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'''इर्विन''' का पूरा नाम लार्ड एडवर्ड फ़्रेडरिक लिन्डले वुड इर्विन था। ये द्वितीय बाइकाउण्ट हैलिफ़ैक्स का पुत्र था, जिसका जन्म [[1881]] हुआ। उसने ईटन में शिक्षा प्राप्त की और [[1910]] से [[1925]] ई. तक ब्रिटिश पार्लियामेंट का सदस्य रहा। इस दौरान ब्रिटिश मंत्रिमंडल के विविध पदों पर भी वह रहा।
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'''इरविन''' का पूरा नाम लार्ड एडवर्ड फ़्रेडरिक लिन्डले वुड इरविन था। ये द्वितीय बाइकाउण्ट हैलिफ़ैक्स का पुत्र था, जिसका जन्म [[1881]] हुआ। उसने ईटन में शिक्षा प्राप्त की और [[1910]] से [[1925]] ई. तक ब्रिटिश पार्लियामेंट का सदस्य रहा। इस दौरान ब्रिटिश मंत्रिमंडल के विविध पदों पर भी वह रहा।
 
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'''1926 ई.''' से [[1931]] ई. तक वह [[भारत]] का [[वायसराय]] तथा [[गवर्नर-जनरल]] रहा। भारत के वायसराय के रूप में उसका कार्यकाल अत्यन्त तूफ़ानी कहा गया। [[1920]] ई. में आरम्भ किया गया [[असहयोग आन्दोलन]] उस समय भी जारी था। [[1919]] ई. के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट की कार्यविधि का मूल्यांकन करने के लिए जो [[साइमन कमीशन]] नियुक्त किया गया था, उसके सभी सदस्य [[अंग्रेज़]] थे। उसमें कोई भी भारतीय सदस्य न नियुक्त किये जाने से सारे देश में गहरी राजनीतिक अशान्ति फैल गई। लार्ड इर्विन ने भारतीय जनमत को शान्त करने के उद्देश्य से 31 अक्टूबर को ब्रिटिश सरकार से परामर्श करके घोषणा की कि औपनिवेशक स्वराज्य की स्थापना भारत की संवैधानिक प्रगति का स्वाभाविक लक्ष्य है और साइमन कमीशन की रिपोर्ट मिलने के बाद पार्लियामेंट में नया भारतीय संवैधानिक बिल पेश किये जाने से पूर्व लंदन में सभी भारतीय राजनीतिक पार्टियों का एक [[गोलमेज सम्मेलन]] बुलाया जाएगा।
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'''1926 ई.''' से [[1931]] ई. तक वह [[भारत]] का [[वायसराय]] तथा [[गवर्नर-जनरल]] रहा। भारत के वायसराय के रूप में उसका कार्यकाल अत्यन्त तूफ़ानी कहा गया। [[1920]] ई. में आरम्भ किया गया [[असहयोग आन्दोलन]] उस समय भी जारी था। [[1919]] ई. के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट की कार्यविधि का मूल्यांकन करने के लिए जो [[साइमन कमीशन]] नियुक्त किया गया था, उसके सभी सदस्य [[अंग्रेज़]] थे। उसमें कोई भी भारतीय सदस्य न नियुक्त किये जाने से सारे देश में गहरी राजनीतिक अशान्ति फैल गई। लार्ड इरविन ने भारतीय जनमत को शान्त करने के उद्देश्य से 31 अक्टूबर को ब्रिटिश सरकार से परामर्श करके घोषणा की कि औपनिवेशक स्वराज्य की स्थापना भारत की संवैधानिक प्रगति का स्वाभाविक लक्ष्य है और साइमन कमीशन की रिपोर्ट मिलने के बाद पार्लियामेंट में नया भारतीय संवैधानिक बिल पेश किये जाने से पूर्व लंदन में सभी भारतीय राजनीतिक पार्टियों का एक [[गोलमेज सम्मेलन]] बुलाया जाएगा।
 
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'''गोलमेज सम्मेलन''' के तुरन्तु बाद ही ब्रिटिश अधिकारियों ने औपनिवेशक स्वराज्य की व्याख्या करते हुए स्पष्ट कर दिया कि उसका आशय कनाडा जैसे औपनिवेशक स्वराज्य प्राप्त देश का दर्जा प्रदान करना नहीं है, बल्कि भारत को एक अधीनस्थ देश बनाए रखकर दसे स्वायत्तशासी सरकार प्रदान करना है। इस स्पष्टीकरण के फलस्वरूप लार्ड इर्विन की घोषणा [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] को संतोष नहीं प्रदान कर सकी और [[1929]] ई. में [[लाहौर]] अधिवेशन में घोषणा कर दि गई कि [[कांग्रेस]] का ध्येय पूर्ण स्वाधीनता है।
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'''गोलमेज सम्मेलन''' के तुरन्तु बाद ही ब्रिटिश अधिकारियों ने औपनिवेशक स्वराज्य की व्याख्या करते हुए स्पष्ट कर दिया कि उसका आशय कनाडा जैसे औपनिवेशक स्वराज्य प्राप्त देश का दर्जा प्रदान करना नहीं है, बल्कि भारत को एक अधीनस्थ देश बनाए रखकर दसे स्वायत्तशासी सरकार प्रदान करना है। इस स्पष्टीकरण के फलस्वरूप लार्ड इरविन की घोषणा [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] को संतोष नहीं प्रदान कर सकी और [[1929]] ई. में [[लाहौर]] अधिवेशन में घोषणा कर दि गई कि [[कांग्रेस]] का ध्येय पूर्ण स्वाधीनता है।
 
