"हिडिंबा" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "भीम" to "भीम")
छो (Text replace - "भीमसेन" to "भीमसेन")
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
*हिडिम्बा से भी भीम के [[घटोत्कच]] नामक पुत्र उत्पन्न हुआ  
 
*हिडिम्बा से भी भीम के [[घटोत्कच]] नामक पुत्र उत्पन्न हुआ  
 
==महाभारत में हिडिंबा==
 
==महाभारत में हिडिंबा==
[[पांडव|पांडवों]] के साथ [[कुंती]] ने एक गहन वन में प्रवेश किया। थकान के कारण [[भीम|भीमसेन]] के अतिरिक्त शेष सभी सो गये। पास ही एक वृक्ष के नीचे [[हिडिंब]] नामक राक्षस रहता था। वह मानव-भक्षी था। उसने अपनी बहन हिडिंबा को उन सबको मार डालने के लिए भेजा। हिडिंबा ने वहां पहुंचकर भीमसेन को जागा हुआ पाया। वह उस पर मुग्ध हो गयी तथा उसने भीम को अपने भाई के मंतव्य से अवगत करा दिया। भीमसेन ने राक्षस हिडिंब को मार डाला, उसी की बांहों से उसे बांधकर उसकी कमर तोड़ डाली तथा कुंती और [[युधिष्ठर]] की आज्ञा के  कारण हिडिंबा से गांधर्व विवाह कर लिया। कुंती ने हिडिंबा के सम्मुख स्पष्ट कर दिया था कि वह भीम के साथ तभी तक विहार करेगी तब तक पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी। हिडिंबा आकाश में उड़ सकती थी, सभी को उठाकर तेजी से चलने में समर्थ थी तथा भूत और भविष्य देख सकती थी। वह उन सबको शालिहोत्र मुनि के आश्रम में ले गयी। उसने बताया कि भविष्य में वहां [[व्यास]] आयेंगे और उनसे मिलने के बाद वे सब कष्टों से मुक्त हो जायेगें। राक्षसी गर्भ धारण करते ही शिशु को जन्म देने में समर्थ थी। कालांतर में हिडिंबा को गर्भ हुआ तथा बालक का जन्म हुआ जिसका नाम [[घटोत्कच]] रखा गया क्योंकि उसके सिर पर बहुत कम बाल थे। वह अत्यंत शक्तिसंपन्न था। [[पांडव|पांडवों]] तथा [[कुंती]] को प्रणाम करके यह कहकर कि कभी भी याद करने पर वे उपस्थित हो जायेंगे, उन दोनों ने विदा ली। [[इन्द्र]] ने [[कर्ण]] की शक्ति का आघात सहने के लिए [[घटोत्कच]] की सृष्टि की थी। <ref>महाभारत, [[आदि पर्व महाभारत|आदिपर्व]], अ. 151-154</ref>
+
[[पांडव|पांडवों]] के साथ [[कुंती]] ने एक गहन वन में प्रवेश किया। थकान के कारण [[भीम (पांडव)|भीमसेन]] के अतिरिक्त शेष सभी सो गये। पास ही एक वृक्ष के नीचे [[हिडिंब]] नामक राक्षस रहता था। वह मानव-भक्षी था। उसने अपनी बहन हिडिंबा को उन सबको मार डालने के लिए भेजा। हिडिंबा ने वहां पहुंचकर भीमसेन को जागा हुआ पाया। वह उस पर मुग्ध हो गयी तथा उसने भीम को अपने भाई के मंतव्य से अवगत करा दिया। भीमसेन ने राक्षस हिडिंब को मार डाला, उसी की बांहों से उसे बांधकर उसकी कमर तोड़ डाली तथा कुंती और [[युधिष्ठर]] की आज्ञा के  कारण हिडिंबा से गांधर्व विवाह कर लिया। कुंती ने हिडिंबा के सम्मुख स्पष्ट कर दिया था कि वह भीम के साथ तभी तक विहार करेगी तब तक पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी। हिडिंबा आकाश में उड़ सकती थी, सभी को उठाकर तेजी से चलने में समर्थ थी तथा भूत और भविष्य देख सकती थी। वह उन सबको शालिहोत्र मुनि के आश्रम में ले गयी। उसने बताया कि भविष्य में वहां [[व्यास]] आयेंगे और उनसे मिलने के बाद वे सब कष्टों से मुक्त हो जायेगें। राक्षसी गर्भ धारण करते ही शिशु को जन्म देने में समर्थ थी। कालांतर में हिडिंबा को गर्भ हुआ तथा बालक का जन्म हुआ जिसका नाम [[घटोत्कच]] रखा गया क्योंकि उसके सिर पर बहुत कम बाल थे। वह अत्यंत शक्तिसंपन्न था। [[पांडव|पांडवों]] तथा [[कुंती]] को प्रणाम करके यह कहकर कि कभी भी याद करने पर वे उपस्थित हो जायेंगे, उन दोनों ने विदा ली। [[इन्द्र]] ने [[कर्ण]] की शक्ति का आघात सहने के लिए [[घटोत्कच]] की सृष्टि की थी। <ref>महाभारत, [[आदि पर्व महाभारत|आदिपर्व]], अ. 151-154</ref>
  
