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− | *शकस्थान का उल्लेख महामायूरि<ref>महामायूरि 95</ref>, [[मथुरा]] सिहस्तभ-लेख और | + | *शकों के इस स्थान को [[सीस्तान]] भी कहा जाता था। |
− | *मथुरा | + | *शकस्थान का उल्लेख 'महामायूरि'<ref>महामायूरि 95</ref>, [[मथुरा]] सिहस्तभ-लेख और कंदब नरेश [[मयूरशर्मन]] के 'चंद्रवल्ली' प्रस्तर लेख में है। |
+ | *मथुरा अभिलेख के शब्द है- "सर्वस सकस्तनस पुयेइ", जिसका अर्थ हैं कि- "[[कनिंघम]] के अनुसार ‘शकस्तान निवासियों के पुण्यार्थ है।" | ||
*[[शक|शकों]] का उल्लेख [[रामायण]]<ref>रामायण ‘तैरासीत् संवृताभूमिः शकैर्यवनमिश्रितै:' [[बाल काण्ड वा. रा.|बालकाण्ड]] 54,21; कांबोजयवनां श्चैवशकानापत्तनानिच’ [[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किंधाकाण्ड]] ,43,12</ref>, [[महाभारत]]<ref>महाभारत ‘पहल्वान् बर्बरांश्चैव किरातान् यवनाछकान्’ [[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]] 32, 17</ref>, [[मनुस्मृति]]<ref>मनुस्मृति ‘पौड्रकाश्चौड्रद्रविड़ाः कांबोजा यवनाः शकाः’ 10,44 </ref> तथा [[महाभाष्य]]<ref>महाभाष्य द.॰ इडियन एंटिक्बेरी 1875, पृ॰ 244</ref> आदि [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में है। | *[[शक|शकों]] का उल्लेख [[रामायण]]<ref>रामायण ‘तैरासीत् संवृताभूमिः शकैर्यवनमिश्रितै:' [[बाल काण्ड वा. रा.|बालकाण्ड]] 54,21; कांबोजयवनां श्चैवशकानापत्तनानिच’ [[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किंधाकाण्ड]] ,43,12</ref>, [[महाभारत]]<ref>महाभारत ‘पहल्वान् बर्बरांश्चैव किरातान् यवनाछकान्’ [[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]] 32, 17</ref>, [[मनुस्मृति]]<ref>मनुस्मृति ‘पौड्रकाश्चौड्रद्रविड़ाः कांबोजा यवनाः शकाः’ 10,44 </ref> तथा [[महाभाष्य]]<ref>महाभाष्य द.॰ इडियन एंटिक्बेरी 1875, पृ॰ 244</ref> आदि [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में है। | ||
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05:55, 15 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
शकस्थान भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध रहे शकों का मूल निवास स्थान है, जो ईरान के उत्तर-पश्चिमी भाग तथा परिवर्ती प्रदेश में स्थित था।
- शकों के इस स्थान को सीस्तान भी कहा जाता था।
- शकस्थान का उल्लेख 'महामायूरि'[1], मथुरा सिहस्तभ-लेख और कंदब नरेश मयूरशर्मन के 'चंद्रवल्ली' प्रस्तर लेख में है।
- मथुरा अभिलेख के शब्द है- "सर्वस सकस्तनस पुयेइ", जिसका अर्थ हैं कि- "कनिंघम के अनुसार ‘शकस्तान निवासियों के पुण्यार्थ है।"
- शकों का उल्लेख रामायण[2], महाभारत[3], मनुस्मृति[4] तथा महाभाष्य[5] आदि ग्रंथों में है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महामायूरि 95
- ↑ रामायण ‘तैरासीत् संवृताभूमिः शकैर्यवनमिश्रितै:' बालकाण्ड 54,21; कांबोजयवनां श्चैवशकानापत्तनानिच’ किष्किंधाकाण्ड ,43,12
- ↑ महाभारत ‘पहल्वान् बर्बरांश्चैव किरातान् यवनाछकान्’ सभापर्व 32, 17
- ↑ मनुस्मृति ‘पौड्रकाश्चौड्रद्रविड़ाः कांबोजा यवनाः शकाः’ 10,44
- ↑ महाभाष्य द.॰ इडियन एंटिक्बेरी 1875, पृ॰ 244
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