"वैष्णव जन तो तेने कहिये" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
('{{पुनरीक्षण}} {{Poemopen}} <poem> वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीड प...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{Poemopen}} | {{Poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे | + | वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2। |
− | पर | + | पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।। |
− | सकल | + | सकल लोक मां सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।। |
− | वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी | + | वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।। |
− | + | वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2। | |
− | |||
− | + | समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।। | |
− | + | जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।। | |
− | + | मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।। | |
− | भणे | + | राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।। |
+ | |||
+ | वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।। | ||
+ | |||
+ | भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।। | ||
+ | |||
+ | वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2। | ||
</poem> | </poem> | ||
{{Poemclose}} | {{Poemclose}} |
18:40, 27 दिसम्बर 2011 का अवतरण
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2। |
- गुजरात के संत कवि नरसी मेहता द्वारा रचा ये भजन गाँधी जी को बहुत प्रिय था।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख