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<h4>[[एक व्यक्तित्व]]</h4>
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         '''[[मोहन राकेश]]''' 'नई कहानी आन्दोलन' के साहित्यकार थे। [[हिन्दी]] [[नाटक]] के क्षितिज पर मोहन राकेश का उदय उस समय हुआ, जब स्वाधीनता के बाद पचास के दशक में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का ज्वार देश में जीवन के हर क्षेत्र को स्पन्दित कर रहा था। उनके नाटकों ने न सिर्फ़ नाटक का आस्वाद, तेवर और स्तर ही बदल दिया, बल्कि हिन्दी [[रंगमंच]] की दिशा को भी प्रभावित किया। आधुनिक हिन्दी साहित्य काल में मोहन राकेश ने अपने लेखन से दूर होते [[हिन्दी साहित्य]] को रंगमंच के क़रीब ला दिया और स्वयं को [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]] और [[जयशंकर प्रसाद]] के समकक्ष खड़ा कर दिया। [[मोहन राकेश|... और पढ़ें]]
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         '''[[राहुल सांकृत्यायन|महापण्डित राहुल सांकृत्यायन]]''' को '''हिन्दी यात्रा साहित्य''' का जनक माना जाता है। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद थे और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। [[बौद्ध धर्म]] पर उनका शोध [[हिन्दी साहित्य]] में युगान्तरकारी माना जाता है, जिसके लिए उन्होंने [[तिब्बत]] से लेकर [[श्रीलंका]] तक भ्रमण किया था। बौद्ध धर्म की ओर जब झुकाव हुआ तो [[पाली]], [[प्राकृत]], [[अपभ्रंश]], तिब्बती, चीनी, जापानी, एवं सिंहली भाषाओं की जानकारी लेते हुए सम्पूर्ण बौद्ध ग्रन्थों का मनन किया और सर्वश्रेष्ठ उपाधि 'त्रिपिटिका चार्य' की पदवी पायी। साम्यवाद के क्रोड़ में जब राहुल जी गये तो [[कार्ल मार्क्स]], लेनिन तथा स्तालिन के दर्शन से पूर्ण परिचय हुआ। प्रकारान्तर से राहुल जी [[इतिहास]], [[पुरातत्त्व]], [[स्थापत्य कला|स्थापत्य]], भाषाशास्त्र एवं [[राजनीति कोश|राजनीति शास्त्र]] के अच्छे ज्ञाता थे। [[राहुल सांकृत्यायन|... और पढ़ें]]
 
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| [[एक व्यक्तित्व|पिछले लेख]] →
| [[जयशंकर प्रसाद]] ·
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|[[ओंकारनाथ ठाकुर|पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर]]
| [[रामधारी सिंह 'दिनकर']] ·
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| [[जे. आर. डी. टाटा]]  
| [[सूरदास]] ·
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| [[आर. के. लक्ष्मण]]  
| [[सरदार पटेल]]  
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14:03, 6 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

एक व्यक्तित्व

Rahul Sankrityayan.JPG

        महापण्डित राहुल सांकृत्यायन को हिन्दी यात्रा साहित्य का जनक माना जाता है। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद थे और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिन्दी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है, जिसके लिए उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण किया था। बौद्ध धर्म की ओर जब झुकाव हुआ तो पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, जापानी, एवं सिंहली भाषाओं की जानकारी लेते हुए सम्पूर्ण बौद्ध ग्रन्थों का मनन किया और सर्वश्रेष्ठ उपाधि 'त्रिपिटिका चार्य' की पदवी पायी। साम्यवाद के क्रोड़ में जब राहुल जी गये तो कार्ल मार्क्स, लेनिन तथा स्तालिन के दर्शन से पूर्ण परिचय हुआ। प्रकारान्तर से राहुल जी इतिहास, पुरातत्त्व, स्थापत्य, भाषाशास्त्र एवं राजनीति शास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे। ... और पढ़ें

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