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'''लक्ष्मण मंदिर''' [[मध्य प्रदेश]] के छतरपुर ज़िले में प्रसिद्ध पर्यटन स्थल [[खजुराहो]] में स्थित है। खजुराहो, भारतीय आर्य स्थापत्य और [[वास्तुकला]] की एक नायाब मिसाल है। खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है, जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं। [[चंदेल वंश|चंदेल]] शासकों ने इन मंदिरों की तामीर सन 900 से 1130 ईसवी के बीच करवाई थी। लक्ष्मण मंदिर [[विष्णु|भगवान विष्णु]] के सम्मान में बनाया गया था। पत्थर से बनी यह एक शानदार संरचना है। पश्चिमी समूह से संबंधित यह सबसे प्राचीन मंदिर है।
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09:34, 8 जून 2016 का अवतरण

लक्ष्मण मंदिर, खजुराहो
लक्ष्मण मंदिर, खजुराहो
विवरण 'लक्ष्मण मंदिर' भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है। यह मंदिर मध्य प्रदेश में स्थित है और भगवान विष्णु को समर्पित है।
राज्य मध्य प्रदेश
ज़िला छतरपुर
निर्माता यशोवर्मन (चंदेल वंश)
निर्माण काल 930-950 ई.
प्रसिद्धि ऐतिहासिक तथा पर्यटन स्थल
संबंधित लेख खजुराहो, कंदारिया महादेव मन्दिर, पार्श्वनाथ मंदिर


अन्य जानकारी मंदिर के बाहरी हिस्से की दीवारों तथा चबूतरे पर युद्ध, शिकार, हाथी, घोड़ों, सैनिक, अप्सराऑं और मिथुनाकृतियों के दृश्य अंकित हैं। सरदल के मध्य में लक्ष्मी हैं, जिसके दोनों ओर ब्रह्मा एवं विष्णु हैं।

लक्ष्मण मंदिर (अंग्रेज़ी: Lakshmana Temple) मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले में प्रसिद्ध पर्यटन स्थल खजुराहो में स्थित है। खजुराहो, भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है। खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है, जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं। चंदेल शासकों ने इन मंदिरों की तामीर सन 900 से 1130 ईसवी के बीच करवाई थी। लक्ष्मण मंदिर भगवान विष्णु के सम्मान में बनाया गया था। पत्थर से बनी यह एक शानदार संरचना है। पश्चिमी समूह से संबंधित यह सबसे प्राचीन मंदिर है।

निर्माण

लक्ष्मण मंदिर से ही प्राप्त एक अभिलेख से पता चलता है कि चन्देल वंश की सातवीं पीढ़ी में हुए यशोवर्मन ने अपनी मृत्यु से पहले खजुराहो में बैकुंठ विष्णु का एक भव्य मंदिर बनवाया था। इससे यह पता चलता है कि यह मंदिर 930-950 के मध्य बना होगा, क्योंकि राजा यशोवर्मन ने 954 में मृत्यु पायी थी। इसके शिल्प और वास्तु की विलक्षणताओं से भी यही तिथि उपयुक्त प्रतीत होती है। यह अलग बात है कि यह मंदिर विष्णु के बैकुंठ रूप को समर्पित है, लेकिन नामांकरण मंदिर निर्माता यशोवर्मन के उपनाम 'लक्षवर्मा' के आधार पर हुआ है।

स्थापत्य तथा वास्तुकला

इस मंदिर की लम्बाई 29 मीटर तथा चौड़ाई 13 मीटर है। स्थापत्य तथा वास्तुकला के आधार पर, बलुआ पत्थरों से बने मंदिरों में यह मंदिर सर्वोत्तम है। ऊंची जगत पर स्थित इस मंदिर के गर्भगृह में 1.3 मीटर ऊंची विष्णु की मूर्ति अलंकृत तोरण के बीच स्थित है। पूरा मंदिर एक ऊंची जगत पर स्थित होने के कारण मंदिर में विकसित इसके सभी भाग देखे जा सकते हैं, जिनके अर्धमंडप, मंडप, महामंडप, अंतराल तथा गर्भगृह में, मंदिर की बाहरी दीवारों पर प्रतिमाओं की दो पंक्तियां जिनमें देवी-देवतागण, युग्म और मिथुन वगैरह हैं। मंदिर के बाहरी हिस्से की दीवारों तथा चबूतरे पर युद्ध, शिकार, हाथी, घोड़ों, सैनिक, अप्सराऑं और मिथुनाकृतियों के दृश्य अंकित हैं। सरदल के मध्य में लक्ष्मी हैं, जिसके दोनों ओर ब्रह्मा एवं विष्णु हैं।

