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'''रंजन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ranjan'', वास्तविक नाम: 'रामनारायण वेंकटरमण शर्मा', जन्म: 1918 - मृत्यु: 12 सितम्बर, 1983) एक प्रसिद्ध [[अभिनेता]], गायक, पत्रकार और लेखक थे। उन्होंने 'अशोक कुमार' (1941) के साथ फ़िल्मों में पदार्पण किया लेकिन उन्हें एस. एस. वासन की फ़िल्म 'चन्द्रलेखा' (1948) से पहचान मिली।  
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'''रंजन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ranjan'', वास्तविक नाम: 'रामनारायण वेंकटरमण शर्मा', जन्म: [[2 मार्च]], [[1918]], [[मद्रास]]; मृत्यु: [[12 सितम्बर]], [[1983]]) प्रसिद्ध [[अभिनेता]], गायक, पत्रकार और लेखक थे। उन्होंने तमिल फ़िल्म 'अशोक कुमार' ([[1941]]) से फ़िल्मी दुनिया में पदार्पण किया था, लेकिन उन्हें पहचान एस.एस. वासन की फ़िल्म 'चन्द्रलेखा' ([[1948]]) से मिली। रंजन ने तमिल फ़िल्मों के साथ ही [[हिन्दी फ़िल्म|हिन्दी फ़िल्मों]] में भी काम किया। वह हरफनमौला व्यक्ति थे।
==जीवन परिचय==
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==परिचय==
रंजन का जन्म [[1918]] में मयलापुर, [[मद्रास]] में हुआ था। इनका [[परिवार]] [[श्रीरंगम]], [[तमिलनाडु]] का रहने वाला था। रंजन ने मद्रास स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की और कला में स्नातक की डिग्री पाई। रंजन अपने कॉलेज के दिनों से ही नाटकों में अभिनय करते थे।
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अभिनेता रंजन का जन्म [[2 मार्च]], [[1918]] में मयलापुर, [[मद्रास]] में हुआ था। उनका [[परिवार]] [[श्रीरंगम]], [[तमिलनाडु]] का रहने वाला था। वह अपने [[पिता]] आर.एन. शर्मा की दस संतानों में चौथी संतान थे। उन्होंने मद्रास स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की और [[1938]] में [[भौतिक विज्ञान]] में स्नातक की डिग्री पाई। वह अपने कॉलेज के दिनों से ही [[नाटक|नाटकों]] में अभिनय करते थे।
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रंजन का [[विवाह]] मुस्लिम महिला लक्ष्मी के साथ हुआ, लेकिन उन्होंने पूरा परिवार [[हिन्दू]] रीति-रिवाजों के साथ चलाया। रंजन को पढ़ाने का बहुत शौक था। मौका मिलते ही वह [[यूरोप]] और [[अमेरिका]] के विश्वविद्यालयों में फ़िल्म के विषय पर लेक्चर देने जाते रहते थे। [[संगीत]] पर उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी की फेलोशिप पर शोधकार्य किया। समर स्कूल में उन्होंने संगीत-नृत्य सिखाया और शानदार होटल चलाया।<ref name="s">{{cite web |url=http://www.univarta.com/ranjan-like-no-all-rounder-artist/bollywood/news/482723.html |title= नहीं हुआ रंजन जैसा दूसरा हरफनमौला कलाकार |accessmonthday= 31 अगस्त |accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.univarta.com|language=हिंदी }}</ref>
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==फ़िल्मी शुरुआत==
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रंजन ने अपने फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत [[1941]] में फ़िल्म 'अशोक कुमार' से की थी। उनके फ़िल्मकार मित्र आचार्य ने उनके आकर्षक व्यक्तित्व को देखकर अपनी फ़िल्म 'दिव्य सिंगार' में नायक की भूमिका दी, जिसमें हिरोइन [[वैजयंती माला]] की मां वसुंधरा थीं। इसके बाद उनकी फ़िल्म 'नारद' रिलीज हुई, जिसमें [[कथकली]] और [[भरतनाट्यम]] के कई दृश्य थे। उनकी फ़िल्म 'चंद्रलेखा' अपने दौर की सबसे महंगी फ़िल्म थी। [[उत्तर भारत]] में प्रदर्शित होने वाली [[दक्षिण भारत]] की यह पहली फ़िल्म थी, जिसे दर्शकों की जबरदस्त प्रतिक्रियाएँ मिलीं। [[तमिल भाषा|तमिल]] के बाद इसके [[हिन्दी]] संस्करण को लेकर रंजन [[बॉलीवुड]] आए।
 
==प्रसिद्ध फ़िल्में==
 
==प्रसिद्ध फ़िल्में==
* चन्द्रलेखा (1948)
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* चन्द्रलेखा ([[1948]])
* मंगला (1951)
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* मंगला ([[1951]])
* सपेरा (1961)
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* सपेरा ([[1961]])
* मदारी (1959)
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* मदारी ([[1959]])
* राम बलराम (1980)
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* राम बलराम ([[1980]])
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==विशेष==
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तमिल सिनेमा का सुपर स्टार बनने पर उन्होंने टाइगर माउथ विमान खरीद लिया और अपने शूटिंग लोकेशन पर वह हवाई जहाज़ उड़ाकर जाते थे। वह पहले अभिनेता थे, जिन्होंने रॉल्स रॉयस कार खरीदी थी। इसके अलावा वह पहले अभिनेता थे, जिन्होंने फ़िल्म में विग का इस्तेमाल किया। जेमिनी के. एस. एस. वासन ने अपनी फ़िल्म चंद्रलेखा में रंजन को तमिल-हिन्दी संस्करण का नायक बनाया। उसी दौरान रंजन ने अपने बाल कटवा दिए, जिससे वासन बहुत नाराज़ हुए। इस पर रंजन ने उन्हें विग लगाने का सुझाव दिया। चंद्रलेखा का भव्य नगाड़ा डांस दर्शक आज भी नहीं भूले हैं। इसकी परिकल्पना और कोरियोग्राफी रंजन ने ही की थी।<ref name="s"/>
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==प्रतिभावान==
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रंजन को उनके पिता संगीतज्ञ बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने रंजन को स्कूल भेजने के बजाय सात साल की उम्र में वॉयलिन सीखने के लिए भेज दिया। जब उनके पिता को समझाया गया कि बच्चे को औपचारिक शिक्षा दिलाना ज़रूरी है। तब उन्होंने इस शर्त के साथ उन्हें स्कूल जाने की अनुमति दी कि वह दिन में स्कूल जाएं, लेकिन स्कूल से लौटने के बाद आठ घंटे तक वॉयलिन का अभ्यास करें। यह सब करते हुए रात के दो बज जाते थे और रंजन तीन-चार घंटे ही सो पाते थे।
  
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रंजन हिन्दुस्तानी और पाश्चात्य संगीत के मर्मज्ञ होने के साथ ही [[कथकली]] तथा [[भरतनाट्यम नृत्य]] में भी निपुण थे और तलवारबाज़ी में पारंगत थे। फ़िल्मों में उनके तलवारबाज़ी के दृश्य हैरतअंगेज हुआ करते थे। विभिन्न विषयों में रंजन की निपुणता यहीं तक सीमित नहीं थी। वह सभी भारतीय भाषाएं बोलने, लिखने और पढ़ने में सिद्धहस्त थे। उन्हें चित्रकारी का भी शौक था और फुर्सत के क्षणों में उन्होंने जादू की कला भी सीखी। उन्होंने अंग्रेज़ी-तमिल नाट्य पत्रिका का सम्पादन किया था। रंजन ने हवाई जहाज़ उड़ाना भी सीखा।<ref name="s"/>
 
==निधन==
 
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रंजन का निधन [[12 सितम्बर]], [[1983]] को न्यू जर्सी, [[अमेरिका]] में हृदयाघात के कारण हुआ तब वे मात्र 65 वर्ष के थे।  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
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*[http://www.imdb.com/name/nm0710206/ रंजन की फ़िल्में]
 
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रंजन (अभिनेता)
रंजन
पूरा नाम रामनारायण वेंकटरमण शर्मा
प्रसिद्ध नाम रंजन
जन्म 2 मार्च, 1918
जन्म भूमि मयलापुर, मद्रास
मृत्यु 12 सितम्बर, 1983
मृत्यु स्थान न्यू जर्सी, अमेरिका
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र अभिनेता, गायक, पत्रकार
मुख्य फ़िल्में 'चन्द्रलेखा' (1948), 'मंगला' (1951), 'सपेरा' (1961), 'मदारी' (1959), 'राम बलराम' (1980) आदि।
शिक्षा स्नातक (भौतिक विज्ञान)
विद्यालय मद्रास कॉलेज
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी रंजन हिन्दुस्तानी और पाश्चात्य संगीत के मर्मज्ञ होने के साथ ही कथकली तथा भरतनाट्यम नृत्य में भी निपुण थे और तलवारबाज़ी में पारंगत थे। फ़िल्मों में उनके तलवारबाज़ी के दृश्य हैरतअंगेज हुआ करते थे।

रंजन (अंग्रेज़ी: Ranjan, वास्तविक नाम: 'रामनारायण वेंकटरमण शर्मा', जन्म: 2 मार्च, 1918, मद्रास; मृत्यु: 12 सितम्बर, 1983) प्रसिद्ध अभिनेता, गायक, पत्रकार और लेखक थे। उन्होंने तमिल फ़िल्म 'अशोक कुमार' (1941) से फ़िल्मी दुनिया में पदार्पण किया था, लेकिन उन्हें पहचान एस.एस. वासन की फ़िल्म 'चन्द्रलेखा' (1948) से मिली। रंजन ने तमिल फ़िल्मों के साथ ही हिन्दी फ़िल्मों में भी काम किया। वह हरफनमौला व्यक्ति थे।

परिचय

अभिनेता रंजन का जन्म 2 मार्च, 1918 में मयलापुर, मद्रास में हुआ था। उनका परिवार श्रीरंगम, तमिलनाडु का रहने वाला था। वह अपने पिता आर.एन. शर्मा की दस संतानों में चौथी संतान थे। उन्होंने मद्रास स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की और 1938 में भौतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री पाई। वह अपने कॉलेज के दिनों से ही नाटकों में अभिनय करते थे।

रंजन का विवाह मुस्लिम महिला लक्ष्मी के साथ हुआ, लेकिन उन्होंने पूरा परिवार हिन्दू रीति-रिवाजों के साथ चलाया। रंजन को पढ़ाने का बहुत शौक था। मौका मिलते ही वह यूरोप और अमेरिका के विश्वविद्यालयों में फ़िल्म के विषय पर लेक्चर देने जाते रहते थे। संगीत पर उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी की फेलोशिप पर शोधकार्य किया। समर स्कूल में उन्होंने संगीत-नृत्य सिखाया और शानदार होटल चलाया।[1]

फ़िल्मी शुरुआत

रंजन ने अपने फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत 1941 में फ़िल्म 'अशोक कुमार' से की थी। उनके फ़िल्मकार मित्र आचार्य ने उनके आकर्षक व्यक्तित्व को देखकर अपनी फ़िल्म 'दिव्य सिंगार' में नायक की भूमिका दी, जिसमें हिरोइन वैजयंती माला की मां वसुंधरा थीं। इसके बाद उनकी फ़िल्म 'नारद' रिलीज हुई, जिसमें कथकली और भरतनाट्यम के कई दृश्य थे। उनकी फ़िल्म 'चंद्रलेखा' अपने दौर की सबसे महंगी फ़िल्म थी। उत्तर भारत में प्रदर्शित होने वाली दक्षिण भारत की यह पहली फ़िल्म थी, जिसे दर्शकों की जबरदस्त प्रतिक्रियाएँ मिलीं। तमिल के बाद इसके हिन्दी संस्करण को लेकर रंजन बॉलीवुड आए।

प्रसिद्ध फ़िल्में

  • चन्द्रलेखा (1948)
  • मंगला (1951)
  • सपेरा (1961)
  • मदारी (1959)
  • राम बलराम (1980)

विशेष

तमिल सिनेमा का सुपर स्टार बनने पर उन्होंने टाइगर माउथ विमान खरीद लिया और अपने शूटिंग लोकेशन पर वह हवाई जहाज़ उड़ाकर जाते थे। वह पहले अभिनेता थे, जिन्होंने रॉल्स रॉयस कार खरीदी थी। इसके अलावा वह पहले अभिनेता थे, जिन्होंने फ़िल्म में विग का इस्तेमाल किया। जेमिनी के. एस. एस. वासन ने अपनी फ़िल्म चंद्रलेखा में रंजन को तमिल-हिन्दी संस्करण का नायक बनाया। उसी दौरान रंजन ने अपने बाल कटवा दिए, जिससे वासन बहुत नाराज़ हुए। इस पर रंजन ने उन्हें विग लगाने का सुझाव दिया। चंद्रलेखा का भव्य नगाड़ा डांस दर्शक आज भी नहीं भूले हैं। इसकी परिकल्पना और कोरियोग्राफी रंजन ने ही की थी।[1]

प्रतिभावान

रंजन को उनके पिता संगीतज्ञ बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने रंजन को स्कूल भेजने के बजाय सात साल की उम्र में वॉयलिन सीखने के लिए भेज दिया। जब उनके पिता को समझाया गया कि बच्चे को औपचारिक शिक्षा दिलाना ज़रूरी है। तब उन्होंने इस शर्त के साथ उन्हें स्कूल जाने की अनुमति दी कि वह दिन में स्कूल जाएं, लेकिन स्कूल से लौटने के बाद आठ घंटे तक वॉयलिन का अभ्यास करें। यह सब करते हुए रात के दो बज जाते थे और रंजन तीन-चार घंटे ही सो पाते थे।

रंजन हिन्दुस्तानी और पाश्चात्य संगीत के मर्मज्ञ होने के साथ ही कथकली तथा भरतनाट्यम नृत्य में भी निपुण थे और तलवारबाज़ी में पारंगत थे। फ़िल्मों में उनके तलवारबाज़ी के दृश्य हैरतअंगेज हुआ करते थे। विभिन्न विषयों में रंजन की निपुणता यहीं तक सीमित नहीं थी। वह सभी भारतीय भाषाएं बोलने, लिखने और पढ़ने में सिद्धहस्त थे। उन्हें चित्रकारी का भी शौक था और फुर्सत के क्षणों में उन्होंने जादू की कला भी सीखी। उन्होंने अंग्रेज़ी-तमिल नाट्य पत्रिका का सम्पादन किया था। रंजन ने हवाई जहाज़ उड़ाना भी सीखा।[1]

निधन

रंजन का निधन 12 सितम्बर, 1983 को न्यू जर्सी, अमेरिका में हृदयाघात के कारण हुआ तब वे मात्र 65 वर्ष के थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 नहीं हुआ रंजन जैसा दूसरा हरफनमौला कलाकार (हिंदी) www.univarta.com। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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