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*लिपि का शाब्दिक अर्थ होता है -लिखित या चित्रित करना।  
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लिपि का शाब्दिक अर्थ होता है -लिखित या चित्रित करना। ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वही लिपि कहलाती है। [[हिन्दी]] की लिपि [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] है। हिन्दी के अलावा -[[संस्कृत]] ,[[मराठी भाषा|मराठी]], [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]], [[नेपाली भाषा|नेपाली]] आदि भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती है।  
*ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वही लिपि कहलाती है।  
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==इतिहास==
*प्रत्येक [[भाषा]] की अपनी -अलग लिपि होती है।
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सभ्य मानव का सबसे बड़ा आविष्कार है लेखन-कला। आज हम अपने चहुंओर इतनी अधिक लिखित सामग्री देखते हैं कि यह सोचना भूल ही जाते हैं कि पहले-पहल आदमी ने लिखना कैसे आरंभ किया होगा और लेखन का विकास कैसे हुआ होगा। मानव के विकास में, अर्थात मानव-सभ्यता के विकास में, वाणी के बाद लेखन का ही सबसे अधिक महत्व है। अन्य पशुओं से आदमी को इसीलिए श्रेष्ठ माना जाता है कि वह वाणी द्वारा अपने मनोभावों को व्यक्त कर सकता है। किंतु मानव का बहुमुखी विकास इस वाणी को लिपिबद्ध करने की कला के कारण ही हुआ। मुंह से बोले गए शब्द या हाव-भावों से व्यक्त किए गए विचार चिरस्थायी नहीं रहते। दो या अधिक व्यक्तियों के बीच में हुई बातचीत केवल उन्हीं व्यक्तियों तक सीमित रहती है। [[भाषा]] का आधार ध्वनि है। भाषा श्रव्य या कर्णगोचर होती है। अभी उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों तक बोली गई भाषा को स्थायी रूप देने के लिए उसे लिपिबद्ध करने के अलावा कोई दूसरा तरीका नहीं था।<ref name="ak">{{cite book |last=मुळे |first=गुणाकर |authorlink= |coauthors= |title=अक्षर कथा |year= |publisher=सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार |location=नई दिल्ली |id= }}</ref>
*[[हिन्दी]] की लिपि [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] है।  
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====लिपि का आविष्कार====
*हिन्दी के अलावा -[[संस्कृत]] ,[[मराठी भाषा|मराठी]], [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]], [[नेपाली भाषा|नेपाली]] आदि भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती है। <ref>{{cite web |url=http://www.hindikunj.com/2009/06/blog-post_23.html |title=भाषा,लिपि और व्याकरण |accessmonthday=8 |accessyear=जुलाई |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=हिन्दीकुंज |language= हिन्दी}}</ref>
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प्राचीन काल के मानव को अपने विचारों को सुरक्षित रखने के लिए लिपि का आविष्कार करना पड़ा था। इसलिए हम कह सकते हैं कि '''लिपि ऐसे प्रतीक-चिह्नों का संयोजन है जिनके द्वारा श्रव्य भाषा को दृष्टिगोचर बनाया जाता है।''' सुनी या कही हुई बात केवल उसी समय और उसी स्थान पर उपयोगी होती है। किंतु लिपिबद्ध कथन या विचार दिक् और काल की सीमाओं को लांघ सकते हैं। लिपि के बारे में यही सबसे महत्वपूर्ण बात है। '''संसार की बहुत-सी लुप्तप्राय सभ्यताओं के बारे में आज हम इसीलिए बहुत कुछ जानते हैं कि वे अपने बारे में बहुत-कुछ लिखा हुआ छोड़ गई हैं।'''
