उद्दालक व्रत पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सोलह वर्ष की अवस्था होने पर किया जाता है। जिसे गायत्री की दीक्षा न मिली हो, उसे यही व्रत करना पड़ता है।[1]
- इस व्रत में दो महीने जौ, एक महीने दूध, दही का शर्वत, आठ रात घी और छ: रात बिना माँगे पदार्थ पर निर्भर रहना पड़ता है।
- इसके पश्चात् तीन रात्रि केवल जल पीकर ही 24 घण्टे का उपवास करने का विधान है।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑
पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 60 |
- ↑ प्रायश्चितप्रदीप, कृत्यप्रदीप, शुद्धिप्रदीप=आचार्य कृष्णमिश्र
संबंधित लेख