गरदन पर छुरी चलाना
अर्थ- अपने स्वार्थ के लिए दूसरे का बहुत बड़ा अहित करना, जीविका छीन लेना।
प्रयोग- इतनी उमर गुज़र गई, इतने पढ़े- लिखे आदमियों को देखा, पर आपके सिवा कोई ऐसा न मिला जिसने हमारी गरदन पर छुरी न चलाई हो। -- प्रेमचंद
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
कहावत लोकोक्ति मुहावरे वर्णमाला क्रमानुसार खोजें
"https://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=गरदन_पर_छुरी_चलाना&oldid=625553" से लिया गया