क्रिकेट

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क्रिकेट
क्रिकेट के मैदान में क्रिकेट खेलते खिलाड़ी
विवरण क्रिकेट एक बल्ले व गेंद से दो दलों के खिला‌ड़ियों के बीच एक बड़े मैदान में खेला जाने वाला खेल है। मुख्यतः यह एक बाहरी (आउटडोर) खेल है लेकिन कुछ मुक़ाबले कृत्रिम प्रकाश (फ्लड लाइट्स) में भी खेले जाते हैं।
सर्वोच्च नियंत्रण निकाय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी)
पहली बार खेला गया 1877 ई.
दल के सदस्य 11 (ग्यारह)
उपकरण बल्ला, गेंद, स्टम्प आदि
स्थल बड़ा मैदान
विश्वकप प्रतियोगिता वर्ष 1975 से प्रत्येक चार वर्ष के अंतराल पर आयोजित होती है।
ओलम्पिक एक बार सन् 1900 में ही शामिल किया गया।
संबंधित लेख गेंदबाज़ी, बल्लेबाज़ी
प्रारूप टेस्ट क्रिकेट, वनडे क्रिकेट, टी-20 क्रिकेट
पिच मैदान के बीच में एक 'पिच' बनाई जाती है जो 22 गज़ लम्बी और 10 फुट चौड़ी होती है। इसके दोनों तरफ़ 28 इंच ऊँचे तीन 'स्टम्प' लगे रहते हैं और इन स्टम्पों के बीच में दो 'गिल्लियाँ' लगी रहती हैं।
अन्य जानकारी भारत ने टेस्ट क्रिकेट में पहला क़दम सन् 1932 में रखा था। इस वर्ष इंग्लैंड के विरुद्ध लार्डस में भारत ने पहला टेस्ट खेला था। इस टेस्ट में भारतीय टीम के कप्तान सी. के. नायडू थे। एक टेस्ट की श्रृंखला में भारत यह टेस्ट 158 रन से हारा।

क्रिकेट एक बल्ले व गेंद से 11-11 खिलाड़ियों के दो दलों के बीच एक बड़े मैदान में खेला जाने वाला खेल है। मुख्यतः यह एक बाहरी (आउटडोर) खेल है और कुछ मुक़ाबले कृत्रिम प्रकाश (फ्लड लाइट्स) में भी खेले जाते हैं। उदाहरण के लिए, गरमी के मौसम में इसे संयुक्त राजशाही, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ़्रीका में खेला जाता है जबकि वेस्ट इंडीज, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में ज़्यादातर मानसून के बाद सर्दियों में खेला जाता है। मुख्य रूप से इसका प्रशासन दुबई में स्थित अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के द्वारा किया जाता है, जो इसके सदस्य राष्ट्रों के घरेलू नियंत्रित निकायों के माध्यम से विश्व भर में खेल का आयोजन करती है। आईसीसी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेले जाने वाले पुरुष और महिला क्रिकेट दोनों का नियंत्रण करती है। हालांकि पुरुष, महिला क्रिकेट नहीं खेल सकते हैं पर नियमों के अनुसार महिलाएं पुरुषों की टीम में खेल सकती हैं।

परिचय

क्रिकेट एक बड़े मैदान में खेला जाता है और इस मैदान के बीच में एक 'पिच' बनाई जाती है जो 22 गज़ लम्बी और 10 फुट चौड़ी होती है। इसके दोनों तरफ़ 28 इंच ऊँचे तीन 'स्टम्प' लगे रहते हैं और इन स्टम्पों के बीच में दो 'गिल्लियाँ' लगी रहती हैं। ये तीनों स्टम्प इतने पास–पास गाड़े जाते हैं कि जिसमें से गेंद न गुज़र सके। गेंद की परिधि 9 इंच की होती है। क्रिकेट का गेंद एक ख़ास ढंग का होता है। जिसका भार 5.5 औंस से कम और 5.75 औंस से अधिक नहीं होता। हर टीम का अपना एक कप्तान होता है, जो कि इन ग्यारह खिलाड़ियों में ही शामिल होता है। इसके अलावा दो अम्पायर होते हैं, जिनका फ़ैसला दोनों टीमों को मान्य होता है। दोनों टीमों में से कौन–सी टीम पहले बल्लेबाज़ी करेगी इसका फ़ैसला सिक्के की उछाल से, जिसे 'टॉस' कहा जाता है, किया जाता है। टॉस टीम का कप्तान करता है और टॉस जीतने वाला कप्तान तय करता है कि कौन सी टीम पहले बल्लेबाज़ी करेगी। दसवें खिलाड़ी के आउट होते ही सारी टीम को आउट हुआ मान लिया जाता है और इस बीच उस टीम ने जितने भी रन बनाए होते हैं, वह उसके आगे जोड़ दिए जाते हैं और कहा जाता है कि अमुक–अमुक टीम ने अपनी पहली पारी में इतने रन बनाए हैं। दोनों दल बारी-बारी से बल्लेबाज़ी (एक पारी) और गेंदबाज़ी करते हैं व एक पारी के समाप्त होने पर आपस में जगह बदल लेते हैं।
मुक़ाबले के पूर्व-निर्धारित समय के अनुसार दलों को एक अथवा दो पारियाँ मिलती हैं, जिनमें अधिकाधिक रन बनाने का उद्देश्य होता है। बल्लेबाज़ी कर रहा दल अपने विकेट (तीन-तीन डंडों के दो समूह, जो मैदान में एक-दूसरे से 20.12 मीटर दूर ज़मीन में लगाए जाते है) बचाता है और गेंद पर प्रहार करके दूसरे छोर के विकेट तक दौड़कर अथवा गेंद पर प्रहार कर उसे सीमा रेखा की ओर या उसके पार भेजकर रन बनाने का प्रयास करता है। गेंदबाज़ बांह सीधी रखकर फेंकी गई गेंद से विकेट गिराने का प्रयास करते हैं, जिससे गिल्लियाँ (जो विकेट के ऊपर आड़ी रखी रहती है) गिर जाएँ। यह बल्लेबाज़ को आउट करने के कई तरीक़ों में से एक होता है।

इतिहास

क्रिकेट मैच के खेलते हुए खिलाड़ी

क्रिकेट के खेल का इतिहास 16वीं शताब्दी से आज तक अत्यन्त विस्तृत रूप में विद्यमान है। पहला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच 1844 के बाद खेला गया, यद्यपि आधिकारिक रूप से अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट 1877 से प्रारम्भ हुए। इस समय से यह खेल मूल रूप से इंग्लैंड में विकसित हुआ जो कि अब पेशेवर रूप में अधिकांश राष्ट्रमंडल देशों में खेला जाता है। क्रिकेट दुनिया भर में खेला जाता है। विशेषकर इंग्लैंड, दक्षिण एशिया, दक्षिण अफ़्रीका और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में, मैच अनौपचारिक, सप्ताहांत की दोपहरी में गांवों के हरे मैदानों में खेले जाने वाले मुक़ाबलों से लेकर प्रमुख व्यावसायिक खिलाड़ियों के बीच विशाल स्टेडियमों में खेले जाने वाले पांच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मुक़ाबलों तक होते हैं।

