"माउंट आबू" के अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Mount-Abu-Rajasthan.jpg|माउंट आबू <br /> Mount Abu|thumb]]
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{{सूचना बक्सा पर्यटन
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|चित्र=Mount-Abu-Rajasthan.jpg
==स्थिति==
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|विवरण=माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है।
माउंट आबू को [[राजस्थान]] का स्‍वर्ग भी माना जाता है। समुद्र तल से 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है। नीलगिरी की पहाड़ियों पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थित और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न व मनोरम है। यह स्थान राज्य के अन्य हिस्सों की तरह गर्म नहीं है। माउंट आबू [[हिन्दु]] और [[जैन]] धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहाँ का ऐतिहासिक मंदिर और प्राकृतिक खूबसूरती पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है।
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|राज्य=[[राजस्थान]]
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|ज़िला=सिरोही ज़िला
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|भौगोलिक स्थिति=[http://maps.google.com/maps?q=24.5925,72.7083&ll=24.592788,72.709794&spn=0.008975,0.021136&t=m&z=16&vpsrc=6&iwloc=near उत्तर- 24° 35' 33.00", पूर्व- 72° 42' 29.88"]
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|मार्ग स्थिति=माउंट आबू शहर सड़क द्वारा [[उदयपुर]] से 185 किलोमीटर, डबौक से 210 किलोमीटर, [[जयपुर]] से 505 किलोमीटर, [[जैसलमेर]] से 620 किलोमीटर, [[दिल्ली]] से 760 किलोमीटर और [[मुंबई]] से 765 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
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|प्रसिद्धि=
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|यातायात=स्थानीय बस, ऑटो रिक्शा, साईकिल रिक्शा 
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|हवाई अड्डा=महाराणा प्रताप हवाई अड्डा, डबौक में 210 किलोमीटर है। 
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|रेलवे स्टेशन=आबू रोड रेलवे स्टेशन
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|बस अड्डा=माउंट आबू
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|कैसे पहुँचें=
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|क्या देखें=[[माउंट आबू पर्यटन]]
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|कहाँ ठहरें=
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|क्या ख़रीदें=राजस्थानी शिल्प का सामान, [[चांदी]] के [[आभूषण]], संगमरमर पत्थर से बनी मूर्तियाँ
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|एस.टी.डी. कोड=02974
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|ए.टी.एम=लगभग सभी
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 +
|मानचित्र लिंक=[http://maps.google.co.in/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=Mount+Abu,+Rajasthan&sll=21.125498,81.914063&sspn=58.350507,114.169922&ie=UTF8&hq=&hnear=Mount+Abu,+Sirohi,+Rajasthan&ll=24.537129,72.737732&spn=1.84886,3.56781&z=9 गूगल मानचित्र], [http://maps.google.co.in/maps?f=d&source=s_d&saddr=Udaipur,+Rajasthan+(Maharana+Pratap+Airport)&daddr=24.72356,73.60843+to:NH+14,+Abu+Road,+Rajasthan+(Abu+Road+Railway+Station)&geocode=FRyidwEdLIpnBCHNSgsvrHWwDA%3BFWhAeQEd7ixjBCmXvwfSdP1nOTFjeGACAienCA%3BFahidQEdy3pWBCH8mXsZW3UIxA&hl=en&mra=dvme&mrcr=0&mrsp=1&sz=10&via=1&sll=24.710658,73.320007&sspn=0.571371,1.234589&ie=UTF8&z=10 महाराणा प्रताप हवाई अड्डा, डबौक]
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|संबंधित लेख=[[दिलवाड़ा जैन मंदिर]], [[नक्की झील]], [[गोमुख मंदिर]], [[अर्बुदा देवी मन्दिर]], [[अचलगढ़ क़िला]], [[माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य]], [[गुरु शिखर]]
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'''माउंट आबू''' [[राजस्थान]] का एकमात्र हिल स्टेशन है। समुद्र तल से 1220 मीटर की ऊँचाई पर स्थित माउंट आबू को राजस्थान का स्‍वर्ग भी माना जाता है। [[नीलगिरि पहाड़ियाँ|नीलगिरि की पहाड़ियों]] पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थित और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न व मनोरम है। यह स्थान राज्य के अन्य हिस्सों की तरह गर्म नहीं है। माउंट आबू [[हिन्दू]] और [[जैन धर्म]] का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहाँ का ऐतिहासिक मंदिर और प्राकृतिक ख़ूबसूरती पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है।
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[[चित्र:Mount-Abu.jpg|thumb|left|अंग्रेज़ी शासन के प्रतिनिधि का मुख्यालय, माउंट आबू]]
  
