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'''शालिहोत्र''' [[हिन्दू]] मान्यताओं और पौराणिक [[महाकाव्य]] [[महाभारत]] के उल्लेखानुसार एक मुनि थे, जिनके आश्रम में [[व्यास|श्री व्यास जी]] ठहरे थे।  
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'''शालिहोत्र''' [[हिन्दू]] मान्यताओं और पौराणिक [[महाकाव्य]] [[महाभारत]] के उल्लेखानुसार एक [[मुनि]] थे, जिनके [[आश्रम]] में [[व्यास|श्री व्यास जी]] ठहरे थे।  
  
*शालिहोत्र<ref>2350 ईसापूर्व</ref> हयगोष नामक [[ऋषि]] के पुत्र थे तथा श्रावस्ती के निवासी थे। वे पशुचिकित्सा<ref>veterinary sciences</ref> के जनक माने जाते हैं। उन्होंने 'शालिहोत्रसंहिता' नामक ग्रन्थ की रचना की थी।
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*शालिहोत्र के आश्रम के पास एक सरोवर और एक पवित्र वृक्ष था। वह वृक्ष [[सर्दी]], [[गर्मी]] और [[वर्षा]] का सहन भली भाँति करता था। वहाँ केवल जल पी लेने से भूख-प्यास शांत हो जाती थी। उस सरोवर और वृक्ष का निर्माण श्री 'शालिहोत्र मुनि' ने अपनी तपस्या से किया था।
*संसार के इतिहास में घोड़े पर लिखी गई प्रथम पुस्तक शालिहोत्रसंहिता है, जिसे शालिहोत्र [[ऋषि]] ने [[महाभारत]] काल से भी बहुत समय पूर्व लिखा था। कहा जाता है कि शालिहोत्र द्वारा अश्वचिकित्सा पर लिखत प्रथम पुस्तक होने के कारण प्राचीन भारत में पशुचिकित्सा विज्ञान को 'शालिहोत्रशास्त्र' नाम दिया गया।
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*मुनि के आश्रम में [[हिडिम्बा]] के साथ [[पांडव]] आये थे। पांडवों की भूख प्यास निवृति इन्होंने की थी।<ref>[[महाभारत आदि पर्व]] 154.15 और 18 के बाद दक्षिणास्य पाठ</ref>
*शालिहोत्रसंहिता का वर्णन आज संसार की अश्वचिकित्सा विज्ञान पर लिखी गई पुस्तकों में दिया जाता है। भारत में अनिश्चित काल से देशी अश्वचिकित्सक को 'शालिहोत्री' कहा जाता है।
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*ये अश्वविद्या के आचार्य थे एंव अश्वों की जाति और गुण-अवगुण के पारखी थे।<ref>[[वनपर्व महाभारत|वन पर्व]] 71.27</ref>
  
 
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06:10, 3 फ़रवरी 2016 का अवतरण

शालिहोत्र हिन्दू मान्यताओं और पौराणिक महाकाव्य महाभारत के उल्लेखानुसार एक मुनि थे, जिनके आश्रम में श्री व्यास जी ठहरे थे।

  • शालिहोत्र के आश्रम के पास एक सरोवर और एक पवित्र वृक्ष था। वह वृक्ष सर्दी, गर्मी और वर्षा का सहन भली भाँति करता था। वहाँ केवल जल पी लेने से भूख-प्यास शांत हो जाती थी। उस सरोवर और वृक्ष का निर्माण श्री 'शालिहोत्र मुनि' ने अपनी तपस्या से किया था।
  • मुनि के आश्रम में हिडिम्बा के साथ पांडव आये थे। पांडवों की भूख प्यास निवृति इन्होंने की थी।[1]
  • ये अश्वविद्या के आचार्य थे एंव अश्वों की जाति और गुण-अवगुण के पारखी थे।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 492 |

  1. महाभारत आदि पर्व 154.15 और 18 के बाद दक्षिणास्य पाठ
  2. वन पर्व 71.27

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