क्रिकेट के इतिहास में पहले–पहल की बातें

  • पहला टेस्ट मैच — 15 मार्च, 1877 को। (आस्ट्रेलिया)
  • पहला टेस्ट — मेलबोर्न (आस्ट्रेलिया में)।
  • पहला रन — चार्ल्स बैनरमैन (आस्ट्रेलिया)।
  • पहला विकेट — हिल (इंग्लैण्ड)।
  • पहला विकेट किसका — टाम्सन (आस्ट्रेलिया)।
  • पहली जीत — 45 रन (आस्ट्रेलिया)।
  • पहला ओवर — अल्फ़्रेडशा (इंग्लैण्ड)।
  • पहला टेस्ट शतक — बैनरमैन (165 रन) (आस्ट्रेलिया)।
  • पहला दोहरा टेस्ट शतक — मुर्डोच (211 रन) (आस्ट्रेलिया — 1877)।
  • 99 पर आउट पहला खिलाड़ी — क्लेम हिल (आस्ट्रेलिया — 1901-2)।
  • सबसे कम रनों से — पहली विजय (आस्ट्रेलिया के विरुद्ध इंग्लैण्ड)।
  • सबसे अधिक रनों से — पहली जीत (इंग्लैण्ड के विरुद्ध आस्ट्रेलिया) (675 रन) (1928-29)।
  • पहला खिलाड़ी शुरू से अन्त तक — मुर्डोच (153 रन) (1880) (आस्ट्रेलिया के विरुद्ध इंग्लैण्ड)।
  • एक वर्ष में 1000 रन बनाने वाला पहला खिलाड़ी — क्लेम हिल (आस्ट्रेलिया) (1060 रन)।
  • पाँच टेस्टों में हारने व जीतने वाला पहला देश — जीत (आस्ट्रेलिया, 1920-21), हार (इंग्लैण्ड)।
  • पहला शतक प्रतिद्वन्द्वी कप्तानों द्वारा — (1913-14) जे. डगलस (109) और एच. टेलर (119) (दक्षिण अफ़्रीका के विरुद्ध इंग्लैण्ड)।
  • पहला टेस्ट कब से किस देश में — 1- आस्ट्रेलिया, 1877 2- इंग्लैण्ड, 1880, 3-वेस्टइंडीज़, 1900, 4- भारत, 1932 5- न्यज़ीलैण्ड, 1929-30, 6- पाकिस्तान, 1952

भारत में पहला टेस्ट मैच

भारत ने टेस्ट क्रिकेट में पहला क़दम सन् 1932 में रखा था। इस वर्ष इंग्लैंड के विरुद्ध लार्डस में भारत ने पहला टेस्ट खेला था। इस टेस्ट में भारतीय टीम के कप्तान सी. के. नायडू थे। एक टेस्ट की श्रृंखला में भारत यह टेस्ट 158 रन से हारा। इंग्लैंड की प्रथम पारी में 259 रन तथा द्वितीय पारी में 8 विकेट पर 275 रन थे। भारत की प्रथम तथा दूसरी पारी में क्रमशः 189 वे 187 रन थे। प्रथम पारी में कप्तान सी. के. नायडू के 40 रन सर्वोच्च स्कोर था तथा द्वितीय पारी में तेज़ गेंदबाज़ अमर सिंह के 51 रन सर्वोच्च स्कोर था। अमर सिंह भारत के पहले खिलाड़ी थे, जिन्होंने पहला अर्ध–शतक लगाया था। इंग्लैंड के विरुद्ध भारत का पहला टेस्ट शतक लाला अमरनाथ ने 1933-34 की श्रृंखला में बम्बई टेस्ट में लगाया। यह लाला अमरनाथ का पहला टेस्ट शतक था और भारतीय भूमि पर यह पहला टेस्ट मैच था।

क्रिकेट के नियम

क्रिकेट भारत में सबसे ज़्यादा खेला जाने वाला और सबसे लोकप्रिय खेल है। भारतीय क्रिकेट के दीवाने है। क्रिकेट के प्रति इतने समर्पित होने के बाद भी कई लोग इसके मूलभूत नियमों और सिद्धांतों से अनभिज्ञ है। हर खेल की तरह क्रिकेट के भी अपने नियम है।

शब्दावली नियम
पिच आईसीसी (ICC) के मानकों के अनुसार एक मानक क्रिकेट पिच की औसत लम्बाई 20 मीटर और चौड़ाई 3 मीटर होनी चाहिए।
विकेट विकेट की ऊँचाई 720 मिमी और उसकी संयुक्त चौड़ाई 230 मिमी होनी चाहिए।
नो बॉल क्रीज़ की पोप्पिंग रेखा से बाहर गेंदबाज़ का पैर पड़ने पर नो बॉल मानी जाती है। दोनों रेखाओं की लम्बाई 2.64 मीटर तथा दोनों के बीच की दूरी 1.2 मीटर होती है।
सुरक्षित क्षेत्र जिस क्षेत्र में बल्लेबाज़ रन आउट या स्टंपिंग नहीं हो सकता, उस क्रीज़ से घिरे क्षेत्र को सुरक्षित क्षेत्र (Safe Zone) कहा जाता है।
वाइड बॉल यदि गेंदबाज़ गेंद को गेंदबाज़ी करते समय उसे बल्लेबाज़ से अधिक दूर फेंके तो अम्पायर वाइड बॉल करार देता है। इसके लिए दो अतिरिक्त साइड क्रीज़ भी होती हैं जो वाइड बॉल का निर्धारण करती है।
बल्ला बल्ले की मानक लम्बाई 970 मिमी और चौड़ाई 108 मिमी होती है। बल्ले के शीर्ष पर बेलनाकार हेंडल होता है। हेंडल की चौड़ाई ब्लेड से कम होती है। हेंडल की चौड़ाई बल्ले की कुल लम्बाई से अधिक भी नहीं होनी चाहिए।
गेंद गेंद की परिधि की मानक लम्बाई 230 मिमी होती है। गेंद का वज़न 155.9 से 163.0 ग्राम के बीच होता है।
सुरक्षा बल्लेबाज़ को सुरक्षा के लिए हेलमेट, दस्ताने (ग्लव्स) और पेड्स पहनना अनिवार्य होता है।
अम्पायर खेल दो अम्पायरों के द्वारा संचालित और नियंत्रित किया जाता है। इनका निर्णय सर्वमान्य होता है। यदि किसी स्थिति में दोनों अम्पायर निर्णय करने में असमर्थ होते हैं तो निर्णय देने के लिए तीसरे अम्पायर (थर्ड अंपायर) को कहा जाता है जो टेलीविज़न और कैमरे की सहायता से निर्णय लेता है।
मैच रेफ़री प्रत्येक मैच के लिए एक मैच रेफ़री भी होता है जिसका काम खेल में नियमों को बनाये रखना होता है। और यदि कोई खिलाड़ी नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे दंड देने का अधिकार मैच रेफ़री को होता है।
स्कोर बोर्ड दो स्कोर बोर्ड परिचालक होते है जो स्कोर बोर्ड को नियंत्रित और परिचालित करते हैं। स्कोर बोर्ड पर मुख्य आंकड़े दिखाए जाते हैं जैसे- रन, ओवर, विकेट, अतिरिक्त रन।