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
माउंट आबू पहले चौहान साम्राज्य का हिस्सा था। इसे बाद में सिरोही के महाराजा ने  माउंट आबू को राजपूताना मुख्यालय के लिए अंग्रेजों को पट्टे पर दे दिया। ब्रिटिश शासन में माउंट आबू मैदानी इलाकों की गर्मियों से बचने के लिए अंग्रेजों का पसंदीदा स्थान रहा था। माउंट आबू शुरू से ही साधु संतों का निवास स्थान रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दु धर्म के तैंतीस करोड़ देवी देवता इस पवित्र पर्वत पर भ्रमण करते हैं। यह भी कहा जाता है कि महान संत [[वशिष्ठ]] ने पृथ्वी से असुरों के विनाश के लिए यहाँ यज्ञ का आयोजन किया था। जैन धर्म के चौबीसवें र्तीथकर भगवान [[महावीर]] भी यहाँ आए थे। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूज्यनीय तीर्थस्थल बना गया।
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====गुर्जर तथा अर्बुदा-पर्वत====
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अर्बुदा (माउन्ट आबू) क्षेत्र के आस पास मध्यकाल में गुर्जरों का निवास रहा है। बहुत से शिलालेखों जैसे '''धनपाल की तिलकमंजरी''', में [[गुर्जर|गुर्जरों]] तथा अर्बुदा पहाड़ का उल्लेख मिलता है।<ref>{{cite book|title=Tilakamañjarī of Dhanapāla: a critical and cultural study|author=Sudarśana Śarmā|publisher=Parimal Publications|year=2002|page=214}}</ref>6वीं [[सदी]] के बाद इन गुर्जरों ने राजस्थान तथा [[गुजरात]] के विभिन्न भागों में अपना राज्य स्थापित किया था। इस कारण ब्रिटिश काल से पहले, गुजरात तथा राजस्थान को सम्मिलित रुप से गुर्जरदेश या गुर्जरत्रा (गुर्जर से रक्षित देश) कहा जाता था।<ref>{{cite book|title=The History and Culture of the Indian People: The classical age|author=Ramesh Chandra Majumdar|coauthor=Achut Dattatrya Pusalker, A. K. Majumdar, Dilip Kumar Ghose, Vishvanath Govind Dighe, Bharatiya Vidya Bhavan|publisher=Bharatiya Vidya Bhavan|year=1977|page=153}}</ref> 
  
