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==जन्म और शिक्षा==
 
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शिवपूजन सहाय का जन्म सन 1893 ई. ग्राम [[उनवास]], सब डिवीजन बक्सर, [[शाहाबाद­ ज़िला|­ज़िला शाहाबाद]] ([[बिहार]]) में हुआ था। [[1912]] ई. में आरा नगर के एक हाई स्कूल से शिवपूजन सहाय ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। शिवपूजन सहाय ने सामाजिक जीवन का शुभारम्भ हिन्दी शिक्षक के रूप में किया और साहित्य के क्षेत्र में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आये। शिवपूजन सहाय के आरम्भिक लेख तथा कहानियाँ 'शिक्षा', 'लक्ष्मी', 'मनोरंजन' तथा 'पाटलीपुत्र' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
 
शिवपूजन सहाय का जन्म सन 1893 ई. ग्राम [[उनवास]], सब डिवीजन बक्सर, [[शाहाबाद­ ज़िला|­ज़िला शाहाबाद]] ([[बिहार]]) में हुआ था। [[1912]] ई. में आरा नगर के एक हाई स्कूल से शिवपूजन सहाय ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। शिवपूजन सहाय ने सामाजिक जीवन का शुभारम्भ हिन्दी शिक्षक के रूप में किया और साहित्य के क्षेत्र में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आये। शिवपूजन सहाय के आरम्भिक लेख तथा कहानियाँ 'शिक्षा', 'लक्ष्मी', 'मनोरंजन' तथा 'पाटलीपुत्र' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
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==सेवाएँ==
 
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शिवपूजन सहाय की सेवाएँ हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय हैं। [[1921]]-22 ई. के आसपास शिवपूजन सहाय ने आरा से निकलने वाले 'मारवाड़ी सुधार' नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन किया। शिवपूजन सहाय [[1923]] ई. में [[कलकत्ता]] के 'मतवाला मण्डल' के सदस्य हुए और कुछ समय के लिए 'आदर्श', 'उपन्यास तरंग', तथा 'समन्वय' आदि पत्रों में सम्पादन का कार्य किया। शिवपूजन सहाय ने [[1925]] ई. में कुछ मास के लिए 'माधुरी' के सम्पादकीय विभाग को अपनी सेवाएँ अर्पित कीं। वह [[1930]] ई. में [[सुल्तानगंज]]-[[भागलपुर]] से प्रकाशित होने वाली 'गंगा' नामक मासिक पत्रिका के सम्पादक मण्डल के सदस्य हुए। शिवपूजन सहाय ने एक वर्ष के उपरान्त [[काशी]] में रहकर साहित्यिक पाक्षिक 'जागरण' का सम्पादन किया। शिवपूजन सहाय काशी में कई वर्ष तक रहे। [[1934]] ई. में लहेरियासराय (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र 'बालक' का सम्पादन किया। स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय [[बिहार]] राष्ट्रभाषा परिषद के संचालक तथा बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रकाशित 'साहित्य' नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे।
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शिवपूजन सहाय की सेवाएँ हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय हैं। [[1921]]-22 ई. के आसपास शिवपूजन सहाय ने आरा से निकलने वाले 'मारवाड़ी सुधार' नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन किया। शिवपूजन सहाय [[1923]] ई. में [[कलकत्ता]] के 'मतवाला मण्डल' के सदस्य हुए और कुछ समय के लिए 'आदर्श', 'उपन्यास तरंग', तथा 'समन्वय' आदि पत्रों में सम्पादन का कार्य किया। शिवपूजन सहाय ने [[1925]] ई. में कुछ मास के लिए 'माधुरी' के सम्पादकीय विभाग को अपनी सेवाएँ अर्पित कीं। वह [[1930]] ई. में [[सुल्तानगंज]]-[[भागलपुर]] से प्रकाशित होने वाली 'गंगा' नामक मासिक पत्रिका के सम्पादक मण्डल के सदस्य हुए। शिवपूजन सहाय ने एक वर्ष के उपरान्त [[काशी]] में रहकर साहित्यिक पाक्षिक 'जागरण' का सम्पादन किया। शिवपूजन सहाय काशी में कई वर्ष तक रहे। [[1934]] ई. में लहेरियासराय (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र 'बालक' का सम्पादन किया। स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय [[बिहार]] राष्ट्रभाषा परिषद के संचालक तथा बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रकाशित 'साहित्य' नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे।{{दाँयाबक्सा}}भाषा के इस पद्यात्मक स्वरूप के बावज़ूद शिवपूजन सहाय के गद्य लेखन में गाम्भीर्य का अभाव नहीं है। शिवपूजन सहाय की शैली ओज-गुण सम्पन्न है और यत्र-तत्र उसमें वक्तृत्व कला की विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं।{{बक्साबन्द}}
 
