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किंतु युवानच्वांग के समय तक (7वीं शती ई.) 'हरद्वार' का 'मायापुरी' नाम ही अधिक प्रचलित था। [[मध्य काल]] में इस स्थान की कई प्राचीन बस्तियों को, जिनमें 'मायापुरी', 'कनखल', 'ज्वालापुर' और 'भीमगोड़ा' मुख्य हैं, सामूहिक रूप से 'हरिद्वार' कहा जाने लगा था। हरिद्वार का सदा से ही [[ऋषि|ऋषियों]] की तपोभूमि माना जाता रहा है। कहा जाता है कि स्वर्गारोहण से पूर्व देवी लक्ष्मी ने 'लक्ष्मण झूला' स्थान के निकट तपस्या की थी।
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किंतु युवानच्वांग के समय तक (7वीं शती ई.) 'हरद्वार' का 'मायापुरी' नाम ही अधिक प्रचलित था। [[मध्य काल]] में इस स्थान की कई प्राचीन बस्तियों को, जिनमें 'मायापुरी', '[[कनखल]]', 'ज्वालापुर' और 'भीमगोड़ा' मुख्य हैं, सामूहिक रूप से 'हरिद्वार' कहा जाने लगा था। हरिद्वार का सदा से ही [[ऋषि|ऋषियों]] की तपोभूमि माना जाता रहा है। कहा जाता है कि स्वर्गारोहण से पूर्व देवी लक्ष्मी ने 'लक्ष्मण झूला' स्थान के निकट तपस्या की थी।
 
==पौराणिक उल्लेख==
 
==पौराणिक उल्लेख==
 
[[भारत]] के पौराणिक ग्रंथों और उपनिषदों में हरिद्वार को मायापुरी कहा गया है। कहा जाता है [[समुद्र मंथन]] से प्राप्त किया गया अमृत यहाँ गिरा था। इसी कारण यहाँ [[कुंभ मेला|कुंभ का मेला]] आयोजित किया जाता है। बारह वर्ष में आयोजित होने वाले कुंभ के मेले का यह महत्त्वपूर्ण स्थल है। पिछला कुंभ का मेला [[1998]] में आयोजित किया गया था। अगला कुंभ का मेला [[2010]] में यहाँ आयोजित किया ग्या था। हरिद्वार में ही राजा [[धृतराष्ट्र]] के मन्त्री [[विदुर]] ने [[मैत्री]] मुनि के यहाँ अध्ययन किया था। [[कपिल मुनि]] ने भी यहाँ तपस्या की थी। [[चित्र:Aarti-Kumbh-Mela-Haridwar.jpg|thumb|250px|left|आरती [[कुंभ मेला]], हरिद्वार<br /> Aarti Kumbh Mela, Haridwar]] इसलिए इस स्थान को कपिलास्थान भी कहा जाता है। कहा जाता है कि राजा श्वेत ने हर की पौड़ी में भगवान [[ब्रह्मा]] की पूजा की थी। राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने जब वरदान मांगने को कहा तो राजा ने वरदान मांगा कि इस स्थान को ईश्वर के नाम से जाना जाए। तब से हर की पौड़ी के [[जल]] को ब्रह्मकुण्ड के नाम से भी जाना जाता है।
 
