वितस्ता का युद्ध

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वितस्ता का युद्ध राजा पुरु और मकदूनिया (यूनान) के राजा सिकन्दर (अलेक्ज़ेंडर) के मध्य लड़ा गया था। इस युद्ध में राजा पुरु ने अपनी हाथी सेना पर ही अधिक भरोसा किया और युद्ध में हाथियों की संख्या घोड़ों के मुकाबले अधिक रखी। जबकि सिकन्दर ने अपने घुड़सवार तीरन्दाजों पर अधिक भरोसा किया। इस युद्ध में सिकन्दर की घुड़सवार सेना की तेज़ीपुरु की हाथी सेना पर भारी पड़ी और परिणामस्वरूप पुरु ये युद्ध हार गया।

पुरु की सैन्य रचना

पुरु का राज्य 'हाईडस्पीस' (झेलम अथवा वितस्ता) और 'असिक्नी' (चिनाब) नदियों के बीच स्थित था। सम्भवत: जुलाई 325 ई. पू. में सिकन्दर ने अकारण पुरु के राज्य पर हमला कर दिया। आरम्भिक लड़ाई में पुरु हार गया, क्योंकि यूनानी सेनाओं ने चुपचाप बिना किसी युद्ध के नदी पार कर ली थी। पुरु मुख्य रूप से हाथियों की सेना पर ही निर्भर था। उसकी सैन्य रचना भी ठीक नहीं थी। उसने हाथियों के पीछे 30,000 पैदल सैनिक, 400 अश्वारोही तथा 300 रथ लगा रखे थे। पुरु के पैदल सैनिकों के पास जो धनुष थे, वह आकार में काफ़ी बड़े थे। इन धनुषों को चलाने के लिए ज़मीन पर टिकाना पड़ता था। पैदल सैनिकों के हाथियों के पीछे होने के कारण वे तेज़ीसे गमन नहीं कर सकते थे।

सिकन्दर की विजय

सिकन्दर को मुख्य रूप से अपनी घुड़सवार सेना और घोड़े पर सवार तीरन्दाजों का भरोसा था। इस युद्ध में पुरु बड़ी वीरता से लड़ा, किंतु यूनानी सेना के अधिक फुर्तीले होने के कारण सिकन्दर की विजय हुई। पुरु इस युद्ध में घायल हुआ और यूनानी सैनिकों द्वारा बन्दी बना लिया गया। विजयी राजा सिकन्दर ने उसके साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार किया और उसका राज्य भी लौटा दिया। बाद के समय में पुरु ने सिकन्दर को पंजाब के दूसरे राज्यों को जीतने में मदद दी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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