जैन वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण-स्वरूप दो प्रसिद्ध संगमरमर के बने मंदिर जो दिलवाड़ा या देवलवाड़ा मंदिर कहलाते हैं इस पर्वतीय नगर के जगत् प्रसिद्ध स्मारक हैं। विमलसाह के मंदिर को एक अभिलेख के अनुसार राजा भीमदेव प्रथम के मंत्री विमलसाह ने बनवाया था। इस मंदिर पर 18 करोडत्र रूपया व्यय हुआ था। कहा जाता है कि विमलसाह ने पहले कुंभेरिया में पार्श्वनाथ के 360 मंदिर बनवाए थे किंतु उनकी इष्टदेवी अंबा जी ने किसी बात पर रुष्ट होकर पांच मंदिरों को छोड़ अवशिष्ट सारे मंदिर नष्ट कर दिए और स्वप्न में उन्हें दिलवाड़ा में आदिनाथ का मंदिर बनाने का आदेश दिया। किंतु आबूपर्वत के परमार नरेश ने विमलसाह को मंदिर के लिए भूमि देना तभी स्वीकार किया जब उन्होंने संपूर्ण भूमि को रजतखंडों से ढक दिया। इस प्रकार 56 लाख रूपय में यह जमीन खरीदी गई थी। इस मंदिर में आदिनाथ की मूर्ति की आंखें असली हीरक की बनी हुई हैं। और उसके गले में बहुमूल्य रत्नों का हार है। इस मंदिर का प्रवेशद्वार गुंबद वाले मंडप से होकर है जिसके सामने एक वर्गाकृति भवन है। इसमें छ: स्तंभ और दस [[हाथी|हाथीयों]] की प्रतिमाएं हैं। इसके पीछे मध्य में मुख्य पूजागृह है जिसमें एक प्रकोष्ठ में ध्यानमुद्रा में अवस्थित जिन की मूर्ति हैं। इस प्रकोष्ठ की छत शिखर रूप में बनी है यद्यपि यह अधिक ऊंची नहीं है। इसके साथ एक दूसरा प्रकोष्ठ बना है जिसके आगे एक मंडप स्थित है। इस मंडप के गुंबद के आठ स्तंभ हैं। संपूर्ण मंदिर एक प्रांगण के अंदर घिरा हुआ है जिसकी लंबाई 128 फुट और चौड़ाई 75 फुट है। इसके चतुर्दिक छोटे स्तंभों की दुहरी पंक्तियां हैं जिनसे प्रांगण की लगभग 52 कोठरियों के आगे बरामदा-सा बन जाता है। बाहर से मंदिर नितांत सामान्य दिखाई देता है और इससे भीतर के अद्भुत कलावैभव का तनिक भी आभास नहीं होता। किंतु श्वेत संगमरमर के गुंबद का भीतरी भाग,  दीवारें,  छतें तथा स्तंभ अपनी महीन नक्काशी और अभूतपूर्व मूर्तिकारी के लिए संसार-प्रसिद्ध हैं। इस मूर्तिकारी में तरह-तरह के फूल-पत्ते, पशु-पक्षी तथा मानवों की आकृतियां इतनी बारीकी से चित्रित हैं मानो यहां के शिल्पियों की छेनी के सामने कठोर संगमरमर मोम बन गया हो। पत्थर की शिल्पकला का इतना महान् वैभव भारत में अन्यत्र नहीं है। दूसरा मंदिर जो तेजपाल का कहलाता है, निकट ही है और पहले की अपेक्षा प्रत्येक बात में अधिक भव्य और शानदार दिखाई देता है। इसी शैली में बने तीन अन्य जैन-मन्दिर भी यहां आसपास ही हैं। किंवदंती है कि वशिष्ठ का आश्रम देवलवाड़ा के निकट ही स्थित था। अर्बुदा-देवी का मन्दिर यहीं पहाड़ के ऊपर है। जैन ग्रन्थ विविधतीर्थकल्प के अनुसार आबूपर्वत की तलहटी में अर्बुद नामक नाग का निवास था, इसी के कारण यह पहाड़ आबू कहलाया। इसका पुराना नाम नंदिवर्धन था। पहाड़ के पास मन्दाकिनी नदी बहती है और श्रीमाता अचलेश्वर और वशिष्ठाश्रम तीर्थ हैं अर्बुद-गिरि पर परमार नरेशों ने राज्य किया था जिनकी राजधानी चंद्रावती में थी। इस जैन ग्रन्थ के अनुसार विमल नामक सेनापति ने [[ऋषभदेव]] की पीतल की मूर्ति सहित यहां एक चैत्यबनवाया था और 1088 वि0 सं0 में उसने विमल-वसति नामक एक मंदिर बनवायां 1288 वि0 सं0 में राजा के मुख्य मंत्री ने नेमि का मंदिर- लूणिगवसति बनवाया। 1243 वि0 सं0 में चंडसिंह के पुत्र पीठपद और महनसिंह के पुत्र लल्ल ने तेजपाल द्वारा निर्मित मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। इसी मूर्ति के लिए चालुक्यवंशी कुमारपाल भूपति ने [[श्रीवीर]] का मन्दिर बनवाया था। अर्बुद का उल्लेख एक अन्य जैन ग्रन्थ तीर्थमाला चैत्यवन्दन में भी मिलता है-
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===पुराण तथा अर्बुदा-पर्वत===
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पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू धर्म के तैंतीस करोड़ देवी देवता इस पवित्र पर्वत पर भ्रमण करते हैं। यह भी कहा जाता है कि महान् संत [[वशिष्ठ]] ने पृथ्वी से असुरों के विनाश के लिए यहाँ यज्ञ का आयोजन किया था। जैन धर्म के चौबीसवें र्तीथकर भगवान [[महावीर]] भी यहाँ आए थे। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूज्यनीय तीर्थस्थल बना गया। [[पुराण|पुराणों]] में इस क्षेत्र को '''अर्बुदारण्य''' कहा गया है।
  
<blockquote>कोडीनारकमंत्रिदाहड़पुरेश्रीमंडपे चार्बुदे'।</blockquote>
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===अंग्रेज़-काल===
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ऐसा कहा जाता है कि सिरोही के महाराजा ने माउंट आबू को [[राजपूताना]] मुख्यालय के लिए अंग्रेज़ों को पट्टे पर दे दिया। ब्रिटिश शासन में माउंट आबू मैदानी इलाकों की गर्मियों से बचने के लिए अंग्रेज़ों का पसंदीदा स्थान रहा था। माउंट आबू शुरू से ही साधु संतों का निवास स्थान रहा है।
  
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जैन वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण-स्वरूप दो प्रसिद्ध संगमरमर के बने मंदिर जो दिलवाड़ा या देवलवाड़ा मंदिर कहलाते हैं इस पर्वतीय नगर के जगत् प्रसिद्ध स्मारक हैं। विमलसाह के मंदिर को एक अभिलेख के अनुसार राजा भीमदेव प्रथम के मंत्री विमलसाह ने बनवाया था। इस मंदिर पर 18 करोड़ रुपया व्यय हुआ थे।
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[[चित्र:Achalgarh-Fort-Mount-Abu.jpg|thumb|250px|left|[[अचलगढ़ क़िला माउंट आबू|अचलगढ़ क़िला]], माउंट आबू]]
 
