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'''मैत्रेयी पुष्पा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Maitreyi Pushpa'') [[हिंदी]] की प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी लेखनी में ग्रामीण भारत को साकार किया। [[अलीगढ़ ज़िला|अलीगढ़ ज़िले]] के सिर्कुरा गांव में [[1944]] में पैदा हुईं। मैत्रेयी पुष्पा के लेखन में [[ब्रज]] और [[बुंदेलखंड|बुंदेल]] दोनों संस्कृतियों की झलक दिखाई देती है। मैत्रेयी पुष्पा को [[रांगेय राघव]] और [[फणीश्वर नाथ रेणु|फणीश्वर नाथ 'रेणु']] की श्रेणी की रचनाकार माना जाता है।
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'''मैत्रेयी पुष्पा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Maitreyi Pushpa'', जन्म- [[30 नवम्बर]], [[1944]], [[अलीगढ़]], [[उत्तर प्रदेश]]) [[हिंदी]] की प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। उन्हें [[हिन्दी अकादमी, दिल्ली|हिन्दी अकादमी]], [[दिल्ली]] की उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी लेखनी में ग्रामीण भारत को साकार किया है। उनके लेखन में [[ब्रज]] और [[बुंदेलखंड|बुंदेल]] दोनों संस्कृतियों की झलक दिखाई देती है। मैत्रेयी पुष्पा को [[रांगेय राघव]] और [[फणीश्वर नाथ रेणु|फणीश्वर नाथ 'रेणु']] की श्रेणी की रचनाकार माना जाता है।
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मैत्रेयी पुष्पा का जन्म 30 नवम्बर, 1944 को [[उत्तर प्रदेश|उत्तर प्रदेश राज्य]] के [[अलीगढ़ ज़िला|अलीगढ़ ज़िले]] में सिर्कुरा नामक [[गाँव]] में हुआ था। उनके जीवन का आरंभिक भाग [[बुंदेलखण्ड]] में व्यतीत हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा [[झांसी|झांसी ज़िले]] के खिल्ली गाँव में हुई। उन्होंने अपनी एम.ए. (हिंदी साहित्य) की डिग्री बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी से प्राप्त की थी। उन्हें राष्ट्रीय सहारा, वनिता जैसी पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर सक्रिय लेखन का अनुभव प्राप्त है।  
 
==प्रमुख कृतियाँ==
 
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*खुली खिड़कियाँ
 
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==उपन्यास 'कस्तूरी कुण्डल बसै'==
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मैत्रेयी पुष्पा का [[उपन्यास]] 'कस्तूरी कुण्डल बसै', केवल उपन्यास ही नहीं उनकी आत्मकथा भी है। और दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सिर्फ आत्मकथा ही नहीं, एक फिक्शन भी है। 'कस्तूरी कुण्डल बसै' के बारे में यह तीनों बातें सच हैं, लेकिन अधूरा सच। दरअसल यह पुस्तक मैत्रेयी पुष्पा की रचनाशीलता का एक प्रयोगधर्मा प्राकट्य है, जो पाठकों को एक लेखिका की जीवन शैली, उसके संबंध, सरोकार और संघर्षों की दास्तान बड़ी रोचकता से बताती है। आरंभ से अंत तक रचना के आकर्षण से पाठक की रूचि को बाँधे रखती है।
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इस पुस्तक में मैत्रेयी पुष्पा ने अपने उन अंतरंग और लगभग अनछुए अकथनीय प्रसंग का ताना-बाना कलात्मक ढंग से बुना है, जिन्हें आमतौर पर सामान्यजन छुपा लेते हैं। मैत्रेयी पुष्पा के इस हौसले के कारण उनका यह आत्मकथ्यात्मक उपन्यास [[हिन्दी]] में उपलब्ध आत्मकथाओं में अपना विशिष्ट स्थान बनाने में सफल हुआ है। 'चाक', 'इदन्नमम' और 'अल्मा कबूतरी' जैसे उपन्यासों की बहुपठित लेखिका मैत्रेयी पुष्पा की इस औपन्यासिक कृति के कुछ अंश यत्र-तत्र प्रकाशित होकर पहले ही चर्चित हो चुके हैं। कहा जा सकता है कि 'कस्तूरी कुण्डल बसै' हिन्दी के आत्मकथात्मक लेखन को एक नई दिशा देने में समर्थ है।<ref>{{cite web |url=http://gadyakosh.org/gk/%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%B2_%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A5%88_/_%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE |title=कस्तूरी कुण्डल बसै, मैत्रेयी पुष्पा, समीक्षा |accessmonthday= 13 सितम्बर|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=गद्यकोश |language= हिंदी}}</ref>
 