मांकड़ का अंदाज़-ए-आउट बना नियम

हाल ही में खेल जगत् में खिलाड़ियों की बददिमागी के प्रकरण सामने आए हैं। दक्षिण अफ़ीका और वेस्ट इंडीज के टेस्ट मैच के दौरान डेल स्टेन ने विपक्षी गेंदबाज़ सुलेमान बेन की ओर थूक कर खेल भावना को आहत किया था। पर विश्व क्रिकेट में ऐसे भी क्षण आए जो पहले बदतमीजी करार दिए गए और बाद में आईसीसी के नियम के रूप में तब्दील हो गए। ऐसा ही एक नियम है मांकड़ आउट होना। भारत के महान् क्रिकेटर वीनू मांकड़ ने इस तरीक़े से रन आउट करने की शुरुआत की थी। दिसंबर 1947 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई टीम इंडिया का यह क़िस्सा बहुत मशहूर है। हुआ यूं कि ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध सिडनी टेस्ट में भारतीय गेंदबाज़ वीनू मांकड़ ने विपक्षी बल्लेबाज़ को कुछ ऐसे आउट किया की सब दंग रह गए। मांकड़ ने गेंदबाज़ी करते हुए क्रीज तक पहुंचकर बिना गेंद फेंके नॉन स्ट्राइकिंग छोर की गिल्लियां बिखेर दीं। कंगारू बल्लेबाज़ बिल ब्राउन गेंद डाले जाने के पूर्व ही रन लेने की जल्दबाज़ी में क्रीज छोड़ चुके थे। मांकड़ ने गिल्ली उड़ाते ही रन आउट की अपील की और अंपायर ने उंगली उठा दी। हालाँकि मांकड़ की इस हरकत को ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ने खेल भावना के विरुद्ध बताते हुए भर्तसना की, पर दिग्गज बल्लेबाज़ डॉन ब्रैडमैन समेत कुछ विपक्षी खिलाड़ियों ने मांकड़ का बचाव किया। बाद में आउट करने का यह तरीक़ा क्रिकेट के नियमों में शामिल हो गया और इसका नाम मांकड़ आउट पड़ गया। क्रिकेट नियमों की धारा 42.15 के अंतर्गत मांकड़ आउट को वैधानिक कर दिया गया।

कपिल ने दोहराया इतिहास

भारत के महान् कप्तानों में से एक कपिल देव ने भी दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ वनडे में मांकड़ का इतिहास दोहराया था। साल 1993 में हुए इस मुक़ाबले में कपिल देव ने पीटर कर्सटन को मांकड़ आउट कर दिया था।

परिणाम

यदि बाद में खेलने वाली टीम दूसरे पक्ष से कम रन बना कर आउट हो जाती है तो कहा जाता है कि टीम N रनों से हार गई है। (जहाँ N दोनों टीमों के द्वारा बनाये गए रनों की संख्या का अन्तर है) यदि बाद में खेलने वाली टीम जीतने के लिए पर्याप्त रन बना लेती है तो कहा जाता है की वह N विकेटों से जीत गई। जहाँ N जीतने वाली टीम के बचे हुए विकेटों की संख्या है।

उदहारण

यदि पहले खेलने वाली टीम 280 रन बनाती है और दूसरी टीम बाद में खेलते हुए सिर्फ़ 250 रन बना पाती है तो दूसरी टीम (बाद में खेलने वाली) की 30 रन से हार मानी जाती है और यदि बाद में खेलने वाली टीम केवल 7 विकेट खोकर पहले खेलने वाली टीम के स्कोर को पार कर लेती है तो कहा जाता है कि वह 3 विकेट से मैच जीत गई है।
यदि बाद में बल्लेबाज़ी करने वाली टीम ऑल आउट हो जाती है और दोनों टीमों ने समान रन बनाये हैं, तो मैच टाई हो जाता है। यह नतीजा काफ़ी दुर्लभ होता है। खेल के परंपरागत स्वरूप में (टेस्ट क्रिकेट), किसी भी टीम के जीतने से पहले यदि समय ख़त्म हो जाता है तो खेल को ड्रॉ घोषित कर दिया जाता है।

डकवर्थ लुईस नियम

क्रिकेट मैच के दौरान गौतम गंभीर रन लेते हुए

इस नियम का विकास इंग्लैंड के दो सांख्यिकी के विद्वान् फ्रैंक डकवर्थ और टॉनी लुईस ने किया था। यह नियम क्रिकेट के सीमित मैच के दौरान किसी प्रकार की प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियों एवं अन्य स्थितियों में अपनाया जाने वाला नियम है। जिससे कि मैच अपने निर्णय तक पहुँच सके। डकवर्थ लुईस नियम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त है। इस नियम के तहत घटाए गए ओवरों में नए लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं। इस लक्ष्य निर्धारण विधि को एक ख़ास सांख्यिकीय सारणी की मदद से निकाला जाता है जिसका संशोधन समय-समय पर होता रहता है। उपरोक्त सारणी 2002 के संशोधन के समय की है जिसमें प्रत्येक ओवर के बचे रहते और विकेट के शेष रहते संसाधनों की माप प्रतिशत में दी गई है। इसमें संसाधनों या साधनों की विधि पर आधारित रनों की संख्या का लक्ष्य निकाला जाता है।
माना कि पहली टीम ने R1 साधनों का प्रयोग करते हुए S रन बनाए। अगर दूसरी टीम को खेलने के लिए सिर्फ़ R2 साधन मिले तो उनका लक्ष्य होगा- S x R2 / R1 । इसको समझने के लिए एक उदाहरण नीचे दिया गया है।

उदाहरण

माना कि पहले टीम ने खेलकर S रन बनाए और बाद में खेल रही टीम ने 30 ओवरों में दो विकेट खो दिए तो R (30, 2) का मान ऊपर की टेबल से देखकर 52.4% निकालते हैं। चूँकि बाद वाली टीम ने सिर्फ़ 100-52.4=47.6% साधनों का प्रयोग किया अत: उनका नया लक्ष्य होगा - S x 47.6 / 100>।

डी/एल नियम का एक सरल उदाहरण

पहला एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय भारत और पाकिस्तान के बीच अपने 2006 एकदिवसीय श्रृंखला में खेला जा रहा था। भारत ने पहले बल्लेबाज़ी की और 49 ओवर में 328 बनाए। पाकिस्तान ने दूसरी बल्लेबाज़ी करते हुए 7 विकेट पर 311 रन बनाये ही थे कि तभी ख़राब रोशनी के कारण खेल को 47 ओवर पर रोक दिया गया था। जहाँ रन रेट के हिसाब से 3 ओवर में 18 रन चाहिए थे 3 विकेट हाथ में थे। डी/एल पद्धति में अगर रन रेट के हिसाब से देखें तो 47 ओवर के बाद 3 विकेट हाथ में होते यहाँ 304 रन होते तो पाकिस्तान की जीत तय थी यहाँ उनका स्कोर 311/7 था तो आधिकारिक तौर पर परिणाम के रूप में पाकिस्तान की 7 रन से जीत घोषित की गई।

क्रिकेट मैचों के प्रकार

क्रिकेट मैच के दौरान सचिन और सहवाग रन लेते हुए

व्यापक अर्थों में क्रिकेट एक बहु आयामी खेल है, इसे खेल के पैमानों के आधार पर मेजर क्रिकेट और माइनर क्रिकेट में विभाजित किया जा सकता है। एक और अधिक उचित विभाजन, विशेष रूप से मेजर क्रिकेट के शब्दों में, मैचों के बीच किया जाता है, जिसमें कुल दो पारियां होती हैं, प्रत्येक टीम को एक पारी खेलनी होती है। इसे पूर्व में प्रथम श्रेणी क्रिकेट के रूप में जाना जाता था, इसकी अवधि तीन से पाँच दिन होती है, (ऐसे मैचों के उदाहरण भी मिलते हैं जिनमें समय की कोई सीमा नहीं रही है); बाद में इन्हें सीमित ओवरों के क्रिकेट के रूप में जाना जाने लगा क्योंकि प्रत्येक टीम प्रारूपिक रूप से सीमित 50 ओवर में गेंदें डालती है, इसकी पूर्व निर्धारित अवधि केवल 1 दिन होती है। मुख्य रूप से क्रिकेट के तीन प्रारूप हैं-

टेस्ट क्रिकेट

टेस्ट क्रिकेट, क्रिकेट का सबसे लम्बा स्वरूप होता है। इसे खिलाड़ियों की खेल क्षमता की वास्तविक परीक्षा माना गया है। क्रिकेट के इस प्रारूप में 5 दिन तक खेल होता है, और दोनों दलों को दो-दो बार गेंदबाज़ी और बल्लेबाज़ी का मौक़ा मिलता है। इसमें एक दिन में 90 ओवर फेंके जाते हैं।