==सांस्कृतिक जीवन==
 
==सांस्कृतिक जीवन==
माउंट आबू के सांस्कृतिक जीवन की झलक त्योहारों और उत्सवों पर ही देखने को मिलती है। प्रतिवर्ष जून में होने वाले समर फेस्टीवल यानी ग्रीष्म महोत्सव में तो यहाँ जैसे पूरा [[राजस्थान]] ही सिमट आता है। रंग-बिरंगी परंपरागत वेशभूषा में आए लोक कलाकारों द्वारा लोक नृत्य और संगीत की रंगारंग झांकी प्रस्तुत की जाती है। घूमर, गैर और धाप जैसे लोक नृत्यों के साथ डांडिया नृत्य देख सैलानी झूम उठते हैं। तीन दिन चलने वाले इस महोत्सव के दौरान नक्की झील में बोट रेस का आयोजन भी किया जाता है। शामे कव्वाली और आतिशबाजी इस फेस्टिवल का खास हिस्सा हैं।
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माउंट आबू के सांस्कृतिक जीवन की झलक त्योहारों और उत्सवों पर ही देखने को मिलती है। प्रतिवर्ष जून में होने वाले समर फेस्टीवल यानी ग्रीष्म महोत्सव में तो यहाँ जैसे पूरा राजस्थान ही सिमट आता है। [[रंग]]-बिरंगी परंपरागत वेशभूषा में आए लोक कलाकारों द्वारा [[लोकनृत्य]] और [[संगीत]] की रंगारंग झांकी प्रस्तुत की जाती है। [[घूमर नृत्य|घूमर]], गैर और धाप जैसे लोक नृत्यों के साथ डांडिया नृत्य देख सैलानी झूम उठते हैं। तीन दिन चलने वाले इस महोत्सव के दौरान [[नक्की झील माउंट आबू|नक्की झील]] में बोट रेस का आयोजन भी किया जाता है। शामे [[कव्वाली]] और आतिशबाजी इस फेस्टिवल का ख़ास हिस्सा हैं।
  
 
==यातायात और परिवहन==
 
==यातायात और परिवहन==
 
====<u>वायु मार्ग</u>====
 
====<u>वायु मार्ग</u>====
निकटतम हवाई अड्डा [[उदयपुर]] यहाँ से 185 किमी. दूर है। उदयपुर से माउंट आबू पहुंचने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएं ली जा सकती हैं।
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निकटतम हवाई अड्डा [[उदयपुर]] यहाँ से 185 किलोमीटर दूर है। उदयपुर से माउंट आबू पहुँचने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएँ ली जा सकती हैं।
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[[चित्र:Camel-Cart-Mount-Abu.jpg|ऊँट गाड़ी, माउंट आबू|thumb]]
 
====<u>रेल मार्ग</u>====
 
====<u>रेल मार्ग</u>====
नजदीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड 28 किमी. की दूरी पर है जो [[अहमदाबाद]], [[दिल्ली]], [[जयपुर]] और [[जोधपुर]] से जुड़ा है।
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नज़दीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड 28 किलोमीटर की दूरी पर है जो [[अहमदाबाद]], [[दिल्ली]], [[जयपुर]] और [[जोधपुर]] से जुड़ा है। माउंट आबू की पहाड़ से 50 मील उत्तर-पश्चिम में [[भिन्नमाल]] स्थित है।
 
====<u>सड़क मार्ग</u>====
 
====<u>सड़क मार्ग</u>====
माउंट आबू देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग के जरिए जुड़ा है। दिल्ली के [[कश्मीरी गेट]] बस अड्डे से माउंट आबू के लिए सीधी बस सेवा है। राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें दिल्ली के अलावा अनेक शहरों से माउंट आबू के लिए अपनी सेवाएं मुहैया कराती हैं।
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माउंट आबू देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग के जरिए जुड़ा है। दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से माउंट आबू के लिए सीधी बस सेवा है। राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें दिल्ली के अलावा अनेक शहरों से माउंट आबू के लिए अपनी सेवाएं मुहैया कराती हैं।
  