[[भारत]] के पौराणिक ग्रंथों और उपनिषदों में हरिद्वार को मायापुरी कहा गया है। कहा जाता है [[समुद्र मंथन]] से प्राप्त किया गया अमृत यहाँ गिरा था। इसी कारण यहाँ [[कुंभ मेला|कुंभ का मेला]] आयोजित किया जाता है। बारह वर्ष में आयोजित होने वाले कुंभ के मेले का यह महत्त्वपूर्ण स्थल है। पिछला कुंभ का मेला [[1998]] में आयोजित किया गया था। अगला कुंभ का मेला [[2010]] में यहाँ आयोजित किया ग्या था। हरिद्वार में ही राजा [[धृतराष्ट्र]] के मन्त्री [[विदुर]] ने [[मैत्री]] मुनि के यहाँ अध्ययन किया था। [[कपिल मुनि]] ने भी यहाँ तपस्या की थी। [[चित्र:Aarti-Kumbh-Mela-Haridwar.jpg|thumb|250px|left|आरती [[कुंभ मेला]], हरिद्वार<br /> Aarti Kumbh Mela, Haridwar]] इसलिए इस स्थान को कपिलास्थान भी कहा जाता है। कहा जाता है कि राजा श्वेत ने हर की पौड़ी में भगवान [[ब्रह्मा]] की पूजा की थी। राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने जब वरदान मांगने को कहा तो राजा ने वरदान मांगा कि इस स्थान को ईश्वर के नाम से जाना जाए। तब से हर की पौड़ी के [[जल]] को ब्रह्मकुण्ड के नाम से भी जाना जाता है।

14:08, 1 मार्च 2014 का अवतरण

गंगा नदी, हरिद्वार
Ganga River, Haridwar

हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के सात सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। पवित्र गंगा नदी के किनारे बसे 'हरिद्वार' का शाब्दिक अर्थ है- 'हरि तक पहुँचने का द्वार'। यह शहर, पश्चिमोत्तर उत्तरांचल राज्य [1], उत्तरी भारत में स्थित है। हरिद्वार को "धर्म की नगरी" माना जाता है। सैकडों वर्षों से लोग मोक्ष की तलाश में इस पवित्र भूमि में आते रहे हैं। इस शहर की पवित्र नदी गंगा में डुबकी लगाने और अपने पापों का नाश करने के लिए वर्ष भर श्रद्धालुओं का आना-जाना यहाँ लगा रहता है। गंगा नदी पहाड़ी इलाकों को पीछे छोड़ती हुई हरिद्वार से ही मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। उत्तराखंड क्षेत्र के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों का प्रवेश द्वार हरिद्वार ही है। संपूर्ण हरिद्वार में सिद्धपीठ, शक्तिपीठ और अनेक नए पुराने मंदिर बने हुए हैं।

प्राचीनता

'हरिद्वार' शिवालिक पहाड़ियों के कोड में बसा हुआ हिन्दू धर्म के अनुयायियों का प्रसिद्ध प्राचीन तीर्थ स्थान है। यहाँ पहाड़ियों से निकल कर भागीरथी गंगा पहली बार मैदानी क्षेत्र में आती है। गंगा के उत्तरी भाग में बसे हुए 'बदरीनारायण' तथा 'केदारनाथ' नामक भगवान विष्णु और शिव के प्रसिद्ध तीर्थों के लिये इसी स्थान से मार्ग जाता है। इसीलिए इसे 'हरिद्वार' तथा 'हरद्वार' दोनों ही नामों से अभिहित किया जाता है। हरिद्वार का प्राचीन पौराणिक नाम 'माया' या 'मायापुरी' है, जिसकी सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में गणना की जाती थी। हरिद्वार का एक भाग आज भी 'मायापुरी' नाम से प्रसिद्ध है। संभवतः माया का ही चीनी यात्री युवानच्वांग ने 'मयूर' नाम से वर्णन किया है। महाभारत में हरिद्वार को 'गंगाद्वार' कहा गया है। इस ग्रंथ में इस स्थान का प्रख्यात तीर्थों के साथ उल्लेख है।[2] किन्तु हरिद्वार नाम भी अवश्य ही प्राचीन है, क्योंकि 'हरिवंशपुराण' में 'हरद्वार' या 'हरिद्वार' का तीर्थ रूप में वर्णन है-

"हरिद्वारे कुशावर्ते नीलके भिल्लपर्वते। स्नात्वा कनखले तीर्थे पुनर्जन्म न विद्यते।"

