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वैसे परंपरा के मुताबिक लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्षी दल को दिया जाता है, लेकिन यह परंपरा बीच-बीच में भंग होती रही है। इस परंपरा की शुरुआत छठी लोकसभा से हुई थी। [[पहली लोकसभा]] से लेकर [[पाँचवीं लोकसभा (1971)|पांचवीं लोकसभा]] तक सत्तारूढ़ [[कांग्रेस]] से ही उपाध्यक्ष चुना जाता रहा। [[आपातकाल]] के बाद [[1977]] में [[छठी लोकसभा (1977)|छठी लोकसभा]] के गठन के बाद [[जनता पार्टी]] ने सत्ता में आने पर मधुलिमए, प्रो. समर गुहा, समर मुखर्जी आदि सांसदविदों के सुझाव पर लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्षी पार्टी को देने की परंपरा शुरू की। उस लोकसभा में कांग्रेस के गौडे मुराहरि उपाध्यक्ष चुने गए थे।
 
वैसे परंपरा के मुताबिक लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्षी दल को दिया जाता है, लेकिन यह परंपरा बीच-बीच में भंग होती रही है। इस परंपरा की शुरुआत छठी लोकसभा से हुई थी। [[पहली लोकसभा]] से लेकर [[पाँचवीं लोकसभा (1971)|पांचवीं लोकसभा]] तक सत्तारूढ़ [[कांग्रेस]] से ही उपाध्यक्ष चुना जाता रहा। [[आपातकाल]] के बाद [[1977]] में [[छठी लोकसभा (1977)|छठी लोकसभा]] के गठन के बाद [[जनता पार्टी]] ने सत्ता में आने पर मधुलिमए, प्रो. समर गुहा, समर मुखर्जी आदि सांसदविदों के सुझाव पर लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्षी पार्टी को देने की परंपरा शुरू की। उस लोकसभा में कांग्रेस के गौडे मुराहरि उपाध्यक्ष चुने गए थे।
 
==परंपरा का टूटना==
 
==परंपरा का टूटना==
हालांकि जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद साल [[1980]] में कांग्रेस ने जब सत्ता में वापसी की तो उसने इस परंपरा को मान्यता नहीं दी। हालांकि उसने अपनी पार्टी के सदस्य को तो उपाध्यक्ष नहीं बनाया, लेकिन यह पद विपक्षी पार्टी को देने के बजाय अपनी समर्थक पार्टी एआईएडीएमके को दिया और जी. लक्ष्मणन को [[सातवीं लोकसभा (1980)|सातवीं लोकसभा]] का उपाध्यक्ष बनाया। साल [[1984]] में [[आठवीं लोकसभा (1984)|आठवीं लोकसभा]] में भी कांग्रेस ने यही सिलसिला जारी रखा और एआईएडीएमके के एम. थंबीदुराई को सदन का उपाध्यक्ष बनाया।
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हालांकि [[जनता पार्टी]] की सरकार गिरने के बाद साल [[1980]] में [[कांग्रेस]] ने जब सत्ता में वापसी की तो उसने इस परंपरा को मान्यता नहीं दी। हालांकि उसने अपनी पार्टी के सदस्य को तो उपाध्यक्ष नहीं बनाया, लेकिन यह पद विपक्षी पार्टी को देने के बजाय अपनी समर्थक पार्टी एआईएडीएमके को दिया और जी. लक्ष्मणन को [[सातवीं लोकसभा (1980)|सातवीं लोकसभा]] का उपाध्यक्ष बनाया। साल [[1984]] में [[आठवीं लोकसभा (1984)|आठवीं लोकसभा]] में भी कांग्रेस ने यही सिलसिला जारी रखा और एआईएडीएमके के एम. थंबीदुराई को सदन का उपाध्यक्ष बनाया।
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==जनता दल ने निभाई परंपरा==
 
==जनता दल ने निभाई परंपरा==
 
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साल [[1997]] में जब जनता दल नीत संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी तो उसने फिर उपाध्यक्ष का पद विपक्षी पार्टी को देने की परंपरा का अनुसरण किया। [[भारतीय जनता पार्टी]] के सूरजभान सर्वसम्मति से [[ग्यारहवीं लोकसभा (1996)|ग्यारहवीं लोकसभा]] के उपाध्यक्ष चुने गए। साल [[1998]] में मध्यावधि चुनाव हुए और [[बारहवीं लोकसभा (1998)|बारहवीं लोकसभा]] अस्तित्व में आई। बीजेपी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनी। इस सरकार ने भी अपनी पूर्ववर्ती सरकार की तरह लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्षी पार्टी को दिया। कांग्रेस के नेता पीएम सईद उपाध्यक्ष बने। [[1999]] में फिर मध्यावधि चुनाव हुए और तेरहवीं लोकसभा का गठन हुआ। फिर एनडीए की सरकार बनी और पीएम सईद फिर सर्वानुमति से लोकसभा उपाध्यक्ष चुने गए।