 
==पर्यटन==
 
==पर्यटन==
माउंट आबू में अनेक पर्यटन स्थल हैं। इनमें कुछ शहर से दूर हैं तो कुछ शहर के आसपास ही हैं। आबू दर्शन के लिए पर्यटन विभाग द्वारा निजी बस ऑपरेटरों द्वारा साइटसीन टूर चलाए जाते हैं। ये टूर आधे दिन के होते हैं। वैसे जीप या टैक्सी द्वारा भी आबू भ्रमण किया जा सकता है। राजस्थान पर्यटन का कार्यालय बस स्टैंड के सामने है। जहाँ से यहाँ की पूरी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। शहर के अंदर या पास के स्थान पैदल घूमते जा सकते है। कंडक्टेड टूर में हर स्थान पर सीमित समय ही दिया जाता है।
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{{main|माउंट आबू पर्यटन}}
====<u>नक्की झील</u>====
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माउंट आबू में अनेक पर्यटन स्थल हैं। माउंट आबू [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] और [[जैन धर्म]] का प्रमुख तीर्थस्थल है। माउंट आबू के ऐतिहासिक मंदिर और प्राकृतिक ख़ूबसूरती पर्यटको को अपनी ओर खींचती है।  
शहर के मध्य में स्थित यह झील माउंट आबू का सबसे पहला आकर्षण का केन्द्र है। आज यह झील माउंट आबू का दिल है। नक्की झील माउंट आबू का एक बेहतरीन पर्यटक स्थल है। कहा जाता है कि एक हिन्दु देवता ने अपने नाखूनों से खोदकर यह झील बनाई थी। इसीलिए इसे नक्की (नख या नाखून)नाम से जाना जाता है। आरंभ में इसे नख की झील कहा जाता था। समय के साथ बदल कर इसका नाम नक्की झील पड़ गया। झील से चारों ओर के पहाड़ियों का नज़ारा बेहद सुंदर दिखता है।  इस झील में नौकायन का भी आनंद लिया जा सकता है। हरी-भरी पहाडि़यों से घिरी नक्की झील लगभग ढाई किमी. के दायरे में फैली है। इसके चारों तरफ एक साफ-सुथरी सड़क है। इसके किनारे एक छोटा-सा पार्क है।
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=====<u>बोटिंग का आनंद</u>=====
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माउंट आबू कों [[दिलवाड़ा जैन मंदिर|दिलवाड़ा के मंदिरों]] के अलावा अन्य कई ऐतिहासिक स्थलों के लिए भी जाना जाता है। वैसे तो साल भर पर्यटनों का जमावड़ा यहां रहता हैं। लेकिन गर्मियों के मौसम में पर्यटकों की संख्या में इजाफ़ा हो जाता है। [[गुरु शिखर]], [[सनसेट प्वाइंट]], टोड रॉक, [[अचलगढ़ क़िला]] और [[नक्की झील]] प्रमुख आकर्षणों में से हैं। यहां की साल भर रहने वाली हरियाली पर्यटकों को ख़ासी भाती है। इसका निर्माण झील के आसपास हुआ है और चारों ओर से यह पर्वतीय क्षेत्र जंगलों से घिरा है।
झील के किनारे पर बैठे कर काफी देर तक लोग झील में तैरते सफेद जलचर और तैरती नौकाओं को देखते है और उसका आनंद लेते है। आसपास बोटिंग करते सभी लोग धुन का आनंद ले रहे थे। झील के पास एक पार्क है वहा लोग रंग-बिरंगी पोशाक किराये पर लेकर तसवीरें खिंचते रहेते है।
 
==मंदिर==
 
====<u>दिलवाड़ा जैन मंदिर</u>====
 
दिलवाड़ा जैन मंदिर प्राचीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। पूरे देश में विख्यात ये मंदिर 11वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान चालुक्य राजाओं के संरक्षण में बने थे। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं। यहाँ पाँच मंदिरों का एक समूह है, जो बाहर से देखने में साधारण से प्रतीत होते हैं। फूल-पत्तियों व अन्य मोहक डिजाइनों से अलंकृत, नक्काशीदार छतें, पशु-पक्षियों की शानदार संगमरमरीय आकृतियां, सफेद स्तंभों पर बारीकी से उकेर कर बनाई सुंदर बेलें, जालीदार नक्काशी से सजे तोरण और इन सबसे बढ़कर जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएं। विमल वसही मंदिर के अष्टकोणीय कक्ष में स्थित है।
 
 
 
समुद्र तल से लगभग साढ़े पांच हजार फुट ऊंचाई पर स्थित राजस्थान की मरूधरा के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू पर जाने वाले पर्यटकों, विशेषकर स्थापत्य शिल्पकला में रुचि रखने वाले सैलानियों के लिए इस पर्वतीय पर्यटन स्थल पर सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र वहाँ मौजूद देलवाड़ा के प्राचीन जैन मंदिर है। जैन मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने है। पाँच मंदिरों के इस समूह में विमल वासाही टेंपल सबसे पुराना है। इन मंदिरों की अद्भुत कारीगरी देखने योग्य है। अपने ऐतिहासिक महत्व और संगमरमर पत्थर पर बारीक नक्काशी की जादूगरी के लिए पहचाने जाने वाले राज्य के सिरोही जिले के इन विश्वविख्यात मंदिरों में शिल्प-सौंदर्य का ऐसा बेजोड़ खजाना है, जिसे दुनिया में अन्यत्र और कहीं नहीं देखा जा सकता।
 
