"सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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|मुख्य रचनाएँ=[[वीणा -सुमित्रानन्दन पंत|वीणा]], [[पल्लव -सुमित्रानन्दन पंत|पल्लव]], चिदंबरा, [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]], [[लोकायतन]], हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, [[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]], [[स्वर्णकिरण -सुमित्रानन्दन पंत|स्वर्णकिरण]], कला और बूढ़ा चाँद आदि   
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|मुख्य रचनाएँ=[[वीणा -सुमित्रानन्दन पंत|वीणा]], [[पल्लव -सुमित्रानन्दन पंत|पल्लव]], [[चिदंबरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदंबरा]], [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]], [[लोकायतन]], [[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]], [[स्वर्णकिरण -सुमित्रानन्दन पंत|स्वर्णकिरण]], कला और बूढ़ा चाँद आदि   
 
|विषय=गीत, कविताएँ
 
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'''सुमित्रानंदन पंत''' [[हिन्दी साहित्य]] में [[छायावादी युग]] के चार स्तंभों में से एक हैं। सुमित्रानंदन पंत उस नये युग के प्रवर्तक के रूप में आधुनिक हिन्दी साहित्य में उदित हुए। सुमित्रानंदन पंत का जन्म [[20 मई]] [[1900]] में [[कौसानी]], [[उत्तराखण्ड]], [[भारत]] में हुआ था। जन्म के छह घंटे बाद ही माँ को क्रूर मृत्यु ने छीन लिया। शिशु को उसकी दादी ने पाला पोसा। शिशु का नाम रखा गया गुसाई दत्त।
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'''सुमित्रानंदन पंत''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sumitranandan Pant'',  जन्म: [[20 मई]] [[1900]] - मृत्यु:  [[28 दिसंबर]], [[1977]]) [[हिन्दी साहित्य]] में [[छायावादी युग]] के चार स्तंभों में से एक हैं। सुमित्रानंदन पंत नये युग के प्रवर्तक के रूप में आधुनिक हिन्दी साहित्य में उदित हुए।
==शिक्षा==
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==जीवन परिचय==
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सुमित्रानंदन पंत का जन्म [[20 मई]] [[1900]] में [[कौसानी]], [[उत्तराखण्ड]], [[भारत]] में हुआ था। जन्म के छह घंटे बाद ही माँ को क्रूर मृत्यु ने छीन लिया। शिशु को उसकी दादी ने पाला पोसा। शिशु का नाम रखा गया गुसाई दत्त। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के सुकुमार कवि पंत की प्रारंभिक शिक्षा [[कौसानी]] गांव के स्कूल में हुई, फिर वह [[वाराणसी]] आ गए और जयनारायण हाईस्कूल में शिक्षा पाई, इसके बाद उन्होंने [[इलाहाबाद]] में म्योर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया, पर इंटरमीडिएट की परीक्षा में बैठने से पहले ही 1921 में [[असहयोग आंदोलन]] में शामिल हो गए।
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==स्वतंत्रता संग्राम में योगदान ==
 
[[चित्र:Pant.jpg|left|thumb|250px|[[कौसानी]] में महाकवि का दुर्लभ चित्र]]  
 
[[चित्र:Pant.jpg|left|thumb|250px|[[कौसानी]] में महाकवि का दुर्लभ चित्र]]  
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के सुकुमार कवि पंत की प्रारंभिक शिक्षा [[कौसानी]] गांव के स्कूल में हुई, फिर वह [[वाराणसी]] आ गए और जयनारायण हाईस्कूल में शिक्षा पाई, इसके बाद उन्होंने [[इलाहाबाद]] में म्योर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया, पर इंटरमीडिएट की परीक्षा में बैठने से पहले ही 1921 में [[असहयोग आंदोलन]] में शामिल हो गए।
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[[1921]] के [[असहयोग आंदोलन]] में उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था, पर देश के [[स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन|स्वतंत्रता संग्राम]] की गंभीरता के प्रति उनका ध्यान [[1930]] के [[नमक सत्याग्रह]] के समय से अधिक केंद्रित होने लगा, इन्हीं दिनों संयोगवश उन्हें कालाकांकर में ग्राम जीवन के अधिक निकट संपर्क में आने का अवसर मिला। उस ग्राम जीवन की पृष्ठभूमि में जो संवेदन उनके [[हृदय]] में अंकित होने लगे, उन्हें वाणी देने का प्रयत्न उन्होंने [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]] (1938) और [[ग्राम्या -सुमित्रनन्दन पंत|ग्राम्या]] (1940) में किया। यहाँ से उनका काव्य, युग के जीवन-संघर्ष तथा नई चेतना का दर्पण बन जाता है। [[स्वर्णकिरण -सुमित्रनन्दन पंत|स्वर्णकिरण]] तथा उसके बाद की रचनाओं में उन्होंने किसी आध्यात्मिक या दार्शनिक सत्य को वाणी न देकर व्यापक मानवीय सांस्कृतिक तत्त्व को अभिव्यक्ति दी, जिसमें अन्न प्राण, मन आत्मा, आदि मानव-जीवन के सभी स्वरों की चेतना को संयोजित करने का प्रयत्न किया गया।  
==स्वतंत्रता संग्राम ==
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==काव्य एवं साहित्य की साधना==
1921 के असहयोग आंदोलन में उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था, पर देश के स्वतंत्रता संग्राम की गंभीरता के प्रति उनका ध्यान 1930 के [[नमक सत्याग्रह]] के समय से अधिक केंद्रित होने लगा, इन्हीं दिनों संयोगवश उन्हें कालाकांकर में ग्राम जीवन के अधिक निकट संपर्क में आने का अवसर मिला। उस ग्राम जीवन की पृष्ठभूमि में जो संवेदन उनके हृदय में अंकित होने लगे, उन्हें वाणी देने का प्रयत्न उन्होंने [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]] (1938) और ग्राम्या (1940) में किया। यहाँ से उनका काव्य, युग के जीवन-संघर्ष तथा नई चेतना का दर्पण बन जाता है। स्वर्णकिरण तथा उसके बाद की रचनाओं में उन्होंने किसी आध्यात्मिक या दार्शनिक सत्य को वाणी न देकर व्यापक मानवीय सांस्कृतिक तत्त्व को अभिव्यक्ति दी, जिसमें अन्न प्राण, मन आत्मा, आदि मानव-जीवन के सभी स्वरों की चेतना को संयोजित करने का प्रयत्न किया गया।  
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पंत संघर्षों के एक लंबे दौर से गुज़रे, जिसके दौरान स्वयं को काव्य एवं साहित्य की साधना में लगाने के लिए उन्होंने अपनी आजीविका सुनिश्चित करने का प्रयास किया। बहुत पहले ही उन्होंने यह समझ लिया था कि उनके जीवन का लक्ष्य और कार्य यदि कोई है, तो वह काव्य साधना ही है। पंत की भाव-चेतना महाकवि [[रबींद्रनाथ ठाकुर]], [[महात्मा गांधी]] और श्री [[अरबिंदो घोष]] की रचनाओं से प्रभावित हुई। साथ ही कुछ मित्रों ने मार्क्सवाद के अध्ययन की ओर भी उन्हें प्रवृत किया और उसके विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पक्षों को उन्होंने गहराई से देखा व समझा। [[1950]] में रेडियो विभाग से जुड़ने से उनके जीवन में एक ओर मोड़ आया। सात वर्ष उन्होंने हिन्दी चीफ़ प्रोड्यूसर के पद पर कार्य किया और उसके बाद साहित्य सलाहकार के रूप में कार्यरत रहे।
==कुशल कवि==
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====युग प्रवर्तक कवि====
[[चित्र:Pant amitabh.jpg|left|thumb|250px|[[हरिवंशराय बच्चन]] और सदी के महानायक [[अमिताभ बच्चन]] के साथ महाकवि सुमित्रानंदन पंत ]]
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[[चित्र:Pant amitabh.jpg|left|thumb|250px|[[हरिवंशराय बच्चन]] और सदी के महानायक [[अमिताभ बच्चन]] के साथ महाकवि सुमित्रानंदन पंत]]
 