वनडे क्रिकेट

इसे एकदिवसीय क्रिकेट या सीमित ओवर मुक़ाबला भी कहा जाता है। इसमें प्रत्येक दल 50 ओवर गेंदबाज़ी और 50 ओवर बल्लेबाज़ी करता है। यह एक दिन में ही समाप्त हो जाता है। इस प्रारूप में विश्व कप प्रतियोगिता आयोजित की जाती हैं। जिसमें सभी आईसीसी सदस्य देश हिस्सा लेते हैं। एकदिवसीय क्रिकेट का विश्वकप सन् 1983 में कपिल देव की कप्तानी में भारत ने जीता।

ट्वेंटी 20 क्रिकेट

यह क्रिकेट का सबसे छोटा प्रारूप है, जिसका उद्देश्य है कि मैच 3 घंटे में ख़त्म हो जाए, सामान्यत: इसे शाम के समय में खेला जाता है। इसमें प्रत्येक दल केवल 20 ओवर बल्लेबाज़ी और 20 ओवर गेंदबाज़ी करता है। जब इसकी अवधारणा इंग्लैंड में 2003 में पेश की गई कि तब मूल विचार यह था कि कर्मचारियों को शाम के समय में मनोरंजन उपलब्ध कराया जा सके। यह व्यावसायिक रूप से बहुत सफल हुआ और इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया गया है। इसके फलस्वरूप भारत में आईपीएल की शुरुआत हुई। ट्वेंटी 20 क्रिकेट के प्रथम विश्व कप को भारत ने 2007 में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में जीता।

बल्लेबाज़ी

सचिन बल्लेबाज़ी करते हुए
Sachin in Batting Action

क्रिकेट के प्रशंसकों के लिए बल्लेबाज़ी क्रिकेट के सबसे रोमांचक भागों में से एक है। एक अच्छा बल्लेबाज़ वो है जो अच्छे स्कोर बना कर अपने विकेट बचा लेता है। एक उत्कृष्ट बल्लेबाज़ बनने के लिए बड़ी तेज़ीके साथ शॉट्स मरना ज़रुरी होता है। जो खिलाड़ी बल्ला चला कर गेंद को बल्ले से मारते है उन्हें बल्लेबाज़ कहा जाता है और इस क्रिया या कला को बल्लेबाज़ी कहा जाता है। क्रिकेट के खेल में दो प्रकार के बल्लेबाज़ होते हैं।

दायें हाथ का बल्लेबाज़

जब खिलाड़ी गेंद पर प्रहार करते वक़्त अपने दायें हाथ का इस्तेमाल करता है तो उसे दायें हाथ का बल्लेबाज़ माना जाता है। दायें हाथ के कुछ महान् बल्लेबाज़ हैं- डॉन ब्रैड़मैन (आस्ट्रेलिया), विवियन रिचडर्स (वेस्टइंडीज), सुनील गावस्कर (भारत), सचिन तेंदुलकर (भारत) इत्यादि।

बायें हाथ का बल्लेबाज़

इसके विपरीत जब खिलाड़ी गेंद पर प्रहार करते वक़्त अपने बायें हाथ का इस्तेमाल करता है तो उसे बायें हाथ का बल्लेबाज़ माना जाता है। बायें हाथ के कुछ महान् बल्लेबाज़ हैं- गैरी सोबर्स (वेस्टइंडीज), ब्रायन लारा (वेस्टइंडीज), एलन बो‍‍‍र्डर (आस्ट्रेलिया) इत्यादि।

गेंदबाज़ी

गेंदबाज़ी करते समय खिलाड़ी के किसी न किसी पैर का कुछ न कुछ अंग 'बॉलिंग क़्रीज़' के पीछे और 'रिटर्न क़्रीज़' के अन्दर होना चाहिए। यदि कोई गेंदबाज़ इन नियमों का उल्लघंन करता है तो उसे अम्पायर द्वारा 'नो बाल' का इशारा मिल जाता है और यदि वह गेंद को ऊँचाई या चौड़ाई में इतनी दूर फेंकता है कि अम्पायर की दृष्टि में वह गेंद बल्लेबाज़ की पहुँच से बाहर है तो उसे 'वाइड बाल' कहा जाता है।

गेंदबाज़ी करता एक गेंदबाज़

क्रिकेट में गेंदबाज़ी करने के भी अनेक तरीक़े हैं। जैसे–

  • फास्ट बॉलिंग (तेज़ गेंदबाज़ी)
  • मीडियम पेस बॉलिंग (मध्यम गति की गेंदबाज़ी)
  • स्लो बॉलिंग (धीमी गेंदबाज़ी)
  • स्पिन बॉलिंग (चक्करदार गेंदबाज़ी)

चाइनामैन

'चाइनामैन' उस लेफ़्ट आर्म स्पिनर को कहते हैं, जो उंगली की बजाय कलाई के सहारे गेंद को स्पिन कराता है और उसकी मुख्य गेंद 'आर्थोडोक्स लेफ़्ट आर्मर' के विपरीत किसी दाएं हाथ के बल्लेबाज़ के लिए ऑफ़ स्पिन होती है। यूं समझ लें कि कोई चाईनामैन स्पिनर किसी दाएं हाथ के लेग स्पिनर का मिरर इमेज है। शेन वार्न, दानिश कनेरिया या पीयूष चावला की गेंदबाज़ी को आइने में देख लीजिए यही है चाइनामैन लेग स्पिन। वहीं लेफ़्ट आर्म आर्थोडोक्स स्पिन गेंदबाज़ अपनी उंगली से गेंद को स्पिन कराता है और उसकी मुख्य गेंद वह होती है, जो किसी दाएं हाथ के बल्लेबाज़ के लिए लेग ब्रेक हो।

क्षेत्ररक्षण

क्रिकेट के मैदान में खिलाड़ियों की स्थिति
Position of Players in Cricket Ground

क्रिकेट के क्षेत्र में क्षेत्ररक्षण (फील्डिंग) का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। क्षेत्ररक्षण करने वाले खिलाड़ी को सदा ही चुस्त खड़ा रहना पड़ता है। क्षेत्ररक्षण में स्लिप्स, गली या प्वांइट, सिली मिड–ऑफ़ या मिड–आन, स्क्वेयर लेग, लेग स्लिप और विकेट कीपर के स्थान बड़े ही महत्त्वपूर्ण हैं। गेंदबाज़ द्वारा तीन लगातार गेंदों में तीन विकेट लेने पर हेट ट्रिक कहा जाता है। यदि गेंदबाज़ द्वारा छह गेंद फेंकने पर बल्लेबाज़ के द्वारा कोई भी रन न बने तो वह 'मेडन ओवर' कहलाता है। जो बल्लेबाज़ पारी समाप्त होने पर भी खेलता रहता है, उसे 'नाट आउट' कहते हैं। यदि गेंद बल्लेबाज़ के बैट या उसके शरीर को छुए बिना चली जाए और अम्पायर उसे 'वाइड' या 'नो बाल' भी न समझे तो बल्लेबाज़ जितने रन बनाएगा वे सब 'बाई' रन होंगे। जो टीम पहले खेलती है और दूसरी टीम से (तीन या इससे अधिक दिनों के मैच में) 200 रन अधिक बना लेती है, तब वह दूसरी टीम को दूसरी पारी शुरू करने पर मजबूर कर सकती है। इसे क्रिकेट की शब्दावली में 'फ़ोलोओन' कहते हैं। यदि दोनों टीमों की रन संख्या बराबर रहे तो उस मैच को टाई मैच कहते हैं।

विकेट या स्टंप

तीन-तीन डंडों के दो समूह, जो मैदान में एक-दूसरे से 20.12 मीटर दूर पिच में लगाए जाते हैं। ये मुख्यतः लकड़ी के बने होते हैं और जिनके ऊपरी सिरे पर लकड़ी की गिल्लियाँ टिकी होती है।