=====<u>विमल वासाही मंदिर</u>=====
 
दिलवाड़ा के मंदिरों में विमल वासाही मंदिर प्रथम र्तीथकर को समर्पित सर्वाधिक प्राचीन है जो 1031 ई.में बना था। बाईसवें र्तीथकर नेमीनाथ को समर्पित लुन वासाही मंदिर भी काफी लोकप्रिय है। यह मंदिर 1231 ई.में वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाईयों द्वारा बनवाया गया था। दिलवाड़ा जैन मंदिर परिसर में पांच मंदिर संगमरमर का हैं। मंदिरों के लगभग 48 स्तम्भों में नृत्यांगनाओं की आकृतियां बनी हुई हैं। दिलवाड़ा के मंदिर और मूर्तियां मंदिर निर्माण कला का उत्तम उदाहरण हैं। मंदिर की छत पर उत्कीर्ण एक भव्य [[कमल]] हमने देखा जो वाकई इस कला का एक नायाब नमूना है।
 
====<u>देवी मंदिर</u>====
 
[[दुर्गा]] को समर्पित अधर देवी मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ देवी की प्रतिमा, प्राकृतिक रूप से अधर में झुकी एक चट्टान के नीचे स्थित है। इसलिए इस मंदिर को अधर देवी मंदिर कहा जाता है। लगभग 250 सीढि़यां चढ़कर श्रद्धालु देवी के दर्शन को पहुंचते है। सीढि़यों के आसपास छोटी-छोटी दुकानों में तीर्थयात्रियों की जरूरत का सामान मिलता है। इनमें शीतल पेय और चाय आदि की दुकानें भी हैं। इस छोटे से व्यवसाय से जुड़े लोगों का जीवन मंदिर में आने वाले पर्यटकों की संख्या पर निर्भर करता है। ऊपर आसपास चट्टानों के बीच कैक्टस के झाड़ नज़र अते है। चट्टान के नीचे मंदिर में झुककर प्रवेश कर के श्रद्धाकु देवी के दर्शन कर प्रसाद लिते है।
 
====<u>गोमुख मंदिर</u>====
 
इस मंदिर परिसर में गाय की एक मूर्ति है जिसके सिर के ऊपर प्राकृतिक रूप से एक धारा बहती रहती है। इसी कारण इस मंदिर को गोमुख मंदिर कहा जाता है। संत वशिष्ठ ने इसी स्थान पर यज्ञ का आयोजन किया था। मंदिर में अरबुआदा सर्प की एक विशाल प्रतिमा है। संगमरमर से बनी नंदी की आकर्षक प्रतिमा को भी यहाँ देखा जा सकता है।
 
====<u>दत्तात्रेय मंदिर</u>====
 
मंदिर के सामने बने अनेक अस्थायी रेस्तरां और शीतल पेय कंपनियों के विज्ञापनों ने वहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य बिगाड़ रखा था। गुरु शिखर पर एक घंटा लगा हुआ है जिसे हर पर्यटक बजाता है। दूर तक फैली उसकी गूंज मे एक आनंद है। यहाँ से आसपास का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है।
 
=====<u>अचलगढ़ किला व मंदिर</u>=====
 
दिलवाड़ा के मंदिरों से 8 किमी.उत्तर पूर्व में यह क़िला और मंदिर स्थित हैं। अचलगढ़ क़िला [[मेवाड़]] के राजा [[राणा कुंभ]] ने एक पहाड़ी के ऊपर बनवाया था। पहाड़ी के तल पर 15वीं शताब्दी में बना अचलेश्वर मंदिर है जो भगवान [[शिव]] को समर्पित है। कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव के पैरों के निशान हैं। नजदीक ही 16वीं शताब्दी में बने काशीनाथ जैन मंदिर भी हैं।
 
