उभाड़दार छपाई

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उभाड़दार छपाई ऐसी छपाई जिसमें अक्षर उभड़े हुए रहते हैं-उभाड़दार छपाई या समुद्रकरण (एमबॉसिंग) कहलाती है। यह छपाई पीतल के ठप्पे से होती है जिनमें अक्षर धँसे रहते हैं। छपाई साधारणत : हाथ से चालित, पेंच के प्रयोग से दाब उत्पन्न करनेवाले, छोटे प्रेसों से की जाती है। ठप्पे को अपने नियत स्थान पर नीचे कस दिया जाता है। ठप्पे पर आकर पड़नेवाली पीठिका पर गत्ता चिपका दिया जाता है। फिर प्रेस के हैंडल को जोर से चलाया जाता है। इससे ठप्पे और पीठिका के बीच गत्ता इतने बल से दबता है कि उसका कुछ भाग ठप्पे के गड्ढों में घुस जाता है और गत्ता ठप्पे के अनुसार रूप ले लेता है। अंतर इतना ही छपाई हो सकती है। इसके लिए ठप्पे पर विशेष (बहुत गाढ़ी) स्याही लगा दी जाती है और फिर उसे कागज से रगड़कर पोंछ दिया जाता है। इस प्रकार ठप्पे का सपाट भाग पूर्णतया स्वच्छ हो जाता है, केवल गड्ढे में स्याही लगी रह जाती है। फिर उस कागज को, जिसपर छपाई करनी रहती है, ठप्पे पर उचित स्थान पर रखकर प्रेस के हैंडल को जोर से चलाया जाता है। जब गत्ता ऊपर से कागज को दबाता है तो गत्ते के उभड़े भाग कागज को ठप्पे के गड्ढों में धँसा देते हैं। हैंडल को उलटा घुमाकर कागज को सँभालकर उठा लने पर उसपर उभाड़दार छपाई दिखाई देती है। इसी प्रकार एक एक करके सब कागज छाप लिए जाते हैं। जहाँ इस प्रकार की छपाई बहुत करनी होती है वहाँ ऐसी मशीन का उपयोग किया जाता है जिसमें स्याही लगाने, पोंछने और गत्तोंवाली पीठिका को चलाने का काम अपने आप होता रहता है।

जलचालित शक्तिशाली प्रेसों में पुस्तक के मोटे आवरणों पर इसी सिद्धांत पर उभड़ी या धँसी और स्याहीदार या बिना स्याही की छपाई की जाती है। समुद्भरण के अंतर्गत केवल छपाई ही नहीं है; धातु की चादर, प्लैस्टिक, कपड़े आदि पर भी उभड़ी हुई आकृतियाँ इसी सिद्धांत पर बनी विशेष मशीनों द्वारा छापी जाती हैं। एक बेलन का छिछला उत्कीर्णन खुदा रहता है। दूसरे बेलन पर गत्ता या नमदा रहता है, या उसपर पहले के अनुरूप ही उभड़ा उत्कीर्णन रहता है। मशीनों में ये दोनों बेलन एक दूसरे को छूते हुए घूमते रहते हैं। इन दोनों के बीच डाली गई चादर आदि पर उभाड़दार आकृतियाँ बन जाती हैं।

सोने के आभूषणों पर उभाड़दार उत्कीर्णन करने के लिए सोने के पत्र को लाख (चपड़ा) और तारपीन आदि के रूपद (अर्ध-लचीले) मिश्रण पर रखकर पीठ की ओर से विविध यंत्रों द्वारा ठोंकते हैं। फिर पत्र को उलटकर आवश्यक स्थानों पर सामने से उत्कीर्णन करते हैं।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 128 |

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