आउट

एक बल्लेबाज़ खेल में कई तरीक़े से आउट हो सकता है। बल्लेबाज़ के आउट होने के कुछ तरीक़े तो बहुत आसान होते हैं। विपरीत टीम का खिलाड़ी चिल्ला कर कहता है- 'यह आउट है', लेकिन आख़िरी निर्णय अम्पायर का होता है और यदि वह विपरीत टीम के सदस्यों की अपील से सहमत होता है तो वह अपनी तर्जनी अँगुली उठा कर कहता है "आउट" नहीं तो वह अपना सिर हिलाकर "नॉट आउट" का इशारा देता है। गेंदबाज़, बल्लेबाज़ को आउट करने की कोशिश करता है और बल्लेबाज़ इस बात की कोशिश करता है कि गेंद उसकी 'स्टम्प' या 'पैड' पर न लगे। उसे इस बात का भी भय लगा रहता है कि यदि उसने अपनी गेंद को बहुत ऊँचा उछाल दिया तो विपक्षी टीम का कोई खिलाड़ी उसे कैच कर लेगा और वह आउट हो जाएगा।

आउट होने के तरीक़े
बोल्ड आउट जब गेंद बल्ले से बचकर स्टम्प पर जा लगती है। Wicket.jpg
कैच आउट बल्लेबाज़ के द्वारा शॉट मारने के बाद गेंद मैदान पर गिरने से पहले ही जब विपक्षी टीम का कोई खिलाड़ी कैच कर लेता है।
रन आउट जब बल्लेबाज़ रन बनाने के चक्कर में गेंद विकेटकीपर या गेंदबाज के पास आने से पहले तक अपनी क़्रीज़ पर नहीं पहुँच पाता है।
एल. बी. डबल्यू. (लैग बिफोर विकेट) विकेट के सामने पैर, जब कोई बल्लेबाज़ गेंद को मारने के लिए बल्ला उठाता है और बल्ला गेंद में नहीं लगता है या खिलाड़ी गेंद को पैर से रोकने की कोशिश करता है।
हिट-विकेट अगर बल्लेबाज़ गेंद को हिट करते समय अपना ही बल्ला या पैर स्टम्प को मार देता है तो वह 'हिट-विकेट' तरीक़े से आउट हो जाता है।
स्टम्प आउट यदि बल्लेबाज़ शॉट मारते समय क़्रीज़ से बाहर हो जाता है और स्टम्प के पीछे खड़ा खिलाड़ी, जिसे विकेटकीपर कहा जाता है, गेंद को स्टम्प से छुआ देता है तो उसे 'स्टम्प आउट' कहकर आउट मान लिया जाता है।
हैडल्ड द बाल यदि बल्लेबाज़ गेंद को दोबारा हिट करने की कोशिश करता है या उसे किसी ओर तरीक़े से रोकने की कोशिश करता है तो उसे 'हैडल्ड द बाल' तरीक़े से आउट मान लिया जाता है।

यदि गेंद लगने से गिल्लियाँ गिर जाती हैं और स्टम्प नहीं गिरता तो भी बल्लेबाज़ को आउट हुआ माना जाता है। यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि यदि गेंद स्टम्प से टकराने के बावजूद गिल्लियाँ नहीं गिरती हैं तो बल्लेबाज़ को आउट नहीं दिया जा सकता।

बल्ला

क्रिकेट का बल्ला और गेंद
Cricket Bat and Ball

बल्ला लकड़ी का होता है। जिसकी मानक लम्बाई 970 मिमी और चौड़ाई 108 मिमी होती है। बल्ले के शीर्ष पर बेलनाकार हेंडल होता है। हेंडल की चौड़ाई ब्लेड से कम होती है। हेंडल की चौड़ाई बल्ले की कुल लम्बाई से अधिक भी नहीं होनी चाहिए।

गेंद

गेंद गोलाकार होती है और कठोर चमड़े की बनी होती है जिसके बीच में लकड़ी का गोला होता है। टेस्ट मैचों में गेंद का रंग लाल और एकदिवसीय मैचों में सफ़ेद गेंद का प्रयोग होता है जिसकी परिधि की मानक लम्बाई 230 मिमी होती है।

गेंद का वजन 155.9 और 163.0 ग्राम औसत के बीच होता है।

रन

जब कोई बल्लेबाज़ गेंद को 'बाउँड्री' तक पहुँचा देता है, तो उसे बिना दौड़े एक साथ चार रन (चौका) मिल जाते हैं और अगर उसकी गेंद मैदान को बिना छुए बाउँड्री पार कर जाए तो उसे एक साथ छह रन (छक्का) मिल जाते हैं। नहीं तो गेंद वापस आने तक वह जितनी बार दोनों स्टम्पों के बीच का फ़ासला (22 गज़) तय करता है, उतने ही रन उस बल्लेबाज़ के नाम के आगे जोड़ दिए जाते हैं। कई बार बल्लेबाज़ को बिना गेंद मारे भी रन मिल जाते हैं। यानी अगर गेंद बल्लेबाज़ के शरीर को छूकर या विकेट कीपर को चकमा देकर निकल जाएँ तो 'लेग बाई' और 'बाई' के रन मिल जाते हैं और यदि गेंदबाज़ ग़लत ढंग से गेंद फेंके और अम्पायर 'नो बाल' का या 'वायड बाल' का एलान कर दे तो भी खेलने वाली टीम को एक रन मिल जाता है। 'नो बाल' पर आउट हुए खिलाड़ी को आउट हुआ नहीं माना जाता है।

पिच

क्रिकेट पिच
Cricket Pitch

क्रिकेट जिस सतह पर खेला जाता है, उसे पिच कहते हैं। ICC के मानकों के अनुसार एक मानक क्रिकेट पिच की औसत लम्बाई 20 मीटर और चौड़ाई 3 मीटर होती है। इन विकेटों के बीच की लम्बाई और चौड़ाई के अन्तर को ही पिच कहते हैं। पिच एक समतल सतह होती है, इस पर बहुत ही कम घास होती है। पिच की हालत मैच और टीम की रणनीति पर प्रभाव डालती है। पिच की वर्तमान और प्रत्याशित स्थिति टीम की रणनीति को निर्धारित करती है।

अम्पायर

क्रिकेट के मैच के दौरान आउट करने का अधिकार इसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति पर होता है। खेल दो अम्पायरों के द्वारा संचालित और नियंत्रित किया जाता है। जिनमें से एक पिच पर होता है जिसे प्रथम अम्पायर कहते हैं और दूसरा बल्लेबाज़ की ऑन साइड पर 10-12 मीटर की दूरी पर होता है जिसे द्वितीय अम्पायर या लेग अंपायर भी कहते हैं।

अम्पायर
Umpire

यदि किसी स्थिति में दोनों अम्पायर निर्णय करने में असमर्थ होते है तो निर्णय देने के लिए तीसरे अम्पायर (थर्ड अंपायर) को कहा जाता है जो टेलीविज़न और कैमरे की सहायता से निर्णय लेता है। क्रिकेट में अम्पायर का निर्णय सर्वमान्य होता है।

स्कोरर

स्कोर बोर्ड परिचालक को स्कोरर कहते हैं। क्रिकेट के खेल में दो स्कोर बोर्ड परिचालक होते है जो स्कोर बोर्ड को नियंत्रित और परिचालित करते हैं। स्कोर बोर्ड पर मुख्य आंकड़े दिखाए जाते हैं जैसे- रन, ओवर, विकेट, अतिरिक्त रन।

