एजेंसी

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एजेंसी इंग्लैंड का राजा भारत का सम्राट् था और देशी राज्यों पर उसका अनियंत्रित शासन था। भारत में उसका प्रतिनिधि गवर्नर जनरल तथा वायसराय था। वायसराय देशी राज्यों पर राजनीतिक मंडल (Political Department) द्वारा शासन करता था। राजनीतिक मंडल देशी राज्यों पर अपना शासकीय संपर्क रेज़िडेंस तथा एजेंसी के द्वारा रखा करता था। हैदराबाद, ग्वालियर, बड़ौदा, मैसूर, कश्मीर, सिक्किम, भूटान आदि बड़े देशी राज्यों में रेज़िडेंट होते थे। रेज़िडेंट का प्रत्यक्ष संबंध वायसराय से हुआ करता था। दूसरे छोटे-छोटे दस एजेंसियों में बँटे हुए थे। भारत में छोटे बड़े कुल मिलाकर 562 देशी राज्य थे। प्रत्येक एजेंसी का प्रधान प्रशासक गवर्नर जनरल का एजेंट अर्थात्‌ प्रतिनिधि था। एजेंसियाँ तथा उनके प्रधान कार्यालय इस प्रकार थे–मध्य भारत एजेंसी, प्रधान कार्यालय इंदौर में; दक्षिणी राज्यों की एजेंसी, प्रधान कार्यालय मद्रास में ; पूर्वीय राज्यों की एजेंसी, गुजरात के राज्यों की एजेंसी, बलूचिस्तान एजेंसी, पश्चिमी राज्यों की एजेंसी, राजपूताना एजेंसी, पंजाब के राज्यों की एजेंसी, उत्तर-पश्चिमी राज्यों की एजेंसी, तथा कोल्हापुर एजेंसी। प्रत्येक गवर्नर जनरल का एजेंट एजेंसी के प्रधान कार्यालय में रहता था। अपने कर्तव्यों के निर्वहन में इसे राजनीतिक एजेटों तथा रेज़िडेंटों की पूरी पूरी सहायता मिलती थी। कहीं कहीं प्रांत के गवर्नर ही एजेंट का भी कार्य सॅभालते थे, और कहीं कहीं कोई वयोवृद्ध सरकारी कर्मचारी इस पद पर नियुक्त किया जाता था। छोटे छोटे राज्यों के लिए जिलाधीश, सहायक जिलाधीश या तहसीलदार भी राजनीतिक एजेंटों के रूप में काम करते थे।

राजनीतिक अधिकारियों की शक्ति और अधिकार व्यापक थे। उन्हें राज्यों के प्रशासन में अनियंत्रित अधिकार थे। वे राजा के व्यक्तिगत आचरण और जीवन पर दृष्टि रखते थे तथा आंतरिक शासनव्यवस्था भी उनके निरीक्षण में रहती थी। समय समय पर राजनीतिक अधिकारी एजेंट को गुप्त रूप से राज्यों के सभी समाचार पहुँचाया करते थे। इनके वृत्तांत पर वायसराय देशी राज्यों के आभ्यंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता था। वे युवराजों के विवाहसंबंध, उत्तराधिकार, दत्तक आदि का निश्चय करते थे। युवराजों की शिक्षा, भम्रण, भाषण आदि सभी बातों पर एजेंटों का पूरा नियंत्रण रहा करता था। यदि देशी नरेश निर्बल होता, तो एजेंट का पूरा नियंत्रण रहा करता था। यदि देशी नरेश निर्बल होता, तो एजेंट अपना पूरा अधिकार उसपर जमा लेता था। किंतु यदि राजा का व्यक्तित्व प्रभावशाली होता और वायसराय से उसके संबंध अच्छे होते तो एजेंट का उसपर प्रभाव नगण्य होता था। साधारणतया एजेंट के दो ही अधिकार उल्लिखित थे।–(1) कार्यपालिका संबंधी या प्रशासकीय, तथा (2) न्यायिक। प्रशासकीय अधिकारी के नाते वे राज्यों से अनुदान एकत्रित करते, आभ्यंतरिक मामलों का निरीक्षण करते, राजाओं के व्यक्तिगत जीवन एवं राज्यों की आर्थिक व्यवस्था का निरीक्षण करते थे। उनके न्याय संबंधी कार्य ये थे–सीमा संबंधी मतभेदों को मिटाना, खूनियों को सजा देना, राज्य में रहनेवाले अंग्रेजों पर मामला चलाना, इत्यादि। एजेंटों की शक्ति असीमित थी। वे भारत सरकार एवं देशी राज्यों के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी थे।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 234 |

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