चित्रकेतु

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Disamb2.jpg चित्रकेतु एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- चित्रकेतु (बहुविकल्पी)

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चित्रकेतु सूरसेन देश का एक चक्रवर्ती राजा था। निःसंतान चित्रकेतु को अंगिरा ऋषि द्वारा संपन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से पुत्र की प्राप्ति हुई। किंतु यज्ञ के समय ही ऋषि ने बता दिया था कि यह पुत्र तुम्हें हर्ष और शोक दोनों प्रदान करने वाला होगा।[1]

  • यथा समय पुत्र उत्पन्न होने पर राजा चित्रकेतु की प्रसन्नता की सीमा न रही। किन्तु रानी की सौतों ने बालक को विष देकर मार डाला। बालक की मृत्यु से राजा-रानी पर दु:ख का पहाड़ टूट पड़ा। उसे शोक संतप्त देखकर महर्षि अंगिरा ने कहा- "तुम्हारी आसक्ति देखकर मैंने तुम्हें पुत्र दिया। अब तुम समझ गए हो कि पुत्र के कारण कितना दु:ख होता है। स्त्री, संतान, घर, धन आदि ऐश्वर्य की वस्तुएं कितनी दु:खदायी हैं"।
  • नारद भी वहां उपस्थित थे। उन्होंने बालक को जीवित करके कहा कि तुम अपने दु:खी पिता का शोक दूर करो"। किन्तु पुनर्जीवित बालक बोला- "मेरे कारण इनको कष्ट हुआ, अतः ये मेरे प्रति शत्रुभाव क्यों नहीं रखते? फिर मैं जिस देह को एक बार त्याग चुका हूं, उससे अब मेरा कोई नाता नहीं"। इतना कहकर जीव पुनः शरीर से निकल गया। अंत में नारद से उपदेश प्राप्त करके राजा ने अपना राज-पाट त्याग दिया।
  • एक बार इसने पार्वती को सबके सामने शिव की जंघा पर बैठे देखा तो यह हंस पड़ा। इस पर क्रुद्ध होकर पार्वती ने इसे शाप दिया और अगले जन्म में पह वृत्तासुर के रूप में पैदा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय संस्कृति कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: राजपाल एंड सन्ज, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 330-331 |

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