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दीवार पर मन्दिर के बाहर बने विशालकाय चक्र पर्यटकों का ध्यान खींच लेते हैं। हर चक्र का व्यास तीन मीटर से ज्यादा है। चक्रों के नीचे हाथियों के समूह को बेहद बारीक़ी से उकेरा गया है। सूर्य देवता के रथ के चबूतरे पर बारह जोड़ी चक्र हैं, जो साल के बारह महीने के प्रतीक हैं।
 
दीवार पर मन्दिर के बाहर बने विशालकाय चक्र पर्यटकों का ध्यान खींच लेते हैं। हर चक्र का व्यास तीन मीटर से ज्यादा है। चक्रों के नीचे हाथियों के समूह को बेहद बारीक़ी से उकेरा गया है। सूर्य देवता के रथ के चबूतरे पर बारह जोड़ी चक्र हैं, जो साल के बारह महीने के प्रतीक हैं।
  
पौराणिक भारत के अलग-अलग प्रान्तों में धर्मिक उत्सवों के दौरान शोभायात्रा में देव मूर्तियों को लकड़ी के बने रथ पर सजा कर श्रद्धालुओं के बीच में ले जाया जाता था। इसीलिए यह माना जाता है कि सूर्य के इस मन्दिर को रथ का रूप दे दिया गया होगा।
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पौराणिक भारत के अलग-अलग प्रान्तों में धर्मिक उत्सवों के दौरान शोभायात्रा में देव मूर्तियों को लकड़ी के बने रथ पर सजा कर श्रद्धालुओं के बीच में ले जाया जाता था। इसीलिए यह माना जाता है कि सूर्य के इस मन्दिर को रथ का रूप दे दिया गया होगा।<ref>{{cite web |url= http://www.aadhiabadi.com/content/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%B0%E0%A4%A5-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%95-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%BE%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0-0> |title=सूर्य के दिव्य रथ का प्रतीक है कोर्णाक सूर्यमन्दिर |accessmonthday=[[15 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format= |publisher=आधी आबादी डॉट कॉम |language=हिन्दी }}</ref>
 
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12:48, 15 सितम्बर 2010 का अवतरण

सूर्य मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी ज़िले के पुरी नामक शहर में स्थित है। कोणार्क सूर्य मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर कोणार्क की रेतीली भूमि पर स्थित है। पुरातत्व और ऐतिहासिक दृष्टि से यह मंदिर बड़ा महत्वपूर्ण हैं।

वास्तु रचना

सूर्यमन्दिर भारत का इकलौता सूर्य मन्दिर है जो पूरी दुनिया में अपनी भव्यता और बनावट के लिए जाना जाता है। सूर्य मन्दिर उड़ीसा की राजधनी भुवनेश्वर से 65 किलोमीटर दूर कोणार्क मे अपने समय की उत्कृष्ट वास्तु रचना है। पूर्वी गंग वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम ने सूर्य मन्दिर को तेरहवीं शताब्दी में बनवाया था। प्राचीन उड़िया स्थापत्य कला का यह मन्दिर बेजोड़ उदाहरण है। सूर्य मन्दिर की रचना इस तरह से की गई है कि यह सभी को आकर्षित करती है। सूर्य को ऊर्जा, जीवन और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। सूर्य देवता की सभी संस्कृतियों में पूजा की जाती रही है। सूर्य की इस मन्दिर में मानवीय आकार में मूर्ति है जो अन्य कहीं नहीं है। इस मंदिर को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि अपने सात घोड़े वाले रथ पर विराजमान सूर्य देव अभी-अभी कहीं प्रस्थान करने वाले हैं। यह मूर्ति सूर्य मन्दिर की सबसे भव्य मूतियों में से एक है। सूर्य की चार पत्नियाँ रजनी, निक्षुभा, छाया और सुवर्चसा मूर्ति के दोनों तरफ हैं। सूर्य की मूर्ति के चरणों के पास ही रथ का सारथी अरुण भी उपस्थित है।

कला का अद्वितीय मन्दिर

कोर्णाक सूर्य मन्दिर कला का सुन्दर उदाहरण है। इस मन्दिर की मूर्तियाँ लेहराइट, क्लोराइट और खोण्डोलाइट नाम के पत्थरों से बनाई गई हैं। कोर्णाक में ये पत्थर नहीं पाए जाते, इसलिए यह अनुमान लगाया जाता है कि नरसिंह देव ने इसे बाहर से मंगवाया होगा। इस मन्दिर के तीन हिस्से हैं। नृत्यमन्दिर,जगमोहन मन्दिर गर्भगृह। मन्दिर की दीवारों पर कई प्राकृतिक दृश्य, पशु-पक्षी और अप्सराओं के अलावा कामसूत्रा पर आधारित मूर्तियाँ भी हैं।

बारह महीने के प्रतीक चक्र

दीवार पर मन्दिर के बाहर बने विशालकाय चक्र पर्यटकों का ध्यान खींच लेते हैं। हर चक्र का व्यास तीन मीटर से ज्यादा है। चक्रों के नीचे हाथियों के समूह को बेहद बारीक़ी से उकेरा गया है। सूर्य देवता के रथ के चबूतरे पर बारह जोड़ी चक्र हैं, जो साल के बारह महीने के प्रतीक हैं।

पौराणिक भारत के अलग-अलग प्रान्तों में धर्मिक उत्सवों के दौरान शोभायात्रा में देव मूर्तियों को लकड़ी के बने रथ पर सजा कर श्रद्धालुओं के बीच में ले जाया जाता था। इसीलिए यह माना जाता है कि सूर्य के इस मन्दिर को रथ का रूप दे दिया गया होगा।[1]

सूर्य मंदिर, कोणार्क
Sun Temple, Konark

वीथिका

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. > सूर्य के दिव्य रथ का प्रतीक है कोर्णाक सूर्यमन्दिर (हिन्दी) आधी आबादी डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 15 सितंबर, 2010