सुमित्रानंदन पंत आधुनिक [[हिन्दी साहित्य]] के एक युग प्रवर्तक कवि हैं। उन्होंने भाषा को निखार और संस्कार देने, उसकी सामर्थ्य को उद्घाटित करने के अतिरिक्त नवीन विचार व भावों की समृद्धि दी। पंत सदा ही अत्यंत सशक्त और ऊर्जावान कवि रहे हैं। सुमित्रानंदन पंत को मुख्यत: प्रकृति का कवि माना जाने लगा। लेकिन पंत वास्तव में मानव-सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना के भी कुशल कवि थे।
 
सुमित्रानंदन पंत आधुनिक [[हिन्दी साहित्य]] के एक युग प्रवर्तक कवि हैं। उन्होंने भाषा को निखार और संस्कार देने, उसकी सामर्थ्य को उद्घाटित करने के अतिरिक्त नवीन विचार व भावों की समृद्धि दी। पंत सदा ही अत्यंत सशक्त और ऊर्जावान कवि रहे हैं। सुमित्रानंदन पंत को मुख्यत: प्रकृति का कवि माना जाने लगा। लेकिन पंत वास्तव में मानव-सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना के भी कुशल कवि थे।
 
==काव्य एवं साहित्य की साधना==
 
पंत फिर संघर्षों के एक लंबे दौर से गुज़रे, जिसके दौरान स्वयं को काव्य एवं साहित्य की साधना में लगाने के लिए उन्होंने अपनी आजीविका सुनिश्चित करने का प्रयास किया। बहुत पहले ही उन्होंने यह समझ लिया था कि उनके जीवन का लक्ष्य और कार्य यदि कोई है, तो वह काव्य साधना ही है। पंत की भाव-चेतना महाकवि [[रबींद्रनाथ ठाकुर]], [[महात्मा गांधी]] और श्री [[अरबिंदो घोष]] की रचनाओं से प्रभावित हुई। साथ ही कुछ मित्रों ने मार्क्सवाद के अध्ययन की ओर भी उन्हें प्रवृत किया और उसके विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पक्षों को उन्होंने गहराई से देखा व समझा। [[1950]] में रेडियो विभाग से जुड़ने से उनके जीवन में एक ओर मोड़ आया। सात वर्ष उन्होंने हिन्दी चीफ़ प्रोड्यूसर के पद पर कार्य किया और उसके बाद साहित्य सलाहकार के रूप में कार्यरत रहे।
 
 
 
==रचनाकाल==
 
==रचनाकाल==
 
पंत का [[पल्लव पंत|पल्लव]], ज्योत्सना तथा गुंजन का रचनाकाल काल (1926-33) उनकी सौंदर्य एवं कला-साधना का काल रहा है। वह मुख्यत: भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आदर्शवादिता से अनुप्राणिक थे। किंतु युगांत (1937) तक आते-आते बहिर्जीवन के खिंचाव से उनके भावात्मक दृष्टिकोण में परिवर्तन आए। पन्तजी की रचनाओं का क्षेत्र बहुविध और बहुआयामी है। आपकी रचनाओं सा संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-
 
पंत का [[पल्लव पंत|पल्लव]], ज्योत्सना तथा गुंजन का रचनाकाल काल (1926-33) उनकी सौंदर्य एवं कला-साधना का काल रहा है। वह मुख्यत: भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आदर्शवादिता से अनुप्राणिक थे। किंतु युगांत (1937) तक आते-आते बहिर्जीवन के खिंचाव से उनके भावात्मक दृष्टिकोण में परिवर्तन आए। पन्तजी की रचनाओं का क्षेत्र बहुविध और बहुआयामी है। आपकी रचनाओं सा संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-
 