==लिखी हुई पुस्तकें==
 
==लिखी हुई पुस्तकें==
 
शिव पूजन सहाय की लिखी हुई पुस्तकें विभिन्न विषयों से सम्बद्ध हैं तथा उनकी विधाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं। 'बिहार का बिहार' बिहार प्रान्त का भौगोलिक एवं ऐतिहासिक वर्णन प्रस्तुत करती है। 'विभूति' में कहानियाँ संकलित हैं। 'देहाती दुनियाँ' ([[1926]] ई.) प्रयोगात्मक चरित्र प्रधान औपन्यासिक कृति है। इसकी पहली पाण्डुलिपि [[लखनऊ]] के हिन्दू मुस्लिम दंगे में नष्ट हो गयी थी। इसका शिवपूजन सहाय जी को बहुत दु:ख था। उन्होंने दुबारा वही पुस्तक फिर लिखकर प्रकाशित करायी किन्तु उससे शिवपूजन सहाय को पूरा संतोष नहीं हुआ। शिवपूजन सहाय कहा करते थे कि पहले की लिखी हुई चीज़ कुछ और ही थी। 'ग्राम सुधार' तथा 'अन्नपूर्णा के मन्दिर में' नामक दो पुस्तकें ग्रामोद्धारसम्बन्धी लेखों के संग्रह हैं। इनके अतिरिक्त 'दो पड़ी' एक हास्यरसात्मक कृति है, 'माँ के सपूत' बालोपयोगी तथा 'अर्जुन' और 'भीष्म' नामक दो पुस्तकें [[महाभारत]] के दो पात्रों की जीवनी के रूप में लिखी गयी हैं। शिव पूजन सहाय ने अनेक पुस्तकों का सम्पादन भी किया है, जिनमें 'राजेन्द्र अभिनन्दन ग्रन्थ' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। '''बिहार राष्ट्रभाषा परिषद ([[पटना]]) ने इनकी विभिन्न रचनाओं को अब तक चार खण्डों में 'शिवपूजन रचनावली' के नाम से प्रकाशित किया है।'''
 
शिव पूजन सहाय की लिखी हुई पुस्तकें विभिन्न विषयों से सम्बद्ध हैं तथा उनकी विधाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं। 'बिहार का बिहार' बिहार प्रान्त का भौगोलिक एवं ऐतिहासिक वर्णन प्रस्तुत करती है। 'विभूति' में कहानियाँ संकलित हैं। 'देहाती दुनियाँ' ([[1926]] ई.) प्रयोगात्मक चरित्र प्रधान औपन्यासिक कृति है। इसकी पहली पाण्डुलिपि [[लखनऊ]] के हिन्दू मुस्लिम दंगे में नष्ट हो गयी थी। इसका शिवपूजन सहाय जी को बहुत दु:ख था। उन्होंने दुबारा वही पुस्तक फिर लिखकर प्रकाशित करायी किन्तु उससे शिवपूजन सहाय को पूरा संतोष नहीं हुआ। शिवपूजन सहाय कहा करते थे कि पहले की लिखी हुई चीज़ कुछ और ही थी। 'ग्राम सुधार' तथा 'अन्नपूर्णा के मन्दिर में' नामक दो पुस्तकें ग्रामोद्धारसम्बन्धी लेखों के संग्रह हैं। इनके अतिरिक्त 'दो पड़ी' एक हास्यरसात्मक कृति है, 'माँ के सपूत' बालोपयोगी तथा 'अर्जुन' और 'भीष्म' नामक दो पुस्तकें [[महाभारत]] के दो पात्रों की जीवनी के रूप में लिखी गयी हैं। शिव पूजन सहाय ने अनेक पुस्तकों का सम्पादन भी किया है, जिनमें 'राजेन्द्र अभिनन्दन ग्रन्थ' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। '''बिहार राष्ट्रभाषा परिषद ([[पटना]]) ने इनकी विभिन्न रचनाओं को अब तक चार खण्डों में 'शिवपूजन रचनावली' के नाम से प्रकाशित किया है।'''
 