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

09:25, 2 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • 'महाभारत' में हिडिम्ब नामक एक राक्षस का उल्लेख मिलता है।
  • इसका वध भीम ने किया था।
  • हिडिम्बा इसी हिडिम्ब नामक राक्षस की बहन थी।
  • हिडिम्ब की मृत्यु के अनन्तर इसने एक सुन्दरी का रूप धारण कर भीम से विवाह किया।
  • हिडिम्बा से भी भीम के घटोत्कच नामक पुत्र उत्पन्न हुआ

महाभारत में हिडिंबा

पांडवों के साथ कुंती ने एक गहन वन में प्रवेश किया। थकान के कारण भीमसेन के अतिरिक्त शेष सभी सो गये। पास ही एक वृक्ष के नीचे हिडिंब नामक राक्षस रहता था। वह मानव-भक्षी था। उसने अपनी बहन हिडिंबा को उन सबको मार डालने के लिए भेजा। हिडिंबा ने वहां पहुंचकर भीमसेन को जागा हुआ पाया। वह उस पर मुग्ध हो गयी तथा उसने भीम को अपने भाई के मंतव्य से अवगत करा दिया। भीमसेन ने राक्षस हिडिंब को मार डाला, उसी की बांहों से उसे बांधकर उसकी कमर तोड़ डाली तथा कुंती और युधिष्ठर की आज्ञा के कारण हिडिंबा से गांधर्व विवाह कर लिया। कुंती ने हिडिंबा के सम्मुख स्पष्ट कर दिया था कि वह भीम के साथ तभी तक विहार करेगी तब तक पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी। हिडिंबा आकाश में उड़ सकती थी, सभी को उठाकर तेजी से चलने में समर्थ थी तथा भूत और भविष्य देख सकती थी। वह उन सबको शालिहोत्र मुनि के आश्रम में ले गयी। उसने बताया कि भविष्य में वहां व्यास आयेंगे और उनसे मिलने के बाद वे सब कष्टों से मुक्त हो जायेगें। राक्षसी गर्भ धारण करते ही शिशु को जन्म देने में समर्थ थी। कालांतर में हिडिंबा को गर्भ हुआ तथा बालक का जन्म हुआ जिसका नाम घटोत्कच रखा गया क्योंकि उसके सिर पर बहुत कम बाल थे। वह अत्यंत शक्तिसंपन्न था। पांडवों तथा कुंती को प्रणाम करके यह कहकर कि कभी भी याद करने पर वे उपस्थित हो जायेंगे, उन दोनों ने विदा ली। इन्द्र ने कर्ण की शक्ति का आघात सहने के लिए घटोत्कच की सृष्टि की थी। [1]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, आदिपर्व, अ. 151-154


सम्बंधित लिंक