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{चीनी-तिब्बती भाषा समूह की [[भाषा|भाषाओं]] के बोलने वालों को कहा जाता है-
 
|type="()"}
 
-[[किरात]]
 
+[[निषाद]]
 
-[[द्रविड़]]
 
-[[आर्य]]
 
||'निषाद' एक अत्यन्त प्राचीन [[शूद्र|शूद्र जाति]] थी। इस जाति के लोग [[समुद्र]] के मध्य दूर सुदूर क्षेत्र में रहते थे। [[निषाद]] मत्स्य जीवी थे। यह प्राचीन जाति [[पर्वत]], घाटियों और वनांचलों तथा नदियों के तटों पर भी निवास करती थी। निषादों को [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] की भार्याओं से उत्पन्न 'शूद्र' पुत्र माना गया। फिर वनवासी जातियों के मिश्रण से निषाद पैदा होते रहे। [[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के पुत्र [[राम]] को वन जाते समय निषादों ने ही नदी पार कराई थी। [[महाभारत]] में भी निषादों का कई स्थानों पर उल्लेख हुआ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[निषाद]]
 
 
{[[अपभ्रंश]] के योग से [[राजस्थानी भाषा]] का जो साहित्यिक रूप बना, उसे क्या कहा जाता है?
 
|type="()"}
 
-पिंगल भाषा
 
+[[डिंगल|डिंगल भाषा]]
 
-[[मेवाड़ी बोली]]
 
-बाँगरु भाषा
 
||'डिंगल' [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]] की प्रमुख बोली '[[मारवाड़ी बोली|मारवाड़ी]]' का साहित्यिक रूप है। कुछ लोग [[डिंगल]] को मारवाड़ी से भिन्न चारणों की एक अलग [[भाषा]] बतलाते हैं, किंतु ऐसा मानना निराधार है। डिंगल को 'भाटभाषा' भी कहा गया है। मारवाड़ी के साहित्यिक रूप का नाम डिंगल क्यों पड़ा, इस प्रश्न पर बहुत मत-वैभिन्न्य है। [[डॉ. श्यामसुन्दर दास]] के अनुसार- "पिंगल के सादृश्य पर यह एक गढ़ा हुआ शब्द है।" [[चन्द्रधर शर्मा गुलेरी]] के अनुसार- "डिंगल यादृच्छात्मक अनुकरण शब्द है।" [[साहित्य]] में डिंगल का प्रयोग 13वीं सदी के मध्य से लेकर आज तक मिलता है। डॉ. तेस्सितोरी ने 'डिंगल' के प्राचीन और अर्वाचीन दो भेद किए हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डिंगल]]
 
 
{'एक नार पिया को भानी। तन वाको सगरा ज्यों पानी।' यह पंक्ति किस [[भाषा]] की है?
 
|type="()"}
 
+[[ब्रजभाषा]]
 
-[[खड़ीबोली|खड़ीबोली भाषा]]
 
-[[अपभ्रंश भाषा]]
 
-[[कन्नौजी बोली|कन्नौजी भाषा]]
 
||'ब्रजभाषा' मूलत: [[ब्रज|ब्रजक्षेत्र]] की बोली है। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक [[भारत]] में साहित्यिक [[भाषा]] रहने के कारण [[ब्रज]] की इस जनपदीय बोली ने अपने विकास के साथ भाषा नाम प्राप्त किया और '[[ब्रजभाषा]]' नाम से जानी जाने लगी। शुद्ध रूप में यह आज भी [[मथुरा]], [[आगरा]], [[धौलपुर]] और [[अलीगढ़|अलीगढ़ ज़िलों]] में बोली जाती है। इसे हम 'केंद्रीय ब्रजभाषा' भी कह सकते हैं। आधुनिक ब्रजभाषा 1 करोड़ 23 लाख जनता के द्वारा बोली जाती है और लगभग 38,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैली हुई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ब्रजभाषा]]
 
 
{निम्नलिखित में से '[[छायावाद]]' के प्रवर्तक का नाम क्या है?
 
|type="()"}
 
-[[सुमित्रानंदन पंत]]
 
-[[श्रीधर]]
 
-[[श्यामसुन्दर दास]]
 