====महाकाव्य====
 
====महाकाव्य====
'[[लोकायतन]]' कवि पन्त का महाकाव्य है। कवि की विचारधारा और लोक-जीवन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता इस रचना में अभिव्यक्त हुई है। इस पर कवि को सोवियत रूस तथा [[उत्तर प्रदेश]] शासन से पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
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'[[लोकायतन]]' कवि पन्त का [[महाकाव्य]] है। कवि की विचारधारा और लोक-जीवन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता इस रचना में अभिव्यक्त हुई है। इस पर [[कवि]] को सोवियत रूस तथा [[उत्तर प्रदेश]] शासन से पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
 
====काव्य-संग्रह====
 
====काव्य-संग्रह====
'[[वीणा -सुमित्रानन्दन पंत|वीणा]]', '[[पल्लव -सुमित्रानन्दन पंत|पल्लव]]' तथा '[[गुंजन -सुमित्रानन्दन पंत|गुंजन]]' छायावादी शैली में सौन्दर्य और प्रेम की प्रस्तुति है। '[[युगांत -सुमित्रानन्दन पंत|युगान्त]]', [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]]' तथा '[[ग्राम्या -सुमित्रानन्दन पंत|ग्राम्या]]' में पन्तजी के प्रगतिवादी और यथार्थपरक भावों का प्रकाशन हुआ है। '[[स्वर्णकिरण -सुमित्रानन्दन पंत|स्वर्ण-किरण]]', 'स्वर्ण-धूलि', '[[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]]', 'उत्तरा', 'अतिमा', तथा 'रजत-रश्मि' संग्रहों में अरविन्द-दर्शन का प्रभाव परिलक्षित होता है। इनके अतिरिक्त 'कला' और बूढ़ा चाँद' तथा 'चिदम्बरा' भी आपकी सम्मानित रचनाएँ हैं। पन्तजी की अन्तर्दृष्टि तथा संवेदनशीलता ने जहाँ उनके भाव-पक्ष को गहराई और विविधता प्रदान की हैं, वहीं उनकी कल्पना-प्रबलता और अभिव्यक्ति-कौशल ने उनके कला-पक्ष को सँवारा है।
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'[[वीणा -सुमित्रानन्दन पंत|वीणा]]', '[[पल्लव -सुमित्रानन्दन पंत|पल्लव]]' तथा '[[गुंजन -सुमित्रानन्दन पंत|गुंजन]]' छायावादी शैली में सौन्दर्य और प्रेम की प्रस्तुति है। '[[युगांत -सुमित्रानन्दन पंत|युगान्त]]', [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]]' तथा '[[ग्राम्या -सुमित्रानन्दन पंत|ग्राम्या]]' में पन्तजी के प्रगतिवादी और यथार्थपरक भावों का प्रकाशन हुआ है। '[[स्वर्णकिरण -सुमित्रानन्दन पंत|स्वर्ण-किरण]]', '[[स्वर्णधूलि -सुमित्रनन्दन पंत|स्वर्ण-धूलि]]', '[[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]]', '[[उत्तरा -सुमित्रनन्दन पंत|उत्तरा]]', 'अतिमा', तथा 'रजत-रश्मि' संग्रहों में अरविन्द-दर्शन का प्रभाव परिलक्षित होता है। इनके अतिरिक्त 'कला और बूढ़ा चाँद' तथा '[[चिदम्बरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदम्बरा]]' भी आपकी सम्मानित रचनाएँ हैं। पन्तजी की अन्तर्दृष्टि तथा संवेदनशीलता ने जहाँ उनके भाव-पक्ष को गहराई और विविधता प्रदान की हैं, वहीं उनकी कल्पना-प्रबलता और अभिव्यक्ति-कौशल ने उनके कला-पक्ष को सँवारा है।
====रचनाएं====
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==रचनाएँ==
 
[[चित्र:Sumitranandan.jpg|thumb|सुमित्रानंदन पंत]]
 
[[चित्र:Sumitranandan.jpg|thumb|सुमित्रानंदन पंत]]
चिदंबरा 1958 का प्रकाशन है। इसमें युगवाणी ([[1937]]-38) से अतिमा ([[1948]]) तक कवि की 10 कृतियों से चुनी हुई 196 कविताएं संकलित हैं। एक लंबी आत्मकथात्मक कविता आत्मिका भी इसमें सम्मिलित है, जो वाणी ([[1957]]) से ली गई है। चिदंबरा पंत की काव्य चेतना के द्वितीय उत्थान की परिचायक है। प्रमुख रचनाएं इस प्रकार  है:-  
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[[चिदंबरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदंबरा]] [[1958]] का प्रकाशन है। इसमें [[युगवाणी -सुमित्रनन्दन पंत|युगवाणी]] ([[1937]]-38) से अतिमा ([[1948]]) तक कवि की 10 कृतियों से चुनी हुई 196 कविताएं संकलित हैं। एक लंबी आत्मकथात्मक कविता आत्मिका भी इसमें सम्मिलित है, जो वाणी ([[1957]]) से ली गई है। चिदंबरा पंत की काव्य चेतना के द्वितीय उत्थान की परिचायक है। प्रमुख रचनाएं इस प्रकार  है:-  
 