==सम्मान और पुरस्कार==
 
==सम्मान और पुरस्कार==
मैत्रेयी पुष्पा को अब तक कई सम्मान हासिल हो चुके हैं जिनमें सुधा स्मृति सम्मान, कथा पुरस्कार, साहित्य कृति सम्मान, प्रेमचंद सम्मान, वीरसिंह जू देव पुरस्कार, कथाक्रम सम्मान, हिंदी अकादमी का साहित्य सम्मान, सरोजिनी नायडू पुरस्कार और सार्क लिटरेरी अवार्ड प्रमुख हैं।
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मैत्रेयी पुष्पा को अब तक कई सम्मान हासिल हो चुके हैं, जिनमें 'सुधा स्मृति सम्मान', 'कथा पुरस्कार', 'साहित्य कृति सम्मान', 'प्रेमचंद सम्मान', 'वीरसिंह जू देव पुरस्कार', 'कथाक्रम सम्मान', 'हिंदी अकादमी का साहित्य सम्मान', 'सरोजिनी नायडू पुरस्कार' और 'सार्क लिटरेरी अवार्ड' प्रमुख हैं।
  
 
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*[http://gadyakosh.org/gk/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE#.UNW4XayBWSo मैत्रेयी पुष्पा]
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*[http://www.nirantar.org/1006-samvaad-maitrayee खुद को पत्नी माना ही नहीं कभी]
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*[http://www.shabdankan.com/2015/09/Gudia-Bhitar-Gudiya-Maitreyi-Pushpa.html हम न मरहिं मारहि संसारा - मैत्रेयी पुष्पा (आत्मकथा गुड़िया भीतर गुड़िया से]
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*[http://www.apnimaati.com/2015/04/blog-post_29.html शोध:सामाजिक मूल्य और मैत्रेयी पुष्पा की आत्मकथा/स्वीटी यादव]
 
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08:31, 13 सितम्बर 2016 का अवतरण

मैत्रेयी पुष्पा

मैत्रेयी पुष्पा (अंग्रेज़ी: Maitreyi Pushpa, जन्म- 30 नवम्बर, 1944, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश) हिंदी की प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। उन्हें हिन्दी अकादमी, दिल्ली की उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी लेखनी में ग्रामीण भारत को साकार किया है। उनके लेखन में ब्रज और बुंदेल दोनों संस्कृतियों की झलक दिखाई देती है। मैत्रेयी पुष्पा को रांगेय राघव और फणीश्वर नाथ 'रेणु' की श्रेणी की रचनाकार माना जाता है।

परिचय

मैत्रेयी पुष्पा का जन्म 30 नवम्बर, 1944 को उत्तर प्रदेश राज्य के अलीगढ़ ज़िले में सिर्कुरा नामक गाँव में हुआ था। उनके जीवन का आरंभिक भाग बुंदेलखण्ड में व्यतीत हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा झांसी ज़िले के खिल्ली गाँव में हुई। उन्होंने अपनी एम.ए. (हिंदी साहित्य) की डिग्री बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी से प्राप्त की थी। उन्हें राष्ट्रीय सहारा, वनिता जैसी पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर सक्रिय लेखन का अनुभव प्राप्त है।