+[[जयशंकर प्रसाद]]
 
||[[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|right|100px|जयशंकर प्रसाद]]'जयशंकर प्रसाद' [[कविता]], [[नाटक]], [[कहानी]] और [[उपन्यास]], इन सभी क्षेत्रों में एक नवीन 'स्कूल' और नवीन 'जीवन-दर्शन' की स्थापना करने में सफल हुये हैं। वे 'छायावाद' के संस्थापकों और उन्नायकों में से एक हैं। वैसे सर्वप्रथम कविता के क्षेत्र में इस नव-अनुभूति के वाहक [[जयशंकर प्रसाद]] ही रहे हैं, और प्रथम विरोध भी उन्हीं को सहना पड़ा है। [[भाषा]]-शैली और शब्द-विन्यास के निर्माण के लिये जितना संघर्ष प्रसाद जी को करना पङा है, उतना दूसरों को नही। कथा साहित्य के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद की देन महत्त्वपूर्ण है। भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद अनुपम माने जाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जयशंकर प्रसाद]]
 
 
{[[अमीर ख़ुसरो]] ने जिन [[मुकरी (पहेली)|मुकरियों]], पहेलियों और दो सुखनों की रचना की है, उसकी मुख्य [[भाषा]] कौन-सी है?
 
|type="()"}
 
-[[दक्खिनी हिन्दी|दक्खिनी]]
 
+[[खड़ी बोली]]
 
-[[बुन्देली बोली|बुन्देली]]
 
-[[बघेली बोली|बघेली]]
 
||भाषाशास्त्र की दृष्टि से [[खड़ी बोली]] शब्द का प्रयोग [[दिल्ली]], [[मेरठ]] के समीपस्थ ग्रामीण समुदाय की ग्रामीण बोली के लिए होता है। ग्रियर्सन ने इसे 'वर्नाक्यूलर हिन्दुस्तानी' तथा सुनीति कुमार चटर्जी ने 'जनपदीय हिन्दुस्तानी' कहा है। खडी बोली [[नागरी लिपि]] में ही लिखी जाती है। खड़ी बोली नाम सर्वप्रथम [[हिंदी]] या हिंदुस्तानी की उस शैली के लिए दिया गया, जो [[उर्दू]] की अपेक्षा अधिक शुद्ध हिंदी (भारतीय) थी और जिसका प्रयोग [[संस्कृत]] परम्परा अथवा भारतीय परम्परा से सम्बंधित लोग अधिक करते थे। अधिकांशत: वह नागरी लिपि में लिखी जाती थी। गिलक्राइस्ट के अनुसार 1805 ई. से हिंदी, हिंदुस्तानी और उर्दू शब्द समानार्थक थे, अत: इनसे अलगाव सिद्ध करने के लिए 'शुद्ध' विशेषण जोड़ने की आवश्यकता पड़ी तथा 'खड़ी बोली' नाम सार्थक हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[खड़ीबोली]]
 
  
 
{[[देवनागरी लिपि]] को राष्ट्रलिपि के रूप में कब स्वीकार किया गया था?
 
{[[देवनागरी लिपि]] को राष्ट्रलिपि के रूप में कब स्वीकार किया गया था?
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-[[उर्दू भाषा|उर्दू]]
 
-[[उर्दू भाषा|उर्दू]]
 
-[[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]]
 