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'''कांग्रेस ने''' [[1930]] में [[महात्मा गांधी]] के नेतृत्व में [[सत्याग्रह आन्दोलन]] शुरू किया। गांधीजी ने अपने कुछ अनुयायियों के साथ दांडी यात्रा की ओर कूच किया और जानबूझकर सरकार का नमक क़ानून तोड़ा। यह 'नमक सत्याग्रह आन्दोलन' शीघ्र ही सारे देश में फैल गया, जिससे भारी हलचल मच गई। लार्ड इर्विन ने युक्तिपूर्वक स्थिति को सम्भालने का प्रयास किया। एक ओर तो उसने क़ानून और व्यवस्था को बनाये रखने के लिए राज्य की सारी शक्ति लगा दी तथा कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। दूसरी ओर वह महात्मा गांधी से समझौता वार्ता चलाता रहा। वह गांधीजी से कई बार मिला और अंत में गांधी इर्विन समझौता हो गया।
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'''कांग्रेस ने''' [[1930]] में [[महात्मा गांधी]] के नेतृत्व में [[सत्याग्रह आन्दोलन]] शुरू किया। गांधीजी ने अपने कुछ अनुयायियों के साथ दांडी यात्रा की ओर कूच किया और जानबूझकर सरकार का नमक क़ानून तोड़ा। यह 'नमक सत्याग्रह आन्दोलन' शीघ्र ही सारे देश में फैल गया, जिससे भारी हलचल मच गई। लार्ड इरविन ने युक्तिपूर्वक स्थिति को सम्भालने का प्रयास किया। एक ओर तो उसने क़ानून और व्यवस्था को बनाये रखने के लिए राज्य की सारी शक्ति लगा दी तथा कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। दूसरी ओर वह महात्मा गांधी से समझौता वार्ता चलाता रहा। वह गांधीजी से कई बार मिला और अंत में गांधी इरविन समझौता हो गया।
 
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'''इस समझौते के अनुसार''' कांग्रेस ने सत्याग्रह आन्दोलन स्थगित कर दिया और वह गोलमेज सम्मेलन के दूसरे अधिवेशन में गांधीजी को अपना एकमात्र प्रतिनिधि बनाकर भेजने को तैयार हो गई। कांग्रेस ने इस सम्मेलन के पहले अधिवेशन का बहिष्कार किया था। उधर सरकार ने भी सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया। सिर्फ़ उन बंदियों को नहीं छोड़ा गया, जिन पर हिंसात्मक उपद्रवों में भाग लेने के आरोप थे।
 
'''इस समझौते के अनुसार''' कांग्रेस ने सत्याग्रह आन्दोलन स्थगित कर दिया और वह गोलमेज सम्मेलन के दूसरे अधिवेशन में गांधीजी को अपना एकमात्र प्रतिनिधि बनाकर भेजने को तैयार हो गई। कांग्रेस ने इस सम्मेलन के पहले अधिवेशन का बहिष्कार किया था। उधर सरकार ने भी सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया। सिर्फ़ उन बंदियों को नहीं छोड़ा गया, जिन पर हिंसात्मक उपद्रवों में भाग लेने के आरोप थे।
 
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'''गांधी-इर्विन समझौते के''' एक महीने के बाद लार्ड इर्विन ने [[भारत]] के वायसराय के पद से अवकाश ग्रहण कर लिया और अपने उत्तराधिकारी [[लार्ड विलिंगडन]] पर यह भार छोड़ दिया कि वह चाहे तो उसकी नीति को आगे बढ़ाए और न चाहे तो समाप्त कर दे। भारत से अवकाश ग्रहण करके लार्ड इर्विन [[1940]] से [[1946]] ई. तक अमेरिका में ब्रिटिश राजदूत रहा। 1944 ई. में उसे '''अर्ल ऑफ़ हैलिफ़ैक्स''' की पदवी प्रदान की गई।
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'''गांधी-इरविन समझौते के''' एक महीने के बाद लार्ड इरविन ने [[भारत]] के वायसराय के पद से अवकाश ग्रहण कर लिया और अपने उत्तराधिकारी [[लार्ड विलिंगडन]] पर यह भार छोड़ दिया कि वह चाहे तो उसकी नीति को आगे बढ़ाए और न चाहे तो समाप्त कर दे। भारत से अवकाश ग्रहण करके लार्ड इरविन [[1940]] से [[1946]] ई. तक अमेरिका में ब्रिटिश राजदूत रहा। 1944 ई. में उसे '''अर्ल ऑफ़ हैलिफ़ैक्स''' की पदवी प्रदान की गई।
  
