अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस

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अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस
अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस
विवरण 'अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस' सेंट जेरोम के पर्व पर मनाया जाता है, जो बाइबिल के अनुवादक थे और जिन्हें 'अनुवादकों का संरक्षक संत' माना जाता है।
तिथि 30 सितंबर
शुरुआत 24 मई, 2017
उद्देश्य देशों को निकट लाना, संवाद में सहायता करना तथा सहयोग के लिए अनुवाद की महत्ता को समझाना। यह विश्व शांति तथा विकास में काफ़ी योगदान देता है।
अन्य जानकारी पहले अनुवाद को सिर्फ भाषायी गतिविधि समझा जाता था, लेकिन बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक से अनुवाद के क्षेत्र में एक प्रस्थान बिंदु आया है जिसमें अनुवाद को महज भाषाई गतिविधि न समझ कर सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय महत्व का कार्य समझा जाने लगा है।

अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस (अंग्रेज़ी: International Translation Day) हर साल 30 सितंबर को सेंट जेरोम के पर्व पर मनाया जाता है। सेंट जेरोम बाइबिल के अनुवादक थे जिन्हें 'अनुवादकों का संरक्षक संत' माना जाता है। 1953 में स्थापित होने के बाद से यह दिवस एफआईटी (अंतर्राष्ट्रीय अनुवादकों की अंतर्राष्ट्रीय संघ) द्वारा प्रोत्साहित किया गया है। 1991 में एफआईटी ने आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस का विचार शुरू किया, ताकि दुनिया भर में अनुवाद समुदाय की एकता को बढ़ावा मिले। यह दिवस विभिन्न देशों में अनुवाद कार्य का महत्व प्रदर्शित करने के लिए मनाया जाता है। भूमंडलीकरण की प्रगति के युग में अनुवाद कार्य तेज़ीसे बढ़ रहा है।


संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस दिन उन सभी लोगों को सम्मानित किया जाता है जो अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में संवाद में भाषा विशेषज्ञ के रूप में कार्य करके विकास तथा वैश्विक शान्ति को बढ़ावा देते हैं। अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस द्वारा साहित्यिक व वैज्ञानिक कार्य के शुद्ध तथा स्पष्ट अनुवाद कार्य को भी अति-आवश्यक माना जाता है।

पृष्ठभूमि

अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 24 मई, 2017 में प्रस्ताव 71/288 को पारित करके स्थापित किया था। देशों को निकट लाने, संवाद में सहायता करने तथा सहयोग के लिए अनुवाद की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, यह विश्व शांति तथा विकास में काफी योगदान देता है। बाइबिल के अनुवादक सेंट जेरोम के त्यौहार के कारण 30 सितम्बर को अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस चुना गया। सेंट जेरोम ने बाइबिल का अनुवाद किया था, उन्हें अनुवादकों का संरक्षक माना जाता है।[1]

जिस प्रकार संयुक्त राष्ट्र के अन्य दिवस महत्वपूर्ण होते हैं, उसी प्रकार अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस भी बहुत महत्त्वपूर्ण दिवस है क्योंकि इस दिवस के माध्यम से सभी देशों की भाषाओं में हो रहे अनुवाद कार्यों एवं अनुवादकों, भाषांतरकारों, दुभाषियों तथा भाषा एवं अनुवाद के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों और संस्थाओं की भूमिका को महत्व दिया जा सके और दुनियाभर के अनुवाद समुदाय के बीच एकता को बढ़ावा दिया जा सके। आज के दिन भारत सहित दुनियाभर के विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थानों और अनुवाद सेवी संस्थाओं में अनुवाद से संबंधित विभिन्न संवाद, परिसंवाद, सेमिनार और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है और अनुवाद की स्थिति, परिस्थिति, महत्व, तकनीक, संभावनाओं, इतिहास एवं भविष्य पर सार्थक चर्चा की जाती है।

थीम, 2020

"Finding the words for a world in crisis" यानी "संकट में दुनिया के लिए शब्दों की तलाश करना"।