  
====<u>सनसेट प्वाइंट</u>====
+
{{लेख प्रगति
नक्की झील के दक्षिण-पश्चिम में स्थित सनसेट प्वांइट से डूबते हुए सूरज की खूबसूरती को देखा जा सकता है। यहां से दूर तक फैले हरे भरे मैदानों के दृश्य आंखों को सुकून पहुंचाते हैं। सूर्यास्त के समय आसमान के बदलते रंगों की छटा देखने सैकड़ों पर्यटक यहां आते हैं।
+
|आधार=
माउंट आबू वन्यजीव अभ्यारण्य-यह अभ्यारण्य मांउट आबू का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। यहां मुख्य रूप से तेंदुए, स्लोथबियर,वाइल्ड बोर,सांभर,चिंकारा और लंगूर पाए जाते हैं। 288वर्ग किमी.में फैले इस अभ्यारण्य कीस्थापना 1960में की गई थी। यहां पक्षियों की लगभग 250और पौधों की 110से ज्यादा प्रजातियां देखी जा सकती हैं। पक्षियों में रुचि रखने वालों के लिए उपयुक्त जगह है।
+
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2
====<u>गुरु शिखर</u>====
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|माध्यमिक=  
गुरु शिखर [[अरावली पर्वत]] श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी है। यह स्थान शहर से 15 किमी. दूर है। शिखर से कुछ पहले [[विष्णु]] भगवान के एक रूप दत्तात्रेय का मंदिर है। मंदिर के पास से ही शिखर तक सीढि़यां बनी हैं। शिखर पर एक ऊंची चट्टान है और एक बड़ा-सा प्राचीन घंटा लगा है। मंदिर से कुछ ही दूरी पर पीतल की घंटी है जो माउंट आबू को देख रहे संतरी का आभास कराती है। गुरु शिखर से नीचे का दृश्य बहुत की सुंदर दिखाई पड़ता है।
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चित्र:Mount-Abu-2.jpg|माउंट आबू से [[गुरु शिखर माउंट आबू|गुरु शिखर]] के लिए रास्ता 
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चित्र:Rajasthan-Man.jpg|माउंट आबू में राजस्थानी ग्रामीण
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चित्र:Mount-Abu-1.jpg|माउंट आबू की वेधशाला 
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11:11, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

माउंट आबू
Mount-Abu-Rajasthan.jpg
विवरण माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है।
राज्य राजस्थान
ज़िला सिरोही ज़िला
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 24° 35' 33.00", पूर्व- 72° 42' 29.88"
मार्ग स्थिति माउंट आबू शहर सड़क द्वारा उदयपुर से 185 किलोमीटर, डबौक से 210 किलोमीटर, जयपुर से 505 किलोमीटर, जैसलमेर से 620 किलोमीटर, दिल्ली से 760 किलोमीटर और मुंबई से 765 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
हवाई अड्डा महाराणा प्रताप हवाई अड्डा, डबौक में 210 किलोमीटर है।
रेलवे स्टेशन आबू रोड रेलवे स्टेशन
बस अड्डा माउंट आबू
यातायात स्थानीय बस, ऑटो रिक्शा, साईकिल रिक्शा
क्या देखें माउंट आबू पर्यटन
क्या ख़रीदें राजस्थानी शिल्प का सामान, चांदी के आभूषण, संगमरमर पत्थर से बनी मूर्तियाँ
एस.टी.डी. कोड 02974
ए.टी.एम लगभग सभी
Map-icon.gif गूगल मानचित्र, महाराणा प्रताप हवाई अड्डा, डबौक
संबंधित लेख दिलवाड़ा जैन मंदिर, नक्की झील, गोमुख मंदिर, अर्बुदा देवी मन्दिर, अचलगढ़ क़िला, माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य, गुरु शिखर कब जाएँ फ़रवरी से जून और सितंबर से दिसंबर

माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है। समुद्र तल से 1220 मीटर की ऊँचाई पर स्थित माउंट आबू को राजस्थान का स्‍वर्ग भी माना जाता है। नीलगिरि की पहाड़ियों पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थित और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न व मनोरम है। यह स्थान राज्य के अन्य हिस्सों की तरह गर्म नहीं है। माउंट आबू हिन्दू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहाँ का ऐतिहासिक मंदिर और प्राकृतिक ख़ूबसूरती पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है।

अंग्रेज़ी शासन के प्रतिनिधि का मुख्यालय, माउंट आबू

इतिहास

गुर्जर तथा अर्बुदा-पर्वत

अर्बुदा (माउन्ट आबू) क्षेत्र के आस पास मध्यकाल में गुर्जरों का निवास रहा है। बहुत से शिलालेखों जैसे धनपाल की तिलकमंजरी, में गुर्जरों तथा अर्बुदा पहाड़ का उल्लेख मिलता है।[1]6वीं सदी के बाद इन गुर्जरों ने राजस्थान तथा गुजरात के विभिन्न भागों में अपना राज्य स्थापित किया था। इस कारण ब्रिटिश काल से पहले, गुजरात तथा राजस्थान को सम्मिलित रुप से गुर्जरदेश या गुर्जरत्रा (गुर्जर से रक्षित देश) कहा जाता था।[2]