 
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10:48, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण

इरविन का पूरा नाम लार्ड एडवर्ड फ़्रेडरिक लिन्डले वुड इरविन था। ये द्वितीय बाइकाउण्ट हैलिफ़ैक्स का पुत्र था, जिसका जन्म 1881 हुआ। उसने ईटन में शिक्षा प्राप्त की और 1910 से 1925 ई. तक ब्रिटिश पार्लियामेंट का सदस्य रहा। इस दौरान ब्रिटिश मंत्रिमंडल के विविध पदों पर भी वह रहा।

भारत का वायसराय

1926 ई. से 1931 ई. तक वह भारत का वायसराय तथा गवर्नर-जनरल रहा। भारत के वायसराय के रूप में उसका कार्यकाल अत्यन्त तूफ़ानी कहा गया। 1920 ई. में आरम्भ किया गया असहयोग आन्दोलन उस समय भी जारी था। 1919 ई. के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट की कार्यविधि का मूल्यांकन करने के लिए जो साइमन कमीशन नियुक्त किया गया था, उसके सभी सदस्य अंग्रेज़ थे। उसमें कोई भी भारतीय सदस्य न नियुक्त किये जाने से सारे देश में गहरी राजनीतिक अशान्ति फैल गई। लार्ड इरविन ने भारतीय जनमत को शान्त करने के उद्देश्य से 31 अक्टूबर को ब्रिटिश सरकार से परामर्श करके घोषणा की कि औपनिवेशक स्वराज्य की स्थापना भारत की संवैधानिक प्रगति का स्वाभाविक लक्ष्य है और साइमन कमीशन की रिपोर्ट मिलने के बाद पार्लियामेंट में नया भारतीय संवैधानिक बिल पेश किये जाने से पूर्व लंदन में सभी भारतीय राजनीतिक पार्टियों का एक गोलमेज सम्मेलन बुलाया जाएगा।

कांग्रेस की अधिवेशन

गोलमेज सम्मेलन के तुरन्तु बाद ही ब्रिटिश अधिकारियों ने औपनिवेशक स्वराज्य की व्याख्या करते हुए स्पष्ट कर दिया कि उसका आशय कनाडा जैसे औपनिवेशक स्वराज्य प्राप्त देश का दर्जा प्रदान करना नहीं है, बल्कि भारत को एक अधीनस्थ देश बनाए रखकर दसे स्वायत्तशासी सरकार प्रदान करना है। इस स्पष्टीकरण के फलस्वरूप लार्ड इरविन की घोषणा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को संतोष नहीं प्रदान कर सकी और 1929 ई. में लाहौर अधिवेशन में घोषणा कर दि गई कि कांग्रेस का ध्येय पूर्ण स्वाधीनता है।

सत्याग्रह आन्दोलन

कांग्रेस ने 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्याग्रह आन्दोलन शुरू किया। गांधीजी ने अपने कुछ अनुयायियों के साथ दांडी यात्रा की ओर कूच किया और जानबूझकर सरकार का नमक क़ानून तोड़ा। यह 'नमक सत्याग्रह आन्दोलन' शीघ्र ही सारे देश में फैल गया, जिससे भारी हलचल मच गई। लार्ड इरविन ने युक्तिपूर्वक स्थिति को सम्भालने का प्रयास किया। एक ओर तो उसने क़ानून और व्यवस्था को बनाये रखने के लिए राज्य की सारी शक्ति लगा दी तथा कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। दूसरी ओर वह महात्मा गांधी से समझौता वार्ता चलाता रहा। वह गांधीजी से कई बार मिला और अंत में गांधी इरविन समझौता हो गया।

समझौते की शर्तें

इस समझौते के अनुसार कांग्रेस ने सत्याग्रह आन्दोलन स्थगित कर दिया और वह गोलमेज सम्मेलन के दूसरे अधिवेशन में गांधीजी को अपना एकमात्र प्रतिनिधि बनाकर भेजने को तैयार हो गई। कांग्रेस ने इस सम्मेलन के पहले अधिवेशन का बहिष्कार किया था। उधर सरकार ने भी सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया। सिर्फ़ उन बंदियों को नहीं छोड़ा गया, जिन पर हिंसात्मक उपद्रवों में भाग लेने के आरोप थे।

अवकाश

गांधी-इरविन समझौते के एक महीने के बाद लार्ड इरविन ने भारत के वायसराय के पद से अवकाश ग्रहण कर लिया और अपने उत्तराधिकारी लार्ड विलिंगडन पर यह भार छोड़ दिया कि वह चाहे तो उसकी नीति को आगे बढ़ाए और न चाहे तो समाप्त कर दे। भारत से अवकाश ग्रहण करके लार्ड इरविन 1940 से 1946 ई. तक अमेरिका में ब्रिटिश राजदूत रहा। 1944 ई. में उसे अर्ल ऑफ़ हैलिफ़ैक्स की पदवी प्रदान की गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-54