अप्पर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

सातवीं, आठवीं तथा नवीं शताब्दियों में तमिल प्रदेश में शैव कवियों का अच्छा प्रचार था। सबसे पहले तीन के नाम आते हैं, जो प्रत्येक दृष्टि से वैष्णव आलवारों के समानांतर ही समझे जा सकते हैं। इन्हें दूसरे धार्मिक नेताओं की तरह 'नयनार' कहते हैं, किंतु अलग से उन्हें 'तीन' की संज्ञा से जाना जाता है, उनके नाम हैं-

  1. नान सम्बन्धर
  2. अप्पर
  3. सुन्दरमूर्ति
  • पहले दो का उद्भव सप्तम शताब्दी में तथा अंतिम का आठवीं या नवीं शताब्दी में हुआ। आलवारों के समान ये भी गायक कवि थे, जो शिव की भक्ति में पगे हुए थे। ये एक मन्दिर से दूसरे में घूमा करते थे। अपनी रची स्तुतियों को गाते थे तथा नटराज व उनकी प्रिया उमा की मूर्ति के चारों ओर आत्मविभोर होकर नाचते थे। इनके पीछे-पीछे लोगों का दल भी चला करता था। इन्होंने पुराणों के परम्परागत 'शैव सम्प्रदाय' की भक्ति का अनुसरण किया।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 40 |

संबंधित लेख