इसी प्रकार 'मत्स्यपुराण' में भी-

"सर्वत्र सुलभा गंगा त्रिपु स्थानेषु दंर्लभा, हरिद्वारे प्रयागे च गंगासागरसंगमें।"


किंतु युवानच्वांग के समय तक (7वीं शती ई.) 'हरद्वार' का 'मायापुरी' नाम ही अधिक प्रचलित था। मध्य काल में इस स्थान की कई प्राचीन बस्तियों को, जिनमें 'मायापुरी', 'कनखल', 'ज्वालापुर' और 'भीमगोड़ा' मुख्य हैं, सामूहिक रूप से 'हरिद्वार' कहा जाने लगा था। हरिद्वार का सदा से ही ऋषियों की तपोभूमि माना जाता रहा है। कहा जाता है कि स्वर्गारोहण से पूर्व देवी लक्ष्मी ने 'लक्ष्मण झूला' स्थान के निकट तपस्या की थी।

पौराणिक उल्लेख

भारत के पौराणिक ग्रंथों और उपनिषदों में हरिद्वार को मायापुरी कहा गया है। कहा जाता है समुद्र मंथन से प्राप्त किया गया अमृत यहाँ गिरा था। इसी कारण यहाँ कुंभ का मेला आयोजित किया जाता है। बारह वर्ष में आयोजित होने वाले कुंभ के मेले का यह महत्त्वपूर्ण स्थल है। पिछला कुंभ का मेला 1998 में आयोजित किया गया था। अगला कुंभ का मेला 2010 में यहाँ आयोजित किया ग्या था। हरिद्वार में ही राजा धृतराष्ट्र के मन्त्री विदुर ने मैत्री मुनि के यहाँ अध्ययन किया था। कपिल मुनि ने भी यहाँ तपस्या की थी।

आरती कुंभ मेला, हरिद्वार
Aarti Kumbh Mela, Haridwar

इसलिए इस स्थान को कपिलास्थान भी कहा जाता है। कहा जाता है कि राजा श्वेत ने हर की पौड़ी में भगवान ब्रह्मा की पूजा की थी। राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने जब वरदान मांगने को कहा तो राजा ने वरदान मांगा कि इस स्थान को ईश्वर के नाम से जाना जाए। तब से हर की पौड़ी के जल को ब्रह्मकुण्ड के नाम से भी जाना जाता है।

धार्मिक स्थल

हर की पौड़ी

यह स्थान भारत के सबसे पवित्र घाटों में एक है। कहा जाता है कि यह घाट विक्रमादित्य ने अपने भाई भतृहरि की याद में बनवाया था। इस घाट को 'ब्रह्मकुण्ड' के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो गंगा में नहाने को ही मोक्ष देने वाला माना जाता है लेकिन किंवदन्ती है कि हर की पौडी में स्नान करने से जन्म जन्म के पाप धुल जाते हैं। शाम के वक़्त यहाँ महाआरती आयोजित की जाती है। गंगा नदी में बहते असंख्य सुनहरे दीपों की आभा यहाँ बेहद आकर्षक लगती है। हरिद्वार की सबसे अनोखी चीज़ है शाम होने वाली गंगा की आरती। हर शाम हज़ारों दीपकों के साथ गंगा की आरती की जाती है। पानी में दिखाई देती दीयों की रोशनी हज़ारों टिमटिमाते तारों की तरह लगती है। हरिद्वार में बहुत सारे मंदिर और आश्रम हैं।

मनसा देवी का मंदिर

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हरिद्वार का मानचित्र
Haridwar Map

हर की पौडी के पीछे के बलवा पर्वत की चोटी पर मनसा देवी का मंदिर बना है। मंदिर तक जाने के लिए पैदल रास्ता है। मंदिर जाने के लिए रोप वे भी है। पहाड़ की चोटी से हरिद्वार का ख़ूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। देवी मनसा देवी की एक प्रतिमा के तीन मुख और पांच भुजाएं हैं जबकि अन्य प्रतिमा की आठ भुजाएं हैं।