भारत में क्रिकेट

भारतीय क्रिकेट

प्रथम स्पष्टत: दर्ज किया गया क्रिकेट मैच 16वीं शताब्दी के अंत में इंग्लैंड में सरे के गिलफर्ड में खेला गया था। पहली नियमावली 1744 में लिखी गई थी। भारत में क्रिकेट उतना ही लोकप्रिय खेल है, जितना अमेरिका में बास्केटबाल और ब्राज़ील में फुटबाल। क्रिकेट के सितारे बहुत पैसा पाते हैं, इनकी बहुत चकाचौंध होती है व ये राष्ट्रीय प्रतिमान बन जाते हैं। हाल के वर्षों में सचिन तेंदुलकर जैसे क्रिकेट खिलाड़ी कुछ प्रमुख फ़िल्मी सितारों जितने लोकप्रिय हैं। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में भारत का प्रदर्शन लगातार सुधरा है, जिसका उत्कृष्ट बिंदु 1983 के विश्व कप में शानदार विजय है। समृद्ध राष्ट्रीय परिदृश्य पर रणजी ट्राफ़ी प्रतिवर्ष खेली जाने वाली एक प्रतिष्ठापूर्ण अंतर्राज्यीय स्पर्द्धा है। उच्च क्षेत्रीय स्तर पर प्रतिवर्ष दिलीप ट्राफ़ी का आयोजन किया जाता है और सत्र का अंत ईरानी ट्राफ़ी मुक़ाबले से होता है। जिसमें रणजी ट्राफ़ी के विजेताओं को शेष भारत एकादश (रेस्ट ऑफ़ इंडिया XI) के विरुद्ध खेलना होता है।

आरंभिक दौर

भारत में क्रिकेट का खेल 18वीं शताब्दी के आरंभिक ब्रिटिश प्रभाव के दिनों से मौजूद है। जब सेना ने इस खेल को लोकप्रिय बनाने में मदद की। सर्वप्रथम दर्ज किया गया मुक़ाबला 1721 में हुआ। 1792 में विश्व का दूसरा सबसे पुराना क्रिकेट क्लब, कलकत्ता क्रिकेट क्लब, ईडन गार्डंस क्रिकेट स्टेडियम में स्थापित हुआ। फिर पारसी समुदाय ने प्रथम देशी भारतीय क्रिकेट क्लब 'ओरिएंट' 1848 में स्थापित किया। रोचक बात यह है कि भारत में क्रिकेट टीम धार्मिक आधारों पर बनाई जाती थी और 1907 में खेली गई प्रथम प्रतियोगिता में तीन टीम थीं, हिन्दू, पारसीमुसलमान, पारसी टीम ने 1877 में यूरोपीय लोगों को हराया और 1866 में इंग्लैंड जाने पर वह विदेशी दौरे पर जाने वाली प्रथम भारतीय टीम बनी। 1899 में एक ब्रिटिश टीम भारत आई। इसके बाद 1926 में भारत को टेस्ट दर्जा मिलने के पूर्व कुछ भारतीयों का चयन इंग्लैंड का प्रतिनिधित्व करने के लिए हुआ। के.एस. रणजीत सिंह जी, पटौदी के नवाब और के.एस. दलीप सिंह जी ने इंग्लैंड के लिए टेस्ट क्रिकेट खेला। रणजीत सिंह जी ने 1896 में आस्ट्रेलिया के विरुद्ध ओल्ड ट्रैफर्ड में नाबाद 154 रन बनाए और विज्डन क्रिकेटर्स अल्मानेक द्वारा सम्मानित किए जाने वाले प्रथम भारतीय क्रिकेटर बने। लाला अमरनाथ टेस्ट में शतक बनाने वाले पहले भारतीय बने। जब उन्होंने भ्रमणकारी अंग्रेज़ दल के विरुद्ध 1933 में बंबई (वर्तमान मुंबई) में 118 रन बनाए। 1934-35 में भारत में एक पूर्ण घरेलू स्पर्द्धा आरंभ हुई। इसे रणजीत सिंह जी के नाम पर 'रणजी ट्रॉफ़ी' कहा गया। 1951-52 में मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में भारत ने इंग्लैंड को एक पारी और आठ रनों से हराकर अपनी पहली टेस्ट विजय दर्ज की और इंग्लैंड के ही विरुद्ध भारत ने 1961-1962 में अपनी पहली श्रृंखला जीती। इसी सत्र में दलीप सिंह जी के नाम पर एक क्षेत्रीय ट्रॉफ़ी स्थापित हुई।

भारत के प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी
Lala-Amar-Nath.jpg Mansur Ali Khan Pataudi.jpg Vinoo-Mankad.jpg C.K. Nayudu.jpg रणजीत सिंह सुनील गावस्कर Kapil-Dev-1.jpg Ravi-Shastri.jpeg सचिन तेंदुलकर कृष्णमाचारी श्रीकांत सौरव गांगुली राहुल द्रविड अनिल कुम्बले Mahendra-Singh-Dhoni.jpg Virender-Sehwag.jpg Mithali-raj-2.jpg

प्रारंभिक विजय

1952 में इंग्लैंड के विरुद्ध उसी वर्ष की जीत के पश्चात, भारत ने पाकिस्तान को पांच मुक़ाबलों की श्रृंखला में 2-1 से हराकर टेस्ट श्रृंखला में अपनी पहली विजय दर्ज की। इस श्रृंखला में और इसके पश्चात् न्यूजीलैंड के विरुद्ध श्रृंखला की विजय में वीनू मांकड, पॉली उमरीगर और विजय हज़ारे निर्णायक साबित हुए। किंतु उन जैसे विशिष्ट खिलाड़ियों और अन्य जैसे, सी. के. नायडू, विजय मर्चेंट, मुश्ताक अली व मुहम्मद निसार की मौजूदगी के बावजूद टेस्ट मुक़ाबलों में भारत का प्रदर्शन लंबे समय तक अप्रभावी रहा। अंतत:1970 में देश का दल अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में एक प्रभावी शक्ति के रूप में उभरा।

1971 में सुनील गावस्कर और 1979 में कपिल देव के उदय के साथ ही भारत ने विश्व के प्रमुख दलों को चुनौती देना आरंभ कर दिया। विश्व कीर्तिमानों को तोड़ने वाले ये दोनों खिलाड़ी लगभग दो दशक तक भारत के भाग्य के निर्णायक रहे। सुनील गावस्कर ने वेस्ट इंडीज के विरुद्ध 1970-71 में पदार्पण किया और श्रृंखला में 700 रनों से भी अधिक के योग से जल्दी ही चर्चित हो गए। उन्होंने भारत के लिए 125 टेस्ट मैच खेले और 34 शतक बनाए। यह कीर्तिमान 18 वर्षों से अक्षुण्ण रहा है। भारतीय टीम ने अपना पहला एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मुक़ाबला 1974 में खेला और 1983 में विश्व कप जीता। 1983 का विश्व कप जीतने वाले दल के कप्तान, कपिल देव, ने वर्षों तक भारत की गेंदबाज़ी को अकेले संभाला व 434 टेस्ट विकेटों का विश्व कीर्तिमान बनाया, जिसे 2001 में कर्टनी वॉल्श ने तोड़ा।
1970 के दशक के मध्य से भारत को विश्व के क्रिकेट खेलने वाले प्रमुख देशों में माना जाता है। 20वीं शताब्दी के अंत में उसके नाम कई कीर्तिमान व उपलब्धियाँ दर्ज थीं। मंसूर अली ख़ान पटौदी ने 1962 में केवल 21 वर्ष की आयु में वेस्ट इंडीज के विरुद्ध दल का नेतृत्व किया था। इस तरह, एक टेस्ट खेलने वाले राष्ट्र के रूप में भारत ने सबसे कम उम्र का टेस्ट कप्तान देने की प्रतिष्ठा प्राप्त की है। भारत के सितारा ओपनिंग बल्लेबाज़ सुनील गावस्कर, 100 रनों से अधिक की 34 पारियों के साथ 10,000 रन बनाने वाले विश्व के पहले बल्लेबाज़ बन गए। 21वीं सदी के उदय के समय कपिल देव निखंज ने सभी को पीछे छोड़ दिया, जब 434 विकेट लेकर वह विश्व में सबसे अधिक विकेट लेने वाले खिलाड़ी बन गए। मुहम्मद अज़हरुद्दीन, अपने कीर्तिमान संख्या में खेले एक दिवसीय मुक़ाबलों (323) और एक दिवसीय मुक़ाबलों के रनों (9111) के साथ अपने पहले तीनों टेस्ट मुक़ाबलों में शतक बनाने वाले एकमात्र खिलाड़ी रहे। विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ों में से एक सचिन तेंदुलकर के नाम एक दिवसीय मुक़ाबलों के सर्वाधिक शतकों (49) का कीर्तिमान है और साथ ही साथ टेस्ट मैचों में भी सर्वाधिक शतकों (51 शतक) का कीर्तमान भी सचिन तेंदुलकार के नाम है। इस प्रकार सचिन तेंदुलकर पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतक लगाने वाले एकमात्र बल्लेबाज़ हैं। विश्व क्रिकेट में भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने आईसीसी द्वारा आयोजित तीनों विश्व चैंपियनशिप प्रतियोगिताओं (विश्व कप, चैम्पियंस ट्रॉफ़ी, टी-20 विश्व कप) में ख़िताब जीता है।