पुराण तथा अर्बुदा-पर्वत

पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू धर्म के तैंतीस करोड़ देवी देवता इस पवित्र पर्वत पर भ्रमण करते हैं। यह भी कहा जाता है कि महान् संत वशिष्ठ ने पृथ्वी से असुरों के विनाश के लिए यहाँ यज्ञ का आयोजन किया था। जैन धर्म के चौबीसवें र्तीथकर भगवान महावीर भी यहाँ आए थे। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूज्यनीय तीर्थस्थल बना गया। पुराणों में इस क्षेत्र को अर्बुदारण्य कहा गया है।

अंग्रेज़-काल

ऐसा कहा जाता है कि सिरोही के महाराजा ने माउंट आबू को राजपूताना मुख्यालय के लिए अंग्रेज़ों को पट्टे पर दे दिया। ब्रिटिश शासन में माउंट आबू मैदानी इलाकों की गर्मियों से बचने के लिए अंग्रेज़ों का पसंदीदा स्थान रहा था। माउंट आबू शुरू से ही साधु संतों का निवास स्थान रहा है।

जैन वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण-स्वरूप दो प्रसिद्ध संगमरमर के बने मंदिर जो दिलवाड़ा या देवलवाड़ा मंदिर कहलाते हैं इस पर्वतीय नगर के जगत् प्रसिद्ध स्मारक हैं। विमलसाह के मंदिर को एक अभिलेख के अनुसार राजा भीमदेव प्रथम के मंत्री विमलसाह ने बनवाया था। इस मंदिर पर 18 करोड़ रुपया व्यय हुआ थे।

अचलगढ़ क़िला, माउंट आबू

सांस्कृतिक जीवन

माउंट आबू के सांस्कृतिक जीवन की झलक त्योहारों और उत्सवों पर ही देखने को मिलती है। प्रतिवर्ष जून में होने वाले समर फेस्टीवल यानी ग्रीष्म महोत्सव में तो यहाँ जैसे पूरा राजस्थान ही सिमट आता है। रंग-बिरंगी परंपरागत वेशभूषा में आए लोक कलाकारों द्वारा लोकनृत्य और संगीत की रंगारंग झांकी प्रस्तुत की जाती है। घूमर, गैर और धाप जैसे लोक नृत्यों के साथ डांडिया नृत्य देख सैलानी झूम उठते हैं। तीन दिन चलने वाले इस महोत्सव के दौरान नक्की झील में बोट रेस का आयोजन भी किया जाता है। शामे कव्वाली और आतिशबाजी इस फेस्टिवल का ख़ास हिस्सा हैं।

यातायात और परिवहन

वायु मार्ग

निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर यहाँ से 185 किलोमीटर दूर है। उदयपुर से माउंट आबू पहुँचने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएँ ली जा सकती हैं।

ऊँट गाड़ी, माउंट आबू

रेल मार्ग

नज़दीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड 28 किलोमीटर की दूरी पर है जो अहमदाबाद, दिल्ली, जयपुर और जोधपुर से जुड़ा है। माउंट आबू की पहाड़ से 50 मील उत्तर-पश्चिम में भिन्नमाल स्थित है।

सड़क मार्ग

माउंट आबू देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग के जरिए जुड़ा है। दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से माउंट आबू के लिए सीधी बस सेवा है। राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें दिल्ली के अलावा अनेक शहरों से माउंट आबू के लिए अपनी सेवाएं मुहैया कराती हैं।

पर्यटन

माउंट आबू में अनेक पर्यटन स्थल हैं। माउंट आबू हिन्दू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। माउंट आबू के ऐतिहासिक मंदिर और प्राकृतिक ख़ूबसूरती पर्यटको को अपनी ओर खींचती है।

माउंट आबू कों दिलवाड़ा के मंदिरों के अलावा अन्य कई ऐतिहासिक स्थलों के लिए भी जाना जाता है। वैसे तो साल भर पर्यटनों का जमावड़ा यहां रहता हैं। लेकिन गर्मियों के मौसम में पर्यटकों की संख्या में इजाफ़ा हो जाता है। गुरु शिखर, सनसेट प्वाइंट, टोड रॉक, अचलगढ़ क़िला और नक्की झील प्रमुख आकर्षणों में से हैं। यहां की साल भर रहने वाली हरियाली पर्यटकों को ख़ासी भाती है। इसका निर्माण झील के आसपास हुआ है और चारों ओर से यह पर्वतीय क्षेत्र जंगलों से घिरा है।


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वीथिका

माउंट आबू
हिमालयन पीक से माउंट आबू का विहंगम दृश्य

टीका टिप्पणी और सन्दर्भ

  1. Sudarśana Śarmā (2002) Tilakamañjarī of Dhanapāla: a critical and cultural study। Parimal Publications।
  2. Ramesh Chandra Majumdar (1977) The History and Culture of the Indian People: The classical age। Bharatiya Vidya Bhavan।

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