प्रमुख कृतियाँ

उपन्यास
  • 'चाक'
  • 'अल्मा कबूतरी'
  • 'कस्तूरी कुंडली बसैं'
  • 'इदन्नमम'
  • 'स्मृति दंश'
  • 'कहैं इशुरी फाग'
  • 'झूला नट'
  • 'बेतवा बहती रही'
कहानी संग्रह
  • 'चिन्हार'
  • 'ललमनियां'
कविता संग्रह
  • 'लकीरें' शीर्षक से उनकी एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हो चुकी है।
कहानियाँ
  • त्रिया हठ (कहानी संग्रह)
  • फैसला
  • सिस्टर
  • सेंध
  • अब फूल नहीं खिलते
  • बोझ
  • पगला गई है भागवती
  • छाँह
  • तुम किसकी हो बिन्नी?
आत्मकथा
  • गुड़िया भीतर गुड़िया
यात्रा-संस्मरण
  • अगनपाखी
आलेख
  • खुली खिड़कियाँ

उपन्यास 'कस्तूरी कुण्डल बसै'

मैत्रेयी पुष्पा का उपन्यास 'कस्तूरी कुण्डल बसै', केवल उपन्यास ही नहीं उनकी आत्मकथा भी है। और दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सिर्फ आत्मकथा ही नहीं, एक फिक्शन भी है। 'कस्तूरी कुण्डल बसै' के बारे में यह तीनों बातें सच हैं, लेकिन अधूरा सच। दरअसल यह पुस्तक मैत्रेयी पुष्पा की रचनाशीलता का एक प्रयोगधर्मा प्राकट्य है, जो पाठकों को एक लेखिका की जीवन शैली, उसके संबंध, सरोकार और संघर्षों की दास्तान बड़ी रोचकता से बताती है। आरंभ से अंत तक रचना के आकर्षण से पाठक की रूचि को बाँधे रखती है।

समीक्षकीय टिप्पणी

इस पुस्तक में मैत्रेयी पुष्पा ने अपने उन अंतरंग और लगभग अनछुए अकथनीय प्रसंग का ताना-बाना कलात्मक ढंग से बुना है, जिन्हें आमतौर पर सामान्यजन छुपा लेते हैं। मैत्रेयी पुष्पा के इस हौसले के कारण उनका यह आत्मकथ्यात्मक उपन्यास हिन्दी में उपलब्ध आत्मकथाओं में अपना विशिष्ट स्थान बनाने में सफल हुआ है। 'चाक', 'इदन्नमम' और 'अल्मा कबूतरी' जैसे उपन्यासों की बहुपठित लेखिका मैत्रेयी पुष्पा की इस औपन्यासिक कृति के कुछ अंश यत्र-तत्र प्रकाशित होकर पहले ही चर्चित हो चुके हैं। कहा जा सकता है कि 'कस्तूरी कुण्डल बसै' हिन्दी के आत्मकथात्मक लेखन को एक नई दिशा देने में समर्थ है।[1]

सम्मान और पुरस्कार

मैत्रेयी पुष्पा को अब तक कई सम्मान हासिल हो चुके हैं, जिनमें 'सुधा स्मृति सम्मान', 'कथा पुरस्कार', 'साहित्य कृति सम्मान', 'प्रेमचंद सम्मान', 'वीरसिंह जू देव पुरस्कार', 'कथाक्रम सम्मान', 'हिंदी अकादमी का साहित्य सम्मान', 'सरोजिनी नायडू पुरस्कार' और 'सार्क लिटरेरी अवार्ड' प्रमुख हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कस्तूरी कुण्डल बसै, मैत्रेयी पुष्पा, समीक्षा (हिंदी) गद्यकोश। अभिगमन तिथि: 13 सितम्बर, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख