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[[शक]] संवत या राष्ट्रीय शाके [[भारत]] का राष्ट्रीय कलैण्डर है। यह 78 वर्ष ईसा पूर्व प्रारम्भ हुआ था। चैत्र 1, 1879 शक संवत (22 मार्च 1957) को इसे अधिकारिक रूप से विधिवत अपनाया गया।
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'''राष्ट्रीय शाके''' अथवा '''शक संवत''' [[भारत]] का राष्ट्रीय कलैण्डर है। यह 78 [[वर्ष]] ईसा पूर्व प्रारम्भ हुआ था। चैत्र 1, 1879 शक संवत<ref>[[22 मार्च]] 1957</ref> को इसे अधिकारिक रूप से विधिवत अपनाया गया।
*500 ई. के उपरान्त [[संस्कृत]] में लिखित सभी ज्योतिःशास्त्रीय ग्रन्थ शक संवत का प्रयोग करने लगे। इस संवत का यह नाम क्यों पड़ा, इस विषय में विभिन्न एक मत हैं। इसे [[कुषाण]] राजा [[कनिष्क]] ने चलाया या किसी अन्य ने, इस विषय में अन्तिम रूप से कुछ नहीं कहा जा सका है। यह एक कटिन समस्या है जो भारतीय इतिहास और काल निर्णय की अत्यन्त कठिन समस्याओं में मानी जाती है।  
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*500 ई. के उपरान्त [[संस्कृत]] में लिखित सभी ज्योतिःशास्त्रीय ग्रन्थ शक संवत का प्रयोग करने लगे। इस संवत का यह नाम क्यों पड़ा, इस विषय में विभिन्न एक मत हैं। इसे [[कुषाण]] राजा [[कनिष्क]] ने चलाया या किसी अन्य ने, इस विषय में अन्तिम रूप से कुछ नहीं कहा जा सका है। यह एक कठिन समस्या है जो [[भारत का इतिहास|भारतीय इतिहास]] और काल निर्णय की अत्यन्त कठिन समस्याओं में मानी जाती है।  
*[[वराहमिहिर]] ने इसे शक-काल <ref>पंचसिद्धान्तिका एवं बृहत्संहिता 13|3</ref> तथा शक-भूपकाल <ref>बृहत्संहिता 8|20-21)</ref> कहा है।  
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*[[वराहमिहिर]] ने इसे शक-काल<ref>पंचसिद्धान्तिका एवं बृहत्संहिता 13|3</ref> तथा शक-भूपकाल<ref>बृहत्संहिता 8|20-21</ref> कहा है।  
*उत्पल (लगभग 966 ई0) ने बृहत्संहिता<ref>बृहत्संहिता 8|20</ref> की व्याख्या में कहा है - जब विक्रमादित्य द्वारा शक राजा मारा गया तो यह संवत चला। इसके वर्ष चान्द्र-सौर-गणना के लिए चैत्र से एवं सौर गणना के लिए मेष से आरम्भ होते थे। इसके वर्ष सामान्यतः बीते हुए हैं और सन 78 ई0 के 'वासन्तिक विषुव' से यह आरम्भ किया गया है। सबसे प्राचीन शिलालेख, जिसमें स्पष्ट रूप से शक संवत का उल्लेख है, 'चालुक्य वल्लभेश्वर' का है, जिसकी तिथि 465 शक संवत अर्थात 543 ई0  है। क्षत्रप राजाओं के शिलालेखों में वर्षों की संख्या व्यक्त है, किन्तु संवत का नाम नहीं है, किन्तु वे संख्याएँ शक काल की द्योतक हैं, ऐसा सामान्यतः लोगों का मत है। कुछ लोगों ने कुषाण राजा कनिष्क को शक संवत का प्रतिष्ठापक माना है। *पश्चात्कालीन, मध्यवर्ती एवं वर्तमान कालों में, ज्योतिर्विदाभरण में भी यही बात है, शक संवत का नाम 'शालिवाहन' है। किन्तु संवत के रूप में शालिवाहन रूप 13वीं या 14वीं शती के शिलालेखों में आया है। यह सम्भव है कि [[सातवाहन]] नाम <ref>हर्षचरित में गाथा सप्तशती के प्रणेता के रूप में वर्णित</ref> 'शालवाहन' बना और 'शालिवाहन' के रूप में आ गया। <ref>कैलेण्डर रिफॉर्म कमिटी रिपोर्ट (पृ0 244-256)।</ref>
