कँड़हार

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कँड़हार - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी; प्रान्तीय प्रयोग) संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत कर्णधार)[1]

1. केवट। नाविक। माँझी। कर्णधार।

उदाहरण-

(क) जा कहँ अइस होहिं कँड़हारा। - जायसी ग्रंथावली[2]

(ख) चहत पार नहिं कोउ कँड़हारू। - रामचरितमानस[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 731 |
  2. जायसी ग्रंथावली, पृष्ठ 132, सम्पादक रामचंद्र शुक्ल, नागरी प्रचारिणी सभा, द्वितीय संस्करण
  3. रामचरितमानस, 1।260, सम्पादक शंभूनारायण चौबे, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण

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