ञान रखते थे। ये [[युधिष्ठिर]] के चतुर्थ भ्राता, [[अश्विनीकुमार|अश्विनीकुमारों]] के औरस और [[पाण्डु]] के क्षेत्रज पुत्र थे। इनके सहोदर का नाम सहदेव था। नकुल सुन्दर, धर्मशास्त्र, नीति तथा पशु-चिकित्सा में दक्ष थे। [[अज्ञातवास]] में ये राजा [[विराट]] के यहाँ 'ग्रंथिक' नाम से [[गाय]] चराने और घोड़ों की देखभाल का कार्य करते रहे थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नकुल]] |
− | {[[अर्जुन]] के शंख का नाम था? | + | {निम्नलिखित में से [[अर्जुन]] के [[शंख]] का नाम क्या था? |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | -पाञ्जन्य | + | -पाञ्जन्य शंख |
− | -उदघोष | + | -उदघोष शंख |
− | +देवदत्त | + | +देवदत्त शंख |
− | -[[ | + | -पोडरिक शंख |
+ | ||[[चित्र:Right-Handed Conch.jpg|right|100px|शंखनाद करते श्रीकृष्ण और अर्जुन]][[महाभारत]] काल में [[श्रीकृष्ण]] ने कई बार अपना 'पंचजन्य शंख' बजाया था। महाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने पांचजन्य शंख को बजाकर युद्ध का जयघोष किया था। कहते हैं कि यह [[शंख]] जिसके पास होता है, उसकी यश-गाथा कभी कम नहीं होती। महाभारत के इसी युद्ध में [[अर्जुन]] ने 'देवदत्त' नाम का शंख बजाया था। वहीं [[युधिष्ठिर]] के पास 'अनंतविजय' नाम का शंख था, जिसे उन्होंने रणभूमि में बजाया था। इस शंख कि ध्वनि की ये विशेषता मानी जाती है कि इससे शत्रु सेना घबराती है और खुद कि सेना का उत्साह बढता है। [[भीष्म]] ने 'पोडरिक' नामक शंख बजाया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शंख]] | ||
− | {[[सूर्य देव|सूर्य]] के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करके | + | {[[सूर्य देव|सूर्य]] के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करके किसने अपना प्राण त्याग किया? |
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[द्रोणाचार्य]] | -[[द्रोणाचार्य]] | ||
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-[[कर्ण]] | -[[कर्ण]] | ||
-[[पाण्डु]] | -[[पाण्डु]] | ||
− | + | ||[[चित्र:Bhishma2.jpg|right|100px|शर शैया पर पितामह भीष्म]]18 दिनों तक चले [[महाभारत]] के युद्ध में दस दिनों तक अकेले घमासान युद्ध करके [[भीष्म]] ने [[पाण्डव]] पक्ष को व्याकुल कर दिया और अन्त में [[शिखण्डी]] के माध्यम से अपनी मृत्यु का उपाय स्वयं बताकर महाभारत के इस अद्भुत योद्धा ने शरशय्या पर शयन किया। शास्त्र और शस्त्र के इस सूर्य को अस्त होते हुए देखकर भगवान [[श्रीकृष्ण]] ने इनके माध्यम से [[युधिष्ठिर]] को [[धर्म]] के समस्त अंगों का उपदेश दिलवाया। [[सूर्य देव|सूर्य]] के उत्तरायण होने पर पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण की छवि को अपनी [[आँख|आँखों]] में बसाकर महात्मा भीष्म ने अपने नश्वर शरीर का त्याग किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीष्म]] | |
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10:47, 2 मार्च 2017 के समय का अवतरण
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