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*[[उत्पल]] (लगभग 966 ई.) ने बृहत्संहिता<ref>बृहत्संहिता 8|20</ref> की व्याख्या में कहा है - जब [[विक्रमादित्य]] द्वारा [[शक]] राजा मारा गया तो यह संवत चला। इसके वर्ष चान्द्र-सौर-गणना के लिए [[चैत्र]] से एवं सौर गणना के लिए [[मेष राशि|मेष]] से आरम्भ होते थे। इसके वर्ष सामान्यतः बीते हुए हैं और सन् 78 ई. के 'वासन्तिक विषुव' से यह आरम्भ किया गया है। सबसे प्राचीन [[शिलालेख]], जिसमें स्पष्ट रूप से शक संवत का उल्लेख है, 'चालुक्य वल्लभेश्वर' का है, जिसकी तिथि 465 शक संवत अर्थात 543 ई. है। क्षत्रप राजाओं के शिलालेखों में वर्षों की संख्या व्यक्त है, किन्तु संवत का नाम नहीं है, किन्तु वे संख्याएँ शक काल की द्योतक हैं, ऐसा सामान्यतः लोगों का मत है। कुछ लोगों ने कुषाण राजा कनिष्क को शक संवत का प्रतिष्ठापक माना है।  
*[[कश्मीर]] में प्रयुक्त सप्तर्षि संवत एक अन्य संवत है, जो लौकिक संवत के नाम से भी प्रसिद्ध है। राजतरंगिणी <ref>राजतरंगिणी 1|52</ref> के अनुसार लौकिक वर्ष 24 गत शक संवत 1070 के बराबर है। इस संवत के उपयोग में सामान्यतः शताब्दियाँ नहीं दी हुई हैं। यह चान्द्र-सौर संवत है और चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को ई0 पू0 अप्रैल 3076 में आरम्भ हुआ।  
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*पश्चात्कालीन, मध्यवर्ती एवं वर्तमान कालों में, ज्योतिर्विदाभरण में भी यही बात है, शक संवत का नाम 'शालिवाहन' है। किन्तु संवत के रूप में शालिवाहन रूप 13वीं या 14वीं शती के शिलालेखों में आया है। यह सम्भव है कि [[सातवाहन]] नाम<ref>हर्षचरित में गाथा सप्तशती के प्रणेता के रूप में वर्णित</ref> 'शालवाहन' बना और 'शालिवाहन' के रूप में आ गया।<ref>कैलेण्डर रिफॉर्म कमिटी रिपोर्ट (पृ. 244-256)।</ref>
*बृहत्संहिता <ref>(बृहत्संहिता 13|3-4)</ref> ने एक परम्परा का उल्लेख किया है कि [[सप्तर्षि]] एक [[नक्षत्र]] में सौ वर्षों तक रहते हैं और जब [[युधिष्ठर]] राज्य कर रहे थे तो वे मेष राशि में थे। सम्भवतः यही सौ वर्षों वाले वृत्तों का उद्गम है।  
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*[[कश्मीर]] में प्रयुक्त सप्तर्षि संवत एक अन्य संवत है, जो लौकिक संवत के नाम से भी प्रसिद्ध है। राजतरंगिणी<ref>राजतरंगिणी 1|52</ref> के अनुसार लौकिक वर्ष 24 गत शक संवत 1070 के बराबर है। इस संवत के उपयोग में सामान्यतः शताब्दियाँ नहीं दी हुई हैं। यह चान्द्र-सौर संवत है और चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को ई. पू. [[अप्रैल]] 3076 में आरम्भ हुआ।  
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*बृहत्संहिता<ref>बृहत्संहिता 13|3-4</ref> ने एक परम्परा का उल्लेख किया है कि [[सप्तर्षि]] एक [[नक्षत्र]] में सौ वर्षों तक रहते हैं और जब [[युधिष्ठर]] राज्य कर रहे थे तो वे मेष राशि में थे। सम्भवतः यही सौ वर्षों वाले वृत्तों का उद्गम है।  
 