16:39, 3 अप्रैल 2020 का अवतरण

लोकसभा उपाध्यक्ष (अंग्रेज़ी: Deputy Speaker of the Lok Sabha) का पद भारत की संसदीय प्रणाली में काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। लोकसभा अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष ही लोकसभा का कार्य निर्वाहन करता है। लोकसभा के उपाध्यक्ष को विपक्ष से चुने जाने की परंपरा है। लोकसभा के सदस्य अपने में से किसी एक का उपाध्यक्ष के रूप में चुनाव करते हैं। यदि संबंधित सदस्य की लोकसभा सदस्यता खत्म हो जाती है तो उसका अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद भी खत्म हो जाता है। उपाध्यक्ष अपना त्यागपत्र अध्यक्ष को संबोधित करता है। लोकसभा के उपस्थित सदस्यों के बहुमत से सम्मत किये हुए प्रस्ताव के अनुसार अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पदच्युत किया जा सकता है। वर्तमान में लोकसभा के उपाध्यक्ष का पद रिक्त है, क्योंकि निवर्तमान उपाध्यक्ष एम. थंबीदुरई का कार्यकाल 16वीं लोकसभा के भंग होने से 25 मई, 2019 को पूर्ण हो गया।[1]

शुरुआत

वैसे परंपरा के मुताबिक लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्षी दल को दिया जाता है, लेकिन यह परंपरा बीच-बीच में भंग होती रही है। इस परंपरा की शुरुआत छठी लोकसभा से हुई थी। पहली लोकसभा से लेकर पांचवीं लोकसभा तक सत्तारूढ़ कांग्रेस से ही उपाध्यक्ष चुना जाता रहा। आपातकाल के बाद 1977 में छठी लोकसभा के गठन के बाद जनता पार्टी ने सत्ता में आने पर मधुलिमए, प्रो. समर गुहा, समर मुखर्जी आदि सांसदविदों के सुझाव पर लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्षी पार्टी को देने की परंपरा शुरू की। उस लोकसभा में कांग्रेस के गौडे मुराहरि उपाध्यक्ष चुने गए थे।

परंपरा का टूटना

हालांकि जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद साल 1980 में कांग्रेस ने जब सत्ता में वापसी की तो उसने इस परंपरा को मान्यता नहीं दी। हालांकि उसने अपनी पार्टी के सदस्य को तो उपाध्यक्ष नहीं बनाया, लेकिन यह पद विपक्षी पार्टी को देने के बजाय अपनी समर्थक पार्टी एआईएडीएमके को दिया और जी. लक्ष्मणन को सातवीं लोकसभा का उपाध्यक्ष बनाया। साल 1984 में आठवीं लोकसभा में भी कांग्रेस ने यही सिलसिला जारी रखा और एआईएडीएमके के एम. थंबीदुराई को सदन का उपाध्यक्ष बनाया।

सन 1989 में जनता दल के राष्ट्रीय मोर्चा ने सत्ता में आने पर जनता पार्टी की शुरू की गई परंपरा को पुनर्जीवित किया और नौवीं लोकसभा का उपाध्यक्ष पद प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को दिया। कांग्रेस के शिवराज पाटिल सर्वसम्मति से उपाध्यक्ष चुने गए। वे बाद में 1991 में दसवीं लोकसभा के अध्यक्ष भी बने। लेकिन इस लोकसभा में भी कांग्रेस ने लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को न देते हुए दक्षिण भारत की अपनी सहयोगी पार्टी एआईएडीएमके को ही दिया और एम. मल्लिकार्जुन उपाध्यक्ष बने।[1]