लक्ष्मण मंदिर बलुआ पत्थर से निर्मित, भव्य: मनोहारी और पूर्ण विकसित खजुराहो शैली के मंदिरों में प्राचीनतम है। 98' लंबे और 45' चौड़े मंदिर के अधिष्ठान की जगती के चारों कोनों पर चार खूंटरा मंदिर बने हुए हैं। इसके ठीक सामने विष्णु के वाहन गरुड़ के लिए एक मंदिर था। गरुड़ की प्रतिमा अब लुप्त हो गयी है। वर्तमान में इस छोटे से मंदिर को 'देवी मंदिर' के नाम से जाना जाता है।

विशेषताएँ

शिल्प और वास्तु की दृष्टि से लक्ष्मण मंदिर खजुराहो के परिष्कृत मंदिरों में सर्वोत्कृष्ट है। इसके अर्द्धमंडप, मंडप और महामंडप की छतें स्तुपाकार हैं, जिसमें शिखरों का अभाव है। इस मंदिर-छतों की विशेषताएँ सबसे अलग हैं। कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. इसके मंडप और महामंडप की छतों के पीढ़े खपरों की छाजन के समान है,
  2. महामंडप की छत के पीढ़ो के सिरों का अलंकरण अंजलिबद्ध नागों की लघु आकृतियों से किया गया है।
  3. मंडप की छत पर लटकी हुई पत्रावली के साथ कलश का किरिट है।
  4. इस मंदिर के मंडप और महामंडप की छतें स्तूपाकार है।
  5. मंदिर के महामंडप में स्तंभों के ऊपर अलंवन बाहुओं के रुप में अप्सराएँ शिल्प कला की अनुपम कृतियाँ हैं।

गुप्त शैली का प्रभाव

इस मंदिर की मूर्तियों की तरंगायित शोभा गुप्त शैली से प्रभावित है। मंदिर के कुछ स्तंभों पर बेलबूटों का उत्कृष्ट अलंकन है। मंदिर के मकर तोरण में योद्धाओं को बड़ी कुशलता से अंकित किया गया है। खजुराहो के मंदिरों से अलग, इस देव प्रासाद की कुछ दिग्पाल प्रतिमाएँ द्विभुजी हैं और गर्भगृह के द्वार उत्तीर्ण कमलपात्रों से अलंकृत किया गया है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार के सिरदल एक दूसरे के ऊपर दो स्थूल सज्जापट्टियाँ हैं। निचली सज्जापट्टी के केन्द्र में लक्ष्मी की प्रतिमा है। इसके दोनों सिरों के एक ओर ब्राह्मण तथा दूसरी ओर शिव की प्रतिमा अंकित की गयी है। इसमें राहू की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ स्थापित हैं। द्वार शाखाओं पर विष्णु के विभिन्न अवतारों का अंकन हुआ है। गर्भगृह में विष्णु की त्रिमुख मूर्ति प्रतिष्ठित है।

मंदिर के जंघा में अन्य मंदिरों की तरह एक-दूसरे के समानांतर मूर्तियों दो बंध है। इनमें देवी-देवताओं, शार्दूल और सुर-सुंदरियों की चित्ताकर्षक तथा लुभावनी मूर्तियाँ हैं। मंदिर की जगती पर मनोरंजक और गतिशील दृश्य अंकित किया है। इन दृश्यों में आखेट, युद्ध के दृश्य, हाथी, घोड़ा और पैदल सैनिकों के जुलूस, अनेक परिवारिक दृश्यों का अंकन मिलता है। मंदिर में 600 से अधिक हिन्दू देवताओं की मूर्तियाँ हैं। इस मंदिर के मंच पर हाथी और घोड़ों जैसी कई चीज़ों के सुंदर चित्र हैं। मंदिर के चारों कोनों पर चार छोटे मंदिर बने हैं। प्रत्येक मंदिर के बार्डर पर नक्काशी की गई है। श्रमिकों की कुशल और सुंदर शिल्पकला मंदिर में रखी हुई अनेक मूर्तियों में साफ दिखाई देती है। इस मंदिर में विभिन्न मुद्राओं और गहनों से सजी हुई महिलाओं की मूर्तियाँ हैं। महिलाओं की ऐसी सजावटी मूर्तियाँ मंदिर के पश्चिमी भाग में स्थित हैं।


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