किसी एक भाषा को खो देना बहुत बड़ा नुकसान होता है क्योंकि भाषा में केवल शब्दों का ही नहीं बल्कि संस्कृतियों का समावेशन होता है। किसी एक भाषा के लुप्त हो जाने से एक पूरी संस्कृति लुप्त हो जाती है। अनुवादक तथा दुभाषिए एक प्राकर के सांस्कृतिक दूत अर्थात कल्चरल एंबेसडर होते हैं। इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के अवसर पर अनुवाद को तथा अनुवाद विधा के महत्व को स्वीकारा है, जिससे यह संदेश दिया जा सके कि वैश्वीकरण के दौर में देशज भाषाओं को लुप्त होने से बचाया जाना अत्यंत आवश्यक है। ऐतिहासिक रूप से देखें तो ज्ञात होता है कि अनुवाद का उद्गम धर्म तथा धार्मिक ग्रंथों के प्रचार-प्रसार से हुआ है लेकिन धीरे-धीरे समय बदलते हुए अनुवाद न सिर्फ धार्मिक क्षेत्र बल्कि सभ्यता, संस्कृति, संचार, वाणिज्य, व्यवसाय, अंतर सांस्कृतिक संवाद, पर्यटन, सॉफ्टवेयर, इंटरनेट आदि के लिए आवश्यक ही नहीं अपितु अपरिहार्य बन गया है।

महत्त्व

अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस विभिन्न देशों में अनुवाद के पेशे को बढ़ावा देने का एक प्रयास है। यह केवल ईसाई देशों के लिए ही नहीं है, बल्कि आज प्रगतिशील वैश्वीकरण के दौर में अनुवाद दुनिया के सभी देशों के लिए एक महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गया है। 24 मई 2017 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 30 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के रूप में घोषित करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस का महत्व एक दूसरे से जुड़ने वाले राष्ट्रों में पेशेवर अनुवाद की भूमिका को पहचानना और उसकी सराहना करना है। यह दिन दुनिया भर में अनुवाद समुदाय के लिए एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए मनाया जाता है। यह विभिन्न देशों में अनुवाद के पेशे को बढ़ावा देने की एक कोशिश है और जरूरी नहीं कि यह केवल ईसाई देशों के लिए ही है। आज प्रगतिशील वैश्वीकरण के युग में अनुवाद विश्वभर के सभी देशों के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता बन गया है।

भारत में अनुवाद का महत्त्व

अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस

भारत में विभिन्न धर्म, जाति और वर्ग के लोगों का मिश्रण ही नहीं, बल्कि भाषाओं की भी विविधता है। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक विभिन्न प्रांतों में भाषाओं की बोली बदल जाती है, लेकिन उनके भाव यथावत रहते है। जिन्हें हमें समझने के लिए अनुवाद की आवश्यकता होती है। जब हम दक्षिण भारत में जाते है, तो वहां की भाषा हमारे से भिन्न है, लेकिन कोई अनुवादक हमें हमारी भाषा में उसका अनुवाद करके बताए तो हम उसे समझ लेते है। इससे हमें जीवन में अनुवाद की आवश्यकता और महत्ता समझ आती है। 30 सितंबर को समूचे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस मनाया जाता है। इससे अनुवाद कितना जरूरी है, इसके बारे में भी पता चलता है। भारत में अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग हिन्दी के रूप में किया जाता है। यहां लोग हिन्दी ही समझते है, जबकि वास्तविक हिन्दी लोगों को पता नहीं होती है। अंग्रेजी की अपेक्षा उसका हिन्दी कठिन होती है।[2]

यूं तो भारतीय संविधान में सिर्फ 22 भाषा को मान्यता प्राप्त है, विभिन्न प्रांतों के अलग अलग क्षेत्र में ही भाषा और उनकी बोलियां बदल जाती है। एक आंकड़े के अनुसार ऐसी 121 भाषाएं देश में बोली और समझी जाती हैं। अपने मातृस्थल से कार्यस्थल पर जाने पर कई बार भाषाओं में अंतर आ जाता है। कार्यस्थल पर मातृभाषा नहीं चलती तो हमें अनुवाद की आवश्यकता होती है। हिंदी भाषी क्षेत्र में भी हिन्दी के कई प्रकार बोले जाते हैं। इनमें से एक प्रकार है खड़ी बोली। आम जन में यह रूप अत्यधिक प्रचलित है। इसमें कई देशी विदेशी शब्दों का समन्वय इस तरह हो जाता है जैसे ये शब्द हिन्दी के लिए ही बने है। आम बोलचाल में इनका इतना व्यापक प्रयोग किया जाता है कि कई बार उनके मूल हिन्दी शब्दों को हम चाह कर भी ढूंढ नहीं पाते या बड़ी कठिनाइ से प्राप्त होते हैं।