चंडी देवी मंदिर

गंगा नदी के दूसरी ओर नील पर्वत पर यह मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर कश्मीर के राजा सुचेत सिंह द्वारा 1929 ई. में बनवाया गया था। कहा जाता है कि आदिशंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में चंडी देवी की मूल प्रतिमा यहाँ स्थापित करवाई थी। किवदंतियों के अनुसार चंडी देवी ने शुंभ निशुंभ के सेनापति चंद और मुंड को यहीं मारा था। चंडीघाट से 3 किलोमीटर की ट्रैकिंग के बाद यहाँ पहुंचा जा सकता है। अब इस मंदिर के लिए भी रोप वे भी बना दिया गया है। रोप वे के बाद बडी संख्या में लोग मंदिर में जाने लगे हैं।

माया देवी मंदिर

माया देवी मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में एक है। मायादेवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी हैं। कहा जाता है कि शिव की पत्नी सती का हृदय और नाभि यहीं गिरा था।

सप्तऋषि आश्रम

इस आश्रम के सामने गंगा नदी सात धाराओं में बहती है इसलिए इस स्थान को सप्त सागर भी कहा जाता है। माना जाता है कि जब गंगा नदी बहती हुई आ रही थीं तो यहाँ सात ऋषि गहन तपस्या में लीन थे। गंगा ने उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डाला और स्वयं को सात हिस्सों में विभाजित कर अपना मार्ग बदल लिया। इसलिए इसे 'सप्‍त सागर' भी कहा जाता है।

दक्ष महादेव मंदिर, हरिद्वार
Daksh Mahadev Temple, Haridwar

दक्ष महादेव मंदिर

यह प्राचीन मंदिर नगर के दक्षिण में स्थित है। सती के पिता राजा दक्ष की याद में यह मंदिर बनवाया गया है। किवदंतियों के अनुसार सती के पिता राजा दक्ष ने यहाँ एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ में उन्होंने शिव को नहीं आमन्त्रित किया। अपने पति का अपमान देख सती ने यज्ञ कुण्ड में आत्मदाह कर लिया। इससे शिव के अनुयायी गण उत्तेजित हो गए और दक्ष को मार डाला। बाद में शिव ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।

शिक्षण संस्थान

यहाँ पर रुड़की विश्वविद्यालय[3], सरकारी आयुर्वेदिक कॉलेज और ॠषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज सहित अनेक कॉलेज हैं। यहाँ पर प्रसिद्ध गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय भी है।

गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय

यह विश्वविद्यालय शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र है। यहाँ पारंपरिक भारतीय पद्धति से शिक्षा प्रदान की जाती है। विश्वविद्यालय के परिसर में वेद मंदिर बना हुआ है। यहाँ पुरातत्त्व संबंधी अनेक वस्तुएं देखी जा सकती हैं। यह विश्वविद्यालय हरिद्वार-ज्वालापुर बाईपास रोड़ पर स्थित है।

चीला वन्यजीव अभयारण्य

प्रकृति प्रेमियों के लिए हरिद्वार में राजाजी नेशनल पार्क भी है। राजाजी राष्ट्रीय पार्क के अन्तर्गत यह अभयारण्य आता है जो लगभग 240 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ 23 स्तनपायी और 315 वन्य जीवों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ हाथी, टाइगर, तेंदुआ, जंगली बिल्ली, सांभर, चीतल, बार्किग डि‍यर, लंगूर आदि जानवर हैं। अनुमति लेकर यहाँ फिशिंग का भी आनंद लिया जा सकता है।

जनसंख्या

हरिद्वार की जनसंख्या 2001 की जनगणना के अनुसार 1,75,010 है। और हरिद्वार ज़िले की कुल जनसंख्या 14,44,213 है।


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वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उत्तर प्रदेश से अलग कर नवगठित राज्य
  2. ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 1007| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
  3. एशिया का सबसे पुराना सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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सुव्यवस्थित लेख

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