-[[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]]
||'खड़ी बोली' नाम को कुछ विद्वान [[ब्रजभाषा]] के सापेक्ष्य मानते हैं और यह प्रतिपादन करते हैं कि [[लल्लू लालजी]] (1803 ई.) से बहुत पूर्व यह नाम ब्रजभाषा की मधुर मिठास की तुलना में उस बोली को दिया गया था, जिससे कालांतर में स्टैण्डर्ड [[हिन्दी]] और [[उर्दू]] का विकास हुआ। ये विद्वान 'खड़ी' शब्द से 'कर्कशता', 'कटुता', 'खरापन', 'खड़ापन' आदि अर्थ लेते हैं। वास्तव में '[[खड़ी बोली]]' में प्रयुक्त 'खड़ी' शब्द गुण्बोधक विशेषण है और किसी [[भाषा]] के नामाकरण में गुण-अवगुण-प्रधान दृष्टिकोण अधिकांश: अन्य भाषा-सापेक्ष्य होती है। [[अपभ्रंश]] और उर्दू आदि इसी श्रेणी के नाम हैं, अत: 'खड़ी' शब्द अन्य भाषा सापेक्ष्य अवश्य है, किंतु इसका मूल खड़ी है अथवा खरी? और इसका प्रथम मूल अर्थ क्या है? इसके लिए शब्द के [[इतिहास]] की खोज आवश्यक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[देवनागरी लिपि]]
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||'खड़ी बोली' नाम को कुछ विद्वान [[ब्रजभाषा]] के सापेक्ष्य मानते हैं और यह प्रतिपादन करते हैं कि [[लल्लू लालजी]] (1803 ई.) से बहुत पूर्व यह नाम ब्रजभाषा की मधुर मिठास की तुलना में उस बोली को दिया गया था, जिससे कालांतर में मानक [[हिन्दी]] और [[उर्दू]] का विकास हुआ। ये विद्वान 'खड़ी' शब्द से 'कर्कशता', 'कटुता', 'खरापन', 'खड़ापन' आदि अर्थ लेते हैं। वास्तव में '[[खड़ी बोली]]' में प्रयुक्त 'खड़ी' शब्द गुणबोधक विशेषण है और किसी [[भाषा]] के नामकरण में गुण-अवगुण-प्रधान दृष्टिकोण अधिकांश: अन्य भाषा-सापेक्ष्य होती है। [[अपभ्रंश]] और उर्दू आदि इसी श्रेणी के नाम हैं, अत: 'खड़ी' शब्द अन्य भाषा सापेक्ष्य अवश्य है, किंतु इसका मूल खड़ी है अथवा खरी? और इसका प्रथम मूल अर्थ क्या है? इसके लिए शब्द के [[इतिहास]] की खोज आवश्यक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[खड़ी बोली]]
  
 
{प्रादेशिक बोलियों के साथ [[ब्रज]] या मध्य देश की [[भाषा]] का आश्रय लेकर एक सामान्य साहित्यिक भाषा स्वीकृत हुई, जिसे चारणों ने नाम दिया-
 
{प्रादेशिक बोलियों के साथ [[ब्रज]] या मध्य देश की [[भाषा]] का आश्रय लेकर एक सामान्य साहित्यिक भाषा स्वीकृत हुई, जिसे चारणों ने नाम दिया-
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-[[मेवाड़ी बोली|मेवाड़ी भाषा]]  
 
-[[मेवाड़ी बोली|मेवाड़ी भाषा]]  
 
-[[मारवाड़ी भाषा]]
 
-[[मारवाड़ी भाषा]]
+पिंगल भाषा
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+[[पिंगल|पिंगल भाषा]]
  
 
{निम्नलिखित में से कौन-सी [[प्रेमचंद]] की एक रचना है?
 
{निम्नलिखित में से कौन-सी [[प्रेमचंद]] की एक रचना है?
 
|type="()"}
 
|type="()"}
+पंच-परमेश्वर  
+
+[[पंच-परमेश्‍वर -प्रेमचंद|पंच-परमेश्वर]]
 
-उसने कहा था
 
-उसने कहा था
 
-ताई  
 
-ताई  
 
-खड़ी बोली
 
-खड़ी बोली
||[[चित्र:Premchand.jpg|right|100px|प्रेमचंद]]'मुंशी प्रेमचंद' का वास्तविक नाम '''धनपत राय श्रीवास्तव''' था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब [[हिन्दी]] में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं, फिर भी इतना काम करने वाला लेखक [[मुंशी प्रेमचन्द]] के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं हुआ था। उन्होंने हिन्दी में शेख़ सादी पर एक छोटी-सी पुस्तक लिखी थी, टॉल्सटॉय की कुछ कहानियों का हिन्दी में अनुवाद किया और ‘प्रेम-पचीसी’ की कुछ कहानियों का रूपान्तर भी हिन्दी में कर रहे थे। ये कहानियाँ ‘सप्त-सरोज’ शीर्षक से [[हिन्दी]] संसार के सामने सर्वप्रथम सन् [[1917]] में आयी थीं। ये सात कहानियाँ थीं- 'बड़े घर की बेटी', 'सौत', 'सज्जनता का दण्ड', 'पंच परमेश्वर', 'नमक का दारोग़ा', 'उपदेश' और 'परीक्षा'।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रेमचंद]]
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||[[चित्र:Premchand.jpg|right|100px|प्रेमचंद]]'मुंशी प्रेमचंद' का वास्तविक नाम '''धनपत राय श्रीवास्तव''' था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब [[हिन्दी]] में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं, फिर भी इतना काम करने वाला लेखक [[मुंशी प्रेमचन्द]] के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं हुआ था। उन्होंने हिन्दी में शेख़ सादी पर एक छोटी-सी पुस्तक लिखी थी, टॉल्सटॉय की कुछ कहानियों का हिन्दी में [[अनुवाद]] किया और ‘प्रेम-पचीसी’ की कुछ कहानियों का रूपान्तर भी हिन्दी में कर रहे थे। ये कहानियाँ ‘सप्त-सरोज’ शीर्षक से [[हिन्दी]] संसार के सामने सर्वप्रथम सन् [[1917]] में आयी थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रेमचंद]]
  