जनता दल ने निभाई परंपरा

साल 1997 में जब जनता दल नीत संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी तो उसने फिर उपाध्यक्ष का पद विपक्षी पार्टी को देने की परंपरा का अनुसरण किया। भारतीय जनता पार्टी के सूरजभान सर्वसम्मति से ग्यारहवीं लोकसभा के उपाध्यक्ष चुने गए। साल 1998 में मध्यावधि चुनाव हुए और बारहवीं लोकसभा अस्तित्व में आई। बीजेपी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनी। इस सरकार ने भी अपनी पूर्ववर्ती सरकार की तरह लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्षी पार्टी को दिया। कांग्रेस के नेता पीएम सईद उपाध्यक्ष बने। 1999 में फिर मध्यावधि चुनाव हुए और तेरहवीं लोकसभा का गठन हुआ। फिर एनडीए की सरकार बनी और पीएम सईद फिर सर्वानुमति से लोकसभा उपाध्यक्ष चुने गए।

कांग्रेस की उदारता

साल 2004 में चौदहवीं लोकसभा अस्तित्व में आई। कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए की सरकार बनी। इस बार कांग्रेस ने उदारता दिखाई और लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्षी पार्टी को दिया। अकाली दल के चरणजीत सिंह अटवाल उपाध्यक्ष चुने गए। कांग्रेस ने यह सिलसिला साल 2009 में पंद्रहवीं लोकसभा में भी जारी रखा। इस बार उपाध्यक्ष के पद पर बीजेपी के करिया मुंडा निर्वाचित हुए। लेकिन साल 2014 में सोलहवीं लोकसभा में यह स्वस्थ परंपरा फिर टूट गई। बीजेपी सरकार ने यह पद कांग्रेस का साथ छोड़कर अपनी सहयोगी बन चुकी एआईएडीएमके को दे दिया। एम थंबीदुराई तीन दशक बाद एक बार फिर लोकसभा उपाध्यक्ष चुने गए।[1]

भारत के लोकसभा उपाध्यक्षों की सूची

क्रमांक नाम कार्यकाल दल / पार्टी चित्र
1. एम. ए. अय्यंगार 30 मई, 1952-7 मार्च, 1956 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
M.A-Ayyangar.jpg
2. सरदार हुकम सिंह 20 मार्च, 1956-31 मार्च, 1962 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
Sardar-hukam-singh.jpg
3. एस. वी. कृष्णमूर्ति राव 23 अप्रॅल, 1962-3 मार्च, 1967 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
S-V-Krishnamoorthy-Rao.jpg
4. आर. के. खाडिलकर 28 मार्च, 1967-11 नवंबर, 1969 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
R-K-Khadilkar.gif
5. जी. जी. स्वेल 27 मार्च, 1971-18 जनवरी, 1977 निर्दलीय
George-Gilbert-Swell.jpg
6. गोदे मुरहारी 1 अप्रॅल, 1977-22 अगस्त, 1979 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
Godey-Murahari.jpg
7. जी. लक्ष्मणन 1 दिसंबर, 1980-31 दिसंबर, 1984 द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम
G-Lakshmanan.jpg
8. एम. थंबीदुरई 22 जनवरी, 1985-27 नवंबर, 1989 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम
Munisamy-Thambidurai.jpg
9. शिवराज पाटिल 19 मार्च, 1990-13 मार्च, 1991 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
Shivraj-patil.jpg
10. एस. मल्लिकार्जुनैय्या 13 अगस्त, 1991-10 मई, 1996 भारतीय जनता पार्टी
S-Malikarjunaiah.jpg
11. सूरजभान 12 जुलाई, 1996-4 दिसंबर, 1997 भारतीय जनता पार्टी
Suraj-Bhan.jpg
12. पी. एम. सईद 17 दिसंबर, 1998-6 फ़रवरी, 2004 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
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13. चरणजीत सिंह अटवाल 9 जून, 2004-18 मई, 2009 शिरोमणि अकाली दल
Charnjit-Singh-Atwal.jpg
14. करिया मुंडा 8 जून, 2009-18 मई, 2014 भारतीय जनता पार्टी
Kariya-Munda.jpg
(8.) एम. थंबीदुरई 13 अगस्त, 2014-25 मई, 2019 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम
Munisamy-Thambidurai.jpg
15. पद रिक्त क्योंकि निवर्तमान उपाध्यक्ष एम. थंबीदुरई का कार्यकाल 16वीं लोकसभा के भंग होने से 25 मई, 2019 को पूर्ण हो गया। -
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 सात महीने बाद भी 17वीं लोकसभा को उपाध्यक्ष नहीं मिल सका (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 03 अप्रॅल, 2020।

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