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{| class="bharattable-green"
'''कविताएं'''-  
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*[[वीणा पंत|वीणा]] ([[1919]]),
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*[[ग्रंथि पंत|ग्रंथि]]  ([[1920]]),
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; कविताएं   
*[[पल्लव पंत|पल्लव]] ([[1926]]),
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*[[वीणा पंत|वीणा]] ([[1919]])
*[[गुंजन पंत|गुंजन]] ([[1932]]),
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*[[ग्रंथि पंत|ग्रंथि]]  ([[1920]])
*[[युगांत]] ([[1937]]),
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*[[पल्लव पंत|पल्लव]] ([[1926]])
*[[युगवाणी पंत|युगवाणी]] ([[1938]]),
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*[[गुंजन पंत|गुंजन]] ([[1932]])
*[[ग्राम्या पंत|ग्राम्या]] ([[1940]]),
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*[[युगांत]] ([[1937]])
*[[स्वर्णकिरण पंत|स्वर्णकिरण]] ([[1947]]),
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*[[युगवाणी पंत|युगवाणी]] ([[1938]])
*[[स्वर्णधूलि पंत|स्वर्णधूलि]] ([[1947]]),
+
*[[ग्राम्या पंत|ग्राम्या]] ([[1940]])
*युगांतर ([[1948]]),
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*[[स्वर्णकिरण पंत|स्वर्णकिरण]] ([[1947]])
*[[उत्तरा पंत|उत्तरा]] ([[1949]]),
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*[[युगपथ पंत|युगपथ]] ([[1949]]),
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; कविताएं 
*चिदंबरा ([[1958]]),
+
*[[स्वर्णधूलि पंत|स्वर्णधूलि]] ([[1947]])
*कला और बूढ़ा चांद ([[1959]]),
+
*[[उत्तरा पंत|उत्तरा]] ([[1949]])
*[[लोकायतन]] ([[1964]]),
+
*[[युगपथ पंत|युगपथ]] ([[1949]])
 +
*[[चिदंबरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदंबरा]] ([[1958]])
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*कला और बूढ़ा चांद ([[1959]])
 +
*[[लोकायतन]] ([[1964]])
 
*गीतहंस ([[1969]])।
 
*गीतहंस ([[1969]])।
'''कहानियाँ'''-
+
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*पाँच कहानियाँ (1938),
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; कहानियाँ  
*उपन्यास- हार (1960),  
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*पाँच कहानियाँ (1938)
*आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष : एक रेखांकन ([[1963]])।
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; उपन्यास
 
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* हार (1960),  
==भाव पक्ष==
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; आत्मकथात्मक संस्मरण
पन्तजी के भाव-पक्ष का एक प्रमुख तत्त्व उनका मनोहारी प्रकृति चित्रण है। कौसानी की सौन्दर्यमयी प्राकृतिक छटा के बीच पन्तजी ने अपनी बाल-कल्पनाओं को रूपायित किया था। प्रकृति के प्रति उनका सहज आकर्षण उनकी रचनाओं के बहुत बड़े भाग को प्रभावित किए हुए है। प्रकृति के विविध आयामों और भंगिमाओं को हम पन्त के काव्य में रूपांकित देखते हैं। वह मानवी-कृता सहेली है, भावोद्दीपिका है, अभिव्यक्ति का आलम्बन है और अलंकृता प्रकृति-वधू भी है। इसके अतिरिक्त प्रकृति कवि पन्त के लिए उपदेशिका और दार्शनिक चिन्तन का आधार भी बनी है।
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* साठ वर्ष : एक रेखांकन ([[1963]])।
कवि पन्त को सामान्यतया कोमल-कान्त भावनाओं और सौन्दर्य का कवि समझा जाता है किन्तु जीवन के यथार्थों से सामना होने पर कवि में जीवन के प्रति यथार्थपरक और दार्शनिक दृष्टिकोण का विकास होता गया है। सर्वप्रथम पन्त मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित हुए, जिसका प्रभाव उनकी 'युगान्त', 'युगवाणी' आदि रचनाओं में परिलक्षित होता है। गाँधीवाद से भी आप प्रभावित दिखते हैं। '[[लोकायतन]]' में यह प्रभाव विद्यमान है। [[महर्षि अरविन्द]] की विचारधारा का भी आप पर गहरा प्रभाव पड़ा। 'गीत-विहग' रचना इसका उदाहरण है। सौन्दर्य और उल्लास के कवि पन्त को जीवन का निराशामय विरूप-पक्ष भी भोगना पड़ा और इसकी प्रतिक्रिया 'परिवर्तन' नामक रचना में दृष्टिगत होती है-
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==साहित्यिक विशेषताएँ==
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====भाव पक्ष====
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[[चित्र:Pant malyarpan.jpg|thumb|left|राजकीय संग्रहालय [[कौसानी]] में स्थापित महाकवि की मूर्ति]]
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पन्तजी के भाव-पक्ष का एक प्रमुख तत्त्व उनका मनोहारी प्रकृति चित्रण है। [[कौसानी]] की सौन्दर्यमयी प्राकृतिक छटा के बीच पन्तजी ने अपनी बाल-कल्पनाओं को रूपायित किया था। प्रकृति के प्रति उनका सहज आकर्षण उनकी रचनाओं के बहुत बड़े भाग को प्रभावित किए हुए है। प्रकृति के विविध आयामों और भंगिमाओं को हम पन्त के काव्य में रूपांकित देखते हैं। वह मानवी-कृता सहेली है, भावोद्दीपिका है, अभिव्यक्ति का आलम्बन है और अलंकृता प्रकृति-वधू भी है। इसके अतिरिक्त प्रकृति कवि पन्त के लिए उपदेशिका और दार्शनिक चिन्तन का आधार भी बनी है। कवि पन्त को सामान्यतया कोमल-कान्त भावनाओं और सौन्दर्य का कवि समझा जाता है किन्तु जीवन के यथार्थों से सामना होने पर कवि में जीवन के प्रति यथार्थपरक और दार्शनिक दृष्टिकोण का विकास होता गया है। सर्वप्रथम पन्त मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित हुए, जिसका प्रभाव उनकी 'युगान्त', 'युगवाणी' आदि रचनाओं में परिलक्षित होता है। गाँधीवाद से भी आप प्रभावित दिखते हैं। '[[लोकायतन]]' में यह प्रभाव विद्यमान है। [[महर्षि अरविन्द]] की विचारधारा का भी आप पर गहरा प्रभाव पड़ा। 'गीत-विहग' रचना इसका उदाहरण है। सौन्दर्य और उल्लास के कवि पन्त को जीवन का निराशामय विरूप-पक्ष भी भोगना पड़ा और इसकी प्रतिक्रिया 'परिवर्तन' नामक रचना में दृष्टिगत होती है-
 
