श्रीनगर

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श्रीनगर शहर, जम्मू–कश्मीर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी, उत्तरी भारत, झेलम नदी के तट पर बसा यह शहर कश्मीर घाटी में 1,600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। श्रीगर चीड़, फ़र और देवदार के वृक्षों से ढके पर्वतों के बीच स्थित है। श्रीनगर की नींव, कल्हणरचित राजतरंगिणी[1], (स्टाइन का अनुवाद) के अनुसार मौर्य सम्राट अशोक ने डाली थी। उसने कश्मीर की यात्रा 245 ई. पू. में की थी। इस तथ्य को देखते हुए श्रीनगर लगभग 2200 वर्ष प्राचीन नगर ठहरता है। अशोक का बसाया हुआ नगर वर्तमान श्रीनगर से प्रायः 3 मील उत्तर में बसा हुआ था। प्राचीन नगर की स्थिति को आजकल पांडरेथान अथवा प्राचीन स्थान कहा जाता है।

इतिहास

महाराज ललितादित्य यहाँ का प्रख्यात हिन्दू राजा था। इसका शासनकाल 700 ई. के लगभग था। इसने श्रीनगर की श्रीवृद्धि की तथा कश्मीर के राज्य का दूर-दूर तक विस्तार भी किया। इसने झेलम पर कई पुल बंधवाए तथा नहरें बनवाईं। श्रीनगर में हिन्दू नरेशों के समय के अनेक प्राचीन मन्दिर थे, जिन्हें मुसलमानों के शासनकाल में नष्ट–भ्रष्ट करके उनके स्थान पर दरगाहें व मस्ज़िद बना ली गई थीं। झेलम के तीसरे पुल पर महाराज नरेन्द्र द्वितीय का 180 ई. के लगभग बनवाया हुआ नरेन्द्र स्वामी का मन्दिर था। यह नरपीर की ज़ियारतगाह के रूप में परिणत कर दिया गया था। चौथे पुल के निकट नदी के दक्षिणी तट पर पाँच शिखरों वाला मन्दिर महाश्रीमन्दिर नाम से विख्यात था; इसे महाराज प्रवरसेन द्वितीय ने अपार धन–राशि व्यय कर निर्मित करवाया था। 1404 ई. में कश्मीर के शासक शाह सिकन्दर की बेगम की मृत्यु होने पर उसे इस मन्दिर के आँगन में दफ़ना दिया गया और उसी समय से यह विशाल मन्दिर मक़बरा बन गया। कश्मीर का प्रसिद्ध सुल्तान जैनुलआबदीन, जिसे कश्मीर का अकबर कहा जाता है, इसी मन्दिर के प्रांगण में दफ़नाया गया था। यह स्थान मक़बरा शाही के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कहा जाता है कि नदी के छठे पुल के समीप, दक्षिणी तट पर महाराज युधिष्ठर के मंत्री स्कंदगुप्त द्वारा बनवाया एक अन्य मन्दिर भी था। इसे पीर बाशु की ज़ियारतगाह के रूप में परिणत कर दिया गया।

684-693 ई. में महाराज चंद्रापदी द्वारा बनवाया हुआ त्रिभुवन स्वामी का मन्दिर भी समीप ही स्थित था। इस पर टांगा बाबा नामक एक पीर ने अधिकार करके इसे दरगाह का रूप दे दिया। सुल्तान सिकन्दर ने 1404 ई. में ज़ामा मस्ज़िद बनाने के लिए महाराज तारापदी द्वारा 693-697 में निर्मित एक प्रसिद्ध मन्दिर को तोड़ डाला और उसकी सारी सामग्री मस्ज़िद बनाने में लगा दी। 1623 ई. के लगभग बेगम नूरजहाँ ने, जब वह जहाँगीर के साथ कश्मीर आईं, सुलेमान पर्वत के ऊपर बना हुआ शंकराचार्य का मन्दिर देखा और इसकी पैड़ियों में लगे हुए बहुमूल्य पत्थर के टुकड़ों को उखड़वाकर उन्हें अपनी बनवाई हुई मस्ज़िद में लगवा दिया। केवल शंकराचार्य का मन्दिर ही अब श्रीनगर का प्राचीन हिन्दू स्मारक कहा जा सकता है। किंवदन्ती के अनुसार इस मन्दिर की स्थापना दक्षिण के प्रसिद्ध दार्शनिक शंकराचार्य ने 8वीं शती ई. में की थी। जहाँगीर तथा शाहजहाँ के समय के शालीमार तथा निशान्त नामक सुन्दर उद्यान, तथा इसी काल की कई मस्ज़िदें श्रीनगर के प्रमुख ऐतिहासिक स्मारक हैं। कहा जाता है कि निशान्तबाग नूरजहाँ के भाई आसफ़ ख़ाँ का बनवाया हुआ था। शालीमार का निर्माण जहाँगीर और उसकी प्रिय बेग़म नूरजहाँ ने किया था। मुग़लों ने कश्मीर में 700 बाग़ लगवाए थे।

यातायात और परिवहन

नियमित विमान सेवाएँ श्रीनगर को अमृतसर और दिल्ली से जोड़ती हैं।

उद्योग और व्यापार

श्रीनगर में विशिष्ट बाज़ार और खुदरा दुकानें भी हैं। शहर के उद्योगों में क़ालीन व रेशम की मिलें, चाँदी और ताँबे की वस्तुओं का निर्माण, चमड़े का काम और लकड़ी पर नक़्क़ाशी शामिल हैं।

शिक्षण संस्थान

श्रीनगर शहर में कश्मीर विश्वविद्यालय (1969) है।

जनसंख्या

2001 की गणना के अनुसार श्री नगर की कुल जनसंख्या 8,94,940 है। और श्रीनगर ज़िले की कुल जनसंख्या 12,38,530 है।

पर्यटन

स्वच्छ झील और ऊँचे पर्वतों के बीच बसे श्रीनगर की अर्थव्यवस्था का आधार लम्बे समय से मुख्यतः पर्यटन है। शहर से होकर नदी के प्रवाह पर सात पुल बने हुए हैं। इससे लगे विभिन्न नहरों एवं जलमार्गों में शिकारे भरे पड़े हैं। श्रीनगर अपने मन्दिरों और मस्ज़िदों के लिए प्रसिद्ध है। हज़रतबल मस्ज़िद पैग़म्बर मुहम्मद का एक बाल रखा होने के कारण विख्यात है और 15वीं शताब्दी में निर्मित जामा मस्ज़िद के बारे में कहा जाता है कि यह कश्मीर की सबसे बड़ी मस्ज़िद है। समीप स्थित शालीमार व निशान्त बाग़ और अपने तैरते हुए बग़ीचों के लिए सुविख्यात डल झील प्रमुख आकर्षण केन्द्र हैं। शहर के पास ही गुलमर्ग, फुलों की घाटी 2,590 मीटर की ऊँचाई पर स्थित हैं। जहाँ से हिमालय के उच्चतम शिखरों में से एक, नंगा पर्वत (ऊँचाई 8,126 मीटर) और कश्मीर घाटी का नयनाभिराम दृश्य दिखाई देता है। कश्मीर घाटी आसपास के क्षेत्रों में सबसे अधिक उपज वाला कृषि क्षेत्र है और यह घाटी का सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र भी है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राजतरंगिणी, 1, 5,104