==प्रमुख लिपियाँ==
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आज संसार में लगभग 400 विभिन्न लिपियों का प्रयोग होता है। इनमें से बहुतों का आरंभ एवं विकास प्राचीन काल की कुछ प्रमुख लिपियों से हुआ है। जैसे, [[एशिया]] के पश्चिमी तट पर ई. पू. दूसरी सहस्त्राब्दी में सेमेटिक (सामी) भाषा-परिवार के लिए एक अक्षर मालात्मक लिपि अस्तित्व में आई। 1000 ई. पू. के आसपास इस लिपि ने व्यंजनात्मक या वर्णमालात्मक रूप धारण किया। उस समय की इस लिपि को 'उत्तरी सेमेटिक', कनानी' या 'फिनीशियन' जैसे नाम दिए गए हैं। यूनानी लिपि स्पष्टत: फिनीशियन लिपि के आधार पर ही बनी थी। और, आज [[यूरोप]], [[अमरीका]] और संसार के कई अन्य देशों में जिन लिपियों का चलन है वे सब इस यूनानी लिपि और इससे निर्मित लैटिन या रोमन लिपि से ही विकसित हुई हैं। दूसरी ओर यूनानी पूर्व की ओर इस उत्तरी सेमेटिक लिपि ने आरमेई, [[खरोष्ठी]], पहलवी और अरबी जैसी लिपियों को जन्म दिया। <ref name="ak"/>
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====भारत में लिपि का इतिहास====
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[[भारत]] में लगभग छठी शताब्दी ई.पू. में अस्तित्व में आई [[ब्राह्मी लिपि]] ने भी बहुत-सी लिपियों को जन्म दिया है। भारत की सारी वर्तमान लिपियां (अरबी-फारसी लिपि को छोड़कर) ब्राह्मी से ही विकसित हुई हैं। इतना ही नहीं तिब्बती, सिंहली तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों की बहुत-सी लिपियां ब्राह्मी से ही जन्मी हैं। तात्पर्य यही कि [[धर्म]] की तरह लिपियां भी देशों और जातियों की सीमाओं को लांघती चली गई। भाषाओं की सीमाएं लांघना तो लिपियों के लिए बहुत ही सरल काम रहा है। जो लिपि आरंभ में एक सेमेटिक भाषा के लिए अस्तित्व में आई थी, उसे बाद में भारोपीय परिवार की अनेक भाषाओं के लिए अपना लिया गया।
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प्राचीन काल से ही लेखन-कला को पवित्र माना जाता रहा है। प्राय: सभी प्राचीन सभ्यताओं ने अपनी लिपियों के आविष्कर्त्ता के रूप में किसी न किसी देवता की कल्पना की है। हमारे देश में यह मान्यता थी कि लिपि के निर्माता [[ब्रह्मा]] हैं, और शायद इसीलिए हमारे देश की प्राचीन लिपि का नाम ब्राह्मी पड़ा। प्राचीन [[मिस्र]] के थोत को लेखन का [[देवता]] माना जाता था। बेबीलोन में लेखन का देवता नेबो था। प्राचीन [[यहूदी]] परंपरा के अनुसार लिपि के जनक पैगंबर [[मूसा]] थे। [[इस्लाम]] की मान्यता है कि अल्लाह ने ही [[अक्षर]] बनाए और [[आदम]] को सौंपे। कुछ यूनानी अनुश्रुतियों में हेर्मेस को यूनानी लिपि का जनक बताया गया है। परंतु ई.पू. छठी शताब्दी का प्रसिद्ध इतिहासकार हिरोदोतस स्पष्ट शब्दों में लिखता है कि यूनानी लिपि का निर्माण फिनीशियन लिपि के आधार पर हुआ।
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आज हम जानते हैं कि लिपियां मानव की ही कृतियां है; उन्हें ईश्वर या देवता ने नहीं बनाया। प्राचीन काल में किसी पुरातन और कुछ जटिल वस्तु को रहस्यमय बनाए रखने के लिए उस पर ईश्वर या किसी देवता की मुहर लगा दी जाती थी; किंतु आज हम जानते हैं कि लेखन-कला किसी 'ऊपर वाले' की देन नहीं है, बल्कि वह मानव की ही बौद्धिक कृति है। <ref name="ak"/>
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==भारत की प्रमुख लिपियाँ==
 