पहले अनुवाद को सिर्फ भाषायी गतिविधि समझा जाता था, लेकिन बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक से अनुवाद के क्षेत्र में एक प्रस्थान बिंदु आया है जिसमें अनुवाद को महज भाषाई गतिविधि न समझ कर सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय महत्व का कार्य समझा जाने लगा है। इसके प्रमुख कारण हैं-

  • पहला कारण यह है कि 21वीं शताब्दी अनुवाद की शताब्दी है इस युग में अनुवाद के बिना जीवन में कल्पना भी नहीं की जा सकती।
  • दूसरा कारण यह है कि अब गूगल, अमेजॉन, फ्लिपकार्ट, माइक्रोसॉफ्ट, अलीबाबा सहित विश्व की बड़ी-बड़ी कंपनियां सभी देशों को अपनी वस्तुओं और सेवाओं को बेचना चाहती है तथा उन्हें भाषाई अवरोधों को तोड़ते हैं व्यापार में आगे बढ़ना है। आज फ्लिपकार्ट, अमेजॉन, अलीबाबा, गो डैडी आदि प्रमुख कंपनियों की वेबसाइट का हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद होना इस बात का प्रमाण है कि अनुवाद का महत्व बढ़ रहा है।
  • तीसरा कारण यह है कि आज के वैश्वीकरण के दौर में सभी देश एक दूसरे पर काफी हद तक निर्भर हैं क्योंकि कोई भी देश अलग-थलग रहकर अपने नागरिकों को न तो अच्छी सुविधाएं प्रदान कर सकता है और न ही विकास कर सकता है। सभी साधन प्रदान के लिए किसी न किसी भाषा की आवश्यकता होती है। इसमें अनुवाद प्रमुख रूप में उभर कर सामने आता है।
  • चौथा कारण यह है कि विश्व के सभी देशों के नेताओं को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मंचों के कार्यक्रम में जाने के लिए अनुवादकों तथा दुभाषियों की आवश्यकता पड़ती है।सभी देश अपने यहां अनुवाद एवं निर्वचन को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं।

भारत में साहित्य अकादमी, नेशनल बुक ट्रस्ट, प्रकाशन विभाग, राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हिंदी ग्रंथ अकादमी, आदि भाषा अकादमियां तथा संस्थाएं लिखित अनुवाद के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका अदा कर रही हैं। इसी के साथ-साथ आई.आई.टी, सी. डैक, टीडीआईएल आदि संस्थाएं मशीन अनुवाद करने का काम कर रही है। साहित्य अकादेमी, नेशनल बुक ट्रस्ट जैसी कुछ संस्थाएं भारतीय भाषाओं से विदेशी भाषा तथा विदेशी भाषाओं से भारतीय भाषाओं में अनुवाद कार्य करने की परियोजनाएं चला रही हैं।[3]

अंग्रेज़ी को ही समझते है हिन्दी

रेलवे में सामान्यत: प्रयुक्त होने वाले अंग्रेज़ी शब्दों को हम हिन्दी समझते हैं। जिनमें स्टेशन को 'स्थानक' और ट्रेन को 'लौहपथ गामिनी' कहा जाता है। इसी प्रकार स्टेशन मास्टर (स्थानक स्वामी/स्थानक विशेषज्ञ), स्टेशन सुपरिटेंडेंट (स्थानक अधीक्षक), पॉइंट्समैन (कांटावाला), टिकट (यात्रा प्राधिकार पत्र), टिकट बुकिंग क्लर्क (यात्रा प्राधिकार पत्र लिपिक), प्लेटफॉर्म (लौहपथगामिनी विश्राम मंच), रेल (लौहपथ), सिग्नल (संकेतक), अपडॉउन (उदयान/निदान), रिजर्वेशन (आरक्षण), स्लीपर कोच (शयनयान), टीटीइ (यात्रा प्राधिकार पत्र चल निरीक्षक), इंजन (लौहपथगामिनी स्वनोदित कर्षण यंत्र) आदि आते हैं। इसके अलावा आमजीवन में भी कई शब्दों को हम हिन्दी समझते है, जो वास्तव अंग्रेज़ी के शब्द होते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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