 
{[[वीर रस]] का स्थायी भाव क्या होता है?
 
{[[वीर रस]] का स्थायी भाव क्या होता है?
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-रति
 
-रति
 
+उत्साह
 
+उत्साह
-हास्य
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-[[हास्य रस|हास्य]]
 
-परिहास
 
-परिहास
||[[श्रृंगार रस|श्रृंगार]] के साथ स्पर्धा करने वाला [[वीर रस]] है। श्रृंगार, [[रौद्र रस|रौद्र]] तथा [[वीभत्स रस|वीभत्स]] के साथ वीर को भी [[भरत मुनि]] ने मूल रसों में परिगणित किया है। वीर रस से ही [[अदभुत रस]] की उत्पत्ति बतलाई गई है। वीर रस का 'वर्ण' 'स्वर्ण' अथवा 'गौर' तथा [[देवता]] [[इन्द्र]] कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकृति वालो से सम्बद्ध है तथा इसका स्थायी भाव ‘उत्साह’ है। [[अभिनवगुप्त]] ने तो उत्साह को [[शान्त रस]] का भी स्थायी माना है। कुछ लोग उत्साह को वीर रस का स्थायी भाव नहीं मानते हैं। रौद्र के साथ वीर को समादृत करने के प्रयत्न में वे ‘अमर्ष’ को वीर का स्थायी भाव मान लेते हैं। निन्दा, आक्षेप, अपमान इत्यादि के कारण उत्पन्न चित्त का अभिनिवेश, अर्थात् स्वाभिमान का उदबोध अमर्ष है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वीर रस]]
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||[[श्रृंगार रस|श्रृंगार]] के साथ स्पर्धा करने वाला [[वीर रस]] है। [[श्रृंगार रस|श्रृंगार]], [[रौद्र रस|रौद्र]] तथा [[वीभत्स रस|वीभत्स]] के साथ वीर को भी [[भरत मुनि]] ने मूल रसों में परिगणित किया है। वीर रस से ही [[अदभुत रस]] की उत्पत्ति बतलाई गई है। वीर रस का 'वर्ण' 'स्वर्ण' अथवा 'गौर' तथा [[देवता]] [[इन्द्र]] कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकृति वालों से सम्बद्ध है तथा इसका स्थायी भाव ‘उत्साह’ है। [[अभिनवगुप्त]] ने तो उत्साह को [[शान्त रस]] का भी स्थायी माना है। कुछ लोग उत्साह को वीर रस का स्थायी भाव नहीं मानते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वीर रस]]
 
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सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
राज्यों के सामान्य ज्ञान


इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- भाषा प्रांगण, हिन्दी भाषा

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1 देवनागरी लिपि को राष्ट्रलिपि के रूप में कब स्वीकार किया गया था?

14 सितम्बर, 1949
21 सितम्बर, 1949
23 सितम्बर, 1949
25 सितम्बर, 1949

2 'रानी केतकी की कहानी' की भाषा को कहा जाता है-

हिन्दुस्तानी
खड़ी बोली
उर्दू
अपभ्रंश

3 प्रादेशिक बोलियों के साथ ब्रज या मध्य देश की भाषा का आश्रय लेकर एक सामान्य साहित्यिक भाषा स्वीकृत हुई, जिसे चारणों ने नाम दिया-

डिंगल भाषा
मेवाड़ी भाषा
मारवाड़ी भाषा
पिंगल भाषा

4 निम्नलिखित में से कौन-सी प्रेमचंद की एक रचना है?

पंच-परमेश्वर
उसने कहा था
ताई
खड़ी बोली

5 वीर रस का स्थायी भाव क्या होता है?

रति
उत्साह
हास्य
परिहास

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राज्यों के सामान्य ज्ञान