<blockquote>अखिल यौवन के रंग उभार हड्डियों के हिलते कंकाल,<br />
 
<blockquote>अखिल यौवन के रंग उभार हड्डियों के हिलते कंकाल,<br />
   
 
 
खोलता इधर जन्म लोचन मूँदती उधर मृत्यु क्षण-क्षण।</blockquote>
 
खोलता इधर जन्म लोचन मूँदती उधर मृत्यु क्षण-क्षण।</blockquote>
पन्तजी के काव्य में मानवतावादी दृष्टि को भी सम्मानित स्थान प्राप्त है। वह मानवीय प्रतिष्ठा और मानव-जाति के भावी विकास में दृढ़ विश्वास रखते हैं। 'द्रुमों की छाया' और 'प्रकृति की माया' को छोड़कर जो पन्त 'बाला के बाल-जाल' में 'लोचन उलझाने' को प्रस्तुत नहीं थे, वही मानव को विधाता की सुन्दरतम कृति स्वीकार करते हैं-
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पन्तजी के [[काव्य]] में मानवतावादी दृष्टि को भी सम्मानित स्थान प्राप्त है। वह मानवीय प्रतिष्ठा और मानव-जाति के भावी विकास में दृढ़ विश्वास रखते हैं। 'द्रुमों की छाया' और 'प्रकृति की माया' को छोड़कर जो पन्त 'बाला के बाल-जाल' में 'लोचन उलझाने' को प्रस्तुत नहीं थे, वही मानव को विधाता की सुन्दरतम कृति स्वीकार करते हैं-
 
<blockquote>सुन्दर है विहग सुमन सुन्दर, मानव तुम सबसे सुन्दरतम।<br />
 
<blockquote>सुन्दर है विहग सुमन सुन्दर, मानव तुम सबसे सुन्दरतम।<br />
 
वह चाहते हैं कि देश, जाति और वर्गों में विभाजित मनुष्य की केवल एक ही पहचान हो-मानव।</blockquote>
 
वह चाहते हैं कि देश, जाति और वर्गों में विभाजित मनुष्य की केवल एक ही पहचान हो-मानव।</blockquote>
 
+
====भाषा-शैली====
==कला पक्ष==
+
कवि पन्त का भाषा पर असाधारण अधिकार है। भाव और विषय के अनुकूल मार्मिक शब्दावली उनकी लेखनी से सहज प्रवाहित होती है। यद्यपि पन्त की भाषा का एक विशिष्ट स्तर है फिर भी वह विषयानुसार परिवर्तित होती है। पन्तजी के काव्य में एकाधिक शैलियों का प्रयोग हुआ है। प्रकृति-चित्रण में भावात्मक, आलंकारिक तथा दृश्य विधायनी शैली का प्रयोग हुआ है। विचार-प्रधान तथा दार्शनिक विषयों की शैली विचारात्मक एवं विश्लेषणात्मक भी हो गई है। इसके अतिरिक्त प्रतीक-शैली का प्रयोग भी हुआ है। सजीव बिम्ब-विधान तथा ध्वन्यात्मकता भी आपकी रचना-शैली की विशेषताएँ हैं।
====भाषा====
 
कवि पन्त का भाषा पर असाधारण अधिकार है। भाव और विषय के अनुकूल मार्मिक शब्दावली उनकी लेखनी से सहज प्रवाहित होती है। यद्यपि पन्त की भाषा का एक विशिष्ट स्तर है फिर भी वह विषयानुसार परिवर्तित होती है।
 
 
 
====शैली====
 
पन्तजी के काव्य में एकाधिक शैलियों का प्रयोग हुआ है। प्रकृति-चित्रण में भावात्मक, आलंकारिक तथा दृश्य विधायनी शैली का प्रयोग हुआ है। विचार-प्रधान तथा दार्शनिक विषयों की शैली विचारात्मक एवं विश्लेषणात्मक भी हो गई है। इसके अतिरिक्त प्रतीक-शैली का प्रयोग भी हुआ है। सजीव बिम्ब-विधान तथा ध्वन्यात्मकता भी आपकी रचना-शैली की विशेषताएँ हैं।
 
 
====अलंकरण====
 
====अलंकरण====
पन्तजी ने परम्परागत एवं नवीन, दोनों ही प्रकार के अलंकारों का भव्यता से प्रयोग किया है। बिम्बों की मौलिकता तथा उपमानों की मार्मिकता हृदयहारिणी है। रूपक, उपमा, सांगरूपक, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय तथा ध्वन्यर्थ-व्यंजना का आकर्षक प्रयोग आपने किया है।
+
पन्तजी ने परम्परागत एवं नवीन, दोनों ही प्रकार के अलंकारों का भव्यता से प्रयोग किया है। बिम्बों की मौलिकता तथा उपमानों की मार्मिकता हृदयहारिणी है। [[रूपक अलंकार|रूपक]], [[उपमा अलंकार|उपमा]], सांगरूपक, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय तथा ध्वन्यर्थ-व्यंजना का आकर्षक प्रयोग आपने किया है।
 