1983 विश्व कप

कपिल देव, विश्व कप 1983 के साथ

एक ऐसी प्रतियोगिता में, जिसमें वेस्ट इंडीज की टीम सबसे प्रबल दावेदार थी, कपिल देव के नेतृत्व में भारत ने विश्व कप जीतकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। विचित्र बात यह थी कि नवागत ज़िम्बाब्वे ने भारत के सेमीफ़ाइनल में पहुंचने की उम्मीदों को लीग मुक़ाबलों में से एक में लगभग धूमिल कर दिया था। ज़िम्बाब्वे ने आस्ट्रेलिया को हरा दिया था और भारत को हराने के कगार पर था। पहले बल्लेबाज़ी करते हुए 17 रनों पर 5 विकेट के स्कोर पर लड़खड़ाती भारतीय टीम को कपिल देव ने बचाया। उन्होंने एक दिवसीय क्रिकेट की सर्वकालिक महानतम पारियों में से एक खेली और नाबाद 175 रनों का उनका योग उस प्रतियोगिता में उच्चतम योग रहा। भारत जीता, किंतु फिर भी टीम से अधिक अपेक्षाएं नहीं थीं। सेमीफ़ाइनल में शक्तिशाली इंग्लैंड के विरुद्ध खेलते हुए भारत ने एक विश्वसनीय जीत हासिल की। निश्चित ही अंतिम मुक़ाबला भारत की सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ विजय थी। यद्यपि टीम ने ख़ासी ख़राब बल्लेबाज़ी की और केवल 183 रन बनाए, लेकिन भारतीयों का क्षेत्ररक्षण व गेंदबाज़ी बेहतरीन थी। क्लाइव लॉयड उस ख़तरनाक वेस्ट इंडीज टीम का नेतृत्व कर रहे थे। जिसमें विवियन रिचडर्स, गॉर्डन ग्रीनिज, डेसमंड हेंस, मैल्कम मार्शल, माइकल होल्डिंग, जेफ्री डूजॉन, जोएल गार्नर और एंडी रॉबटर्स शामिल थे। मोहिन्दर अमरनाथ, कृष्णामचारी श्रीकांत, मदन लाल और रॉजर बिन्नी के हरफनमौला योगदान से भारत ने एक ऐसी टीम को हराया, जिसे सर्वश्रेष्ठ तेज़ गेंदबाजों की चौकड़ी व विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ी क्रम का गौरव हासिल था। विश्व कप विजय व उसके बाद 1983 भारत का गौरवपूर्ण वर्ष था। उस समय से भारतीय क्रिकेट टीम अधिक शक्तिशाली होती गई। 1970 व 80 के दशक के आरंभ में गुंडप्पा विश्वनाथ, दिलीप वेंगसरकर, संदीप पाटिल और 1980 व 90 के दशक में मोहम्मद अज़हरुद्दीन, रवि शास्त्री, अनिल कुंबले, सचिन तेंदुलकर और मनोज प्रभाकर जैसे दृढ़निश्चयी खिलाड़ियों के उत्कृष्ट प्रदर्शनों से भारत की टीम काफ़ी संतुलित ढंग से बढ़ती रही।

महेन्द्र सिंह धोनी विश्व कप ट्वेंटी-20 ट्रॉफ़ी 2007 के साथ

2007 विश्व कप ट्वेंटी-20

साल 2007 में भारतीय क्रिकेट टीम एकदिवसीय विश्व कप में बुरी तरह से हार गई। ऐसे में टी-ट्वेंटी की बागडोर महेन्द्र सिंह धोनी के हाथों में दे दी गई। धोनी ने टी-ट्वेंटी विश्व कप में ऐसा जलवा बिखेरा कि भारतीय दर्शक देखते रह गए। फ़ाइनल मैच में धोनी की सूझबूझ ने भारत को टी-ट्वेंटी का चैंपियन बना दिया। क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में उन्होंने भारत को विश्व में नंबर एक के पायदान पर ला खड़ा किया।

2011 विश्व कप

विश्व कप ट्रॉफी 2011 के साथ सचिन तेंदुलकर, हरभजन सिंह और सुरेश रैना

क्रिकेट इतिहास में आख़िरकार भारत ने वह इतिहास फिर से रच दिया, जिसका इंतज़ार देश को 28 साल से था। धोनी के धुरंधरों ने मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में श्रीलंका को हराकर आईसीसी विश्वकप, 2011 की ट्रॉफी अपने नाम कर ली। भारत अपनी धरती पर विश्वकप जीतने वाला पहला देश बन गया। ये टीम इंडिया का दूसरा विश्वकप है। इस विश्व कप जीत में भारतीय ऑलरांडर 'युवराज सिंह' हीरो बनकर उभरे और मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट रहे। कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी ने शानदार पारी खेलते हुए नाबाद 91 रन बनाए। मैच के 48.2 ओवर में धोनी ने छक्का जमाकर भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाई। इस जीत के साथ ही सचिन तेंदुलकर के विश्वकप जीतने का सपना भी पूरा हुआ।

नेत्रहीन ट्वेंटी-20 विश्वकप

विश्वकप ट्रॉफी 2012 के साथ नेत्रहीन भारतीय क्रिकेट टीम

बेंगलुरू के सेंट्रल कॉलेज ग्राउंड पर 13 दिसम्बर, 2012 गुरुवार को खेले गए नेत्रहीन ट्वेंटी-20 विश्वकप के फ़ाइनल मुकाबले में भारतीय क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान को 30 रनों से हराकर विश्व विजेता का ख़िताब अपने नाम कर लिया। भारतीय टीम ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए निर्धारित 20 ओवर में आठ विकेट पर 258 रन बनाए थे। लक्ष्य का पीछा करने उतरी पाकिस्तानी टीम निर्धारित ओवरों में आठ विकेट पर 229 रन ही बना सकी। इस तरह से भारत ने 29 रनों से जीत हासिल कर विश्वकप पर क़ब्ज़ा कर लिया। भारत की ओर से केतन भाई पटेल ने शानदार 98 रनों की पारी खेली, वहीं प्रकाश जयारमैय्या 42 और उपकप्तान अजय कुमार रेड्डी ने 25 रनों का महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पाकिस्तान की ओर से मोहम्मद जमील ने 47 रनों की तेजतर्रार पारी खेली। उनके अलावा अली मुर्तजा 38 और मोहम्मद अकरम ने 32 रनों का योगदान दिया। सेमीफ़ाइनल मुकाबलों में भारत ने श्रीलंका को और पाकिस्तान ने इंग्लैंड को हरा कर फ़ाइनल में प्रवेश किया था।