*बहुत-से अन्य संवत् भी थे, जैसे - वर्धमान, बुद्ध-निर्वाण, गुप्त, चेदि, हर्ष, लक्ष्मणसेन बंगाल में, कोल्लम या परशुराम मलावार में, जो किसी समय कम से कम लौकिक जीवन में बहुत प्रचलित थे।
 
*बहुत-से अन्य संवत् भी थे, जैसे - वर्धमान, बुद्ध-निर्वाण, गुप्त, चेदि, हर्ष, लक्ष्मणसेन बंगाल में, कोल्लम या परशुराम मलावार में, जो किसी समय कम से कम लौकिक जीवन में बहुत प्रचलित थे।
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राष्ट्रीय शाके अथवा शक संवत भारत का राष्ट्रीय कलैण्डर है। यह 78 वर्ष ईसा पूर्व प्रारम्भ हुआ था। चैत्र 1, 1879 शक संवत[1] को इसे अधिकारिक रूप से विधिवत अपनाया गया।

  • 500 ई. के उपरान्त संस्कृत में लिखित सभी ज्योतिःशास्त्रीय ग्रन्थ शक संवत का प्रयोग करने लगे। इस संवत का यह नाम क्यों पड़ा, इस विषय में विभिन्न एक मत हैं। इसे कुषाण राजा कनिष्क ने चलाया या किसी अन्य ने, इस विषय में अन्तिम रूप से कुछ नहीं कहा जा सका है। यह एक कठिन समस्या है जो भारतीय इतिहास और काल निर्णय की अत्यन्त कठिन समस्याओं में मानी जाती है।
  • वराहमिहिर ने इसे शक-काल[2] तथा शक-भूपकाल[3] कहा है।
  • उत्पल (लगभग 966 ई.) ने बृहत्संहिता[4] की व्याख्या में कहा है - जब विक्रमादित्य द्वारा शक राजा मारा गया तो यह संवत चला। इसके वर्ष चान्द्र-सौर-गणना के लिए चैत्र से एवं सौर गणना के लिए मेष से आरम्भ होते थे। इसके वर्ष सामान्यतः बीते हुए हैं और सन् 78 ई. के 'वासन्तिक विषुव' से यह आरम्भ किया गया है। सबसे प्राचीन शिलालेख, जिसमें स्पष्ट रूप से शक संवत का उल्लेख है, 'चालुक्य वल्लभेश्वर' का है, जिसकी तिथि 465 शक संवत अर्थात 543 ई. है। क्षत्रप राजाओं के शिलालेखों में वर्षों की संख्या व्यक्त है, किन्तु संवत का नाम नहीं है, किन्तु वे संख्याएँ शक काल की द्योतक हैं, ऐसा सामान्यतः लोगों का मत है। कुछ लोगों ने कुषाण राजा कनिष्क को शक संवत का प्रतिष्ठापक माना है।
  • पश्चात्कालीन, मध्यवर्ती एवं वर्तमान कालों में, ज्योतिर्विदाभरण में भी यही बात है, शक संवत का नाम 'शालिवाहन' है। किन्तु संवत के रूप में शालिवाहन रूप 13वीं या 14वीं शती के शिलालेखों में आया है। यह सम्भव है कि सातवाहन नाम[5] 'शालवाहन' बना और 'शालिवाहन' के रूप में आ गया।[6]
  • कश्मीर में प्रयुक्त सप्तर्षि संवत एक अन्य संवत है, जो लौकिक संवत के नाम से भी प्रसिद्ध है। राजतरंगिणी[7] के अनुसार लौकिक वर्ष 24 गत शक संवत 1070 के बराबर है। इस संवत के उपयोग में सामान्यतः शताब्दियाँ नहीं दी हुई हैं। यह चान्द्र-सौर संवत है और चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को ई. पू. अप्रैल 3076 में आरम्भ हुआ।
  • बृहत्संहिता[8] ने एक परम्परा का उल्लेख किया है कि सप्तर्षि एक नक्षत्र में सौ वर्षों तक रहते हैं और जब युधिष्ठर राज्य कर रहे थे तो वे मेष राशि में थे। सम्भवतः यही सौ वर्षों वाले वृत्तों का उद्गम है।
  • बहुत-से अन्य संवत् भी थे, जैसे - वर्धमान, बुद्ध-निर्वाण, गुप्त, चेदि, हर्ष, लक्ष्मणसेन बंगाल में, कोल्लम या परशुराम मलावार में, जो किसी समय कम से कम लौकिक जीवन में बहुत प्रचलित थे।
क्रम माह दिवस मास प्रारम्भ तिथि (ग्रेगोरी)
1 चैत्र 30/31 22 मार्च[9]
2 वैशाख 31 21 अप्रॅल
3 ज्येष्ठ 31 22 मई
4 आषाढ़ 31 22 जून
5 श्रावण 31 23 जुलाई
6 भाद्रपद 31 23 अगस्त
7 आश्विन 30 23 सितंबर
8 कार्तिक 30 23 अक्टूबर
9 मार्गशीर्ष 30 22 नवम्बर
10 पौष 30 22 दिसम्बर
11 माघ 30 23 जनवरी
12 फाल्गुन 30 20 फ़रवरी


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 22 मार्च 1957
  2. पंचसिद्धान्तिका एवं बृहत्संहिता 13|3
  3. बृहत्संहिता 8|20-21
  4. बृहत्संहिता 8|20
  5. हर्षचरित में गाथा सप्तशती के प्रणेता के रूप में वर्णित
  6. कैलेण्डर रिफॉर्म कमिटी रिपोर्ट (पृ. 244-256)।
  7. राजतरंगिणी 1|52
  8. बृहत्संहिता 13|3-4
  9. लीप वर्ष में चैत्र माह में से यह 21 मार्च से प्रारम्भ होता है।

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