उज्जैन पर्यटन

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उज्जैन पर्यटन
Mahakaleshwar-Temple.jpg
विवरण प्रकृति की गोद में क्षिप्रा नदी के किनारे बसा उज्जैन मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख धार्मिक नगर है।
राज्य मध्य प्रदेश
ज़िला उज्जैन ज़िला
मार्ग स्थिति यह शहर सड़कमार्ग द्वारा भोपाल लगभग 75 कि.मी. दूरी पर स्थित है।
प्रसिद्धि इसको कालिदास की नगरी भी कहा जाता है‎
कैसे पहुँचें किसी भी शहर से बस और टैक्सी द्वारा पहुँचा जा सकता है।
हवाई अड्डा भोपाल हवाई अड्डा,
रेलवे स्टेशन उज्जैन रेलवे स्टेशन
क्या देखें उज्जैन पर्यटन
एस.टी.डी. कोड 0176
Map-icon.gif गूगल मानचित्र, हवाई अड्डा
अन्य जानकारी उज्जैन साहित्य जगत कि अमूल्य धरोहर हैं।

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उज्जैन उज्जैन पर्यटन उज्जैन ज़िला

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महाकालेश्वर मंदिर

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श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन जनपद में अवस्थित है। उज्जैन का पुराणों और प्राचीन अन्य ग्रन्थों में 'उज्जयिनी' तथा 'अवन्तिकापुरी' के नाम से उल्लेख किया गया है। यह स्थान मालवा क्षेत्र में स्थित क्षिप्रा नदी के किनारे विद्यमान है। जब सिंह राशि पर बृहस्पति ग्रह का आगमन होता है, तो यहाँ प्रत्येक बारह वर्ष पर महाकुम्भ का स्नान और मेला लगता है। उज्जैन नगर के महाकालेश्वर की मान्यता बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक की है। महाकालेश्वर मंदिर का माहात्म्य विभिन्न पुराणों में विस्तृत रूप से वर्णित है। महाकवि तुलसीदास से लेकर संस्कृत साहित्य के अनेक प्रसिद्ध कवियों ने इस मंदिर का वर्णन किया है। लोगों के मानस में महाकाल मंदिर की परम्परा अनादि काल से है। प्राचीन काल से ही उज्जैन भारत की कालगणना का केंद्र बिन्दु है और श्री महाकाल उज्जैन नगर के अधिपति आदिदेव माने जाते हैं।

भारतीय इतिहास के प्रत्येक काल में शुंग, कुषाण, सातवाहन, गुप्त, परिहार तथा मराठा काल में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया जाता रहा है। आधुनिक मंदिर का पुनर्निर्माण राणोजी सिंधिया के समय में मालवा के सूबेदार श्री रामचंद्र बाबा शेणवी ने कराया था। आजकल भी मंदिरों का जीर्णोद्धार एवं सुविधा विस्तार का कार्य चलता रहता है। महाकालेश्वर की प्रतिमा दक्षिणमुखी है। तांत्रिक पूजा में दक्षिणमुखी पूजा का महत्त्व बारह ज्योतिर्लिंगों में से केवल बाबा महाकालेश्वर को ही प्राप्त है। ओंकारेश्वर में मंदिर की ऊपरी पीठ पर महाकाल मूर्ति की तरह ओंकारेश्वर शिव जी की प्रतिष्ठा है। तीसरे भाग में नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा के दर्शन केवल नागपंचमी के दिन को ही होते हैं। महाराजा विक्रमादित्य और राजा भोज की महाकाल पूजा के लिए लिखी गयीं शासकीय सनदें महाकाल मंदिर में प्राप्त होती रही है। आजकल यह मंदिर महाकाल मंदिर समिति के तत्वावधान में संरक्षित व सुरक्षित है।

श्री बड़े गणेश मंदिर

श्री श्री महाकालेश्वर मंदिर के पास हरसिध्दि मार्ग पर बडे गणेश जी की भव्य और कलात्मक मूर्ति प्रतिष्ठित है। इस मूर्ति को पद्मविभूषण पं. सूर्यनारायण व्यास के पिता, विख्यात विद्वान् स्व. पं. नारायण जी व्यास ने निर्मित कराया था। मंदिर के परिसर में सप्तधातु से बनी पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा के साथ ही साथ नवग्रह मंदिर और श्रीकृष्ण और यशोदा आदि की प्रतिमाएं भी विराजमान हैं।

मंगलनाथ मंदिर

पुराणों में यह वर्णन आया है कि उज्जयिनी नगरी मंगल की जननी है। वह व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल की दशा भारी रहती है, वह लोग अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए पूजा-पाठ करवाने के लिए उज्जैन नगर आते हैं। वैसे देश में मंगल भगवान के अनेक मंदिर हैं, किन्तु उज्जैन में मंगल का जन्मस्थान होने के कारण इस जगह की पूजा को अधिक महत्त्व दिया जाता है। मान्यता है कि यह मंदिर बहुत ही पुराना है। सिंधिया राजघराने ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। उज्जैन शहर को भगवान महाकाल का नगर कहा जाता है, अतएव यहाँ मंगल भगवान की शिव रूपी प्रतिमा की श्रद्धा भावना के साथ पूजा की जाती है। प्रत्येक मंगलवार को मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।