समाचार

भारत चौथी बार बना अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप विजेता

3 फ़रवरी, 2018 शनिवार
विश्व कप ट्रॉफ़ी के साथ अंडर-19 भारतीय टीम

आईसीसी अंडर-19 विश्व कप के फ़ाइनल में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 8 विकेट से हराकर विश्व कप पर अपना कब्ज़ा जमा लिया। 217 रनों के लक्ष्य को भारत ने 38.5 ओवरों में 2 विकेट खोकर हासिल कर लिया। इस मैच में भारत की ओर से मनजोत कालरा (101 नाबाद) ने शानदार शतक बनाया। मनजोत के अलावा इस मैच में भारतीय गेंदबाजों का भी रहा, जिन्होंने ऑस्ट्रेलियाई पारी को 216 रन पर ही समेट दिया। मनजोत के शतक के अलावा हार्विक देसाई (47 नाबाद), शुभमन गिल (31) और कप्तान पृथ्वी शॉ (29) ने बेहतरीन योगदान दिया। टीम इंडिया इस मैच में ऑस्ट्रेलिया पूरी तरह हावी दिखी। राहुल द्रविड़ की कोचिंग में विश्व कप में उतरी टीम इंडिया पूरे टूर्नामेंट में अजेय रही उसे कोई भी टीम हरा नहीं पाई।

चौथी बार बने चैम्पियन

ये चौथी बार है जब भारतीय टीम ने अंडर-19 विश्व कप जीता है। इससे पहले भारत 2000, 2008, 2012 में मोहम्मद कैफ, विराट कोहली, उन्मुक्त चंद की कप्तानी में अंडर-19 विश्व कप जीत चुका है। इसके साथ ही भारत इस ख़िताब को सबसे ज्यादा बार जीतने वाली टीम बन गई है। अंडर 19 विश्व कप के इतिहास में टीम इंडिया सबसे ज़्यादा फ़ाइनल खेलने वाली टीम बन गई है। भारतीय टीम ने 6 बार अंडर 19 विश्व कप का फ़ाइनल खेला है। 2002, 2006, 2008, 2012, 2016 और 2018 में इस टूर्नामेंट के फ़ाइनल तक का सफर तय किया है। भारत ने 2000, 2008, 2012 और 2018 में ये ख़िताब अपने नाम किया। 2006 और 2016 में टीम इंडिया फ़ाइनल में तो पहुंची थी, लेकिन वो इस ट्रॉफी को नहीं उठा पाई थी। भारत को बाद पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया ने इस टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा बार खिताबी मुकाबले खेले हैं। इन दोनों टीमों ने पांच-पांच बार अंडर 19 विश्व कप फ़ाइनल में शिरकत की है। इस टूर्नामेंट के फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को मात देने वाला एकलौता देश भारत ही है। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच दो बार अंडर 19 विश्व कप का ख़िताबी मुकाबला खेला गया है और दोनों ही बार टीम इंडिया ने कंगारुओं को धूल चटाकर ट्रॉफी अपने नाम की है। 2018 से पहले 2012 में भी इन दोनों टीमों का सामना अंडर 19 विश्व कप के फ़ाइनल में हुआ था। उस मुकाबले में भारत ने कंगारुओं को 6 विकेट से मात देकर विश्व कप जीत लिया था। वो पहला मौक़ा था जब किसी टीम ने अंडर 19 विश्व कप के फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया को मात दी थी।

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भारत ने लगातार दूसरी बार नेत्रहीन क्रिकेट विश्व कप जीता

20 जनवरी, 2018 शनिवार
विश्वकप ट्रॉफी के साथ नेत्रहीन भारतीय क्रिकेट टीम

शारजाह में खेले गए फ़ाइनल में भारत ने पाकिस्तान को दो विकेट से हराया। भारत के सामने जीत के लिए 309 रनों का लक्ष्य था, जिसे उसने 8 विकेट खोकर हासिल कर लिया। भारत ने यह जीत 38.2 ओवर में हासिल की। इससे पहले टॉस हारकर पहले बल्लेबाज़ी करते हुए पाकिस्तान ने निर्धारित 40 ओवर में 8 विकेट खोकर 308 रन बनाए। सुनील रमेश की 93 रनों की शानदार पारी की बदौलत भारत ने एक बार फिर नेत्रहीन क्रिकेट विश्व कप का ख़िताब जीत लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस जीत पर भारतीय टीम को बधाई दी है। भारत ने मैच में तेज शुरुआत की और 15 ओवरों में 111/1 का स्कोर खड़ा कर लिया। इसके बाद भारत के दो बल्लेबाज़ रन आउट हो गये और 16 ओवर में टीम का स्कोर 116/3 हो गया। सुनील और कप्तान अजय (62) ने यहां से भारतीय पारी को संभाला और भारतीय स्कोर को 25 ओवर में तीन विकेट पर 190 तक ले गए। 35 ओवर में 271 के स्कोर पर भारत को रमेश के रूप में चौथा झटका लगा। रमेश को आमिर इशफाक ने बोल्ड किया। भारत सधी हुई गति से लक्ष्य की ओर बढ़ रहा था तब कप्तान अजय आउट हो गए। इसके बाद भी भारत को लगातार दो झटके लगे लेकिन टीम ने अंतिम ओवरों में संयम बनाए रखा और जीत हासिल की। इससे पहले बदर मुनीर की हाफ सेंचुरी की बदौलत पाकिस्तान ने टूर्नमेंट के पांचवें एडिशन के फ़ाइनल में 308 का बड़ा लक्ष्य दिया।

विश्व कप में अजेय रहा भारत

भारत ने सेमीफ़ाइनल में बांग्लादेश को 7 विकेट से हराया था। वहीं पाकिस्तान ने श्रीलंका को मात देकर ख़िताबी मुकाबले में जगह बनायी थी। इससे पहले ग्रुप मुकाबले में भी भारत ने पाकिस्तान को 7 विकेट से हराया था। भारत ने पूरे टूर्नामेंट में शानदार खेल दिखाया। हालांकि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया पहला मैच बारिश की भेंट चढ़ गया था, लेकिन उसके बाद भारत ने श्रीलंका को 6 विकेट से हराया। इस मैच में भारत के सामने जीत के लिए 359 रनों का लक्ष्य था जो उसने दीपक मलिक के 179 रनों की मदद से 6 विकेट खोकर हासिल किया। श्रीलंका के बाद भारत ने पाकिस्तान को 7 विकेट से और बांग्लादेश को 10 विकेट से हराया। अपने अंतिम ग्रुप मैच में भारत ने नेपाल को 8 विकेट से हराया। सेमीफ़ाइनल में भारत ने बांग्लादेश को 7 विकेट से हराया था। इस तरह अजेय रहते हुए भारत ने पांचवें नेत्रहीन विश्व कप को लगातार दूसरी बार अपने नाम किया। पाकिस्तान नेत्रहीन क्रिकेट काउंसिल ने आईसीसी सीईओ डेव रिचर्डसन, पूर्व पाकिस्तानी कप्तान ज़हीर अब्बास और पूर्व भारतीय विकेटकीपर सैयद किरमानी को फ़ाइनल मैच के लिए विशेष अतिथि के तौर पर बुलाया था। 2014 में भारतीय टीम ने दक्षिण अफ़्रीका के केपटाउन में पाकिस्तान को ही हराकर यह ख़िताब जीता था।

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