====छंद====
 
====छंद====
पन्तजी ने परम्परागत छन्दों के साथ-साथ नवीन छंदों की भी रचना की है। आपने गेयता और ध्वनि-प्रभाव पर ही बल दिया है, मात्राओं और वर्णों के क्रम तथा संख्या पर नहीं। प्रकृति के चितेरे तथा छायावादी कवि के रूप में पन्तजी का स्थान निश्चय ही विशिष्ट है। हिन्दी की लालित्यपूर्ण और संस्कारित खड़ी-बोली भी पन्तजी की देन है। पन्तजी विश्व-साहित्य में भी अपना स्थान बना गए हैं।
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पन्तजी ने परम्परागत [[छन्द|छन्दों]] के साथ-साथ नवीन छंदों की भी रचना की है। आपने गेयता और ध्वनि-प्रभाव पर ही बल दिया है, मात्राओं और वर्णों के क्रम तथा संख्या पर नहीं। प्रकृति के चितेरे तथा छायावादी कवि के रूप में पन्तजी का स्थान निश्चय ही विशिष्ट है। [[हिन्दी]] की लालित्यपूर्ण और संस्कारित [[खड़ी बोली]] भी पन्तजी की देन है। पन्तजी विश्व-साहित्य में भी अपना स्थान बना गए हैं।
 
==पुरस्कार==
 
==पुरस्कार==
सुमित्रानंदन पंत को अन्य पुरस्कारों के अलावा [[पद्म भूषण]] (1961) और [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] (1968) से सम्मानित किया गया। '''कला और बूढ़ा चाँद''' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, '''लोकायतन''' पर 'सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार' एवं '''चिदंबरा''' पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
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[[चित्र:Pant_sagrahalay.jpg|right|thumb|250px|महाकवि की स्मृतियों को संजोता राजकीय संग्रहालय]]
 
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सुमित्रानंदन पंत को [[पद्म भूषण]] ([[1961]]) और [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] ([[1968]]) से सम्मानित किया गया। '''कला और बूढ़ा चाँद''' के लिए [[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]], '''[[लोकायतन -सुमित्रनन्दन पंत|लोकायतन]]''' पर 'सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार' एवं '[[चिदंबरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदंबरा]]' पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
[[चित्र:Pant malyarpan.jpg|left|thumb|250px|राजकीय संग्रहालय [[कौसानी]] में स्थापित महाकवि की मूर्ति]] [[चित्र:Pant_sagrahalay.jpg|right|thumb|250px|महाकवि की स्मृतियों को संजोता राजकीय संग्रहालय]]
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[[कौसानी]] चाय बागान के व्यवस्थापक के परिवार में जन्मे महाकवि सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु [[28 दिसम्बर]], [[1977]] को [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] में हो गयी थी। [[उत्तराखंड]] राज्य के कौसानी में महाकवि की जन्म स्थली को सरकारी तौर पर अधिग्रहीत कर उनके नाम पर एक राजकीय संग्रहालय बनाया गया है जिसकी देखरेख एक स्थानीय व्यक्ति करता है। इस स्थल के प्रवेश द्वार से लगे भवन की छत पर महाकवि की मूर्ति स्थापित है। वर्ष [[1990]] में स्थापित इस मूर्ति का का अनावरण वयोवृद्ध साहित्यकार तथा इतिहासवेत्ता पंडित नित्यनांद मिश्र द्वारा उनके जन्म दिवस [[20 मई]] को किया गया था। महाकवि सुमित्रानंदन पंत का पैत्रक ग्राम यहां से कुछ ही दूरी पर है परन्तु वह आज भी अनजाना तथा तिरस्कृत है। संग्रहालय में महाकवि द्वारा उपयोग में लायी गयी दैनिक वस्तुयें यथा शाल, दीपक, पुस्तकों की आलमारी तथा महाकवि को समर्पित कुछ सम्मान-पत्र एवं पुस्तकें तथा हस्तलिपि सुरक्षित है।
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09:40, 13 सितम्बर 2013 का अवतरण

सुमित्रानंदन पंत
Sumitranandan-Pant.jpg
पूरा नाम सुमित्रानंदन पंत
अन्य नाम गुसाई दत्त
जन्म 20 मई 1900
जन्म भूमि कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
कर्म भूमि इलाहाबाद
कर्म-क्षेत्र अध्यापक, लेखक, कवि
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
विषय गीत, कविताएँ
भाषा हिन्दी
विद्यालय जयनारायण हाईस्कूल, म्योर सेंट्रल कॉलेज
पुरस्कार-उपाधि ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, लोकायतन पर सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
आंदोलन रहस्यवाद व प्रगतिवाद
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
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सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ
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सुमित्रानंदन पंत (अंग्रेज़ी: Sumitranandan Pant, जन्म: 20 मई 1900 - मृत्यु: 28 दिसंबर, 1977) हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक हैं। सुमित्रानंदन पंत नये युग के प्रवर्तक के रूप में आधुनिक हिन्दी साहित्य में उदित हुए।

जीवन परिचय

सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 में कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत में हुआ था। जन्म के छह घंटे बाद ही माँ को क्रूर मृत्यु ने छीन लिया। शिशु को उसकी दादी ने पाला पोसा। शिशु का नाम रखा गया गुसाई दत्त। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के सुकुमार कवि पंत की प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव के स्कूल में हुई, फिर वह वाराणसी आ गए और जयनारायण हाईस्कूल में शिक्षा पाई, इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद में म्योर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया, पर इंटरमीडिएट की परीक्षा में बैठने से पहले ही 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

कौसानी में महाकवि का दुर्लभ चित्र

1921 के असहयोग आंदोलन में उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था, पर देश के स्वतंत्रता संग्राम की गंभीरता के प्रति उनका ध्यान 1930 के नमक सत्याग्रह के समय से अधिक केंद्रित होने लगा, इन्हीं दिनों संयोगवश उन्हें कालाकांकर में ग्राम जीवन के अधिक निकट संपर्क में आने का अवसर मिला। उस ग्राम जीवन की पृष्ठभूमि में जो संवेदन उनके हृदय में अंकित होने लगे, उन्हें वाणी देने का प्रयत्न उन्होंने युगवाणी (1938) और ग्राम्या (1940) में किया। यहाँ से उनका काव्य, युग के जीवन-संघर्ष तथा नई चेतना का दर्पण बन जाता है। स्वर्णकिरण तथा उसके बाद की रचनाओं में उन्होंने किसी आध्यात्मिक या दार्शनिक सत्य को वाणी न देकर व्यापक मानवीय सांस्कृतिक तत्त्व को अभिव्यक्ति दी, जिसमें अन्न प्राण, मन आत्मा, आदि मानव-जीवन के सभी स्वरों की चेतना को संयोजित करने का प्रयत्न किया गया।

