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*यज्ञ की प्रधानता, [[इन्द्र]], [[वरुण देवी|वरुण]], [[अग्निदेव|अग्नि]], [[सोम रस|सोम]], [[सूर्य देवता|सूर्य]], [[चंद्र देवता|चंद्र]], अश्विन, उषा, रुद्र, मरूत, [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]], समुद्र, सरस्वती और वाग्देवी की उपसना-ये वैदिक धर्म के प्रमुख स्तंभ हैं।  धर्म को अभ्युदय और नि:श्रेयस का साधन माना जाता था।  वैदिक धर्म सांप्रदायिक संकीर्णता से ग्रस्त न होकर सार्वभौम धर्म रहा है। कालांतर में उपनिषद-काल में यज्ञ और कर्मकांड में कमी आ गई और तप और ज्ञान का महत्व बढ़ गया।  फिर भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को वैदिक धर्म में सदा जीवन का लक्ष्य माना गया।
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*यज्ञ की प्रधानता, [[इन्द्र]], [[वरुण देवता|वरुण]], [[अग्निदेव|अग्नि]], [[सोम रस|सोम]], [[सूर्य देवता|सूर्य]], [[चंद्र देवता|चंद्र]], अश्विन, उषा, रुद्र, मरूत, [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]], समुद्र, सरस्वती और वाग्देवी की उपसना-ये वैदिक धर्म के प्रमुख स्तंभ हैं।  धर्म को अभ्युदय और नि:श्रेयस का साधन माना जाता था।  वैदिक धर्म सांप्रदायिक संकीर्णता से ग्रस्त न होकर सार्वभौम धर्म रहा है। कालांतर में उपनिषद-काल में यज्ञ और कर्मकांड में कमी आ गई और तप और ज्ञान का महत्व बढ़ गया।  फिर भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को वैदिक धर्म में सदा जीवन का लक्ष्य माना गया।
 
   
 
   
 
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05:43, 5 मई 2010 का अवतरण

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वैदिक धर्म / Vedic Religion

कर्म पर आधारित

  • चार आश्रमों का समाज,
  • चार आश्रमों का व्यक्तिगत जीवन,
  • यम और नियमों का पालन,
  • यज्ञ की प्रधानता, इन्द्र, वरुण, अग्नि, सोम, सूर्य, चंद्र, अश्विन, उषा, रुद्र, मरूत, पृथ्वी, समुद्र, सरस्वती और वाग्देवी की उपसना-ये वैदिक धर्म के प्रमुख स्तंभ हैं। धर्म को अभ्युदय और नि:श्रेयस का साधन माना जाता था। वैदिक धर्म सांप्रदायिक संकीर्णता से ग्रस्त न होकर सार्वभौम धर्म रहा है। कालांतर में उपनिषद-काल में यज्ञ और कर्मकांड में कमी आ गई और तप और ज्ञान का महत्व बढ़ गया। फिर भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को वैदिक धर्म में सदा जीवन का लक्ष्य माना गया।