हरसिध्दि मंदिर

उज्जैन नगर के प्राचीन धार्मिक स्थलों में हरसिध्दि देवी का मंदिर प्रमुख है। श्री चिन्तामण गणेश मंदिर से कुछ ही दूरी पर और रुद्रसागर तालाब के किनारे पर स्थित इस मंदिर में सम्राट विक्रमादित्य ने हरसिध्दि देवी की पूजा की थी। हरसिध्दि देवी वैष्णव संप्रदाय की आराध्य देवी रही हैं। शिव पुराण के अनुसार राजा दक्ष के द्वारा किये गये यज्ञ के बाद सती की कोहनी यहाँ पर गिरी थी।

क्षिप्रा घाट

उज्जैन नगर के धार्मिक नहरी होने में क्षिप्रा नदी के घाटों का प्रमुख स्थान है। नदी के दायें किनारे पर, जहां उज्जैन नगर स्थित है, सीढ़ीबध्द घाट हैं। इन घाटों पर अनेक देवी-देवताओं के नये व पुराने मंदिर है। क्षिप्रा के घाटों की सुन्दरता सिंहस्थ कुम्भ के समय देखते ही बनती है, जब लाखों-करोडों श्रध्दालु यहाँ भक्ति और श्रद्धापूर्वक स्नान करते हैं।

गोपाल मंदिर

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उज्जैन का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर 'गोपाल मंदिर' माना जाता है। यह मंदिर नगर के व्यस्ततम भाग में स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाराजा दौलतराव सिंधिया की महारानी बायजा बाई ने सन् 1833 के लगभग कराया था। इस मंदिर में नाम के अनुसार कृष्ण (गोपाल) की प्रतिमा है। इस मंदिर के चांदी के द्वार आकर्षण का केन्द्र हैं।

गढ़कालिका देवी

उज्जैन में स्थित गढ़कालिका देवी का मंदिर वर्तमान उज्जैन नगर में प्राचीन अवंतिका नगरी के क्षेत्र में हैं। महाकवि कालिदास गढ़कालिका देवी के उपासक थे। इस प्राचीन मंदिर का महाराजा हर्षवर्धन द्वारा जीर्णोद्धार कराने का उल्लेख भी मिलता है। माँ कालिका के इस मंदिर में दर्शन के लिए रोज़ हज़ारों भक्तों की भीड़ एकत्र होती है। देवी कालिका तांत्रिकों की देवी मानी जाती हैं । इस चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में माना जाता है कि इसकी स्थापना महाभारत काल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सत्य युग की है। बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार महाराजा हर्षवर्धन द्वारा कराए जाने का उल्लेख भी प्राप्त होता है। ग्वालियर के महाराजा ने भी इसका पुनर्निर्माण कराया था।

भर्तृहरि गुफा

भर्तृहरि गुफा

ग्यारहवीं सदी के एक मंदिर के अवशेष को भर्तृहरि की गुफा कहा जाता है, जिसका समय समय पर जीर्णोद्धार होता रहा ।

काल भैरव

उज्जैन नगर में काल भैरव मंदिर प्राचीन अवंतिका नगरी के क्षेत्र में स्थित है। यह मंदिर शिव जी के उपासकों के कापालिक सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है। आज भी मंदिर के अंदर काल भैरव की एक विशाल प्रतिमा है। किंवदन्ती है कि प्राचीन काल में इस मंदिर का निर्माण राजा भद्रसेन ने कराया था। पुराणों में वर्णित अष्ट भैरव में काल भैरव का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

सिंहस्थ कुम्भ

सिंहस्थ कुम्भ उज्जैन का महान् स्नान पर्व है। यह पर्व बारह वर्षों के अंतराल से मनाया जाता है। जब बृहस्पति सिंह राशि में होता है, उस समय सिंहस्थ कुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान का महात्यम चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारंभ हो जाता हैं और वैशाख मास की पूर्णिमा के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में सम्पन्न होता है। उज्जैन के प्रसिद्ध कुम्भ महापर्व के लिए पारम्परिक रूप से दस योग महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। पूरे देश में चार स्थानों पर कुम्भ का आयोजन किया जाता है। प्रयाग, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन। उज्जैन में लगने वाले कुम्भ मेलों को सिंहस्थ के नाम से पुकारा जाता है। जब मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु आ जाता है तब उस समय उज्जैन में महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे सिंहस्थ के नाम से देश भर में कहा जाता है। सिंहस्थ महाकुम्भ के आयोजन की प्राचीन परम्परा है। इसके आयोजन के विषय में अनेक कथाएँ प्रचलित है। समुद्र मंथन में प्राप्त अमृत की बूंदें छलकते समय जिन राशियों में सूर्य, चन्द्र, गुरु की स्थिति के विशिष्ट योग होते हैं, वहीं कुंभ पर्व का इन राशियों में गृहों के संयोग पर ही आयोजन किया जाता है। अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न रहे थे। इसी कारण इन ग्रहों का विशेष महत्त्व रहता है और इन्हीं गृहों की उन विशिष्ट स्थितियों में कुंभ का पर्व मनाने की परम्परा चली आ रही है।


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