काव्य एवं साहित्य की साधना

पंत संघर्षों के एक लंबे दौर से गुज़रे, जिसके दौरान स्वयं को काव्य एवं साहित्य की साधना में लगाने के लिए उन्होंने अपनी आजीविका सुनिश्चित करने का प्रयास किया। बहुत पहले ही उन्होंने यह समझ लिया था कि उनके जीवन का लक्ष्य और कार्य यदि कोई है, तो वह काव्य साधना ही है। पंत की भाव-चेतना महाकवि रबींद्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी और श्री अरबिंदो घोष की रचनाओं से प्रभावित हुई। साथ ही कुछ मित्रों ने मार्क्सवाद के अध्ययन की ओर भी उन्हें प्रवृत किया और उसके विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पक्षों को उन्होंने गहराई से देखा व समझा। 1950 में रेडियो विभाग से जुड़ने से उनके जीवन में एक ओर मोड़ आया। सात वर्ष उन्होंने हिन्दी चीफ़ प्रोड्यूसर के पद पर कार्य किया और उसके बाद साहित्य सलाहकार के रूप में कार्यरत रहे।

युग प्रवर्तक कवि

हरिवंशराय बच्चन और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के साथ महाकवि सुमित्रानंदन पंत

सुमित्रानंदन पंत आधुनिक हिन्दी साहित्य के एक युग प्रवर्तक कवि हैं। उन्होंने भाषा को निखार और संस्कार देने, उसकी सामर्थ्य को उद्घाटित करने के अतिरिक्त नवीन विचार व भावों की समृद्धि दी। पंत सदा ही अत्यंत सशक्त और ऊर्जावान कवि रहे हैं। सुमित्रानंदन पंत को मुख्यत: प्रकृति का कवि माना जाने लगा। लेकिन पंत वास्तव में मानव-सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना के भी कुशल कवि थे।

रचनाकाल

पंत का पल्लव, ज्योत्सना तथा गुंजन का रचनाकाल काल (1926-33) उनकी सौंदर्य एवं कला-साधना का काल रहा है। वह मुख्यत: भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आदर्शवादिता से अनुप्राणिक थे। किंतु युगांत (1937) तक आते-आते बहिर्जीवन के खिंचाव से उनके भावात्मक दृष्टिकोण में परिवर्तन आए। पन्तजी की रचनाओं का क्षेत्र बहुविध और बहुआयामी है। आपकी रचनाओं सा संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

महाकाव्य

'लोकायतन' कवि पन्त का महाकाव्य है। कवि की विचारधारा और लोक-जीवन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता इस रचना में अभिव्यक्त हुई है। इस पर कवि को सोवियत रूस तथा उत्तर प्रदेश शासन से पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

काव्य-संग्रह

'वीणा', 'पल्लव' तथा 'गुंजन' छायावादी शैली में सौन्दर्य और प्रेम की प्रस्तुति है। 'युगान्त', युगवाणी' तथा 'ग्राम्या' में पन्तजी के प्रगतिवादी और यथार्थपरक भावों का प्रकाशन हुआ है। 'स्वर्ण-किरण', 'स्वर्ण-धूलि', 'युगपथ', 'उत्तरा', 'अतिमा', तथा 'रजत-रश्मि' संग्रहों में अरविन्द-दर्शन का प्रभाव परिलक्षित होता है। इनके अतिरिक्त 'कला और बूढ़ा चाँद' तथा 'चिदम्बरा' भी आपकी सम्मानित रचनाएँ हैं। पन्तजी की अन्तर्दृष्टि तथा संवेदनशीलता ने जहाँ उनके भाव-पक्ष को गहराई और विविधता प्रदान की हैं, वहीं उनकी कल्पना-प्रबलता और अभिव्यक्ति-कौशल ने उनके कला-पक्ष को सँवारा है।

रचनाएँ

सुमित्रानंदन पंत

चिदंबरा 1958 का प्रकाशन है। इसमें युगवाणी (1937-38) से अतिमा (1948) तक कवि की 10 कृतियों से चुनी हुई 196 कविताएं संकलित हैं। एक लंबी आत्मकथात्मक कविता आत्मिका भी इसमें सम्मिलित है, जो वाणी (1957) से ली गई है। चिदंबरा पंत की काव्य चेतना के द्वितीय उत्थान की परिचायक है। प्रमुख रचनाएं इस प्रकार है:-

कविताएं
कविताएं
कहानियाँ
  • पाँच कहानियाँ (1938)
उपन्यास
  • हार (1960),
आत्मकथात्मक संस्मरण
  • साठ वर्ष : एक रेखांकन (1963)।