==विशिष्ट स्थान==
 
==विशिष्ट स्थान==
शिवपूजन सहाय का हिन्दी के गद्य साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। शिवपूजन सहाय की भाषा बड़ी सहज रही है। इन्होंने उर्दू शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से किया है और प्रचलित मुहावरों के सन्तुलित उपयोग द्वारा लोकरुचि का स्पर्श करने की चेष्टा की है। शिवपूजन सहाय ने कहीं-कहीं अनंकरणप्रधान अनुप्रास बहुल भाषा का भी व्यवहार किया है और '''गद्य में पद्य की सी छटा उत्पन्न करने की चेष्टा की है।''' भाषा के इस पद्यात्मक स्वरूप के बावज़ूद इनके गद्य लेखन में गाम्भीर्य का अभाव नहीं है। शिवपूजन सहाय की शैली ओज-गुण सम्पन्न है और यत्र-तत्र उसमें वक्तृत्व कला की विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं।  
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शिवपूजन सहाय का हिन्दी के गद्य साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। शिवपूजन सहाय की भाषा बड़ी सहज रही है। इन्होंने उर्दू शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से किया है और प्रचलित मुहावरों के सन्तुलित उपयोग द्वारा लोकरुचि का स्पर्श करने की चेष्टा की है। शिवपूजन सहाय ने कहीं-कहीं अनंकरणप्रधान अनुप्रास बहुल भाषा का भी व्यवहार किया है और '''गद्य में पद्य की सी छटा उत्पन्न करने की चेष्टा की है।''' भाषा के इस पद्यात्मक स्वरूप के बावज़ूद शिवपूजन सहाय के गद्य लेखन में गाम्भीर्य का अभाव नहीं है। शिवपूजन सहाय की शैली ओज-गुण सम्पन्न है और यत्र-तत्र उसमें वक्तृत्व कला की विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं।  
 
==हिन्दी-सेवा==
 
==हिन्दी-सेवा==
 
शिवपूजन सहाय का समस्त जीवन हिन्दी-सेवा की कहानी है। इन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग [[हिन्दी भाषा]] की उन्नति एवं उसके प्रचार-प्रसार में व्यतीत किया है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा बिहार राष्ट्रभाषा परिषद नामक हिन्दी की दो प्रसिद्ध संस्थाएँ इनकी कीर्ति कथा के अमूल्य स्मारक के रूप में हैं। इनके संस्मरण में बिहार से 'स्मृति ग्रन्थ' भी प्रकाशित हुआ है।
 
शिवपूजन सहाय का समस्त जीवन हिन्दी-सेवा की कहानी है। इन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग [[हिन्दी भाषा]] की उन्नति एवं उसके प्रचार-प्रसार में व्यतीत किया है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा बिहार राष्ट्रभाषा परिषद नामक हिन्दी की दो प्रसिद्ध संस्थाएँ इनकी कीर्ति कथा के अमूल्य स्मारक के रूप में हैं। इनके संस्मरण में बिहार से 'स्मृति ग्रन्थ' भी प्रकाशित हुआ है।
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शिवपूजन सहाय
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पूरा नाम आचार्य शिवपूजन सहाय
जन्म 9 अगस्त, 1893
जन्म भूमि ग्राम उनवास, बिहार
मृत्यु 21 जनवरी, 1963
मृत्यु स्थान पटना, बिहार
कर्म-क्षेत्र अध्यापक, उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक
मुख्य रचनाएँ देहाती दुनियाँ, मतवाला माधुरी, गंगा, जागरण, हिमालय, हिंदी भाषा और साहित्य, शिवपूजन रचनावली
विषय गद्य, उपन्यास, कहानी,
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण (1960)
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

आचार्य शिवपूजन सहाय (जन्म- 9 अगस्त, 1893, मृत्यु- 21 जनवरी, 1963) हिंदी साहित्य में एक उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक के रुप में जाने जाते हैं।

जन्म और शिक्षा

शिवपूजन सहाय का जन्म सन 1893 ई. ग्राम उनवास, सब डिवीजन बक्सर, ­ज़िला शाहाबाद (बिहार) में हुआ था। 1912 ई. में आरा नगर के एक हाई स्कूल से शिवपूजन सहाय ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। शिवपूजन सहाय ने सामाजिक जीवन का शुभारम्भ हिन्दी शिक्षक के रूप में किया और साहित्य के क्षेत्र में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आये। शिवपूजन सहाय के आरम्भिक लेख तथा कहानियाँ 'शिक्षा', 'लक्ष्मी', 'मनोरंजन' तथा 'पाटलीपुत्र' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।

सेवाएँ

शिवपूजन सहाय की सेवाएँ हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय हैं। 1921-22 ई. के आसपास शिवपूजन सहाय ने आरा से निकलने वाले 'मारवाड़ी सुधार' नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन किया। शिवपूजन सहाय 1923 ई. में कलकत्ता के 'मतवाला मण्डल' के सदस्य हुए और कुछ समय के लिए 'आदर्श', 'उपन्यास तरंग', तथा 'समन्वय' आदि पत्रों में सम्पादन का कार्य किया। शिवपूजन सहाय ने 1925 ई. में कुछ मास के लिए 'माधुरी' के सम्पादकीय विभाग को अपनी सेवाएँ अर्पित कीं। वह 1930 ई. में सुल्तानगंज-भागलपुर से प्रकाशित होने वाली 'गंगा' नामक मासिक पत्रिका के सम्पादक मण्डल के सदस्य हुए। शिवपूजन सहाय ने एक वर्ष के उपरान्त काशी में रहकर साहित्यिक पाक्षिक 'जागरण' का सम्पादन किया। शिवपूजन सहाय काशी में कई वर्ष तक रहे। 1934 ई. में लहेरियासराय (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र 'बालक' का सम्पादन किया। स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के संचालक तथा बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रकाशित 'साहित्य' नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे।