# [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]]
 
# [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]]
 
# [[ब्राह्मी लिपि|ब्राह्मी]]  
 
# [[ब्राह्मी लिपि|ब्राह्मी]]  

13:37, 13 सितम्बर 2011 का अवतरण

लिपि का शाब्दिक अर्थ होता है -लिखित या चित्रित करना। ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वही लिपि कहलाती है। हिन्दी की लिपि देवनागरी है। हिन्दी के अलावा -संस्कृत ,मराठी, कोंकणी, नेपाली आदि भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती है।

इतिहास

सभ्य मानव का सबसे बड़ा आविष्कार है लेखन-कला। आज हम अपने चहुंओर इतनी अधिक लिखित सामग्री देखते हैं कि यह सोचना भूल ही जाते हैं कि पहले-पहल आदमी ने लिखना कैसे आरंभ किया होगा और लेखन का विकास कैसे हुआ होगा। मानव के विकास में, अर्थात मानव-सभ्यता के विकास में, वाणी के बाद लेखन का ही सबसे अधिक महत्व है। अन्य पशुओं से आदमी को इसीलिए श्रेष्ठ माना जाता है कि वह वाणी द्वारा अपने मनोभावों को व्यक्त कर सकता है। किंतु मानव का बहुमुखी विकास इस वाणी को लिपिबद्ध करने की कला के कारण ही हुआ। मुंह से बोले गए शब्द या हाव-भावों से व्यक्त किए गए विचार चिरस्थायी नहीं रहते। दो या अधिक व्यक्तियों के बीच में हुई बातचीत केवल उन्हीं व्यक्तियों तक सीमित रहती है। भाषा का आधार ध्वनि है। भाषा श्रव्य या कर्णगोचर होती है। अभी उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों तक बोली गई भाषा को स्थायी रूप देने के लिए उसे लिपिबद्ध करने के अलावा कोई दूसरा तरीका नहीं था।[1]

लिपि का आविष्कार

प्राचीन काल के मानव को अपने विचारों को सुरक्षित रखने के लिए लिपि का आविष्कार करना पड़ा था। इसलिए हम कह सकते हैं कि लिपि ऐसे प्रतीक-चिह्नों का संयोजन है जिनके द्वारा श्रव्य भाषा को दृष्टिगोचर बनाया जाता है। सुनी या कही हुई बात केवल उसी समय और उसी स्थान पर उपयोगी होती है। किंतु लिपिबद्ध कथन या विचार दिक् और काल की सीमाओं को लांघ सकते हैं। लिपि के बारे में यही सबसे महत्वपूर्ण बात है। संसार की बहुत-सी लुप्तप्राय सभ्यताओं के बारे में आज हम इसीलिए बहुत कुछ जानते हैं कि वे अपने बारे में बहुत-कुछ लिखा हुआ छोड़ गई हैं।

आज संसार में लगभग 400 विभिन्न लिपियों का प्रयोग होता है। इनमें से बहुतों का आरंभ एवं विकास प्राचीन काल की कुछ प्रमुख लिपियों से हुआ है। जैसे, एशिया के पश्चिमी तट पर ई. पू. दूसरी सहस्त्राब्दी में सेमेटिक (सामी) भाषा-परिवार के लिए एक अक्षर मालात्मक लिपि अस्तित्व में आई। 1000 ई. पू. के आसपास इस लिपि ने व्यंजनात्मक या वर्णमालात्मक रूप धारण किया। उस समय की इस लिपि को 'उत्तरी सेमेटिक', कनानी' या 'फिनीशियन' जैसे नाम दिए गए हैं। यूनानी लिपि स्पष्टत: फिनीशियन लिपि के आधार पर ही बनी थी। और, आज यूरोप, अमरीका और संसार के कई अन्य देशों में जिन लिपियों का चलन है वे सब इस यूनानी लिपि और इससे निर्मित लैटिन या रोमन लिपि से ही विकसित हुई हैं। दूसरी ओर यूनानी पूर्व की ओर इस उत्तरी सेमेटिक लिपि ने आरमेई, खरोष्ठी, पहलवी और अरबी जैसी लिपियों को जन्म दिया। [1]