साहित्यिक विशेषताएँ

भाव पक्ष

राजकीय संग्रहालय कौसानी में स्थापित महाकवि की मूर्ति

पन्तजी के भाव-पक्ष का एक प्रमुख तत्त्व उनका मनोहारी प्रकृति चित्रण है। कौसानी की सौन्दर्यमयी प्राकृतिक छटा के बीच पन्तजी ने अपनी बाल-कल्पनाओं को रूपायित किया था। प्रकृति के प्रति उनका सहज आकर्षण उनकी रचनाओं के बहुत बड़े भाग को प्रभावित किए हुए है। प्रकृति के विविध आयामों और भंगिमाओं को हम पन्त के काव्य में रूपांकित देखते हैं। वह मानवी-कृता सहेली है, भावोद्दीपिका है, अभिव्यक्ति का आलम्बन है और अलंकृता प्रकृति-वधू भी है। इसके अतिरिक्त प्रकृति कवि पन्त के लिए उपदेशिका और दार्शनिक चिन्तन का आधार भी बनी है। कवि पन्त को सामान्यतया कोमल-कान्त भावनाओं और सौन्दर्य का कवि समझा जाता है किन्तु जीवन के यथार्थों से सामना होने पर कवि में जीवन के प्रति यथार्थपरक और दार्शनिक दृष्टिकोण का विकास होता गया है। सर्वप्रथम पन्त मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित हुए, जिसका प्रभाव उनकी 'युगान्त', 'युगवाणी' आदि रचनाओं में परिलक्षित होता है। गाँधीवाद से भी आप प्रभावित दिखते हैं। 'लोकायतन' में यह प्रभाव विद्यमान है। महर्षि अरविन्द की विचारधारा का भी आप पर गहरा प्रभाव पड़ा। 'गीत-विहग' रचना इसका उदाहरण है। सौन्दर्य और उल्लास के कवि पन्त को जीवन का निराशामय विरूप-पक्ष भी भोगना पड़ा और इसकी प्रतिक्रिया 'परिवर्तन' नामक रचना में दृष्टिगत होती है-

अखिल यौवन के रंग उभार हड्डियों के हिलते कंकाल,
खोलता इधर जन्म लोचन मूँदती उधर मृत्यु क्षण-क्षण।

पन्तजी के काव्य में मानवतावादी दृष्टि को भी सम्मानित स्थान प्राप्त है। वह मानवीय प्रतिष्ठा और मानव-जाति के भावी विकास में दृढ़ विश्वास रखते हैं। 'द्रुमों की छाया' और 'प्रकृति की माया' को छोड़कर जो पन्त 'बाला के बाल-जाल' में 'लोचन उलझाने' को प्रस्तुत नहीं थे, वही मानव को विधाता की सुन्दरतम कृति स्वीकार करते हैं-

सुन्दर है विहग सुमन सुन्दर, मानव तुम सबसे सुन्दरतम।
वह चाहते हैं कि देश, जाति और वर्गों में विभाजित मनुष्य की केवल एक ही पहचान हो-मानव।

भाषा-शैली

कवि पन्त का भाषा पर असाधारण अधिकार है। भाव और विषय के अनुकूल मार्मिक शब्दावली उनकी लेखनी से सहज प्रवाहित होती है। यद्यपि पन्त की भाषा का एक विशिष्ट स्तर है फिर भी वह विषयानुसार परिवर्तित होती है। पन्तजी के काव्य में एकाधिक शैलियों का प्रयोग हुआ है। प्रकृति-चित्रण में भावात्मक, आलंकारिक तथा दृश्य विधायनी शैली का प्रयोग हुआ है। विचार-प्रधान तथा दार्शनिक विषयों की शैली विचारात्मक एवं विश्लेषणात्मक भी हो गई है। इसके अतिरिक्त प्रतीक-शैली का प्रयोग भी हुआ है। सजीव बिम्ब-विधान तथा ध्वन्यात्मकता भी आपकी रचना-शैली की विशेषताएँ हैं।

अलंकरण

पन्तजी ने परम्परागत एवं नवीन, दोनों ही प्रकार के अलंकारों का भव्यता से प्रयोग किया है। बिम्बों की मौलिकता तथा उपमानों की मार्मिकता हृदयहारिणी है। रूपक, उपमा, सांगरूपक, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय तथा ध्वन्यर्थ-व्यंजना का आकर्षक प्रयोग आपने किया है।

छंद

पन्तजी ने परम्परागत छन्दों के साथ-साथ नवीन छंदों की भी रचना की है। आपने गेयता और ध्वनि-प्रभाव पर ही बल दिया है, मात्राओं और वर्णों के क्रम तथा संख्या पर नहीं। प्रकृति के चितेरे तथा छायावादी कवि के रूप में पन्तजी का स्थान निश्चय ही विशिष्ट है। हिन्दी की लालित्यपूर्ण और संस्कारित खड़ी बोली भी पन्तजी की देन है। पन्तजी विश्व-साहित्य में भी अपना स्थान बना गए हैं।

पुरस्कार

महाकवि की स्मृतियों को संजोता राजकीय संग्रहालय

सुमित्रानंदन पंत को पद्म भूषण (1961) और ज्ञानपीठ पुरस्कार (1968) से सम्मानित किया गया। कला और बूढ़ा चाँद के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, लोकायतन पर 'सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार' एवं 'चिदंबरा' पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।

मृत्यु

कौसानी चाय बागान के व्यवस्थापक के परिवार में जन्मे महाकवि सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु 28 दिसम्बर, 1977 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हो गयी थी। उत्तराखंड राज्य के कौसानी में महाकवि की जन्म स्थली को सरकारी तौर पर अधिग्रहीत कर उनके नाम पर एक राजकीय संग्रहालय बनाया गया है जिसकी देखरेख एक स्थानीय व्यक्ति करता है। इस स्थल के प्रवेश द्वार से लगे भवन की छत पर महाकवि की मूर्ति स्थापित है। वर्ष 1990 में स्थापित इस मूर्ति का का अनावरण वयोवृद्ध साहित्यकार तथा इतिहासवेत्ता पंडित नित्यनांद मिश्र द्वारा उनके जन्म दिवस 20 मई को किया गया था। महाकवि सुमित्रानंदन पंत का पैत्रक ग्राम यहां से कुछ ही दूरी पर है परन्तु वह आज भी अनजाना तथा तिरस्कृत है। संग्रहालय में महाकवि द्वारा उपयोग में लायी गयी दैनिक वस्तुयें यथा शाल, दीपक, पुस्तकों की आलमारी तथा महाकवि को समर्पित कुछ सम्मान-पत्र एवं पुस्तकें तथा हस्तलिपि सुरक्षित है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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