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भाषा के इस पद्यात्मक स्वरूप के बावज़ूद शिवपूजन सहाय के गद्य लेखन में गाम्भीर्य का अभाव नहीं है। शिवपूजन सहाय की शैली ओज-गुण सम्पन्न है और यत्र-तत्र उसमें वक्तृत्व कला की विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं।Blockquote-close.gif |}

लिखी हुई पुस्तकें

शिव पूजन सहाय की लिखी हुई पुस्तकें विभिन्न विषयों से सम्बद्ध हैं तथा उनकी विधाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं। 'बिहार का बिहार' बिहार प्रान्त का भौगोलिक एवं ऐतिहासिक वर्णन प्रस्तुत करती है। 'विभूति' में कहानियाँ संकलित हैं। 'देहाती दुनियाँ' (1926 ई.) प्रयोगात्मक चरित्र प्रधान औपन्यासिक कृति है। इसकी पहली पाण्डुलिपि लखनऊ के हिन्दू मुस्लिम दंगे में नष्ट हो गयी थी। इसका शिवपूजन सहाय जी को बहुत दु:ख था। उन्होंने दुबारा वही पुस्तक फिर लिखकर प्रकाशित करायी किन्तु उससे शिवपूजन सहाय को पूरा संतोष नहीं हुआ। शिवपूजन सहाय कहा करते थे कि पहले की लिखी हुई चीज़ कुछ और ही थी। 'ग्राम सुधार' तथा 'अन्नपूर्णा के मन्दिर में' नामक दो पुस्तकें ग्रामोद्धारसम्बन्धी लेखों के संग्रह हैं। इनके अतिरिक्त 'दो पड़ी' एक हास्यरसात्मक कृति है, 'माँ के सपूत' बालोपयोगी तथा 'अर्जुन' और 'भीष्म' नामक दो पुस्तकें महाभारत के दो पात्रों की जीवनी के रूप में लिखी गयी हैं। शिव पूजन सहाय ने अनेक पुस्तकों का सम्पादन भी किया है, जिनमें 'राजेन्द्र अभिनन्दन ग्रन्थ' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद (पटना) ने इनकी विभिन्न रचनाओं को अब तक चार खण्डों में 'शिवपूजन रचनावली' के नाम से प्रकाशित किया है।

विशिष्ट स्थान

शिवपूजन सहाय का हिन्दी के गद्य साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। शिवपूजन सहाय की भाषा बड़ी सहज रही है। इन्होंने उर्दू शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से किया है और प्रचलित मुहावरों के सन्तुलित उपयोग द्वारा लोकरुचि का स्पर्श करने की चेष्टा की है। शिवपूजन सहाय ने कहीं-कहीं अनंकरणप्रधान अनुप्रास बहुल भाषा का भी व्यवहार किया है और गद्य में पद्य की सी छटा उत्पन्न करने की चेष्टा की है। भाषा के इस पद्यात्मक स्वरूप के बावज़ूद शिवपूजन सहाय के गद्य लेखन में गाम्भीर्य का अभाव नहीं है। शिवपूजन सहाय की शैली ओज-गुण सम्पन्न है और यत्र-तत्र उसमें वक्तृत्व कला की विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं।

हिन्दी-सेवा

शिवपूजन सहाय का समस्त जीवन हिन्दी-सेवा की कहानी है। इन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग हिन्दी भाषा की उन्नति एवं उसके प्रचार-प्रसार में व्यतीत किया है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा बिहार राष्ट्रभाषा परिषद नामक हिन्दी की दो प्रसिद्ध संस्थाएँ इनकी कीर्ति कथा के अमूल्य स्मारक के रूप में हैं। इनके संस्मरण में बिहार से 'स्मृति ग्रन्थ' भी प्रकाशित हुआ है।

रचनाएँ

देहाती दुनियाँ  (1926),  मतवाला माधुरी (1924), गंगा (1931),  जागरण (1932), हिमालय (1946),  साहित्य (1950) वही दिन वही लोग (1965),  मेरा जीवन (1985),  स्मृति शेश (1994), हिंदी भाषा और साहित्य (1996), 

सहायक ग्रन्थ-शिवपूजन रचनावली, (चार खण्डों में), बि. रा. भा. परिषद्, पटना।

सम्मान

शिवपूजन सहाय को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1960  में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

निधन

इस महान साहित्यकार का निधन 21 जनवरी1963 में पटना में हुआ ।


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