भारत में लिपि का इतिहास

भारत में लगभग छठी शताब्दी ई.पू. में अस्तित्व में आई ब्राह्मी लिपि ने भी बहुत-सी लिपियों को जन्म दिया है। भारत की सारी वर्तमान लिपियां (अरबी-फारसी लिपि को छोड़कर) ब्राह्मी से ही विकसित हुई हैं। इतना ही नहीं तिब्बती, सिंहली तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों की बहुत-सी लिपियां ब्राह्मी से ही जन्मी हैं। तात्पर्य यही कि धर्म की तरह लिपियां भी देशों और जातियों की सीमाओं को लांघती चली गई। भाषाओं की सीमाएं लांघना तो लिपियों के लिए बहुत ही सरल काम रहा है। जो लिपि आरंभ में एक सेमेटिक भाषा के लिए अस्तित्व में आई थी, उसे बाद में भारोपीय परिवार की अनेक भाषाओं के लिए अपना लिया गया। प्राचीन काल से ही लेखन-कला को पवित्र माना जाता रहा है। प्राय: सभी प्राचीन सभ्यताओं ने अपनी लिपियों के आविष्कर्त्ता के रूप में किसी न किसी देवता की कल्पना की है। हमारे देश में यह मान्यता थी कि लिपि के निर्माता ब्रह्मा हैं, और शायद इसीलिए हमारे देश की प्राचीन लिपि का नाम ब्राह्मी पड़ा। प्राचीन मिस्र के थोत को लेखन का देवता माना जाता था। बेबीलोन में लेखन का देवता नेबो था। प्राचीन यहूदी परंपरा के अनुसार लिपि के जनक पैगंबर मूसा थे। इस्लाम की मान्यता है कि अल्लाह ने ही अक्षर बनाए और आदम को सौंपे। कुछ यूनानी अनुश्रुतियों में हेर्मेस को यूनानी लिपि का जनक बताया गया है। परंतु ई.पू. छठी शताब्दी का प्रसिद्ध इतिहासकार हिरोदोतस स्पष्ट शब्दों में लिखता है कि यूनानी लिपि का निर्माण फिनीशियन लिपि के आधार पर हुआ।

आज हम जानते हैं कि लिपियां मानव की ही कृतियां है; उन्हें ईश्वर या देवता ने नहीं बनाया। प्राचीन काल में किसी पुरातन और कुछ जटिल वस्तु को रहस्यमय बनाए रखने के लिए उस पर ईश्वर या किसी देवता की मुहर लगा दी जाती थी; किंतु आज हम जानते हैं कि लेखन-कला किसी 'ऊपर वाले' की देन नहीं है, बल्कि वह मानव की ही बौद्धिक कृति है। [1]

भारत की प्रमुख लिपियाँ

  1. देवनागरी
  2. ब्राह्मी
  3. खरोष्ठी
  4. शारदा लिपि
  5. कलिंग लिपि
  6. बांग्ला लिपि
  7. तेलुगु एवं कन्नड़ लिपि
  8. ग्रन्थ लिपि
  9. तमिल लिपि
  10. वट्टेळुत्तु लिपि
  11. सिन्धु सभ्यता लिपि
  12. गुरुमुखी लिपि
  13. हड़प्पा लिपि
  14. ब्राह्मी लिपि अशोक-काल


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 मुळे, गुणाकर अक्षर कथा। नई दिल्ली: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख